ये कहानी मेरी एक पाठिका सहेली की कहानी है, जो उसने मुझे संपादन करने की रिक्वेस्ट की। आगे की कहानी उसी की ज़ुबानी।
मेरा नाम शिखा है, और मैं 25 साल की हूँ। मैं जबलपुर की रहने वाली हूँ, और एक आर्मी फैमिली से आती हूँ। मेरे परिवार में मैं, मेरे पापा, मेरी माँ, मेरा एक बड़ा भाई और मेरे दादा जी हैं।
मेरे पापा एक आर्मी अफसर हैं और अक्सर उनकी इधर-उधर पोस्टिंग होती रहती हैं। मेरी माँ भी एक आर्मी अफसर की ही बेटी है, और जबलपुर में एक गरीब और अनाथ बच्चों के लिए स्कूल चलाती है। मेरे भैया लंदन में रहते हैं और वहीं नौकरी करते हैं। और मेरे दादा जी, वो भी एक रिटायर्ड आर्मी अफसर हैं।
पहले तो हम पापा के साथ अलग-अलग शहर में जाते रहते थे, लेकिन दादा जी की रिटायरमेंट के बाद उन्होंने एक आलीशान घर बनाया जबलपुर में, तो हम सब अब यहाँ ही रहते हैं।
मैं मुंबई में रहकर ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही थी, और साथ-साथ थोड़ी बहुत मॉडलिंग का काम भी कर लेती थी। लेकिन मुझे आगे एम०बी०ए० के लिए कैट एग्जाम की तैयारी करनी थी, और पूरे देश में लॉकडाउन लगने के कारण मुंबई में रहने का कोई मतलब नहीं था, तो मैं जबलपुर आ गयी।
क्यूंकि मैं आर्मी ब्रैट हूँ तो मुझे छोटे कपड़े पहनने पे कोई रोक-टोक नहीं थी। और मेरी माँ भी अपनी जवानी में छोटे कपड़े ही पहनती थी। और मेरे पापा और दादा जी भी बहुत खुले विचारों के थे। तो मुझे घर पर कभी असहज नहीं महसूस हुआ। इसीलिए शायद मुझे अपने कॉलेज के दिनों में बहुत जल्दी मॉडलिंग का काम मिल गया।
क्यूंकि मैं मॉडल हूँ, मैं अपने इंस्टाग्राम पर हर तरीके के फोटो डालती हूँ, और मेरा पूरा परिवार मेरी हर फोटो पे कमेंट और लाइक ज़रूर करते थे।
अब असल कहानी पे आते हैं।
पहले लॉकडाउन के बाद अब धीरे-धीरे हर कुछ खुलने लगा था। मैं घर पर ही रह कर पढ़ाई करती थी। पापा का तो कश्मीर में ही पोस्टिंग था। माँ सवेरे ही अपने स्कूल के लिए निकल जाती थी। मैं और दादा जी दिन भर घर पर ही होते। मेरे और दादा जी की बहुत पटती थी। वो मुझे बहुत प्यार करते थे। मेरी हर इच्छा पूरी करते थे और उनसे मेरी बहुत ही अच्छी बॉन्डिंग थी।
मैं घर पर छोटे-छोटे कपड़े ही पहनती। शॉर्ट्स, टैंक टॉप्स, टाइट टॉप्स। सवेरे मैं जब योग करती तो सिर्फ स्पोर्ट्स ब्रा और शॉर्ट्स पहन कर करती और दादा जी पास में ही बैठ के अखबार पढ़ते रहते।
एक दिन मैं वर्कआउट करके पसीने से लथपथ थी। तो नहाने चली गयी और शायद हड़बड़ी में दरवाज़े की कुण्डी खुली ही रह गयी थी। नहाते हुए मैं अपनी चूत में ऊँगली कर लेती थी, क्यूंकि जबलपुर वापस आने के बाद बॉयफ्रेंड से ब्रेकअप हो गया था, और यहाँ कोई बॉयफ्रेंड था नहीं।
नहाते हुए जब अचानक मेरी नज़र बाथरूम के आईने पर पड़ी, तो देखा की दादा जी हल्के खुले दरवाज़े से अंदर झाँकने की कोशिश कर रहे थे, और अपना लंड निकाल कर हिला रहे थे। ये देख कर मुझे बड़ा अजीब लगा। और सेटिंग ऐसी थी की मैं दादा जी को साफ़ देख पा रही थी। पर दादा जी ये नहीं देख पा रहे थे, कि मैं उनको लंड हिलाते हुए देख सकती थी।
मुझे पहले कुछ देर तो बड़ा अजीब लगा। पर क्यूंकि मैं भी बहुत दिन से प्यासी थी, और कोई मर्द आपको देख कर अगर उत्तेजित हो रहा है तो आपको और ज़्यादा उत्तेजना होती है। मैं जान-बूझ कर अपने चूत को रगड़ने लगी और एक हाँथ से अपनी चूचियों को दबाने लगी।
मैं देख पा रही थी कि दादा जी अपना लंड ज़ोर-ज़ोर से हिला रहे थे। जब थोड़ी देर बाद वो झड़ने को थे, वो जल्दी से अपना लंड पकड़ कर कमरे से बाहर भाग गए। अब मुझे अपने दादा जी का लंड अपने अंदर लेने का मन करने लगा। क्यूंकि दादा जी का लंड बहुत बड़ा था। उतना बड़ा लंड मैंने अपनी लाइफ में कभी नहीं देखा था।
अब मैं अपने दादा जी के बारे में बता दूँ। मेरे दादा जी एक आर्मी अफसर थे। उनको देख कर नहीं लगता था कि वो रिटायर हो गए थे। 6 फ़ीट 2 इंच की हाइट थी, और आज भी वो एक्सरसाइज़ करते थे, जिस वजह से उनकी बॉडी काफी वेल-बिल्ट थी।
मैं अब दादा जी को पटाने का प्लान बनाने लगी। सवेरे योग करने के वक़्त मैं शॉर्ट्स के नीचे पैंटी नहीं पहनती थी, ताकि मेरी चूत की फांक साफ़ दिखाई दे। मैं जान-बूझ कर दादा जी के सामने हॉट योग करती थी। नहाते वक़्त दरवाज़ा रोज़ खुला छोड़ देती थी, ताकि दादा जी मुझे नंगी देख पाए।
मैं उनके पास जब बैठती तो टॉप के नीचे ब्रा नहीं पहनती थी, ताकि मेरी चूचियों का आकार और निप्पल का उभार साफ़ दिखे। दादा जी को जान-बूझ कर सामने से हग करती थी, ताकि अपनी चूचियां उनके सीने पे दबा सकूँ और उनके लंड को भी दबा सकूँ। पर इतना कुछ करने के बावजूद दादा जी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी।
एक दिन मैं किसी काम से बाहर गयी थी। जब वापस घर लौटी तो दादा जी के कमरे से बड़बड़ाने की आवाज़ सुनाई दी। जब मैं उनके दरवाज़े के करीब गयी तो देखा की दरवाज़ा खुला हुआ था। दादा जी अपनी कुर्सी पर बैठे थे, और पूरे नंगे थे। उनके एक हाथ में उनका बड़ा लंड था, और दूसरे हाथ में मेरी एक ब्रा लेकर वो सूंघ रहे थे। उनकी आँखें बंद थी, और वो अपने लंड हिला रहे थे।
वो बड़बड़ाते हुए कह रहे थे:
दादा जी: ओह्ह बेटा शिखा, क्या माल रंडी है तू मेरी गुड़िया। तू मेरी पोती नहीं होती तो तुझे पटक कर ले लेता तेरी चूत। तेरी चूत को चोद-चोद कर भोंसड़ा बना देता मेरी रानी। इतनी खूबसूरत और जवान रंडी को चोदने का मज़ा ही अलग होगा।
ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरे ब्रा पे अपना सारा रस निकाल दिया। मुझे बड़ी ख़ुशी हुयी पर मैंने सोचा ज़रा दादा जी को डराया जाए, और मैं अचानक कमरे में गुस्से का नाटक करते हुए उनके कमरे में घुस गयी।
मैं: दादा जी! ये आप क्या कर रहे हैं?
मुझे अचानक देख दादा जी डर गए और जल्दी से मेरे ही ब्रा से अपना लंड छुपाने लगे।
दादा जी: बेटा, वो मैं…., नहीं ऐसा नहीं…., तुम गलत मत समझो…
और वो घबरा के बड़बड़ाने लगे।
मैं: दादा जी! ये सब क्या है? आपको शर्म नहीं आती? आप अपनी ही पोती के बारे में ऐसा सब सोचते हो? और आप इतने बेशरम हो की मेरी ब्रा लेकर ये सब कर रहे हो?
दादा जी बिल्कुल घबरा गए, और वो शर्म से सर झुका कर बैठे थे।
मैं: आप ऐसे हो मुझे पता नहीं था। मैं तो आपको सबसे ज़्यादा प्यार करती थी। पर आप मेरे बारे मे ये सब सोचते हो? और फिर ऐसी हरकतें करते हो?
मुझे उन्हें डराने में बड़ा मज़ा आ रहा था, पर मेरी चूत पूरी गीली हो गयी थी, और दादा जी बहुत हॉट और क्यूट लग रहे थे बिना कपड़ों के।
तो मैं उनके सामने जाकर बैठ गयी। फिर मैंने उनके हांथों से अपनी ब्रा लेकर फेंक दी, और उनके बड़े से लंड को पकड़ कर कहा-
मैं: दादा जी! आप मुझे बता सकते थे। मैं तो आपको सबसे ज़्यादा प्यार करती हूँ।
ये कह कर मैं उनके लंड को ब्लोजॉब देने लगी। उनका लंड किसी सांड या घोड़े के लंड जितना बड़ा था। मेरे छोटे से मुंह में सिर्फ उनके लंड का टोपा ही जा पा रहा था। उनके लंड को पकड़ कर मैं चूमने और चूसने लगी। कुछ देर दादा जी हैरानी से मुझे देख रहे थे, पर फिर उन्हें मज़ा आने लगा।
दादा जी: चूस मेरा लंड, मेरी गुड़िया। अपने दादा जी का लंड मज़े से चाट, मेरी परी। बहुत दिनों से सताया है तूने। तेरी तस्वीर देख-देख के मैं रोज़ अपना रस निकालता था। जब से तू वापस आयी है तब से तुझे पटक कर चोदने का मन करता है बेटा, पर हिम्मत नहीं होती। तू जब निक्के-निक्के कपड़े पहन कर आती है, मन करता है तेरे कपड़े फाड़ कर तुझे नंगी लिटा कर पूरे बदन को चुमूं।
मैं: आपको तो पता है दादा जी कि मैं आपको सबसे ज़्यादा प्यार करती हूँ। आप मुझे कुछ भी कहो, मैं कभी बुरा नहीं मानूंगी। आप पहले भी बोल सकते थे।
मैं उनका लंड पकड़ कर हिलाये जा रही थी।
दादा जी: कैसे बोलता बेटा? तू मेरी पोती है। ऐसे कैसे बोलता?
मैं: देर आये पर दुरुस्त आये दादा जी। मैं आपकी राजदुलारी हूँ। आपको मुझे जैसे प्यार करना है आप कर सकते हो दादा जी। आपका मुझ पर पूरा हक़ है।
यह कह कर मैं खड़ी हुयी आर दादा जी की नंगी गोद में बैठ गयी, और दादा जी के होंठो को चूमने लगी। और दादा जी भी मेरे चेहरे को पकड़ कर चूमने लगे। मैं दादा जी की नंगी छाती में घने बालों से खेलने लगी, और उनको चूम रही थी।
इतने में दादा जी मुझे गोद में लेकर उठे, और मुझे बिस्तर पर ले गए और बिस्तर पर पटक दिए। अब उनका लंड बिल्कुल सीधा खड़ा हो गया था और बहुत भयावह सा दिख रहा था। अब वो बिस्तर पर आ गए, और मुझे चूमने लगे, और एक हाथ से मेरे चुचों को मेरे टॉप के ऊपर से मसलने लगे।
और उसके बाद उन्होंने मेरे टॉप को उतारा और मेरी ब्रा को खोल दी।
दादा जी: अरे गुड़िया, तुम्हारे चूचे तो बहुत सुडौल और क्यूट हैं।
और ये कह कर वो मेरी चूचियों को मसलने और चूसने लगे और मेरे मुंह से सिसकारियां निकलनी शुरू हो गयी।
मैं: आह दादा जी, ओह्ह ओह, उफ़ हम्म्म, उफ़, चूसिये मेरी बूब्स को दादा जी, मसलिए, और ज़ोर से काटिये मेरे निप्पल को। प्लीज मेरा दूध निकाल दीजिये दादा जी।
दादा जी मेरे निप्पल को चूस रहे थे और काट रहे और ज़ोर-ज़ोर से मसल रहे थे। और मैं दादा जी के बड़े जानवर जैसे लंड को अपने हांथो में पकड़ कर आगे-पीछे हिला रही थी।
इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में।