मैं हूं 28 साल का अजीत सिंह गिल – अजीत, जीत, जीता, जीते – जिसका जैसा मन करता है – जैसा महौल बनता है – वैसे ही मुझे बुला लेता है।
लड़कियां चुदाई के वक़्त अक्सर आअह….. जीत….. ऊऊह्ह्ह….. जीते कह कर सिसकारियां भरती हैं।
अब अगर मैं 28 साल का अजीत सिंह गिल – उर्फ़ जीत, जीता , जीते – अपनी आपबीती सुना रहा हूं तो इसमें मेरी उम्र का क्या कसूर। सारे ठरकी पच्चीस से तीस साल की उम्र के बीच के ही होते हैं। इसी उम्र के दरम्यान इनकी उम्दा चुदाईयों की कहानियां बनती हैं।
मैं पंजाब अमृतसर के पास तरनतारन का रहने वाला हूं। इलेक्ट्रिकल इंजीनियर में डिग्री की है। पंजाब के बिजली विभाग में SDO हूं।
अब मैंने डिग्री कैसे पास कर ली, ये बापू से पूछना पडेगा, क्योंकि मेरे तो सालाना पेपरों में कभी पैंतालीस प्रतिशत से नंबर ही ज्यादा नहीं आये।
अभी तक शादी नहीं हुई। अभी करना भी नहीं चाहता। शादी के बाद चुदाई की मौज मस्ती खत्म हो जाती है। 30 साल की उम्र तक ही लड़कियां और औरतें फंसती हैं। उनको भी तो सख्त लंड चाहियें। मर्दों को शादी 30 और 35 के बीच ही करनी चाहिए – दुनिया भर की चुदाईयां करने के बाद, जब चुदाईयों से मन भर जाए और लंड थक जाए।
आम लोगों मानना है की 35 के बाद मर्दों के लंड के सख्ती कम होने लगती है और लंड चूत में रगड़ कर नहीं जाता।
वैसे तो मेरे एक दोस्त का कहना है साठ की उम्र तक भी कईयों के लंड में सख्ती कायम रहती है। उसका कहना है घोड़ा और मर्द कभी बूढ़े नहीं होते।
हाथ कंगन को आरसी क्या, और पढ़े लिखे को फारसी क्या? कई साधू संत इसका जीता जागता उदाहरण हैं जिन्होंने कुंवारियों की चूत की सील ही साठ की उम्र में तोड़ी और अब जेल में चक्की पीस रहे हैं।
जेल में तो इस लिए हैं कि गलत लड़की पर हाथ डाल दिया और पकडे गए नहीं तो पता नहीं और कितनी चूतों की सीलें और तोड़ते – और ये भी नहीं मालूम कितनी चूतों की सीलें तोड़ी होंगी I
खैर हमे क्या लेना देना उन साधू संतों से। हमे तो अपनी बात करनी है।
तो दोस्तों अगर हो सके तो 30 तक चूतें चोदो और उसके बाद 35 की उम्र तक पहुंचते पहुंचते शादी करके एक चूत से बंध जाओ।
अपने बारे में कुछ और भी बता दूं। मेरा ताल्लुक पंजाब के एक किसान परिवार से है। तरनतारन के पास ही हमारी पुश्तैनी जिमींदारी हैं।
72 एकड़ की अच्छी खासी जिमीदारी है। अगर आज की तारीख में ये जमीन बेची गए तो 150 करोड़ से ऊपर की तो जमीन ही है।
इलाके के रसूखदार और अमीर लोगों में मेरे बापू सरदार सुच्चा सिंह गिल का नाम आता है। सत्ता के गलियारों तक पहुंच है। चुनावों के नतीजों की मेरे बापू को अच्छी समझ है। चुनावों के दौरान जिस भी पार्टी की जीतने की उम्मीद हो उसी उसी पार्टी का झंडा हमारे घर की छत पर लहराता है।
घर में दो टैक्टर, दो SUV, दो बड़ी कारें, एक छोटी कार, एक बड़ा मोटर साइकिल – बुलेट वाला – और दो स्कूटियां खड़ी रहती है। आलम ये है की, घर के नौकर भी साइकिल चलाना पसंद नहीं करते।
बत्तीस दुधारू विलायती नस्ल की गायें भी हैं। एक SUV तो दूध के बड़े बड़े केन अमृतसर और तरनतारन शहर में ले जाने में इस्तेमाल होती है। दूध के बंधे हुए होटलों के ग्राहक हैं।
सच पूछो तो दो SUV, दो बड़ी, एक छोटी कार, बाइक, स्कूटी I इन सब की जरूरत तो नहीं मगर वही बात – क्योंकि साथ वाले जिमींदार के पास ये सब है, इस लिए हमारे पास उससे ज्यादा होना चाहिए। पूरे पंजाब का यही हाल है – क्या गांव क्या शहर।
पंजाब की जमीन है, सोना उगलती है। सालाना आधे करोड़ से ज़्यादा की आमदन है जो पूरी की पूरी बापू के गल्ले में जाती है – इनकम टैक्स ढेले का नहीं। खेती की लाखों की आमदनी पर भी कोइ इनकम टैक्स नहीं।
इनकम टैक्स की तो बात ही क्या करनी – बिजली पानी भी मुफ्त है – और तो और हर चार साल बाद सरकारी कर्जे भी माफ़ हो जाते हैं।
राजनितिक – सियासी – पार्टी कोई भी हो, सभी पार्टियां किसानों के कर्जे माफ़ करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती हैं। ये सियासी पार्टियां आपस में बढ़ बढ़ कर दावे करती हैं कि कौन इन करोड़पति किसानों के कर्जे माफ़ करवा सकती हैं।
किसान ही कौन से कम हैं। बिना पैंदे के कुएं हैं – कभी ना भरने वाले कुएं। जितना मर्जी देते जाओ इनका कुछ नहीं बनता। हमेशा कुछ ना कुछ मांगते रहते हैं।
जब चाहते हैं सरकारी दफ्तरों का घेराव कर देते हैं, चौराहे पर बैठ धरने दे देते हैं और किसी पार्टी की भी सरकार हो उस सरकार की गांड में डंडा दे देते हैं।
सियासी पार्टियों के लीडरों की हालत ये है कि धरने पर बैठे जिमीदारों के गले में आ आ कर गले में हार भी डालते हैं, अन्नदाता अन्नदाता बोल कर उनके टट्टे चाटते हैं।
किसी को इस बात से कोइ मतलब नहीं की उनके चौराहे पर बैठने से कितने आम लोगों की जिंदगियां हराम हो रही हैं । ये दुनिया ही मतलब की है ऐसे ही चलती है। आम बंदे की जिंदगी की कौन परवाह करता है ?
बताते हैं डेरी की आमदन पर टैक्स लगता है, पर मेरा बापू ने तो बत्तीस गायों की दूध की बिक्री पर भी कभी टैक्स नहीं दिया। ये पंजाब के किसान हैं, कोइ बड़ी बात नहीं कागज़ों में सारी की सारे गायों को बैल और सांड बता दिया हो।
यही हाल हमारे मुर्गीखाने का भी है। मुर्गीखाने के जगह किराय की है 4000 से ज़्यादा मुर्गियां हैं – दस दड़बों में बंद रहती हैं। रोज के 3000 – 3500 अंडे देती हैं। तरनतारन के दुकानदार खुद ही आ कर अंडे ले जाते है। जो मुर्गियां अंडे देना बंद कर देती हैं उनको कसाई ले जाते हैं। इसको बोलते हैं – आम के आम गुठलियों के दाम।
इन सब का इस कहानी की साथ बस इतना सा ताल्लुक है कि ये सब मैं अपनी हैसियत बताने और समझाने के लिए बता रहा हूं कि मुझे रूपए पैसे की कोइ कमी नहीं है। मेरी रोज़मर्रा की ज़िंदगी और चुदाई से इसका इतना ही लेना देना है।
करोड़ों की जिमीदारी वाले मेरे बापू की पहुंच ऊपर तक है जिस कारण मुझे बिजली विभाग में नौकरी मिलने में कोइ कठिनाई नहीं हुई। मोटी तनख्वाह और साथ ही “ऊपरी कमाई”।
“ऊपरी कमाई” का आलम ये है कि मुझे पैसे की कोइ कमी नहीं, और ना ही इस “ऊपरी कमाई” का लालच ही है। मगर हमारे देश में लोगों को पता नहीं क्या लगता है कि उनके लिए सरकारी अफसर की मुट्ठी गरम करना मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में चढ़ावा चढ़ाने के बराबर है – चढ़ावा चढ़ाओ और सारी मुसीबतें खत्म। ।
अब मैं अकेली जान इतने रुपयों का क्या करूं ? खूब उड़ाता हूं, अपने पर भी और लड़कियों पर भी। कार अपनी है ही, शहर से बाहर के दो तीन होटल वालों के साथ यारी बन गयी है, उन्हीं के होटलों में लड़कियां ले जाता हूं और रात रात भर मस्ती भरी चुदाई करता हूं। पुलिस, बिजली विभाग और इनकम टेक्स जैसे सरकारी महकमों में काम करने वालों के वैसे ही बड़े जल्दी दोस्त यार बन जाते हैं।
सच पूछो तो नौकरी तो मैं लड़कियां और औरतें चोदने के लिए कर रहा हूं, वरना संभालनी तो मुझे भी जिमीदारी ही है।
वही बात – करोड़ों की जमीन, लाखों की आमदन – टैक्स कोइ नहीं – ऊपर से बिजली पानी मुफ्त और कर्जे माफ़। नौकरी को तो मैं लंड पर भी नहीं मारता।
लंगोट का कच्चा हूं – हर जवान लड़की या औरत को देख कर उसे चोदने के रास्ते ढूढ़ने लगता हूं। चुदाई के मामले में मैं बड़ा विशाल ह्रदय हूं जात पात तक में विश्वास नहीं करता।
लड़की देखने में ठीक – सुन्दर और तराशे हुए शरीर की मालकिन होनी चाहिए – सेक्सी होनी चाहिए और चुदाई के लिए तैयार होनी चाहिए बस – जाति कोइ भी हो क्या फरक पड़ता है ?
वैसे भी चूत पर जाति थोड़े ही लिखी होती है ? वैसे तो जाति शकल पर भी नहीं लिखी होती – कागजों में ही लिखी होती है। कागजों में जाति लिखनी बंद कर दो, जात पात, छूआ छूत अपने आप ही खत्म हो जाएगी।
कालेज में मैं परले दर्जे का “लड़की फसाऊ” समझा जाता था, जिससे कोइ लड़की बच नहीं पाती थी। वैसे तो मेरी अपने बारे में अभी भी यही राय है।
अभी कुछ ही दिन पहले ही मेरी बठिंडा में बदली हुई है। बिजली विभाग के ही एक बंदे ने मुझे बठिंडा के मॉडल टाउन में एक किराये का घर दिलवा दिया है। दुमंजला घर है। ऊपर के हिस्से में मकान मालिक हैं। लगभग 38 वर्षीय अमित चोपड़ा, 36 वर्षीय उनकी पत्नी ज्योति चोपड़ा और 11 साल की एक बेटी श्रेया ।
दोनों ही पति पत्नी बठिंडा एक बड़े सीमेंट कारखाने में काम करते हैं। अमित सेल्स डिपार्टमेंट में है। महीने में पंद्रह दिन घर से बाहर रहता है। ज्योति किसी बड़े अफसर की सेक्रेटरी है। दोनों की तनख्वाह मिला कर पौने दो लाख महीने से ऊपर हो जाती है – मतलब पैसे की कोइ तंगी नहीं।
आज कल हमारे देश में भी तनख्वाहें कम नहीं हैं। सीमेंट के बड़े कारखाने अच्छी तनख्वाह के लिए जाने जाते हैं। घर अपना है ही। सोलह हजार नीचे के पोर्शन का किराया है जिसमें मैं रहता हूं। तीन कमरे, दो बाथरूम, किचन और स्टोर I
ज्योति और अमित सुबह कार से जाते तो इक्क्ठे हैं मगर शाम को आने का पता नहीं होता। ज्योति तो ठीक शाम पांच बजे कार से घर पहुंच जाती है । अमित तो कई बार रात आठ आठ नौं नौं बजे भी आता है। कम्पनी की गाड़ी उसे घर छोड़ जाती है।
घर ऊपर नीचे एक ही परिवार के लिए बना हुआ है – डुप्लेक्स। परिवार छोटा होने के कारण चोपड़ा परिवार ने नीचे का पोर्शन किराए पर दिया हुआ है।
नीचे के पोर्शन में आगे पीछे दोनों तरफ बरामदा है। आगे से ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां हैं। पीछे के बरामदे से भी ऊपर के लिए सीढ़ियां हैं जिस से परिवार में किसी को ऊपर नीचे आने जाने में कोइ परेशानी नहीं। पीछे की सीढ़ियों का दरवाजा ऊपर की तरफ से बंद रहता है।
अमित चोपड़ा देखने में ठीक ठाक है – लम्बा ऊंचा मगर बेहद दब्बू किस्म का। सीधी भाषा में कहा जाये तो – चूतिया। सेल्स डिपार्मेंट में अक्सर लोग चुस्त चालाक हो जाते हैं, मगर अमित पर इसका कोइ असर नहीं हुआ।
उधर ज्योति बहुत ही सुन्दर है। गोरी चिट्टी। पांच फुट आठ – नौं इंच लम्बी इकहरे शरीर की। 32 – 28 – 34 साइज़ का शरीर होगा – सेक्सी, फिट – पक्की पंजाबन । जिस तरह का ज्योति का काम है उसे अपने आप को फिट रखना ही पड़ता है।
वैसे सच कहूं तो दिल तो “पहली नजर” में ही आ गया था ज्योति पर I पहले ही दिन उसे देख कर मेरी आंखों के आगे उसकी गुलाबी चूत घूम गयी। – चुदाई करने की इच्छा होने लगी।
मगर नहीं – मैं असूलों वाला सरदार हूं I सरदार अजीत सिंह गिल – ज्योति को कैसे चोद सकता हूं I सात घर तो डायन भी छोड़ देती है। लंगोट का कच्चा हो सकता हूं मगर चरित्र – करैक्टर – का कच्चा नहीं। और फिर मकान मालकिन की चुदाई ? कभी भी नहीं।
अब वो बात अलग है कि वो ज्योति चूत ही खोल कर लेट जाये या फिर लंड पर बैठ कर उठक बैठक करने लगे – ऐसे में तो बड़े से बड़ा चरित्रवान ब्रह्मचारी भी कुछ नहीं कर सकता।
ज्योति का कपड़ों का चुनाव और फैशन करने का तरीका बहुत उम्दा है। ज्योति बातचीत की भी तेज है और मॉडल टाउन की पूरी गली में उसकी सबसे अच्छी बोलचाल है।
ज्योति की मुहल्ले में बोलचाल सब से है मगर आना जाना किसी के भी घर भी नहीं। ज्योति का अपना ही अलग सर्कल है। यहां तक की सब्जी वाले के ठेले पर भी सब्जी लेने ज्योति नहीं जाती – ये काम उसकी कामवाली चम्पा करती है।
चम्पा ज्योति के घर के सारे काम करती है। बर्तन सफाई से लेकर कपड़े धोने तक। चम्पा के पास ज्योति के घर की एक चाबी रहती है। सीमेंट कारखाने में ही काम करने वाले ज्योति के जानकार की कोइ रिश्तेदार है – भरोसे वाली है। बीस, इक्कीस साल की – चम्पा।
चम्पा बड़ी ही सफाई पसंद औरत है। सांवला रंग मोटे मोटे नैन नक्श, देखने में अच्छी और आकर्षक। चम्पा छोटे कद की है मगर मम्मे और चूतड़ भारी हैं। साफ़ सुथरी रहती है। महाराष्ट्रियन है और बालों में चमेली का तेल लगाती है। जब आती है तो मुझे चमेली के तेल की खुशबू से ही पता चल जाता कि चम्पा आ गयी है।
चम्पा की आंखें बड़ी खूबसूरत हैं – ये बड़ी बड़ी – बहुत कम औरतों की होती हैं ऐसी आंखें । चेहरे पर अजीब सी चमक रहती है चम्पा के। कुल मिला कर कामवाली है मगर चोदी जा सकती है – चोदने में कोइ बुराई नहीं। वैसे भी कहते हैं पंजाबनों की तरह महाराष्ट्र की औरतें भी बहुत सेक्सी होती हैं – चुदाई के लिए हमेशा तैयार। खुल कर चुदाई करवाती हैं।
मेरा दोस्त कहता है कई बार ऐसे साधारण दिखने वाली लडकियां चुदाई बड़ी मस्त करवाती हैं। चुदाई करवाते हुए चूत भींच लेती है और चूतड़ ऐसे घुमाती हैं के की चोदने वाला बंदा मिनटों में झड़ जाता है।
कभी चम्पा को चोदने का मौक़ा मिला तो देख लेंगे कि क्या चम्पा सच में ही ऐसी ही चुदवाती है ?
“चुदाई करवाते हुए चूत भींच लेती है और चूतड़ घुमाती है” ?
ज्योति के अलावा चम्पा किसी के घर काम नहीं करती। पेशेवर कामवाली नहीं है। चम्पा अक्सर चुप्प ही रहती है। अपने काम में मस्त। ऐसी लड़कियों का पता नहीं चलता कि चुदाई करवाना चाहती भी हैं या नहीं।
ज्योति ने चम्पा को मेरे घर के काम पर भी लगा दिया है। एक बंदे का काम ही कितना होता है। रोज का एक जोड़ा कपडे और थोड़े से बर्तन। मैं खाली नाश्ता ही सुबह बनाता हूं दिन का खाना बाहर होटल या ढाबे पर खा लेता हूं। रात का खाना भी बाहर से खा कर आता हूं।
अगर दारू का प्रोग्राम हो तो रात को खाना बाहर से मंगवा लेता हूं। वैसे सच बात तो ये है की खाना छः दिन तो बाहर से आता ही है – क्यों की हफ्ते की पांच दिन तो मैंने दारू पीनी ही होती है।
चम्पा का जब मन करता है आ कर काम कर जाती है। अगर मैं घर पर नहीं भी हूं तो पीछे की सीढ़ियों से आ कर काम कर जाती है। चम्पा से जब भी आमना सामना होता है तो चम्पा बड़े मस्त करने वाले अंदाज में कहती है, “राम राम साहब” और साथ ही अपनी साड़ी अपने चूतड़ों या चूत पर ठीक करती है।
मकान मालकिन ज्योति मुझे नाम से बुलाती है – ओये अजीत – जीते। तू तड़ाक से बात करती है पक्की पंजाबनों की तरह। मैं ज्योति को भरजाई बुलाता हूं – पंजाबी लोग भाभी को भरजाई ही बुलाते हैं। आठ साल का फरक भी तो है मेरी और ज्योति की उम्र में।
गली में एक सफाई वाली आती है – शीला – जिसकी जवानी की दास्तान इस कहानी “शीला की जवानी” में सुनाने जा रहा हूं। शीला की उम्र होगी बीस या फिर बाईस साल – अट्ठारह की भी हो सकती है । देखने पर लगता है शीला पर जवानी जरा ज़्यादा ही मेहरबान है – और जरा जल्दी भी आ गयी है।