ये कहानी पूर्णतया काल्पनिक है। इस कहानी के सभी पत्रों और घटनाओं का वास्तविकता से कोइ सम्बन्ध नहीं। ये कहानी केवल मनोरंजन के लिए लिखी गयी है।
“नमस्ते – मुझे तो आप भूले नहीं होंगे”।
“मैं, कानपुर से मालिनी अवस्थी, फिर से आपकी सेवा में एक बार फिर एक नए केस, एक नई कहानी के साथ हाजिर हूं”।
“आपने मेरी नसरीन और असलम के बीच पनपे मां बेटे की चुदाई के रिश्तों की दास्तान तो पढ़ी ही होगी”।
“उससे पहले मैंने लखनऊ में एक गांडू युग त्रिपाठी की पत्नी चित्रा की समस्या सुलझाई थी। गांडू युग त्रिपाठी अपनी पत्नी चित्रा की चुदाई नहीं करता था, नतीजन चित्रा की चुदाई अपने ससुर देस राज त्रिपाठी और युग त्रिपाठी के दोस्त राज के साथ शुरू हो गयी थी”।
“खैर ये गांडू युग त्रिपाठी वाली बात तो अब पुरानी बात हो चुकी है”।
“हां तो मैं बता रही थी कि नसरीन मुझे असलम की शादी का कार्ड देने आगरा से कानपुर आयी थी। कार्ड तो जो दिया सो दिया ही, नसरीन ने असलम के साथ मेरी चुदाई भी करवा दी। असलम के साथ हुई अपनी उस चुदाई मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी”।
“असलम की शादी में आगरा गयी थी। मेरे शादी में पहुंचने से नसरीन बड़ी खुश हुई थी”।
“असलम की नई नवेली दुल्हन निकहत से भी मुलाकात हुई थी। निहायत ही खूबसूरत लड़की थी निकहत। असलम को निकहत को चोदने का खूब का मजा आ रहा होगा। और निकहत को भी असलम का कलाई जितना मोटा और आधे हाथ जितना लम्बा लंड ले कर मजे ले रही होगी”।
“शादी के दौरान ही नसरीन ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए उस रबड़ के लंड का बहुत शुक्रिया अदा किया था। बता रही थी उसके बहुत काम आता है”।
“खैर ये तो हो गयी आगरा में असलम और निकहत की शादी की बात। अब वापस आते हैं कानपुर में एक ऐसे ही नए केस के साथ, जिसके लिए आज मैं यहां आपके आमने आयी हूं”।
“ये केस भी एक अजीब सा केस था, जिसमें अनजाने में बाप और बेटी के बीच चुदाई के रिश्ते पनप गए, और मामला यहां तक बढ़ा और बिगड़ा कि बात मुझ तक पहुंच गयी”।
“जहां मां बेटे में चुदाई किसी मजबूरी के चलते शुरू होती है, जैसे नसरीन और असलम के बीच शुरू हो गई थी। बाप बेटी की चुदाई के कई कारण हो सकते हैं, जैसे मां बेटी के बीच हर वक़्त किसी ना किसी बात को लेकर तकरार रहना। या मां का ज्यादा वक़्त घर पर ना रहना और बेटी का बाप के बीच अलग तरह का रिश्ता बन जाना”।
“या फिर बाप की नशे की आदत और नशे की हालत में बाप का बेटी को चोद देना। अब चुदाई चाहे रजामंदी से हो या जबरदस्ती से। चुदाई तो चुदाई ही होती है, और इसमें मजा भी आता है। बेटी को एक बार की चुदाई में मजा गया तो आगे से उसका मन भी चुदाई का होने लगता है और बाप बेटी में चुदाई के रिश्ते बन जाते हैं”।
“अब देखते हैं कि बाप बेटी के चुदाई के रिश्तों का जो केस मेरे पास आया उसमे बाप बेटी में चुदाई क्यों, किन कारणों के चलते, कब और कैसे शुरू हो गई”।
“उस दिन मैं अपने क्लिनिक में बैठी हुई थी कि मुझे एक फोन आया I मैंने फोन उठाया तो उधर से आवाज आयी, “हेलो क्या मालिनी जी बोल रही हैं? डॉक्टर मालिनी अवस्थी, साइकाइट्रिस्ट”?
मैंने कहा, “जी हां साइकाइट्रिस्ट मालिनी ही बोल रही हूं। आप कौन”?
“उधर से आवाज आयी , “जी मैं रागिनी कश्यप। मैं आपसे मिलती रही हूं जब आप जीवन ज्योति हॉस्पिटल के साथ जुड़ी हुई थी। तब मैं जीवन ज्योति हस्पताल में नर्स थी, अब मैं इस हस्पताल में नर्सिंग सुपरवाइजर हूं”।
“मैं सोचने लगी। नाम कुछ पहचाना सा लग रहा था, “रागिनी कश्यप जीवन ज्योति हॉस्पिटल”।
“मुझे याद आ गया। बहुत पहले, शायद बीस साल पहले जब मैं जीवन ज्योति हॉस्पिटल में बतौर एक मानसिक चिकित्स्क काम करती थी, तब वहां एक नर्स हुआ करती थी रागिनी कश्यप”।
“उस वक़्त रागिनी एक चुलबुली जवान लड़की होती थी, जो नर्सिंग का कोर्स करने के बाद हस्पताल में नई नई भर्ती हुई थी”।
“रागिनी ने आते ही हस्पताल में धूम मचा दी। रागिनी कश्यप की ख़ूबसूरती के चर्चे ऐसे थे कि सारे डॉक्टर उस पर मरते थे। सीधी भाषा मैं कहें तो चोदना चाहते थे उसे”।
“फिल्मों की एक्टिंग और मॉडलिंग के बाद नर्सिंग ही एक ऐसा पेशा है जिसमें समझा जाता है कि लड़की को फ़साना और उसे चोदना आसान होता है। ये ऐसा शायद इस लिए भी है कि इन तीनों पेशों से जुड़ी लड़कियों को काम के सिलसिले में रात रात भर घर से बाहर रहना पड़ता है, और काम के ही सिलसिले में अपने शहर से बाहर भी जाना पड़ता है”।
“अब बाहर लड़की क्या कर रही है, किसके नीचे लेट रही है, किसका लंड चूत में या फिर गांड में ले रही है, किसके लंड पर छलांगें लगा रही है, ये किसी को को क्या पता चलता है”।
“अब तो खैर बड़े शहरों में कॉल सेंटर खुल गए हैं जहां लड़के-लड़कियां रात रात भर काम करते हैं। इन कॉल सेंटरों में भी खुल कर चूत और गांड चुदाई का खेल होता है। दो-तीन लड़के और दो-तीन लड़कियां की इकट्ठे मिल कर चुदाई के मजे लेते हैं जिसे ग्रुप सेक्स कहा जाता है। ऐसी खुली चुदाई में नई पीढ़ी के लड़के-लड़कियों को ज्यादा मजा आता है”।
“रागिनी के एक अपने साथ काम करने वाली एक दूसरी नर्स के साथ, मुझे अब उसका नर्स का नाम याद नहीं आ रहा था, समलैंगिक सम्बन्ध हुआ करते थे, और उनके इन संबंधों के भी खूब चर्चे भी थे। दोनों एक-दूसरे की खूब चूत चुसाई करती थीं”।
“हॉस्पिटल के अंदर वो कभी एक-दूसरे की चूत चुसाई नहीं करती थीं, इसलिए किसी को भी उनके इन चूत चुसाई वाले संबंधों से कोइ एतराज नहीं था”।
“हस्पताल के पीछे ही दो-दो कमरों वाले कोइ आठ-दस घर बने हुए थे, जिनमें नर्सें और नए डाक्टर जिन्हें रेजिडेंट डाक्टर या ट्रेनिंग वाले डाक्टर भी कहा जाता है, वो रहते थे”।
“जब भी किसी को चूत, गांड चूसने या चुदवाने की ठरक लगती थी वो उन घरों में चला जाता था, और चुसाई, चुदाई की ठरक पूरी करके आ जाता था”।
“उन्हीं दिनों में फिर सुनने में आया था कि रागिनी ने किसी लड़के के साथ प्रेम विवाह कर लिया था”।
“उसके बाद मैंने जीवन ज्योति हस्पताल छोड़ दिया था। बाद में जब कभी भी जीवन ज्योति हॉस्पिटल जाना होता था, तो कभी कभी रागिनी से आमना सामना हो जाता था। मगर बात-चीत कम ही होती थी”।
मैंने फोन पर जवाब दिया, “रागिनी? जीवन ज्योति हॉस्पिटल वाली? तुम तो नर्सिंग में थी ना। कुछ साल पहले भी शायद मुलाक़ात हुई थी जब मैं एक केस के सिलसिले में जीवन ज्योति गयी थी”।
रागिनी बोली, “जी हां मालिनी जी मैं अब भी नर्सिंग में ही हूं, अब मैं नर्सिंग सुपरवाइजर हो गयी हूं”।
मैंने हंसते हुए कहा, “हां याद आ गया रागिनी। तुम्हारी ख़ूबसूरती के चर्चे तो सब तरफ हुआ करते थे। डाक्टर बहुत जान छिड़कते थे तुम पर। तुम्हारी तो एक सहेली भी हुआ करती थी, जिसके साथ तुम्हारा ‘वो’ वाला चक्कर था”।
फिर मैंने हंसते हुए पूछा, “रागिनी, क्या अभी भी मरते हैं डॉक्टर तुम पर? और वो तुम्हारी सहेली, नाम नहीं याद आ रहा, वो अभी भी वहीं है क्या”?
रागिनी हंसते हुए बोली, “मालिनी जी आपको भी कैसी-कैसी बातें याद हैं। वो तो पुराने दिन थे। उन बातों को तो बहुत साल बीत गए”।
मैंने कहा, “चलो छोड़ो, ये बताओ आज ये मनोचिकित्स्क कैसे याद आ गयी, अचानक कैसे फोन किया? सब ठीक तो है”?
रागिनी बोली, “मालिनी जी सब ठीक ही तो नहीं है। मैं आपसे मिलना चाहती हूं, मुझे एक अजीब सी घरेलू समस्या के सिलसिले आपकी मदद चाहिए”।
मैंने कहा, “ठीक है, कल या परसों में कभी भी आ जाओ। उसके बाद एक हफ्ते के लिए मैं एक सेमिनार के सिलसिले में जापान जा रही हूं”।
रागिनी बोली, “फिर तो मैं कल ही आती हूं मालिनी जी। मिल कर बात करते हैं”।
“रागिनी मुझे बड़ी जल्दी में लग रही थी। मुझे लगा समस्या जरूर गंभीर ही होगी। मैंने कहा “ठीक है कल ग्यारह बजे आ जाओ, में इंतज़ार करूंगी”।
– चुदक्कड़ नर्स रागिनी की डाक्टर मालिनी अवस्थी के साथ मुलाकात
अगले दिन ग्यारह बजे रागिनी कश्यप मेरे क्लिनिक में आ गयी। गाड़ी की चाबी और पर्स मेज पर रख कर नमस्ते करके रागिनी खड़ी हो गयी।
“रागिनी जैसी खूबसूरत अपनी जवानी में हुआ करती थी, उससे कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी। जिस्म भर गया था। मम्मों और चूतड़ों के उभार रागिनी को और भी ज्यादा खूबसूरत और सेक्सी बना रहे थे”।
रागिनी को देखने से लग नहीं रहा थी कि 41 साल की औरत होगी। रागिनी 30-31 से ज्यादा नहीं लग रही थी।
“फ़िल्मी सितारों और मॉडलों की तरह डाक्टर और नर्सें भी फिट ही रहती हैं, या कह लो उन्हें अपने आप को फिट रखना ही पड़ता है। रागिनी भी पूरी तरह से फिट थी। वैसा ही कड़क जिस्म वैसी ही खूबसूरत”।
रागिनी आयी, और आते ही मुस्कुराते हुए बोली, “नमस्ते मालिनी जी। पहचाना मुझे”?
“देखते ही मुझे रागिनी के बारे में सब कुछ याद आ गया। उसके डाक्टरों के साथ चुदाई के चक्कर, अपने साथ काम करने वाली नर्स के साथ चूत चुसाई के समलिंगी सम्बन्ध”।
“चुदाई के मामले में रागिनी इतनी खुले दिमाग की थी की स्मार्ट डाक्टरों को उसे पटाने और चोदने में कोइ ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी। मगर एक बात तो थी रागिनी चुदवाती सिर्फ डाक्टरों से ही थी। लाइन तो उस पर कम्पाउंडर और वार्ड बॉयज़ भी मारते थे, मगर रागिनी उनको घास नहीं डालती थी”।
“ऐसे लोग जिनकी रागिनी को चोदने की हसरत पूरी नहीं होती थी वो अक्सर उसके बारे में अच्छी बात नहीं बोलते थे। मुझे पूरा यकीन है, ऐसे लोग मन ही मन खिसियाते हुए कहते होंगे “चुदक्कड़ साली, डाक्टरों के नीचे लेटती है, हमें घास भी नहीं डालती”।
“वैसे जिस तरह की चुदाई रागिनी तब करवाती थी, थी तो वो चुदक्कड़ ही – मेरी ही तरह”।
“अपनी जवानी में बड़ी चर्चित थी रागिनी की ख़ूबसूरती और उसकी बिंदास आदतें। रागिनी को देखते-देखते मैं सोच रही थी, क्या रागिनी की चुदाई वाली आदतें अभी भी वैसी ही थीं जैसी जवानी में हुआ करती थी”?
“वैसे इस तरह की चुदाई की ऐसी आदतें जाती तो नहीं”।
”जब मेरी ही चुदाई की आदतें पचास पार करने के बाद नहीं गयी, तो इस 41 साल वाली रागिनी की कैसे जाएंगी”।
मैंने कहा, “बिल्कुल पहचाना रागिनी। तुम तो अब भी वैसी ही दिखती हो जैसी उन दिनों में दिखती थी”।
रागिनी मेरी तरफ देखते हुए कहा, “मालिनी जी आप भी तो अभी भी वैसी ही हैं जैसी बीस साल पहले थी – बिल्कुल भी नहीं बदली। बहुत ध्यान रखती हैं आप अपना। सुनने में आया था शादी भी नहीं की आपने”।
मैंने भी नमस्ते का जवाब दे कर कहा, “बदली तो तुम भी नहीं रागिनी, वैसी ही हो जैसी उन दिनों में थी”। और फिर हंसते हुए कहा, “अभी भी डाक्टर लाइन मारते हैं तुम पर”?
और फिर मैंने एक आंख दबा कर पूछा, “तुम्हारी उस सहेली का क्या हाल है? मिलती है या नहीं? उन दिनों में तो बड़े चर्चे थे तुम दोनों के”।
रागिनी भी हंसते हुए बोली, “मालिनी जी सब कुछ अभी पूछ लेंगी क्या”?
“हम दोनों हंसी और अंदर क्लिनिक में चली गयी। मैंने प्रभा – अपनी काम वाली को चाय और कुछ नाश्ता लाने के लिए बोल दिया”।
“जब प्रभा ट्रे लेकर आ गयी तो मैंने रागिनी से पूछा, “बोलो रागिनी, आज कैसे? ऐसी क्या समस्या आ गयी है कि जो आज एक साइकाइट्रिस्ट – मनोचिकित्स्क की जरूरत पड़ गयी”?
फिर मैंने थोड़ा रुक कर रागिनी से कहा, “वैसे रागिनी, एक महिला मनोचिकित्स्क तो तुम्हारे जीवन ज्योति में भी है – मुकुल पांडेय। मैं जानती भी हूं उसे। मेरी स्टूडेंट रह चुकी है”।
रागिनी थोड़ी चुप सी हुई और बोली, “मालिनी जी समस्या ऐसी है कि मैं हर किसी से इस बारे में बात नहीं कर सकती। मुझे आपकी याद आयी और मुझे आपके पास आना ही ठीक लगा”।
मैंने कहा, ”ऐसा है क्या? कुछ ज्यादा ही गंभीर व्यग्तिगत समस्या लग रही है। खैर बताओ, फिर देखते हैं क्या हो सकता है”।
रागिनी बोली, “मालिनी जी पहले मैं अपनी निजी जिंदगी के बारे में बता दूं। इससे आपको मेरी समस्या समझने मैं आसानी रहेगी”।
फिर रागिनी बोली, “आप तो जानती ही हैं , जब आप जीवन ज्योति में बतौर मनोचकित्सक काम करती थी, मैं वहां नर्स थी। तब जीवन ज्योति इतना बड़ा हस्पताल नहीं था जितना बड़ा अब है”।
मैंने कहा “हां रागिनी जानती हूं। जीवन ज्योति छोड़ने के बाद भी जीवन ज्योति वालों की कंसल्टेंट हूं, बतौर सलाहकार मैं वहां जाती रहती हूं। कोइ सेमीनार हो तो वो मुझे अभी भी बुलाते है। आगे बताओ”।
रागिनी बोली, “जी हां मालिनी जी मुझे ये मालूम है कि आप अभी भी वहां जाती हैं”।
फिर कुछ रुक कर रागिनी बोली, “मालिनी जी मुझे ये बताने में कोइ शर्म नहीं कि उन दिनों में डाक्टर मेरी ख़ूबसूरती पर फ़िदा रहते थे, मुझ पर मरते थे। मैं सुन्दर ही इतनी थी। कई डाक्टरों के साथ मेरे जिस्मानी सम्बन्ध बने थे। साफ़ ही बात करें तो चुदाई के संबंध”।
“और जिस नर्स की आप बात कर रही हैं उसका नाम प्रवीणा था। वो भी मेरी तरह ही नयी-नयी नर्स का कोर्स करके आयी थी।
“असल में उन दिनों में हमारी एक स्टाफ नर्स थी संध्या, जो हम सब नर्सों की इंचार्ज थी। संध्या की एक अजीब शौक था। संध्या स्टाफ की खूबसूरत नर्सों से होठ चूचियां और चूत चुसवाया भी करती थी और खुद भी उन नर्सों के होंठ और चूत चूसा करती थी”।
“संध्या मुझसे भी वो ये सब चुसवाया करती थी और मेरा भी सब कुछ अगली-पिछली चूत गांड खूब चूसती थी”।
“संध्या ने ये चूत चुसाई की आदत लगभग सभी नर्सों को डाल दी। इसी चूसा चुसाई में प्रवीणा आ गयी और मेरे प्रवीणा के साथ मेरे लेस्बियन वाले पक्के रिश्ते बन गए”।
“हम दोनों ने आपस में तो चूत चुसाई की ही, हमने डाक्टरों से खूब चूत चुदवाई। हस्पताल के साथ लगते डाक्टरों और नर्सों के रिहाइशी मकानों में बड़ा मजा किया हमने उन दिनों में”।
“यहां तक कई डाक्टर तो मेरे साथ शादी करना चाहते थे”।
“मगर हालात कुछ ऐसे बन गए कि मेरी शादी आलोक के साथ हो गयी। हम लोगों का प्रेम विवाह था, लव मैरिज”।
“आलोक असल में हमारा दूर का रिश्तेदार है और CA है, कामयाब चार्टर्ड अकाउंटेंट। शादी ब्याह की पार्टियों में मिलते मिलाते हममें प्यार हो गया, और एक ही चुदाई के बाद मैं उसके कुछ ज्यादा ही लम्बे लंड की दीवानी हो गयी”।
“मेरे और आलोक के बीच खूब चुदाईयां हुई। इन्हीं चुदाईयों के चलते मुझे बच्चा ठहर गया, और मैं प्रेग्नेंट हो गयी। बदनामी से बचने के लिए हमने कोर्ट मैरिज कर ली और नौ महीने बाद ही मेरी बेटी मानसी पैदा हो गयी”।
“सब कुछ फिर ठीक चलने लगा। शादी के बाद भी डाक्टरों के साथ मौज मस्ती और प्रवीणा के साथ चूत की चूसा-चुसाई सब चल रहा था”।
“जब मेरी बेटी मानसी छह साल की थी, तो मेरे ससुर का देहांत हो गया। जब वो ग्यारह साल की हुई तो मेरी सास भी गुजर गयी। इस बात को भी नौं साल हो चुके हैं”।
“अब तो मानसी बीस पार कर चुकी है – पढ़ाई में बड़ी होशियार है और वो भी CA ही कर रही है”।
“सास के देहांत के बाद हमे ग्यारह साल की कच्ची उम्र मानसी की परवरिश में दिक्कत आ रही थी। आलोक का अपना अकाउंटैंसी का बिज़नेस था। सुबह का गया वो शाम को ही लौटता था। अब हमारी समस्या थी कि मानसी का दिन भर कौन उसका ध्यान रखे”।
“किसी गैर पर भरोसा किया नहीं जा सकता और रिश्तेदारों के पास कहां वक़्त होता है कि किसी दूसरे के बच्चे का ध्यान रखे। मैं नौकरी छोड़ नहीं सकती थी। मेरी तरक्की हो चुकी थी, हस्पताल भी बड़ा हो चुका था और मेरी तनख्वाह भी एक लाख रूपये माहवार से ऊपर थी”।
“लिहाजा नौकरी छोड़ना ठीक नहीं लगा, और मैंने अपनी रात की शिफ्ट करवा ली। दिन भर मैं घर रहती और शाम को या रात को हस्पताल चली जाती। आलोक शाम को आ जाता इस तरीके से घर ठीक-ठाक चलने लगा। मानसी की पढ़ाई भी ठीक चल रही थी”।
फिर कुछ रुक कर रागिनी बोली, “मालिनी जी इन सब में एक बात ये हुई कि मेरी और आलोक की चुदाई लगभग बंद हो गयी। मैं हस्पताल से ड्यूटी करके आती तो आलोक सो रहा होता। सुबह मैं खाना वगैरह तैयार करके सो जाती”।
“एक दूसरे की नींद खराब ना हो, इसलिए हम सोते भी अलग-अलग कमरों में थे, और अब अलग-अलग सोना हमारी आदत ही बन चुकी थी”।
“इस अलग-अलग सोने की आदत के चलते मेरे और आलोक के बीच चुदाई बहुत कम हो गयी थी। कभी चुदाई होती भी थी तो चुदाई के बाद हम फिर से अपने अपने कमरों में चले जाते”।
रागिनी बता रही थी, “वैसे तो मालिनी जी मेरी चुदाई की इच्छा भी अब पहले जैसी नहीं रही थी। इसके बावजूद हस्पताल में किसी डॉक्टर के साथ कभी कभार चुदाई हो ही जाती थी। प्रवीणा के साथ चूत चुसाई तो जारी ही थी”I
“बस यहीं, इसी बात पर मैं मार खा गयी। मैंने समझा था जैसे मेरा चुदाई का पहले जैसा मन नहीं होता, वैसे ही आलोक का भी चुदाई का मन नहीं होता होगा। मगर ये मेरी गलती थी”।
अगले भाग में आप पढ़ेंगे रागिनी की कहानी की शुरुआत।