पिछले भाग में अपने पढ़ा कि कैसे युग और चित्रा की फ्लॉप सुहागरात के कारण चित्रा और अंकल की चुदाई शुरू हो गयी। और अब आगे पढ़िए चित्रा के साथ युग की सुहागरात फ्लॉप कैसे थी।
मैं और चित्रा, हम दोनों चुदाई के बाद ड्राईंग रूम में सोफे पर बैठे थे, और चित्रा अपनी और युग की फ्लॉप सुहागरात की कहानी सुना रही थी।
चित्रा मुझे बताने लगी, “शादी तो हमारी हो गयी और हम यहां बाराबंकी आ गए। चाची भी हमारे साथ ही आयी। शादी की पहली रात चाची ने ही हमारा कमरा सजा दिया। सोच रही होगी उसके भतीजे-भतीजी की सुहागरात है। उसके भाई का मर्द बेटा युग उसके जेठ कि नाजुक जवान बेटी चित्रा की कुंवारी सील बंद चूत का बैंड बजायेगा।”
चित्रा ने जिस तरह मेरी टांग पर हाथ मार कर ये बात कही, “घंटा बैंड बजायेगा सील बंद चूत का। चूत का बैंड तो क्या बजना था, युग लंड को चूत के अंदर ही नहीं जा पायाI” मेरी तो हंसी ही छूट गयी।
चित्रा बता रही थी, “युग आया और चुपचाप लेट गया और किसी तरह की कोइ पहल नहीं की। ना चूचियां दबाई, ना चुम्मी ली, चूत के साथ छेड़-छाड़ तो दूर की बात थी। मैं ही युग के इधर-उधर हाथ लगाती रही, मगर युग को तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था।
ना कुछ होना था, ना कुछ हुआ। पहले दिन तो युग ने बहाना बना लिया कि वो थका हुआ था। युग छत के तरफ देखता हुआ चुप-चाप कुछ सोच रहा था। मैंने भी इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा?”
“सुबह हम देर से उठे। चाची वापस लखनऊ जा चुकी थी। मगर अगले दिन भी वही चक्कर। आखिरकार मेरी शादी हुई थी। मेरी भी इच्छा थी कि मेरा पति मेरी चूचियों को चूसे, मेरी चूत चूसे, मुझसे लंड चूसने को कहे, चूत में लंड डाले, और मेरी चुदाई करे। मुझे भी ये सब चाहिए था, सभी लड़कियों को चाहिए होता है। अगले दिन भी जब युग नहीं हिला, तो मैंने ही पहल कर दी और युग का लंड पकड़ लिया।”
“मेरे पकड़ने भर से युग का लंड खड़ा हो गया। जैसे ही लंड खड़ा हुआ, मेरी तो चूत में खलबली मच गयी। हालांकि लंड इतना बड़ा नहीं था जितना हम सहेलियां सोचा करती थीं, कि हमे भी मिलेगा, मगर उस वक़्त इस पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। युग का सख्त लंड हाथ में लेते ही मेरे मुंह से निकला, मेरे मुंह से बस यही निकला, “आआह युग।”
“मेरी चूत गरम हो गयी थी। मगर युग पहल ही नहीं कर रहा था। फिर ना जाने मुझे क्या हुआ, मैंने युग का लंड मुंह में ले लिया। मेरे लंड मुंह में लेने भर की देर थी युग के मुंह से आवाज निकली, “निकल गया चित्रा।” और इसके साथ ही युग के लंड से ढेर सारा पानी निकल गया।”
“ये पहली बार था कि मैंने किसी लड़के का लंड मुंह में लिया था। जैसे ही युग ने कहा। “निकल गया चित्रा”, बड़ी ही मुश्किल से एक-दम लंड मुंह से निकाला और युग के लंड का पानी मुंह में जाने से रोका। युग वैसे ही लेटा रहा। चूत मेरी गरम हो चुकी थी।
मैं भी उसके साथ ही लेट गयी, और अपनी उंगली से चूत रगड़ने लगी। मैंने युग का हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर रखा, और ऊपर-नीचे करने लगी। युग भी समझ ही गया होगा कि मैं क्या चाहती थी।”
चित्रा हंसते हुए बोली, ” शुक्र है युग को कम से कम चूत का दाना तो पता था। युग मेरी चूत का दाना रगड़ने लगा। चूत मेरी गरम ही थी। जल्दी ही मेरी चूत पानी छोड़ गयी। मेरे चूतड़ अपने आप जोर से हिले और मैं ढीली पड़ गयी। और मेरे मुंह से सिसकारी निकली, ‘आआह युग। मुझे मजा आ चुका था।”
“युग का लंड पानी छोड़ ही चुका था। उंगली से चूत का दाना रगड़ कर मजा लेने के थोड़ी देर में जब मेरा मजा उतरा, तो मैंने युग से पूछा, “क्या हुआ था युग?”
“युग मुझसे नजरें ही नहीं मिला पा रहा था। वो बस इतना ही बोला, “कुछ नहीं, कोई बात नहीं कल देखेंगे।” मुझे युग की ये बात कुछ ठीक नहीं लगी।”
चित्रा बता रही थी, “अब राज ये तो थी मेरी चुदाई की दूसरी रात। दूसरी रात में भी ऐसी ही निकल गयी। कोइ बड़ा तीर नहीं मार पाया युग। अब आ गयी तीसरी रात।”
चित्रा अब अपनी युग के साथ शादी के तीसरे दिन की चुदाई की कहानी सुना रही थी।
“तीसरी रात भी आ गयी। अब मैं लंड मुंह में लेने के मूड में नहीं थी। अब मैं चूत में ही युग का लंड लेना चाहती थी। जब मेरी बड़ी कोशिशों के बाद भी युग का लंड खड़ा नहीं हो पाया तो मैं झल्ला गयी। मैं युग से बोली, “युग प्रॉब्लम क्या है? तबीयत ठीक नहीं है या कोई और दिक्कत है?
“युग चुप रहा। कुछ नहीं बोला। मैं तो उस घर में बचपन से ही आती-जाती थी। वैसी वाली शर्म और हिचकिचाहट तो थी नहीं। मैंने कहा, “युग मैं कुछ पूछ रही हूं। क्या प्रॉब्लम है? क्या किसी और लड़की के साथ चक्कर है क्या तुम्हारा?”
“युग ने मुझे बीच में ही टोकते हुए कहा, “नहीं-नहीं चित्रा, ऐसा कुछ नहीं है।” मैंने फिर उसी तल्खी से पूछा, “तो बताओ फिर ऐसा कुछ नहीं है तो कैसा कुछ है? कोइ तो बात जरूर है।”
“युग समझ गया मुझे गुस्सा आया हुआ है कि आखिर बात क्या है वो मुझे चोद क्यों नहीं रहा? युग ने फिर कहा, “चित्रा कल पक्का करेंगे।”
“मुझे क्या पता था कि अगले दिन भी होना तो कुछ था नहीं। अगले दिन भी आ गया। चार दिन हो गए थे और मेरी चूत अभी तक कुंवारी ही थी। अगले दिन भी पहल मुझे ही करने पड़ी। इस बार मेरे हाथ में लेने से युग का लंड खड़ा हो कर सख्त हो गया। मुझे लगा चलो आज मेरी चूत के भाग खुलेंगे और इसकी चुदाई होगी। मैंने पहले दिन वाली बात भूल कर युग का लंड मुंह में ले लिया।”
“इतना हुआ कि उस दिन युग का लंड मुंह में नहीं झड़ा। मेरे कुछ चूसने के बाद लंड पूरा सख्त हो गया। मैंने कपड़े उतारे और लेट गयी और टांगें चौड़ी कर के युग से बोली, “चलो उठो अब, आओ।”
“युग उठा, मगर उसके उठने में चुदाई का कोई शौक, कोई उतावलापन नहीं था। लग ही नहीं रहा था कि वो भी मेरी पहली बार चुदाई करने जा रहा था। युग ने जैसे-तैसे लंड मेरी चूत पर रक्खा। मैं उस पल का इंतजार कर रही थी जब युग का लंड रगड़ खाता मेरी चूत में जाएगा और मेरे चूत की चुदाई होगी।”
“मगर जैसे ही युग लंड चूत के अंदर डालना शुरू किया, अभी लंड का आधा टोपा भी चूत में नहीं गया होगा कि युग के लंड से ढेर सारा गरम पानी निकल गया और मेरी चूत के ऊपर फ़ैल गया।”
“युग झड़ गया था। मेरी चूत गरम होना शुरू हुई थी, कि युग का लंड ठंडा हो गया था। युग मेरे साथ ही लेट गया और मेरी चूत का दाना रगड़ने लगा।”
“मेरी चूत युग के लंड से निकले ढेर सारी पानी से चिकनी हुई पड़ी थी। चूत के दाने की रगड़ाई से जल्दी ही मुझे मजा आने वाला हो गया। मेरे चूतड़ घूमे और ”आआह युग” की आवाज के साथ मेरी चूत पानी छोड़ गयी। मैं ढीली हो गयी।”
उस दिन तो सच में ही मुझे बड़ा गुस्सा सा आ रहा था। मैं सोच रही थी ये है मेरी शादी की सुहागरात? ना कोइ चुसाई ना चुदाई? चुदाई तो क्या होनी थी चार दिन हो गए लंड चूत के अंदर ही नहीं गया था?
“जब मेरा मजा उतरा, तो मैंने कह ही दिया, “युग कुछ तो है। अगर ऐसे ही तुम्हारा जल्दी निकल जाता है तो किसी डाक्टर को दिखाओ। ऐसे कब तक चलेगा।”
युग कुछ देर चुप-चाप सोचता रहा और फिर बोला, “चित्रा ये डाक्टर को दिखानी वाली समस्या नहीं”।
ये सुन कर मैंने कहा, “डाक्टर को दिखाने वाली समस्या नहीं? डाक्टर को नहीं तो फिर किसको दिखाने वाली समस्या है?”
फिर कुछ चुप्पी के बाद हिम्मत बटोर कर उसने बोल ही दिया, “चित्रा असल में मैं गे हूं, समलिंगी।”
“गे? समलिंगी? गांडू?”
“ये सुनना था कि मेरा तो दिमाग ही खराब हो गया और मैं तो बिफर ही गयी, और चिल्लाते हुए साफ़-साफ़ ही बोल दिया,”क्या? तुम गे हो? समलिंगी? और ये समलिंगी होने के कारण तुम्हें लड़की की चुदाई में कोइ दिलचस्पी ही नहीं, इसलिए तुम मेरे चुदाई नहीं कर पा रहे?”
“युग बिना कुछ बोले चुप-चाप लेटा रहा।”
“मुझे अपने गुस्से पर काबू नहीं रहा। मैं गुस्से से बोली, “साले चूतिये, अगर यही बात थी, तुम अगर समलिंगी थे तो मुझसे शादी क्यों की? मना क्यों नहीं किया शादी से?”
मेरा गुस्सा देख कर युग के बोलती बंद हो गयी। युग ने बस इतना बोल पाया, “चित्रा मैंने तो बुआ को बोला भी था ना करो मेरी शादी। मगर किसी ने मेरी एक नहीं सुनी।”
“मेरा गुस्सा चरम पर था। मैं उसी गुस्से से बोली, “एक नहीं सुनी? तो फिर अब? अब मैं क्या करूं? मैं किसके पास जाऊं? मैं ही बात करती हूं चाची से, बताती हूं क्या है उसका भतीजा। चाची से ही पूछती हूं कि चाची बताओ युग से तो कुछ होता जाता नहीं, अब मैं क्या करूं?”
“मैंने फोन उठाया लेकिन युग ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे फोन करने से मना कर दिया। वैसे राज इतनी जल्दीबाजी में फोन तो मैं वैसे भी नहीं करने वाली थी।”
“अगले ही दिन युग चार पांच दिनों के लिए फिर अपने दोस्तों के साथ कहीं घूमने चला गया।”
“मैंने कंप्यूटर खोला और समलिंगियों के बारे में और जानकारी इकट्ठी करने लगी। तब मुझे पता चला कि सालो तुम गांडू भी तीन तरह के होते हो। तुम्हारे जैसे टॉप, वर्सेटाइल और युग जैसे बॉटम। वहीं से मुझे पता चला कि अगर ऐसे लोगों में कोई जिस्मानी कमी ना हो तो वक़्त के साथ वो चुदाई करने लायक नार्मल हो जाते हैं।”
“अब मेरे सामने कोइ चारा नहीं था कि मैं उस वक़्त तक का इंतजार करूं कि जब युग नार्मल हो और मेरी चुदाई करे। तब मैंने सोचा जो होना था वो तो हो चुका अब सोचना चाहिए के युग के इस गांडूपने की समस्या हल कैसे हो, और कैसे वो मेरी चुदाई करने के लायक बने।”
— चाची का बाराबंकी आना
“अभी मैं इन ख्यालों से बाहर भी नहीं नकली थी कि अचानक से सुभद्रा चाची लखनऊ से आ गयी। आते ही चाची मुझे बाहों में लिया और बोली, “मैंने सोचा पता ही करती चलूं क्या हाल है दूल्हा-दुल्हन का। और फिर मेरी ठुड्डी पर हाथ रख कर बोली, “कैसी है मेरी बन्नो?”
“मतलब साफ़ था, “कैसी चुदी मेरी बन्नो?
“मैंने भी हाथ के अंगूठे और तर्जनी उंगली से ज़ीरो का निशान बनाया और बोल दिया, “ऐसी है आपकी बन्नो।”
“मतलब ऐसी जीरो जैसी चुदी आपकी बन्नो।”
“चाची तो ठिठक कर अलग हो गयी और परेशानी से बोली, “क्या हुआ चित्रा, ऐसा क्यों कह रही है?” फिर चाची इधर-उधर देख कर बोली, “और युग कहां है, कहीं दिखाई नहीं दे रहा?”
“मैंने कहा, “चाची आप बैठो।” मैंने लक्ष्मी को आवाज लगाई और चाय लाने के लिए कहा। मैं चुप थी। दस मिनट, जब तक चाय नहीं आयी हम दोनों में से ही कोइ कुछ नहीं बोला। साफ़ पता चल रहा था, इस चुप्पी से चाची परेशान हो चुकी थी। नई नवेली दुल्हन जिसकी मस्त चुदाई होती हो, वो तो चुदाई की मस्ती में चहकती है, ऐसे तो चुपचाप नहीं बैठती।”
“लक्ष्मी पानी और चाय दे गयी। चाय पीते-पीते चाची मुझ से बोली, “चित्रा बता तो सही क्या बात है, बताती क्यों नहीं। मेरा तो दिल बैठा जा रहा है बेटा।”
मैंने कहा, “चाची पहले तो आप अपने दिल को सम्भालो। जो मैं बताने जा रही हूं कोइ अच्छी खबर नहीं है। लेकिन अब ऐसे एक-दम से परेशान होने से कुछ नहीं होने वाला।”
मेरा इतना कहते ही चाची ने चाय बीच में ही छोड़ दी और कप मेज पर रख दिया। परेशानी से चाची की आवाज कांप रही थी। चाची बोली, “चित्रा बेटा पहेलियां मत बुझा। बता बात क्या है, और युग कहां है? मुझे बड़े घबराहट सी हो रही है।”
मैं उठी और जा कर चाची के पास बैठ गयी। मैंने चाची का हाथ अपने हाथ में लिया और धीमी आवाज में कहा, “चाची युग गे है, समलिंगी। उसे लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं।”
चाची का एक हाथ एक-दम उनकी छाती पर चला गया और वो बोली, “हे भगवान, समलिंगी? ये क्या हो गया? ये तो बड़ी गड़बड़ हो गयी। तो इस लिए युग शादी से मना कर रहा था?”
फिर चाची मेरी तरफ देख कर बोली, “तो क्या युग और तुम्हारे बीच कुछ नहीं…? मेरा मतलब कुछ भी… नहीं… मेरा मतलब क्या युग… नामर्द है…? उसका…?”
“चाची बात ही पूरी नहीं कर पा रही थी। वैसे भी, बोलती भी तो क्या बोलती कि शादी के बाद से अब तक युग क्यों मेरी चुदाई नहीं कर पाया? क्या युग का लंड खड़ा ही नहीं होता या लंड में कोइ और बड़ी समस्या है?”
में चाची की झिझक समझ रही थी। मैंने फिर ढकी छिपी भाषा में चाची को समझाया, “नहीं चाची युग ऐसा नहीं है। युग नामर्द नहीं है, हर तरह से पूरा मर्द है। बस इतनी से बात है समलिंगी होने के कारण लड़कियों में उसकी दिलचस्पी नहीं है।”
“मैंने ही चाची को समझाया, “चाची लड़कियों को किसी भी हालत में देख कर युग को कुछ नहीं होता। लड़कियों की कोई भी चीज़ कोई भी बात उसको आकर्षित नहीं करती। मेरा मतलब साफ़ था कि लड़कियों की चूचियां चूतड़ चूत देख कर भी ऐसे लोगों के लंड में हरकत नहीं होती।”
परेशान चाची ने पूछा, “लेकिन चित्रा युग है कहां?”
मैंने जवाब दिया, “युग यहां बाराबंकी में नहीं है अपने दोस्तों के साथ कहीं गया हुआ है।”
चाची चुपचाप बैठी रही। चाची गहरी सोच में डूबी लग रही थी।
“मैंने ही आगे चाची को कहा, “चाची मैंने कम्प्यूटर पर देखा था। उसमें लिखा था से ऐसे लोग ठीक हो जाते हैं लेकिन वक़्त लग सकता है। ऐसे लोगों की ऐसी समस्या के लिए डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए।”
“मेरी ये बात सुन कर चाची पांच मिनट कुछ सोचती रही और फिर उठ खड़ी हुई और बोली, “मैं चलती हूं।”
“मैं भी उठ खड़ी हुई, “चाची क्या हुआ बैठो तो सही? अभी तो आई ही हो, इतनी जल्दी कहां जा रही हो?”
“चाची ने चलते हुए जवाब दिया, ” नहीं चित्रा इतनी बड़ी गड़बड़ हो गयी, अब मैं नहीं बैठ सकती। मैं वापस जा रही हूं।”
“मैंने चाची का हाथ पकड़ कर कहा, “अरे रुको तो सही चाची, अंकल को तो मिल कर जाओ। ऐसी जल्दबाजी से समस्या का हल नहीं निकलने वाला। ठंडे दिमाग से सोचना पड़ेगा।”
“चाची ने मेरी बात की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और गाड़ी में बैठते हुए बोली, “देस (देसराज अंकल) से बोल देना मुझे कुछ काम याद आ गया था। फिर आऊंगी”।
“ये कह कर चाची ने ड्राइवर मनोहर को आवाज लगाई बोली, “चलो मनोहर, वापस चलना है।”
“चाची चली गयी। शाम को जब अंकल आये तो आते ही पूछा, “क्या हुआ सुभद्रा आयी थी। चली भी गयी। मिली भी नहीं I क्या हुआ?”
“मैंने कहां, “पता नहीं अंकल, चाय पी और चाय पीते-पीते ही कुछ याद आ गया उनको, और बोली फिर आऊंगी। और बस चली गयी। एक घंटा भी नहीं रुकी होगी।”
“अंकल ने बस इतना ही कहा, “कमाल है ये सुभद्रा भी ” और वो अपने कमरे में चले गए।”
— अगले भाग में – चित्रा का चाची के पास लखनऊ जाना और डाक्टर प्रमिला यादव से मिलनाI