पिछले भाग में आपने पढ़ा, आलोक ने रागिनी की चुदाई करते-करते उसे जवान होती हुई मानसी की कुछ बातें बताईं। अब आगे पढ़िए रागिनी ने कैसे जाना कि आलोक और मानसी के बीच चुदाई का रिश्ता बन चुका था।
रागिनी चुप हुई तो मैंने भी हाथ के रिमोट से टेप रिकार्डर बंद कर दिया। प्रभा को बुलाया और चाय के लिए बोल दिया।
रागिनी की ये बातें सुन कर मैं भी सोचने लगी जो कुछ आलोक और मानसी के बीच हुआ ये बात तो कोई बड़ी बात नहीं।
कुछ देर की चुप्पी के बाद मैंने पूछा, “रागिनी ये जो बात तुमने अभी-अभी बताई है, मानसी का हाथ से रगड़ कर अपनी चूत का मजा लेने वाली बात, ये बात भी तो चार पांच साल पुरानी बात है। वैसे भी इसमें तो कोई परेशानी वाली बात मुझे नहीं लगती। आज-कल के माहौल में तो कम उम्र की लड़कियां भी ये सब शुरू कर देती हैं”।
“अब इसमें दिक्क्त ये है रागिनी कि ये सब उसने आलोक के साथ किया, मतलब आलोक का हाथ अपनी चूत पर रगड़ा और चूत का पानी छुड़ाया, और साथ ही आलोक का लंड पकड़ लिया। यही बात है ना”?
“रागिनी ने हां में सर हिला दिया”।
“मैंने रागिनी को कहा, “रागिनी मेरी, एक मनोचिकित्स्क की नजर में तो इसमें भी कोइ परेशानी वाली बात नहीं। ये भी स्वाभाविक है। अगर इस उम्र की लड़की अपने पिता या भाई के साथ लेटे, वो भी रात को, अंधेरे में, तो ऐसा हो सकता है, क्योंकि इस उम्र में बच्चे अक्सर विपरीत सेक्स की तरफ आकर्षित होने लगते है। उनमें लंड देखने की, पकड़ने की इच्छा जागने लगती है”।
फिर मैंने रागिनी से कहा, “रागिनी अभी तुमने कहा कि आलोक के समझाने के बाद मानसी ने अलग सोना भी शुरू कर दिया और कोइ शिकायत भी नहीं आयी”।
रागिनी जब कुछ नहीं बोली तो मैंने पूछा, “अब ये बताओ रागिनी कि जब मानसी अलग सोना शुरू हो गयी तो फिर आलोक के साथ चुदाई कब और कैसे शुरू हो गयी? और तुम्हें उनकी इस चुदाई का कैसे पता चला”?
— जब रागिनी ने देखा आलोक को अपनी बेटी मानसी की चुदाई करते हुए।
रागिनी ने फिर से बोलना शुरू किया, “मालिनी जी, कुछ महीने पहले की बात है। एक दिन मैं हस्पताल में शाम की शिफ्ट में थी, जो शाम पांच बजे से रात एक बजे तक चलनी थी। रात दस साढ़े दस बजे के करीब मेरी तबीयत खराब सी हुई और सर दर्द होने लगा”।
“मैंने छुट्टी ली हुए घर आ गयी। बाहर के दरवाजे की चाबी तो हम सब के पास होती ही है। दरवाजा खोल कर मैं अन्दर गयी और अपने कमरे की तरफ बड़ी जिससे आलोक और मानसी की नींद में खलल ना पड़े”।
“मेरे और आलोक के कमरे के सामने ही वो कमरा है जिसमें मैं रात को हस्पताल से आने के बाद सोती हूं। हमारे कमरे के सामने से गुजरते हुए मैंने देखा अलोक के कमरे की लाइट जल रही है। मैं रुक गयी। मुझे अंदर से कुछ अजीब सी आवाजें आती सुनाई दीं”।
“मैं ठिठक कर वहीं खड़ी हो गयी। ध्यान से सुना तो अंदर कमरे में से मानसी की आवाजें आ रही थी, सिसकारियों की आवाजें। वैसी सिसकारियों की आवाजें जैसी लड़कियां चुदाई करवाते वक़्त निकालती हैं। वो सिसकारियां जो लंड के चूत के अंदर रगड़े लगने के मजे के कारण मुंह से अपने आप निकलती हैं, “आह पापा, और जोर से आअह पापा आह बड़ा मजा आ रहा है। हां पापा ऐसे ही करो आआह। पापा पूरा निकाल कर डालो पापा आआआह”।
“मेरा दिमाग सुन्न हो गया। ये कमरे में क्या हो रहा है? क्या मानसी आलोक से चुदाई करवा रही है”?
“दरवाजा थोड़ा सा खोला तो देखा मानसी नीचे थी, चूतड़ों के नीचे तकिया लगाए हुए। आलोक ने मानसी को बाहों में ले जकड़ा हुआ था। मानसी की टांगें आलोक की कमर पर कैंची तरह चिपकी हुई थी और आलोक जोर-जोर से मानसी को चोद रहा था मानसी नीचे से चूतड़ ऊपर-नीचे करती हुई बड़बड़ा रही थी, “हां पापा ऐसे ही आआह पापा पूरा निकाल कर डालो पापा आअह”।
“बाप बेटी में होती चुदाई देख कर मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। मुझसे और नहीं देखा गया। ऐसा लगा कि अगर मैं ऐसे ही खड़ी रही तो मुझे चक्कर आ जायगा। मैं बिना कोइ आवाज किये अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी, और जा कर लेट गयी”।
“नींद तो उड़ ही चुकी थी। आँखों के आगे आलोक और मानसी की चुदाई घूम रही थी, और कानों में मानसी की सिसकारियां आआह पापा पूरा निकाल कर डालो पापा आआआह”।
“कोइ आधे घंटे के बाद हमारे कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज सुनाई दी, और साथ ही मानसी के कमरे का भी दरवाजा खुला”।
“मतलब बाप बेटी की चुदाई खत्म हो चुकी थी, और मानसी अपने कमरे में चली गयी थी”।
“ना जाने रात कब आंख लगी। मैं जब सुबह जब उठी तो दस बजे हुए थे। अलोक जा चुका था और मानसी जाने के लिए तैयार थी”।
“मुझे जागा देख मानसी मेरे लिए चाय बना कर लाई और मेरी और देख कर बोली, “क्या हुआ मम्मी, तबीयत तो ठीक है? आपकी आंखों से लगता है आप रात सोई नहीं”?
“मैंने मानसी के हाथ से चाय का कप पकड़ कर मानसी को अपने पास बिठा लिया, और उसकी पीठ पर हाथ फेर कर बोली, “मानसी तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है? कोइ परेशानी तो नहीं”?
मानसी बोली, “नहीं मम्मी कोइ परेशानी नहीं, पढ़ाई बिल्कुल ठीक चल रही है। CA की पढ़ाई पूरी होते ही पापा के ऑफिस जाना शुरू कर दूंगी”।
“मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं मानसी से बात करूं भी तो क्या बात करूं”।
मैंने ऐसे ही बोल दिया, “मानसी तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है”?
मानसी ने जवाब दिया, “ठीक चल यही है मंम्मी, अभी तो बता कर हटी हूं”। ये बोल कर मानसी चुप हो गयी।
मैंने फिर कहा, “मानसी तेरी तबीयत ठीक है”?
मानसी ने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा, “मेरी तबीयत को क्या हुआ है मम्मी, आप अपनी चिंता करो। चेहरे का बैंड बजा हुआ है। क्या रात को सोयी नहीं”? ये बोल कर मानसी जाने के लिए उठ खड़ी हुई।
“अब मैं मानसी को क्या जवाब देती कि बाप बेटी की चुदाई देखने के बाद मुझे कैसे नींद आ जाती”।
“मानसी तो इतना बोल चली गयी, लेकिन मानसी के इस रवैये से एक बात तो मेरी समझ में आ गयी, कि मानसी और आलोक की चुदाई मानसी की मर्जी से हो रही थी। इसमें आलोक की तरफ से कोइ जो जबरदस्ती या दबाव नहीं था, और मानसी को इस चुदाई का कोई अफ़सोस या पछतावा भी नहीं था। उल्टा मानसी इस चुदाई का मजा ले रही थी”।
“मेरे दिमाग से आलोक और मानसी की चुदाई वाला सीन हट ही नहीं रहा था। अगले दिन और उससे अगले दिन भी मैं उसी तरह जल्दी आयी ये देखने के लिए कि अब तो मानसी आलोक से चुदाई नहीं करवा रही? दोनों दिन कुछ भी ऐसा नहीं हुआ। घर में सब पहले जैसा ही चल रहा था, जैसे बाप बेटी की चुदाई जैसी कोइ अनहोनी हुई ही ना हो”।
“आलोक और मानसी तो ऐसे पेश आ रहे थे जैसे कुछ हुआ ही ना हो। उन दोनों के बर्ताव से ऐसा कुछ भी नहीं लग रहा था जिससे लगे कि दोनों में से किसी एक को भी इस चुदाई का कोइ पछतावा है”।
“इसके बाद भी मैं कई बार बीच में आयी ये देखने कि आलोक और मानसी फिर से चुदाई तो नहीं कर रहे, लेकिन मुझे ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला”।
“हालांकि घर में सब पहले की तरह ही चल रहा था, मगर मेरा चैन उड़ चुका था”।
“मैं आलोक और मानसी की चुदाई भूल नहीं पा रही थी जब मानसी नीचे थी, चूतड़ों के नीचे तकिया लगाए हुए। आलोक ने मानसी को बाहों में ले जकड़ा हुआ था। मानसी की टांगें आलोक की कमर पर कैंची तरह चिपकी हुई थी, और आलोक जोर-जोर से मानसी को चोद रहा था। मेरे कानों में मानसी के वही शब्द गूंजते थे “आह पापा और जोर से आअह पापा आह बड़ा मजा आ रहा है, हां पापा ऐसे ही लगाओ आआह हां पापा ऐसे ही आआह पापा पूरा निकाल कर डालो पापा आअह”।
“मैं जब भी बिस्तर पर लेटती, मेरी आंखों के आगे वही सीन आ जाता था। मानसी चूतड़ों के नीचे तकिया लगाए हुए लेटी हुई और ऊपर लेटे आलोक ने मानसी को बाहों में लेके जकड़ा हुआ था। मानसी की टांगें आलोक की कमर पर कैंची तरह चिपकी हुई थी, और आलोक जोर-जोर से मानसी को चोद रहा था”।
“दो महीने बीत गए आलोक पहले की ही तरह था। मानसी बड़ी खुश रहती थी। मानसी का जिस्म और भर रहा था और चेहरे पर भी निखार आ रहा था। चेहरे पर ऐसे नूर और निखार का मतलब था कि मानसी की चुदाई अभी भी हो रही थी। क्या आलोक से? अगर आलोक से नहीं तो किससे”?
“मानसी की चुदाई से मुझे कोइ एतराज नहीं था। चुदाई लड़कियां और औरतें ही करवाती हैं, लेकिन बाप बेटी में चुदाई”?
“मेरे दिमाग में बस यही बात आती थी आलोक और मानसी की चुदाई ठीक नहीं। मैं केवल इतना चाहती थी कि बाप बेटी में चुदाई का चक्कर ना चले, क्योंकि ये एक बहुत ही खतरे वाला रिश्ता पनप रहा था। इसमें किसी में भी अपराध भावना आ सकती थी और मामला कहीं तक भी जा सकता था”।
“मेरी टेंशन कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी। बार-बार शिफ्ट बीच में छोड़ कर घर आना मुश्किल था। मुझे लगा कि मुझे इस बारे में आलोक और मानसी सी बात किये बिना मुझे चैन नहीं आएगा”।
“मानसी से पहले बात करना मुझे सही नहीं लगा, और मैंने आलोक से ही बात करने का फैसला किया”।
– रागिनी ने की आलोक से उसकी अपनी बेटी के साथ चुदाई की बात।
“एक दिन मानसी फिर अपनी किसी सहेली के घर गयी थी, और शाम को आने वाली थी। मैंने बात का माहौल बनाने के लिए आलोक से कहा, “अलोक मानसी तो शाम को आएगी, चलो दो तीन पेग लगाओ और मस्त चुदाई करो मेरी, उस दिन की तरह”।
“आलोक तो जैसे चुदाई का प्यासा हुआ पड़ा था। आलोक ने एक मिनट नहीं लगाया फ़ौरन तैयार हो गया और फ़ौरन ही पेग बना कर ले आया”।
मैंने आलोक से कहा, “आलोक कपड़े उतार लो नंगें हो कर पेग लगाओ, मैंने तुम्हारा लंड चूसना है। मैंने अपने कपड़े उतार दिए और आलोक के पायजामे का नाड़ा खोल कर घुटनों के बल बैठ आलोक का लंड मुंह में ले लिया। मुंह में लेते ही आलोक का लंड डंडे की तरह खड़ा हो गया”।
“जितनी जल्दी आलोक का लंड मेरे मुंह में लेते ही खड़ा हुआ था, मुझे लगा आलोक चुदाई के लिए कुछ ज्यादा ही उतावला हो रहा है। उस वक़्त मुझे ये ख्याल आया कि हम दोनों के बीच चुदाई कम हो रही है, ये ज्यादा होनी चाहिए”।
“उस वक़्त ऐसे ही मेरे जहन में ख्याल आया कहीं हमारे बीच कम हो रही चुदाई ही तो आलोक और मानसी के बीच के इस नए चुदाई वाले रिश्ते कि जड़ नहीं? कहीं आलोक इसी कारण तो मानसी की चुदाई नहीं करने लग गया, क्योंकि मेरी और आलोक की चुदाई कम हो रही थी। आलोक को चूत चाहिए थी, जो रातों को उसके सामने होती थी। अपनी ही बेटी मानसी की चूत”।
“जवान होती हुई मानसी को चुदाई के लिए आसानी से लम्बा लंड और आलोक को चोदने के लिए आसानी से चूत मिल रही थी – वो भी जवान और टाइट चूत”।
“मैंने सोचा अगर यही कारण है दोनों के बीच चुदाई होने का, तब तो पता नहीं कब से आलोक मानसी को चोद रहा है”।
“आलोक का लंड मेरे मुंह में था, मगर मेरे दिमाग में वही सीन घूम रहा था, मानसी और आलोक की चुदाई वाला सीन। पता नहीं कितनी देर मैंने आलोक का लंड चूसा”।
“तभी आलोक ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा, “क्या हो गया रागिनी और कितना चूसोगी? क्या मुंह में निकलवाना है”?
“आलोक के ये कहने पर हड़बड़ा कर ख्यालों से बाहर आयी मैं, और उठ कर बिस्तर पर लेट गयी। मैंने अपने चूतड़ों के नीचे तकिया लगा कर टांगें उठा कर चौड़ी कर दी और चूत की फांकें खोल दी”।
“चूत चुसाई के शौक़ीन आलोक के लिए ये आलोक को चूत चुसाई का बुलावा था। आलोक ने पागलों के तरह मेरी चूत चूसी। मुझे यकीन हो गया कि आलोक को ज्यादा चुदाई चाहिए”।
“मुझे अपने पर गुस्सा आने लगा कि मैं क्यों इतनी खुदगर्ज़ हो गयी कि खुद तो मैं हस्पताल में डाक्टरों से चुदाई करवाती रहती थी और प्रवीणा के साथ चूत और गांड चुसाई के भी मजे लेती रहती थी, और आलोक को भूल गयी थी। और इस बीच जैसे ही मानसी और आलोक को मौक़ा मिला, उन्होंने चुदाई का खेल खेलना शुरू कर दिया”।
दस मिनट तक मेरी चूत चूसने के बाद आलोक बोला, “रागिनी क्या बात है तुम्हारा ध्यान किधर है? मेरे इतनी चूत चूसने के बाद भी आज तुम्हारी चूत ने पानी नहीं छोड़ा। लंड चूसते हुए भी तुम किन्हीं ख्यालों में खो गयी थी”।
“मैंने हड़बड़ा कर कहा, “नहीं आलोक, ऐसा तो कुछ नहीं, ऐसे ही कुछ सोच रहे थी। एक बार थोड़ी चूत और चूसो”।
“आलोक फिर से मेरी चूत चूसने लगा। इस बार मैंने पूरा ध्यान चुदाई की तरफ लगाया और फर्रर से मेरी चूत ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया”।
“आलोक बोला हां, अब निकला तुम्हारी चूत का पानी रागिनी – कुछ खट्टा, कुछ नमकीन खुशबूदार। और ये बोल कर आलोक ने और भी जोर-जोर से मेरी चूत चूसनी शुरू कर दी”।
“मैंने मन ही मन सोच लिया आज आलोक को चुदाई में जन्नत का मजा दूंगी”।
“जैसे ही आलोक ने लंड मेरी चूत में डाला मैंने अपने टांगें आलोक के पीछे चूतड़ों पर डाल कर आलोक को अपनी टांगों में जकड़ लिया और अपने चूतड़ घुमाने शुरू कर दिए”।
“पांच मिनट के चुदाई का बाद ही मैं बड़बड़ाने लग गयी, जिससे आलोक को और मस्ती आये, “आआह आलोक, आज दबा कर चोदो, अंदर तक डालो अपना लम्बा लंड ऐसी चुदाई करो कि याद रहे, घुस जाओ मेरी फुद्दी में”।
“मेरा इतना ही बोलना था कि आलोक ने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी। मुझे भी चुदाई का मजा आने लगा”।
“अब चुदाई के मजे में मेरे मुंह से अपने आप ही निकलने लगा, “आअह आलोक रगड़ो मेरी चूत, झाग निकाल दो इसकी, इस फुद्दी की। फाड़ डालो इसको आआह। इतना मजा दो अलोक कि याद रहे आअह अलोक मेरे आलोक आअह और दबा कर चोद आआह मेरे राजा मेरे आलोक फाड़ दे मेरी चूत फाड़ मेरी फुद्दी”।
“मेरी ये बातें सुनते ही आलोक के धक्कों की स्पीड और बढ़ गयी। अब आलोक भी कुछ-कुछ बोलने लगा, “ले रागिनी, ले गया तेरी फुद्दी में अंदर तक मेरी जान रागिनी। ले बना दिया तेरे चूत का भोसड़ा आआआह आआह रागिनी मेरी जान लेले, और लेले, और ले, आअह रागिनी और ले”।
“कुछ देर की चुदाई के बाद हम दोनों ने आआआह आआह वाली लम्बी सिसकारियां निकाली, और हम दोनों झड़ गए। हमारा दोनों का पानी छूट गया। हम दोनों को इकट्ठे मजा आ गया। एक चुदाई हो गयी और हम दोनों, थके हुए ढीले हो कर लेट गए”।
– रागिनी ने आलोक से पूछी मानसी को चोदने की बात।
“मालिनी जी उस दिन मेरे और आलोक के मस्त चुदाई हुई थी। बहुत दिनों के के बाद ऐसा मजा आया था। चुदाई के बाद मैं और आलोक दोनों ढीले हो कर लेट गए”।
“जब चुदाई का नशा थोड़ा उतरा तो मैंने आलोक से पूछा, “आलोक तुमसे एक बात करनी है”।
आलोक ने मेरा हाथ पकड़ कर कर अपने लंड पर रख दिया और मेरे मम्मों पर हाथ फेरते हुए पूछा, “क्या बात है रागिनी, कुछ खास बात है क्या, जो अभी ही करनी है”?
मैंने भी आलोक का ढीला पड़ा गीला-गीला लंड हाथ में ले लिया और बोली, “आलोक जो मैं पूछने जा रही हूं, उसका सच-सच जवाब दोगे? कुछ छुपाओगे तो नहीं”?
“आलोक थोड़ा हैरान सा हुआ। मेरी तरफ मुंह करते हुए आलोक बोला, “क्या बात है रागिनी? कुछ ख़ास बात है क्या”?
रागिनी ने आलोक से क्या पूछा, और आलोक ने उसका क्या जवाब दिया, ये पढ़िए अगले भाग में।