अब तक आपने पढ़ा कि आलोक नहीं चाहता था कि मानसी उससे चुदाई करवाए, मगर मानसी नहीं मानती थी। आलोक के मना करने पर मानसी का एक ही जवाब होता, “पापा आप ये सोचते ही क्यों हो कि आप अपनी बेटी की चूत चोद रहे हो। आप बस इतना ही सोचो कि आप के सामने एक चूत है, और आप उसे चोद रहे हो। किसकी चूत चोद रहे हो ये सोचो ही मत”।
ये बोल कर मानसी खुद ही अपने चूतड़ों के नीचे तकिया लगा लेती और अपनी टांगें उठा कर अपने हाथों से चूत खोल कर बिस्तर पर लेट जाती। मानसी की गुलाबी चूत देख कर आलोक का लंड फनफनाने लगता, और वो बेकाबू हो जाता। उसके सामने कोइ चारा नहीं रहता और चुदाई हो जाती।
अब आगे।
रागिनी डाक्टर मालिनी को बता रही थी, “मालिनी जी, आलोक की बातें सुन-सुन कर मुझे अपने पर ही शर्म और गुस्सा आने लगा। मैं आलोक और मानसी के बीच हो रही इस चुदाई के लिए अपने को ही जिम्मेदार मानने लगी”।
“मेरी बेटी मानसी अपने पापा के साथ इसलिए चुदाई करवा रही थी, क्योंकि उसके पापा को चुदाई के लिए चूत नहीं मिल रही थी। मैं, उसकी मां, उसके पापा, अपने पति अलोक के साथ चुदाई नहीं करती थी? मानसी को तो लग रहा था कि वो तो बस अपने पापा का ध्यान रख रही थी। मेरे लिए इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती थी”।
“बाप बेटी की इस चुदाई में आलोक और मानसी के साथ-साथ मुझे अपना भी कुसूर लगने लगा”।
रागिनी बोलती जा रही थी।
“मालिनी जी आलोक की इन बातों से मेरा गुस्सा काफी हद तक खतम हो चुका था। मेरा दिमाग अब आगे की सोचने लगा”।
मैंने आलोक से पूछा, “आलोक तुम मानसी को चोद तो रहे ही हो, अब ये बताओ मानसी को चोदते वक़्त अपने लम्बे लौड़े पर कंडोम भी चढ़ाते हो या नहीं। या ऐसे ही चोद देते हो उसे बिना कंडोम के ही”।
“मलिनी जी मेरी हैरानी का तो कोइ अंत ही नहीं रहा जब आलोक बोला, “रागिनी, मानसी लंड पर कंडोम चढ़ाने ही नहीं देती”।
“ये मेरे लिए एक और नई बात थी। बीस साल की कालेज जाने वाली मानसी, और कंडोम के बिना चुदाई करवा रही थी? माना प्रभात के साथ उसकी बिना कंडोम के चुदाई हुई थी पर वो चुदाई तो अचानक हो गयी थी। आलोक के साथ तो मानसी की चुदाई तो पूरे होश में हो रही थी”।
मैंने आलोक से पूछा, “क्या मतलब है तुम्हारा आलोक? मानसी लंड पर कंडोम चढ़ाने नहीं देती? लंड पर कंडोम तुमने चढ़ाना है या मानसी ने चढ़ाना है”?
“आलोक ने मेरी इस बात का भी जवाब नहीं दिया”।
मुझे फिर से गुस्सा आ गया। मैंने बिफरते हुए आलोक से पूछा, “ये हो क्या रहा है आलोक? पहली बात तो ये कि तुम अपनी बेटी को ही चोद रहे हो। अब बोल रहे हो चुदाई से पहले लौड़े पर कंडोम भी नहीं चढ़ाते। सोचो अगर मानसी को भी बच्चा ठहर गया, जैसे मुझे ठहर गया था तो”?
“मालिनी जी अलोक तो कुछ बोल ही नहीं रहा था। मैंने ही पूछा, “पहली बात तो ये आलोक की मानसी की चुदाई करके ही तुम बहुत बड़ा गुनाह कर रहे हो, और ऊपर से ये कंडोम ना चढ़ाने वाला चक्कर? इतना बड़ा रिस्क ले रहे हो तुम आलोक। क्या मैं पूछ सकती हूं आलोक अपने बेटी को चोदते हुए लंड पर कंडोम चढ़ाने क्या परेशानी है?
मुझसे नजरें मिलाये बिना आलोक बोला, “रागिनी अब मैं क्या बताऊं। मेरी और मानसी की पहली चुदाई तो बिना कंडोम के ही हुई थी। उस चुदाई की बाद तो मैंने मानसी को i-pill ला दी थी। उसके बाद एक बार जब मानसी फिर कमरे में आयी तो मैंने किसी तरह लंड पर कंडोम चढ़ा लिया। मानसी को इस कंडोम चढ़ाने का पता नहीं चला”।
“चुदाई की बाद जब मानसी को और मुझे मजा आ गया तो मानसी ने पूछा, “पापा आज आपने लंड में से वो वाला गर्म-गर्म कुछ नहीं निकला। ऐसा क्यों हुआ पापा”?
“मैंने बता दिया कि मानसी आज की चुदाई कंडोम चढ़ा कर हुई है, जिससे मेरे लंड का पानी उसकी चूत में ना निकले और बच्चा ठहरने का खतरा ना रहे”।
“मानसी कुछ देर तो चुप-चाप लेटी रही फिर बोली, “पापा आगे से कंडोम मत चढ़ाना। आपके लंड का गर्म पानी मेरी चूत में ही निकलना चाहिए। जब चूत की अंदर गर्म-गर्म लगता है और चूत भर जाती है तब ज्यादा मजा आता है। और पापा फिर ‘वो’ वाला खतरा कैसा? आप i-pill ला दो, मैं चुदाई की बाद वो खा लिया करूंगी”।
“अब बताओ रागिनी, कंडोम चढ़ा कर कैसे चोदूं मानसी को। मेरी और मानसी की चुदाई में तो वैसे भी मर्जी मानसी की ही चलती है”।
रागिनी बता रही थी, “मालिनी मुझे तो एक के बाद एक हैरानी वाली बातें पता चल रही थी। पहले बाप बेटी की चुदाई, वो भी बेटी की पहल से। अब बिना कंडोम की चुदाई हो रही थी वो भी इसलिए क्योंकि बेटी को अपनी चूत में गर्म-गर्म कुछ लगना चाहिए और साथ ही उसकी चूत लंड की पानी से भर जानी चाहिए”।
“मालिनी जी उस वक़्त मैं तो बस यही सोच रही थी, “हद्द ही है ये मानसी ! इतना आगे चली गयी और मुझे, उसकी मां को, कुछ भी पता ही नहीं चला”?
आलोक सब कुछ बता कर चुप हो गया। मैंने आलोक से ही पूछा, “आलोक अब क्या करें। चाहे जैसे भी हो रहा है, हो तो ये गलत ही रहा है”।
आलोक बोला, “रागिनी सोचते हैं। कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा। पहले तो मानसी को ही ये बात समझ आनी चहिये कि बाप बेटी में हो रही ये चुदाई का रिश्ता गलत है और अब ये चुदाई बंद होनी चाहिए”।
आलोक जैसे फिर अपने आप ही बोला, “रागिनी वैसे भी मेरी और मानसी की चुदाई होती जरूर है, मगर इस तरह की बातें हममें नहीं होती। यहां तक की चुदाई के दौरान जैसे सिसकारियां तुम लेती हो या जैसी मैं लेता हूं या जो कुछ हम बोलते हैं फाड़ दो चूत, रगड़ दो मेरी फुद्दी – ऐसा हमारी चुदाई में कुछ नहीं होता”।
“चुदाई के दौरान भी हम बाप बेटी ही रहते हैं और हमारे बीच हो रही चुदाई औरत मर्द की नहीं, बाप बेटी की चुदाई होती है। ज्यादा से ज्यादा मानसी यही बोलती है हां पापा ऐसे ही करो, आआह पापा, आह पापा, बस पापा हो गया, आआआह पापा निकल गया मेरा। मैं तो वो भी नहीं बोलता। यहां तक कि जब मेरे लंड का पानी निकलता है हुए मुझे मजा आता है, तब भी मैं चुप ही रहता हूं”।
“फिर आलोक बोला, “रागिनी मैं तो शुरू से ही इस चुदाई के रिश्ते के खिलाफ था। मुझे बस यही डर लगा रहता था कि मानसी कालेज जाने वाली बीस साल की जवान लड़की है। अगर कहीं उसकी बात ना मानी गयी तो कोई गलत फैसला ना ले बैठे”।
– रागिनी को हुआ अपनी गलती का एहसास I
“मुझे आलोक की बातें सुन कर महसूस होने लगा कि मैंने कितनी बड़ी गलती कर अलोक से चुदाई करवाने में लापरवाही करके”।
“आलोक चुप हो गया और मैं भी चुप-चाप लेट गयी”।
अलोक बोला, “रागिनी फ़िलहाल मेरी और मानसी की चुदाई के बारे में इतना सोचना बंद करो। मुझे मानसी की नहीं बस तुम्हारी चूत और गांड ही चाहिए। मानसी को भी अपनी उम्र के लड़के से ही चुदाई करवानी चाहिए। मानसी मुझसे चुदाई इसलिए करवाती है क्योंकि उसे लगता है मुझे चुदाई करवा के वो एक बेटी का फ़र्ज़ निभा रही है”।
आलोक बोल रहा था, “हम दोनों को ही इस बारे में संजीदगी से सोचना पड़ेगा कि कैसे मानसी मुझसे चुदाई करवाना बंद करे और अपने हम उम्र दोस्तों से चुदाई करवाए। रागिनी, बीस साल की लड़कियां आजकल चुदाई करवाती ही हैं”। ये कह कर अलोक ने पूरी उंगली मेरी चूत में डाल दी”।
“दो तीन बार उंगली मेरी चूत में अंदर-बाहर करने के बाद आलोक पलट कर मेरे ऊपर आ गया और उसने मेरे होंठ अपने होठों में ले लिए। मुझे अपनी बाहों में लेकर आलोक लंड मेरी चूत पर रगड़ने लगा”।
“वैसे तो मालिनी जी हममें जब भी चुदाई होती थी, हम एक से ज्यादा बार ही चुदाई करते थे। एक बार चुदाई करने के बाद हम अक्सर आधा घंटा रुक जाते और एक-दूसरे के साथ मस्ती करते रहते। फिर कुछ देर के बाद हममें एक चुदाई और हो जाती थी”।
“उस दिन भी हमारी एक चुदाई तो हो ही चुकी थी। मगर एक तरफ शराब का नशा दूसरे अपनी और मानसी की चुदाई की बातें बताते-बताते आलोक का लंड जल्दी ही खड़ा होने लगा था”।
“इतना कुछ सुनने के बाद और आलोक के मेरी चूत में उंगली डालने के बावजूद भी मेरा मन चुदाई का नहीं हो रहा था। मेरी चूत पानी भी नहीं छोड़ रही थी। मेरे दिमाग में बस यही बात चल रही थी, कि मेरी वजह से बाप बेटी में चुदाई का रिश्ता बन गया है और अब ये चुदाई बंद होनी चाहिए”।
“जब आलोक ने देखा कि मैं चुदाई में कोइ दिलचस्पी नहीं दिखा रही तो आलोक उठा और एक गिलास और उठा लाया, और दोनों गिलासों में बड़े-बड़े पेग बना दिए। एक गिलास मेरे हाथ में देकर आलोक बोला, “लो रागिनी आज तुम्हें भी इसकी जरूरत है”।
“मैं व्हिस्की पीती तो नहीं, मगर ऐसा भी नहीं की कभी पी ही ना हो”।
“मेरा अपने आप पर गुस्सा कम ही नहीं हो रहा था कि क्यों मैंने आलोक से चुदाई कम की और और अपनी चूत की आग ठंडी करने के लिए इधर-उधर मुंह मारती रही”।
“मैंने आलोक के हाथ से गिलास पकड़ा और दो घूंट में ही गिलास खाली कर दिया। बड़ा सा पैग पी कर मेरा दिमाग कुछ हल्का होने लगा। मैंने सोचा जो होना था वो तो हो चुका, अब उसे ठीक करने के जरूरत है”।
“मैंने खुद ही व्हिस्की की बोतल उठाई और एक बड़ा सा पैग बना लिया। दूसरा पेग भी मैंने दो घूंट में खाली कर दिया। दो बड़े-बड़े पैग अंदर जाते ही दिमाग से मानसी और आलोक की चुदाई हट गयी, और उसकी जगह मेरी और आलोक की चुदाई ने ले ली। मैंने मन ही मन सोचा आज आलोक से ऐसे चुदाई करवाऊंगी आलोक याद रखेगा”।
– रागिनी ने चुदाई करवाई शराब पी कर।
गिलास में तीसरा बड़ा पेग डालते हुए मैंने आलोक को कहा, “चलो अलोक आज चुदाई का तुम्हें ऐसा मजा दूंगी कि तुम सारी चुदाईयां भूल जाओगे”।
“ये सुनते ही आलोक का लंड तन गया। मैंने मन ही मन सोच लिया आज आलोक का लम्बा लंड गांड में भी लूंगी। बहुत अरसा हो गया था अलोक का लंड गांड में नहीं डलवाया”।
फिर मेरे दिमाग में आया, “गांड क्या मैंने तो अलोक का लंड ढंग से चूत में भी नहीं डलवाया”।
“अलोक ने भी अपना गिलास भी खाली किया और एक बड़ा सा पैग बना कर दो घूंट में ही गिलास खाली कर दिया”।
“बड़े-बड़े पैग लगाने के बाद नशा हमारे सर पर चढ़ गया और हम दोनों ही चुदाई के लिए बेकरार हो गए”।
आलोक नशे में बोला, “रागिनी लेट जा और वो तकिया रख अपनी गांड के नीचे और चूत ऊपर उठा। तेरी चूत चूसूं और ये लम्बा लंड डालूं तेरी चूत में। साली चुदवाती भी नहीं। मेरा लंड प्यासा ही रह जाता है। रागिनी तेरा मन नहीं करता साली चुदाई करवाने का? क्या चक्कर है”?
“नशा मुझे हो ही चुका था। मैंने भी तकिया अपनी गांड के नीचे रख के अपनी चूत उठा दी और बोली, ” आजा आलोक चढ़ जा मेरे ऊपर। डाल मेरी चूत में लंड और चोद मुझे। फाड़ दे मेरी चूत आज। जैसे चोदना है चोद आज। कर ले हर हसरत पूरी चुदाई की। अब रोज चोदना मुझे मेरे राजा। आजा रगड़ मेरी चूत। झाग निकाल दे इसकी। निकाल दे इसकी अकड़ साली इस चूत की। तेरे लंड का ध्यान नहीं रखती ये मेरी मादरचोद फुद्दी”।
“व्हिस्की के सरूर में आये आलोक ने लंड मेरी चूत के छेद पर रखा एक झटके से लंड मेरी चूत में पूरा अंदर तक बिठा दिया, और चुदाई चालू कर दी”।
“चुदाई का जूनून और शराब का नशा – मेरी चूत ने सच में ही झाग छोड़ दी। आलोक के हर धक्के के साथ खच्च फच्च खच्च फच्च की आवाज आ रही थी। मेरी चूत में से पानी निकल कर मेरी जांघों पर भी फ़ैल गया था। खच्च फच्च के साथ अब ठप्प ठप्प की आवाजें भी आ रही थीं”।
आलोक बोले जा रहा था, “ले रागिनी आज फाड़ ही दूंगा तेरी चूत। निकाल दूंगा अकड़ इस मादरचोद फुद्दी की। साली तेरी ये चूत? मेरे लंड से दूर भागती है? भाग कर जाएगी कहां? आज चोद-चोद कर फुला दूंगा तेरी ये फुद्दी”।
“आलोक पागलों की तरह चोद रहा था मुझे और मेरी छूट फर्रर्र फर्रर्र पानी छोड़ रही थी। तभी मुझे मजा आने वाला हो गया”।
मैं बोली , “आह आलोक मेरी चूत पानी छोड़ने वाली है, लगा दबा कर धक्के, रंडी की तरह चोद आज मुझे, कुतिया की तरह चोद, फाड़ डाल मेरी फुद्दी, फाड़ मेरी, फाड़ दे, आआह आआह। और मेरी चूत पानी छोड़ गयी”।
आलोक का भी निकलने लगा। आलोक जोर-जोर से कुछ बोल रहा था, ” ले, ले निकला मेरा, मेरी जान, आज आया चुदाई का असली मजा। कहां थी तू इतने दिन मेरी जान? मेरी चुदक्कड़ रागिनी, ले भर दी तेरी चूत ले आआह आआआह निकल गया तेरी फुद्दी में”।
“और इसके साथ ही आलोक के लंड का गर्म-गर्म पानी मेरी चूत में निकला गया। आलोक ने लंड मेरी चूत में से निकला, और मेरे ऊपर ही लेट गया”।
“दो मिनट बाद आलोक ने पलटी ली और मेरी बगल में आ कर लेट गया और बोला, “मजा आ गया आज तो”।
“मजा तो मुझे भी बहुत आया था। मेरी तो चूत भी आलोक के गर्म पानी से भरी पडी थी। मैंने आलोक का लंड पकड़ लिया। लंड आलोक के और मेरी चूत के पानी से चिप-चिप कर रहा था। मुझे इस चिपचिपाहट में भी मजा आ रहा था”।
मैं आलोक के लंड को दबाती जा रही थी और बीच-बीच में आगे-पीछे भी कर रही थी। जल्दी ही अलोक का लंड फिर खड़ा होने लग गया। आलोक ने मेरे ऊपर आ कर मेरी होठ अपने होठों में ले लिए, और चूसने लगा। लगातार की होठ चुसाई ने मेरी चूत फिर तैयार कर दी।
मैंने आलोक से पूछा, “ये क्या आलोक? तुम्हारा लंड तो फिर से खड़ा हो गया है। अब क्या करना है”?
– रागिनी की गांड चुदाई
आलोक बोला, “अब तेरी गांड फाड़ने की बारी है रागिनी। सालों साल हो गए तेरी गांड चोदे। आज सूखी ही रगडूंगा – सुजा दूंगा तेरी गांड का छेद”। ये बोलते-बोलते अलोक का लंड एक-दम सख्त हो गया।
आलोक बोला, “आजा हो जा उल्टी तेरी गांड चोदूं, फाड़ूं तेरी गांड, भुर्ता बनाऊं आज तेरी गांड का”।
“उस दिन गांड चुदवाने का तो मेरा भी मन था। जैसे ही आलोक ने गांड चुदाई की बात की, मैं बेड के किनारे पर उलटा लेट गयी – घुटनों और कुहनियों के बल। मेरी चूत तो आलोक के लेसदार पानी से भरी ही पडी थी। मैंने नीचे हाथ करके चूत में बाहर की तरफ जोर लगाया। ढेर सारा लेसदार पानी मेरी हथेली पर आ गया। मैंने हाथ पीछे करके, सारा पानी अपनी गांड के छेद पर लगा दिया”।
“आलोक पीछे ही खड़ा। आलोक ने वो लेसदार पानी और अच्छी तरह गांड के छेद पर मला, थोड़ा थूक छेद पर डाला और लंड छेद पर रख के एक झटके से गांड के अंदर डाल दिया”।
“मेरी चूत के पानी और आलोक के थूक से भी मेरी गांड का छेद ज्यादा चिकना नहीं हुआ था। लगभग सूखी गांड में जैसे ही आलोक का लंड झटके के साथ अंदर गया तो दर्द के मारे मेरी चीख ही निकल गयी। मैंने कहा, ” ये क्या कर रहे हो अलोक, सच में ही गांड फाड़ोगे क्या”?
आलोक बोला, ” हां रागिनी आज सच में फाड़ूंगा तेरी। बदला लूंगा तुझसे इतने दिन मुझसे दूर रहने का – सालों से गांड ना चुदवाने का, ये ले, और ले”।
“इतना कहता ही आलोक ने मेरी गांड चोदनी शुरू कर दी। जल्दी ही मेरी गांड का छेद अलोक के लंड के हिसाब से खुल गया और मुझे चुदाई का मजा आने लगा। उधर मैंने अपनी चूत का दाना रगड़ना शुरू कर दिया”।
“आलोक जिस स्पीड से अपना लंड मेरी गांड के अंदर-बाहर कर रहा था, उतनी ही स्पीड से जोर-जोर से मैं अपने चूत का दाना रगड़ रही थी। मुझे चूत रगड़ने का इतना मजा आ रहा था कि मैं बता नहीं सकती”।
“मालिनी जी सच पूछो तो गांड चुदाई तो बस एक फितूर सा है। आदमी के लिए भी और औरत के लिए भी। चुदाई तो असली चूत की ही होती है”।