छोड़ना और छुड़वाना मनुष्या की मूलभूत ज़रूरत है. जैसे भोजन और पानी के बिना हम नही रह सकते, ठीक उसी तरह बिना छोड़े और चुडवाए हम नही जी सकते. शायद इसीलिए हमारे पूर्वजों ने शादी का प्रावधान कर रखा है.
इसमे बस एक बार सेट्टिंग की, और फिर बेजीझक ज़िंदगी भर जब जी चाहे छोड़ो और चुड़वव. लेकिन इसके उलट जब हमारी शादी नही हुई होती है, तो हर बार की चुदाई में पुर पापद बेलने होते है.
हर एक चुदाई की एक कहानी बन जाती है, और इस कहानी को हम बड़े ही मज़े से सुनते-सुनाते है, और पढ़ते पढ़ते है. ठीक इसी प्रकार शादी हो और मर्द नमार्द निकल जाए, तो भी लड़कियों को छुड़वाने के लिए बहुत ही मुशक्कत करनी होती है. और हर चुदाई की एक कहानी बन जाती है.
आज मैं आप लोगो के सामने ऐसी ही कहानी रखने जेया रही हू, जिसमे लड़की को नमार्द दूल्हा मिल जाता है. फिर उसको छुड़वाने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है. हर करनी की अलग-अलग कहानी बन जाती है. ये कहानी मेरी एक सहेली मल्टी की है.
मल्टी 30 साल की मस्त जवान और बाला की खूबसूरत लड़की है. उसका चमकता गोरा रंग और कारी-कजरारी बड़ी आँखें कमाल की है. मोतियों से चमकती उसके दांतो की चमक, गोरे गाल कहर धाते है.
ताज़े गुलाब की पंखुड़ियों से उसके रस्स-भरे गुलाबी होंठो के लिए कोई भी पागल हो जाए. उसकी सुरहीदार गर्दन, और इन सब पर क़यामत धाती गडरल जवानी किसी को भी मो ले. 36″ साइज़ की गोरी-गोरी क़ास्सी हुई उसकी चूचियाँ, मस्त मटकते उसके नितंभो को देख कर हर जवान “आए हाए” करके च्चती पीट-ता है.
हर बुद्धा उसके देह से अपने देह को रगड़ने की आस लगाए रहता है. बाला की खूबसूरत है मल्टी. उसकी इस कहानी को मैं अब आपको अपनी ज़ुबान में सुनाती हू. मेरी शादी मेरी 21 साल की उमर में रमेश के साथ बड़े ही धूम-धाम से संपन्न हुई.
मैं दुल्हन बनके सजी-सावरी. फिर मैं रमेश के साथ ससुराल आ गयी. मेरे ससुराल में सिर्फ़ 03 ही लोग थे. उनमे मेरी सास, ससुर और मेरे पति रमेश थे. रमेश का काफ़ी सुखी संपन्न परिवार था. गाड़ी, बांग्ला सब था उसके पास.
मैं तो अपनी किस्मत पर इठला रही थी, और अपनी सुहाग सेज पर बैठी रमेश का बेसब्री से वेट कर रही थी. मेरे मॅन में बाते आ रही थी, की जल्दी रमेश आए और मेरा घूँघट उठा कर रस्स-भरे गुलाबी होंठो को चूमे-छाते. और फिर छोड़-छोड़ कर मेरी तड़पति प्यासी छूट की प्यास बुझा दे.
मैं इन्ही सब ख़यालों में डूबी थी, की तभी रमेश आ गया. उसके आने पर मैं तोड़ा शरमाई. फिर अपने पातिदेव के पावं छुए. रमेश ने मुझे सीने से लगाया और मेरी कसमसाती चूचियों ने रमेश के सीने से रग़ाद खाई.
अब मैं मस्ती से भर गयी थी. फिर रमेश ने मेरे कपड़ो को चूमा और फिर मेरे होंठो को चूमने लगा और चाटने लगा. वो मेरे होंठो को चूसने लगा और मेरी नास्स-नास्स में आग सी दौड़ने लगी. मेरी छूट गीली हो चली थी. मैं अपनी छूट में अपने साजन के लंड के लिए बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगी.
रमेश मेरी चूचियों तक पहुँच चुका था. वो मेरी एक चूची को हाथ से मसल रहा था, तो दूसरी को मूह से चूस रहा था. अब मुझसे रहा नही गया, और मैं अपने हाथ रमेश के लंड पर ले गयी.
हाए राम! मेरा कलेजा धक सा रह गया. रमेश का लंड तो था ही नही. उसकी जगह एक छ्होटी सी लुल्ली थी. मेरी आँखों से ताप-ताप मोतियों से आँसू टपकने लगे. रमेश सिर्फ़ सॉरी बोल गया. मैने रमेश की तरफ देखा और बोली-
मैं: तुम्हारी सॉरी से मेरी ज़िंदगी कट्ट जाएगी.
इस पर रमेश सिर्फ़ मूह फेर कर रह गया. जैसे-तैसे रात कट्ट गयी. अब मैं जल्द से जल्द वाहा से निकल जाना चाह रही थी. मुझे घर नरक के समान लगने लगा था. फिर मुझे समझने बुझाने को रमेश का जीजू आनंद आया.
अब समझने बुझाने का दौर चल रहा था, और मैं आनंद के करीब होती गयी. आनंद के सीने में सट्टे हुए मैं सूबक रही थी. आनंद मुझे सहला रहा था. पहले उसने मेरी पीठ और फिर मेरी गांद सहलाई. और अब हम लोग पूरी तरह से चूड़ने छुड़वाने के लिए रेडी थे.
अब आनंद मेरे गुलाबी होंठो का रस्स पी रहा था. मैं आनंद के चौड़े मज़बूत सीने पर अपनी कोमल उंगलियाँ घुमा रही थी. मेरी बर कसमसने लगी थी. अब धीरे-धीरे आनंद मेरे कपड़ो को उतार रहा था. सबसे पहले उसने मेरी सारी उतार दी.
अब मैं सिर्फ़ पेटिकोट और ब्लाउस में थी. मेरी सेक्सी गड्राई जवानी को देख कर आनंद भी मस्ती से भरा जेया रहा था. उसका विशाल मोटा लंड खड़ा होकर फंफनाने लगा. उसके लंड को मैं अपनी बर पर महसूस कर रही थी.
फिर आनंद ने मेरे ब्लाउस और ब्रा उतार दिए. मेरी चमकती गोरी नंगी चूचियों को देख कर आनंद सबर ना कर सका. फिर उसने मेरी चूचियों को मूह में ले लिया. आनंद मेरी चूचियों को सहला रहा था और चूस रहा था.
मेरे मूह अब सी सी सी सी की आवाज़े निकल रही थी. मेरी पूरी बॉडी कस्स-मास कर रही थी. मेरी बर में पानी आ चुका था, और अब टपकने भी लगा था. आनंद ने मेरी टपकती बर को देखा, और झपट कर अपने मूह को बर पर सता दिया.
वो जीभ निकाल कर चत्ट-चत्ट करके बर चाटने लगा. मैं अब आ आ कर रही थी. कभी-कभी आनंद अपनी जीभ को बर में घुसेध देता, और मैं उछाल पड़ती. आनंद एक-दूं मंजा हुआ बुरछट्टा था. एक भी बूँद वो नीचे नही गिरने दे रहा था.
मैं बर चटवा-चटवा कर मस्ती ले रही थी. लेकिन अब मुझसे रहा नही जेया रहा था. मैने बर में लॉडा डालने का बहुत बार इशारा किया, पर आनंद था की बर छाते ही जेया रहा था.
उस बुरछट्टे का मॅन ही नही भर रहा था. बर चाटने से मेरे सबर का पैमाना चालक पड़ा, और मैं उसको झिड़क कर बोली-
मैं: अर्रे बहनचोड़ बुरछट्टे, बर चाटने से मेरा मॅन नही भरेगा. अब लॉडा बर पर सेट कर और थोक दे लॉड को मेरी बर में.
आनंद जैसे ही नींद से जगा, उसने मेरी गांद में हाथ डाला, और उठा कर बेड पर पटक दिया. फिर उसने मेरी टाँगो को फैलाया और मेरी टाँगो के बीच बैठ गया. उसने अपने 08 इंच लंबे 04 इंच मोटे लॉड को बर के मुहाने पर रखा, और कच से लॉडा बर में डाल दिया.
फौलाद की तरह सख़्त कड़क लंड बर के अंदर सभी दीवारो को चीरता फाड़ता अंदर घुस गया. बर में लॉडा गया, और मैं जन्नत में पहुँच गयी. अब आनंद घपा-घाप मुझे छोड़ रहा था.
आनंद की चुदाई देख कर मैं जान गयी, की वो सला एक नंबर का छोडनबाज था. अब आप पूछेंगे छोडनबाज किसको कहते है. तो मैं आपको आनंद की पोज़िशन को बताती हू. इससे आप खुद बा खुद जान जाओगे, की छोडनबाज किसको कहते है.
इस समय आनंद मेरी बर में लॉडा ठोके हुए था. मेरी चूचियाँ उसकी दोनो हथेलियो में थी, और उसका मूह मेरे मूह में सत्ता हुआ था. उसकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी. इस पोज़िशन में वो मुझे घपा-घाप फ़चा-फॅक गांद उछला कर ताबाद-तोड़ छोड़ रहा था.
इसीलिए मैं कह रही हू, की सला बहुत बड़ा छोडनबाज था. आनंद घपा-घाप ताबाद-तोड़ मुझे छोड़ रहा था. मैं भी बिल्कुल पीछे नही थी. मैं अपनी गांद को उछाल-उछाल कर मस्ती से छुड़वा रही थी. साथ ही अपनी छूट को समझा रही थी, की छुड़वा ले रानी मस्त छुड़वा ले. ना-जाने फिर कब ऐसा मौका हाथ लगे.
अब चुड़वते-चुड़वते मेरी बर सिकुद्ती गयी, सिकुद्ती गयी. आनंद का लॉडा मोटता गया मोटता गया. अब बर में लॉडा पूरी तिघली आ-जेया रहा था. मुझे असीम सुख की अनुभूति हो रही थी. मेरे मूह से लगातार आवाज़े निकल रही थी.
मैं: आ आ आ ज़ोर से छोड़ो मेरे यार, ज़ोर से.
फिर इसी आ आ के साथ मैं ठंडी पद गयी. यही हाल आनंद का भी था. आनंद मेरे जिस्म को कसता गया कसता गया, और फिर आ आ करके बोलने लगा-
आनंद: क्या मस्त बर है तेरी यार. मैं तो गया, मैं तो गया.
ये बोल कर उसने मेरी बर में वीर्या की फूचकारी मार दी. गरम-गरम वीर्या को मैं अपनी बर में पकड़ कर धान्या हो गयी. मुझे छुड़वाने का सुख मिला, पर आयेज ये सुख नही मिलने वाला था. आयेज मुझे फिरसे तलाश करनी पड़ेगी, जो मुझे छोड़ कर जन्नत को पहुँचाए.
और आयेज फिर एक कहानी बन जाएगी जिसको लेकर मैं फिरसे आपके पास आऔगी. अब मुझे इजाज़त दीजिए. कहानी लिखते-लिखते मेरी बर भी पानी-पानी हो जाती है. सो अब मैं भी अपने बुरछट्टे से अपनी बर चत्वौुनगी. धन्यवाद मुझे आप अपनी प्रतिक्रिया यहा देने का कष्ट करे: