दीपक कच्ची नींद में था , या फिर बहाना बना रहा था, “अरे रजनी” ? मैंने लंड मुंह से बाहर निकल दिया और दीपक की तरफ देखने लगी की देखें क्या कहता है। वो बोला, “नीचे क्यों बैठी हो ऊपर आओ “। मैं पलंग के ऊपर बैठ गयी। दीपक ने अपना लंड अपने हाथ में लिया और बोला, ये लो आराम से चूसो। मैंने लंड पकड़ा और अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी। संतोष के लंड की तरह का ही मोटा लंड ।
पांच सात मिनट की चुसवाई के बाद दीपक ने लंड मेरे मुंह से निकाल लिया। मुझे पूरी तरह नंगा करके, मेरी चूचियां चूसने लगा। साथ ही मेरी चूत में उसने उंगली डाल दी। जब उसे लगा की मेरी चूत अब लंड मांग रही है तो उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरी टांगें उठा दी।
मुझे संतोष की चुदाई याद आ गयी – कैसे संतोष ने मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर मेरी चूत ऊपर उठाई थी। मगर दीपक ने तो ऐसा कुछ नहीं किया – मगर जो दीपक ने किया वो वाकई अलग था। दीपक ने मेरी टांगें अपने कंधों पर रख दी। मेरी हालत ये थी की मैं अपने चूतड़ हिला भी नहीं पा रही थी।
दीपक ऊपर की तरफ खिसका और मेरी चूत खुदबखुद ऊपर उठ गयी। मेरी चूत का छेद दीपक के लंड के बिलकुल सामने था। बस फिर क्या था एक दो और तीन – लंड चूत के अंदर था और चुदाई शुरू थी। दस मिनट धक्कों के बाद दीपक हटा और बोला “अब ज़रा चुदाई का ढंग बदलते है। पीछे से चुदाई करूँ “?
मुझे अपनी माँ की चुदाई याद आ गयी जिसमे दीपक माँ को पीछे से चोद रहा था। मैंने सर हिला कर हामी भरी और पलंग से नीचे उतर गयी। मेरी माँ की ये वाली चुदाई मेरी आखों के आगे घूम गयी। अपनी माँ की तरह ही मैं पलंग पर झुक गयी, अपनी टांगें चौड़ी कर दी और दीपक के लंड का इंतज़ार करने लगी।
अब सबर नहीं हो रहा था। दीपक ने अपना लंड मेरी चूत पर फेरना शुरू किया। बीच बीच में वो अपना लंड मेरी गांड के छेद पर भी रख देता था। आनंद के मारे मेरी तो सिसकारियां निकलनी शुरू हो गयी और मैं हिलने लग गयी। दीपक समझ गया भट्टी गर्म है। उसने एक ही बार में पूरा लंड अंदर कर दिया और मेरी चूत की चुदाई शुरू कर दी। मैं सोच रही थी क्या लंड है और क्या चुदाई है।
अगले आठ दस मिनट तक ऐसी ही चुदाई चली, फिर दीपक ने अपना लंड मेरी चूत में से निकाल लिया और बिस्तर पर सीधा लेट गया और बोला, ” बैठो मेरे लंड पर और अंदर लो इसको “। मेरी आँखों के आगे माँ का दृश्य घूम गया, जब वो दीपक के खूंटे जैंसे लंड पर बैठी थी और जोर जोर से ऊपर नीचे हो रही थी।
अब वही “खूंटा ” मेरी आँखों की सामने था और मेरी चूत में घुसने के लिए बेताब था। मैंने एक टांग उठाई, दीपक के दूसरी ओर रखी, लंड को एक हाथ से पकड़ कर चूत पर रखा और उसकी ऊपर बैठ गयी। लंड पूरी गहराई तक अंदर था – मजा ही आ गय। यही जन्नत थी। थोड़ी और चुदाई के बाद दोनों झड़ गए।
मेरी चूत एक बार फिर सफ़ेद गर्म लेसदार वीर्य से भर गयी थी। कुछ देर मैं ऐसे ही बैठी रही। जैसे ही मैं टांग उठा कर दीपक के ऊपर से उतरी, ऐसा लगा जैसे आधा कप वीर्य मेरी चूत में से निकल कर दीपक के लंड और अंडकोषों (टट्टों) पर फ़ैल गया।
ना जाने मेरे मन में क्या आया, मैं झुकी और वीर्य चाटने लगी – और तब तक चाटती रही जब तक दीपक का लंड और टट्टे बिलकुल साफ़ नहीं हो गए। दीपक भी वैसे ही पड़ा रहा। जब सारा काम हो गया तो बोला,”रजनी तुम बहुत अच्छा चुदवाती हो। मजा आ गया।”
मैं कपड़े पहनते हुए बोली, “चुदाई तो तुम भी कमाल की करते हो। अच्छा एक बात बताओ माँ के तो तुमने पीछे भी डाला था।”
वह हंसा और बोला, “ओ ओ ओ तो तुमने पूरी फिल्म देखी है !”
अब कहने को कुछ नहीं था। मस्त चुदाई हो चुकी थी। अब पीछे की छोड़ आगे का सोचना था – कल क्या होगा ? मैंने दीपक से कहा, “माँ और बाबू जी तो सोमवार को वापस आने वाले हैं – मतलब दो दिन और ” I
दीपक ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और बोला ,” हाँ दो दिन चुदाई के और। एक बात और – कल तुम्हारे लिए एक सरप्राइज भी होगा “।
मैं अपने कमरे में आ गयी, चूत और मन दोनों की तसल्ली हो गयी थी। पूरी चुदाई एक फिल्म जी तरह आखों के आगे थी। फिर ना जाने कब आँख लग गयी। ।
आँख खुली तो सरोज चाय का कप ले कर सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। “जीजी कैसी कटी रात ? ”
मुझे तो शर्म ही आ गयी। सरोज बोली, “अच्छा चाय पी लो तरो ताज़ा हो कर आ जाओ, बातें करने लिए सारा दिन पड़ा है।”
मैंने चाय का प्याला पकड़ा, चाय पी और टॉयलेट में घुस गयी। नहाते हुए जब चूत पर हाथ फेर रही थी तो पाया चूत अभी भी चिप चिप कर रही थी – दीपक का सफ़ेद लेसदार वीर्य था या फिर पूरी रात चूत मस्ती में पानी छोड़ती रही थी ?
नहा धो कर बाहर आयी, दीपक करनाल शहर जा चुका था। संतोष खेतों में गया हुआ था। घर में मैं और सरोज अकेली ही थी। सरोज फिर पूछने लगी, “जीजी रात का किस्सा तो बताओ।”
मैं सोचने लगी, अब सरोज से क्या शर्माना। सरोज के पति संतोष से चुदने के बाद तो मैं सरोज के सामने नंगी ही थी। मैंने पूरी की पूरी चुदाई सरोज को बताई। सरोज ने अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए कहा, “जीजी बाकी तो सब ठीक है, इस सरप्राइज़ वाली बात का क्या मतलब है ?”
मैंने कहा, “मुझे भी नहीं पता,मैं भी हैरान हूँ। अब क्या सरप्राइज़ है ये तो रात को ही पता चलेगा “।
सरोज ने अपना हाथ अपनी चूत से हटाया और बोली, “अच्छा मैं भी चलूँ , काम पड़ा है “- वो हमारे कमरे की तरफ बढ़ गयी ।
अब वहाँ उसको क्या काम ? मेरी चुदाई सुन कर गरम हो गई होगी, ज़रूर चूत में उंगली करेगी।
दिन गुज़र गया। दीपक शाम को लौटा। काफी सामान ले कर आया था। घर का सामान वही लाता था। मेरे पास से गुज़रा तो मुझे देख कर मुस्कुराया। सब अपने अपने काम में व्यस्त थे। बाबू जी नहीं थे इसलिए संतोष रात को डेरी वाले घर में ही रुकने वाला था।सरोज खाना बना रही थी, मैं पास ही खड़ी थी। वो बोली, “जीजी, रात की तैयारी पूरी है ?” साथ ही हंस पड़ी। मैं थोड़ी शरमाई लेकिन चुप रही।
संतोष बोली, “जीजी एक बात बोलूं, मानोगी “?
“हाँ हाँ बोलो, इसमें ना मानने वाली क्या बात है “? मैंने कहा।
संतोष ने मेरे हाथ अपने हाथ में लिए और बोली, “मुझे आप की चुदाई देखनी है “।
मैं हैरान हो गयी। इस बात की तो मुझे उम्मीद नहीं थी। पर फिर भी मैं बोली, “ठीक है, पर देखोगी कैसे “?
“बस दीपक के कमरे की खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”।
मैंने सरोज की तरफ देखा और हाँ में सर हिला दिया, “खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”। तो क्या माँ के कमरे की खिड़की भी जान बूझ कर खुली रखी गई थी ?
रात हुई, जब सब लाइटें बंद हो गयी तो मैं उठी और दीपक के कमरे की तरफ जाने लगी। सरोज बाहर ही खड़ी थी – बोली , “तुम चलो जीजी अपना खेल खेलो, बस खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”।
मैं आगे बढ़ी और दीपक के कमरे में चली गयी। दीपक मेरा इंतज़ार ही कर रहा था। आज तो नंगा ही बिस्तर पर लेता हुआ था। लंड उसके हाथ में था, उसके साथ खेल रहा था। एक पल के लिए मैं रुकी फिर मैं भी उसके साथ ही लेट गयी और उसका लंड सहलाने लगी। जल्दी ही लंड फनफनाने लगा। दीपक बोला, “मैं पेशाब करके आता हूँ “, वो टॉयलेट की तरफ चला गया। मैं उठी और खिड़की थोड़ी सी खोल दी और वापस आ कर बिस्तर पर लेट गयी।
दीपक पांच मिनट के बाद आया, और मेरे साथ ही लेट गया। मेरी चूचियों के साथ खिलवाड़ करने लगा। मैंने भी उसका लंड हाथ में ले लिया। दोनों एक दुसरे की बाहों में समा गए। मेरी चूचियां उसकी छाती से लग रही थी और उसका लंड मेरी चूत पर रगड़ खा रहा था। जल्दी ही दोनों गरम हो गए।
दीपक ने मुझे सीधा लिटा दिया और मेरे होंठ अपने होठों में ले कर चूसने लगा। मैंने भी नीचे से उसके चूतड़ अपने हाथों में ले लिए और दबाने लगी। जल्दी ही दोनों को चुदाई की तलब होने लगी।
कल रात की ही तरह दीपक ने मेरी टांगें अपने कंधों पर रखी और ऊपर की तरफ होने लगा। मेरी चूत ऊपर उठने लगी। दीपक का लंड और मेरी चूत आमने सामने थे। दीपक ने लंड चूत पर रखा और थोड़ा खिलवाड़ करने के बाद अंदर पेल दिया। बस फिर चुदाई शुरू हो गयी।
आज चुदाई की गाड़ी सुपर फ़ास्ट थी – बिना रुके दीपक ने दबा कर मुझे चोदा। इतना मजा आ रहा था की चूतड़ उठा उठा कर झटके दे दे कर पूरा लंड अंदर ले रही थी। दीपक भी समझ गया होगा कि “ये तो गयी”, उसने आठ दस लम्बे धक्के लगाए और बड़ी तेज़ आवाज़ के साथ लेसदार वीर्य मेरी चूत में छोड़ दिया। मेरा तो दिमाग़ ही सुन्न पड़ गया – होश तब आया जब मैं झड़ गयी। घर में कोइ था नहीं इसलिए हम दोनों पूरे जोर शोर के साथ मजे ले रहे थे।
मैं सोच रही थी सरोज अगर चुदाई देख रही होगी तो क्या सोच रही होगी क्या कर रही होगी।
कुछ देर लेटने के बाद मेरी चूत ठंडी हो गयी। मेरा मन तृप्त हो गया। उठ कर टॉयलेट गयी, पेशाब कर के चूत को धो कर वापस आयी और कपड़े पहनने लगी।
“अरे ये क्या कर रही हो”, दीपक बोला। मैं रुक गयी और उसकी तरफ देखा और हंस कर कहा – “क्या एक बार और चोदना है “? वो बोला, “याद नहीं, अभी तो सरप्राइज़ बाकी है “।