ही दोस्तो, मई हू काजल चौधरी. मेरी आगे 25 साल की है. मेरा फिगर 38″26″38″ है, रंग गोरा है और हाइट 5’4″ है. मेरे बूब्स भी काफ़ी बड़े-बड़े है. आज मई आप सब लोगो के साथ, एक हसीन स्टोरी शेर करने जेया रही हू. ये स्टोरी मेरी छूट और मेरे बाबा के लंड से जुड़ी है.
मेरे बाबा एक पहलवान रह चुके है, और उनका शरीर अभी भी किसी जवान आदमी से कम नही है. आज भी बहुत सारी लड़किया मेरे बाबा जैसे मर्दो को देख कर आहें भारती है. तो अब मई अपनी कहानी पे आती हू, जो 2 साल और 6 महीने पहले की है.
हमारे घर मे हम 4 लोग है.
मई, मंजू (मेरी बड़ी बेहन) अम्मा और बाबा. मंजू दीदी की शादी एक हफ्ते पहले ही हुई थी, जिसके बाद से अम्मा और बाबा मेरी शादी के पीछे पद गये थे. मुझे भी अपनी शादी की बाते सुन कर मज़ा आता था.
एक सुबा करीब 4:30 बजे, हम खेत मे टट्टी करने गये थे. काफ़ी अंधेरा था उस वक़्त और कुछ दिखाई नही दे रहा था. तो हम गन्ने के खेत मे बैठ गये, और टट्टी करने लगे.
जब धीरे-धीरे सुबा होने लगी, तो मैने देखा, की मई अपने बाबा के सामने ही टट्टी कर रही थी. और बाबा भी टुकूर-टुकूर मेरी बालो से भारी छूट को देख रहे थे. जब मैने ये देखा, की बाबा मुझे देख रहे थे. तो झट से मेरी नज़र बाबा के खड़े हुए 9 इंच के लंड पर आके टिक गयी.
फिर मई भी टुकूर-टुकूर उनके लंड को देखने लग गयी. मई काफ़ी हैरान थी बाबा के लंड को देख कर और मुझे उत्सुकता भी हो रही थी. और वो तो मेरी छूट को पहले से ही देख रहे थे. फिर मेरी और बाबा की नज़र मिली, और मई अपने आप को कंट्रोल नही कर पाई. मैने उसी वक़्त अपने होंठो को बाबा के होंठो से मिला दिया.
मेरी इस हरकत से बाबा को भी कोई शिकायत नही हुई, और वो भी मेरा साथ देने लगे. फिर हम दोनो ने थोड़ी देर एक-दूसरे के होंठो को चूसा. उसके बाद हमने टट्टी की और टट्टी करने के बाद बाबा बोले-
बाबा : अगर तुम कहो, तो मई तुम्हारी गांद धो डू?
मई: क्यू नही बाबा!( मई शरमाते हुए बोली)
फिर बाबा ने मेरी गांद ढोई और अपनी बीच की उंगली को मेरी गांद के छेड़ की लकीर पे रख दिया. फिर वो अपनी उंगली को आयेज-पीछे करने लगे और मेरा हाथ भी बाबा के लंड की तरफ बढ़ने लगा. मुझे बाबा के उंगली रगड़ने से काफ़ी मज़ा आ रहा था.
एक तरफ बाबा मेरी गांद के छेड़ पर अपनी उंगली आयेज-पीछे कर रहे थे, और दूसरी तरफ मई अपने हाथो मे उनका लंड पकड़ कर आयेज-पीछे कर रही थी. अब मेरी और बाबा की आँखें एक-दूसरे की आँखों मे खो गयी थी. और हम एक-दूसरे को मज़ा देते जेया रहे थे.
फिर देखते-देखते सुबा हो गयी और बाबा और मैने अपने आप को संभाला, और वापस घर आ गये.
फिर घर आके मई बातरूम मे नहाने चली गयी. नहाते-नहाते भी मई बस बाबा के लंबे लंड के बारे मे ही सोच रही थी. मई चाह कर भी अपने आप को रोक नही पा रही थी. और मई ये बिल्कुल भूल चुकी थी, की मई अपने बाबा के लंड के बारे मे सोच रही थी.
तभी अचानक बातरूम का दरवाज़ा खुला और बाबा बातरूम मे घुस आए. अंदर आते ही बाबा ने मुझे गले से लगा लिया और मुझे बे-इंतेहा चूमने लगे. लेकिन मेरी ये खुशी ज़्यादा देर के लिए नही थी. तभी मम्मी बाहर से आवाज़ लगाने लगी, जिससे हम दोनो घबरा गये.
फिर बाबा जल्दी से मेरे बूब्स को चूम कर बाहर निकल गये, और मई भी थोड़ी देर मे नहा कर बाहर आ गयी. जब मई बाहर आई, तो अम्मा बोली-
अम्मा : मई नहाने जेया रही हू. तब तक रोटी बना लेना.
मई : जी अम्मा.
फिर मई कपड़े पहन-ने लगी. तभी बाबा आ गये और उन्होने मेरे कपड़े मुझसे चीन कर डोर फेंक दिए. उसके बाद बाबा ने मुझे गले से लगा लिया.
मई : बाबा अम्मा बातरूम मे है. और वो कभी भी बाहर आ सकती है.
बाबा : इतनी जल्दी नही आएगी वो.
मई: अभी नही बाबा, मुसीबत हो जाएगी.
बाबा: जब तक तेरी अम्मा आएगी, तब तक हम कर चुके होंगे.
मई : क्या?
इतना कह कर बाबा मेरे होंठो को चूमने लगे और अपने दोनो हाथो से बूब्स को मसालने लगे. और मई तो बस बाबा के छ्छूने से ही सिसकिया भरने लगी. फिर जैसा बाबा मुझे कहते गये, मई वैसा ही करती गयी.
कभी बाबा मेरी बालो से भारी छूट को चाट रहे थे. तो मेरे कभी बूब्स के निपल्स को काट रहे थे.
इतना सब होने के बाद, वो पल भी आ गया था, जिसका मुझसे कब से इंतेज़ार था. बाबा ने अपना लंड मेरी छूट पर रखा, और रगड़ने लग गये.
मई तो उत्तेजना से पागल हो रही थी और मेरी साँसे बहुत तेज़ चलने लग गयी थी. फिर जैसे ही बाबा का लंड मेरी छूट के मूह मे अटका, तो उन्होने लंड अंदर घुसा दिया. शुरू-शुरू मे बाबा हल्के-हल्के धक्के मारने लगे.
उनके लंड के पहले धक्के ने मेरी आँखों से आँसू निकाल दिए. लेकिन जैसे-जैसे धक्के बढ़ते गये, दर्द कम होता गया और मज़ा आना शुरू हो गया. अब हम दोनो आनंद-सागर मे चले गये थे.
उस आनंद-सागर मे खोए हुए हमने कितनी पोज़िशन्स बदली, उसका हमे कुछ याद नही. लेकिन हर पोज़िशन का आनद ही अलग था. फिर एक पल ऐसा आया, जिसमे मुझे ऐसा लगने लगा, जैसे मेरे शरीर से कुछ निकल रहा था. और वो सीधा बाबा के उपर निकल गया
लेकिन बाबा भी आनंद-सागर मे लीं हुए पड़े थे. वो अपनी बेटी को पुर मज़े से छोड़ रहे थे. मुझे पता ही नही चला, और बाबा ने भी अपना सारा पानी मेरे अंदर ही छोढ़ दिया.
उसके बाद मई बाबा के उपर ही लेट गयी और वो भी बिना कपड़ो के. फिर मई जल्दी से उठी और कपड़े पहन कर रोटी बनाने लगी. बाबा भी कपड़े पहन कर खेत मे काम करने निकल गये थे.
फिर जब वो रात मे लौटे, तो मई और बाबा दोबारा से आनंद-सागर के मज़े मे डूब गये. हफ़्ता भर ऐसा ही चलता रहा. फिर एक दिन मुझे उल्टी हुई और डॉक्टर से पता चला, की मई पेट से थी.
जब मैने ये बात बाबा को बताई, तो वो खुशी से झूम उठे. लेकिन हमे एक चिंता खटक रही थी, की अब आयेज क्या होगा. लेकिन बाबा ने इसका भी इंतेज़ां कर रखा था.
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