पिछले भाग में आपने पढ़ा, मालिनी के पास सलाह लेने आयी सीनियर नर्स रागिनी कश्यप की डाक्टर मालिनी अवस्थी के साथ चूत चुसाई हो गयी।
आगे पढ़ें इस भाग में कि रागिनी कश्यप की ऐसी कौन सी समस्या थी, जिसके चलते वो मनोचिकित्स्क डाक्टर मालिनी अवस्थी के पास आयी थी।
– रागिनी बता रही थी डाक्टर मालिनी को अपने आने का कारण
फिर मैंने रागिनी से कहा, “चलो रागिनी एक काम तो पूरा हो गया। अब दूसरा काम शुरू करते हैं जिसके लिए तुम मेरे पास आयी हो”।
“मैंने प्रभा को बुला कर फिर से चाय लाने के लिए बोल दिया”।
“चाय आने तक रागिनी कुछ नहीं बोली। प्रभा चाय लेकर आयी और चाय का एक कप उसने रागिनी को पकड़ा दिया”।
“चाय का कप पकड़ कर रागिनी चाय की चुस्कियां ले रही थी। लग रहा था सोच रही थी कि कहां से और कैसे बात की शुरूआत करे”।
रागिनी बोली, “मालिनी जी समझ नहीं आ रहा कैसे बताऊं, कहां से शुरू करूं”।
मैंने कहा,”रागिनी क्या बात है। तुम तो खुद इस डाक्टरी के पेशे से अच्छी तरह वाकिफ हो। जब यहां मेरी पास आ ही गयी हो तो फिर हिचकिचाना किस बात से। मुझे खुल कर अपनी समस्या बताओ, जिससे मैं ढंग से तुम्हारी मदद कर सकूं”।
रागिनी ने खंखार कर गला साफ़ किया और बोली, “मालिनी जी बात दरअसल ये है कि हमारी बीस साल की बेटी मानसी का जिस्मानी रिश्ता यानी चुदाई का रिश्ता, आलोक यानि मेरे पिता के साथ बन गया है। मानसी आलोक से चुदाई करवाने लगी है। आलोक का लम्बा लंड अपनी चूत में लेने लगी है”।
ये कह कर रागिनी चुप कर गयी।
“वैसे तो रागिनी जब मेरे पास आयी ही थी मुझे तभी से लगने लगा था कि मामला कुछ ऐसा ही होगा। एक मनोचिकित्स्क के पास कोइ अपनी बवासीर या अपने पेट दर्द या खांसी जुकाम का इलाज करवाने तो आएगा नहीं”।
मैंने कहा, “रागिनी मुझे पहले ही कुछ एहसास हो गया था कि तुम्हारी समस्या कुछ ऐसी ही है। खैर परसों तो मैं जापान जा रही हूं छह सात दिन के लिए। अब जो आगे होगा वो तो आने के बाद ही होगा। अभी फिलहाल तुम मुझे अपनी तरफ की पूरी बात बताओ। बाद में ये वक़्त बच जाएगा। तुम्हारी बात सुनने के बाद देखेंगे आगे किससे और कैसे बात करनी है”।
रागिनी बोली, “ठीक है मालिनी जी”।
मैंने कहा, “और हां रागिनी तुम तो जानती ही हो हर मनोचिकित्स्क पूरी बात रिकॉर्ड करते हैं, जिससे अगर जरूरत पड़े तो बाद में भी सारी बात दुबारा सुनी जा सके। जब तुम्हारी समस्या का हल निकल जायेगा तो ये रिकॉर्ड की हुई टेप तुम्हें दे दूंगी”।
रागिनी ने कहा, “मुझे ये सब मालूम है मालिनी जी आप रिकॉर्डिंग चालू करिये”।
– रागिनी की कहानी, उसी की ज़ुबानी।
“जैसे ही रागिनी तैयार हुई, मैंने टेप रिकॉर्डर का बटन दबाया और – क्लिक की एक आवाज के साथ रिकॉर्डिंग चालू हो गयी”।
“रागिनी ने बोलना शुरू कर दिया। रिकार्डिंग चालू ही थी”।
रागिनी बोल रही थी, “मालिनी जी, मेरे बारे में तो आप सब कुछ जानती ही हैं। मैं सीधा अपनी बेटी मानसी और उसके पिता आलोक की चुदाई से ही शुरू करती हूं”।
“नौ साल पहले जब मेरी सास का देहांत हुआ तब मानसी 11 साल की थी। जवानी की कच्ची उम्र। मानसी में शरीर में बदलाव अभी शुरू ही हुए थे”।
“वैसे तो मानसी जब से तीन चार साल की थी तभी से अपनी दादी यानि मेरी सास ने उसे अपने साथ सुलाना शुरू कर दिया था, शायद ये सोच कर कि मेरी और आलोक की चुदाई बिना किसी रोक-टोक के चलती रहे। और ऐसा हो भी रहा था। मेरी और आलोक की चुदाई मस्त चालू थी”।
“मेरी सास के देहांत के बाद 11 साल की मानसी हमारे कमरे में फोल्डिंग बेड लगा सोने लगी। आलोक तो सुबह अपने ऑफिस जाता और शाम को आता था। मेरी हस्पताल में दिन की शाम की और रात की शिफ्टें लगती थी”।
“जब मेरी दिन की शिफ्ट होती तो मानसी अपने फोल्डिंग बेड पर सो जाती और जब मेरी रात की शिफ्ट होती तो वो कभी अपने फोल्डिंग बेड पर और कभी आलोक के साथ सो जाती”।
“मगर हमे इसमें मानसी के स्कूल को लेकर एक समस्या आ रही थी”।
“जब मेरी दिन की शिफ्ट होती तो मानसी स्कूल छूटने के बाद कैसे घर आये, हमें ये समस्या आ रही थी। कुछ दिन तो मानसी साथ वाले त्यागी के घर रुक जाती, कभी आलोक उसे स्कूल से ऑफिस ले जाता। मगर ये मामला हमें कुछ जम नहीं रहा था। अब आज की बदलते जमाने में ग्यारह की उम्र भी कोइ कम नहीं होती”।
“ग्यारह बारह साल की लड़की किसी पड़ोसी के यहां छोड़ना कुछ सही नहीं लग रहा था। यही सोच कर मैंने शाम और रात की शिफ्ट करवा ली, जिससे दिन भर मैं घर पर रुक सकूं”।
“अब मानसी मेरे घर रहते-रहते ही मेरे सामने ही स्कूल जाती और दोपहर बाद मेरे घर रहते रहते ही स्कूल से वापस आ जाती”।
“उधर मानसी के हमारे कमरे में सोने की कारण मेरी और आलोक की चुदाई लगभग बंद सी हो गयी थी। हमे डर सताता था कि कहीं ऐसा ना हो कि इधर आलोक का लंड मेरी चूत के अंदर घुसा हुआ हो और उधर मानसी जाग जाए”।
“उन दिनों मैं तो फिर भी कभी-कभी जब ज्यादा मन करता तो हस्पताल में किसी डाक्टर से चुदवा लेती थी या प्रवीणा के साथ चुसाई के मजे ले लेती थी। मगर आलोक उस तरह का आदमी नहीं था। लम्बे लंड वाला आलोक चुदाई तो मस्त करता था, मगर लड़कियां औरतें पटाना और पटा कर उन्हें चोदना उसके बस की बात नहीं थी”।
“मानसी जब तक स्कूल में रही तब तक स्कूल की बस में आती-जाती थी। जब कालेज में पहुंचीं तो कालेज जाने के लिए सुबह आलोक के साथ चली जाती थी, और कालेज खत्म होने पर दोपहर बाद ऑटो से घर आ जाती थी”।
“कालेज में मानसी की हफ्ते में चार दिन क्लास होती थी, वो भी चार घंटे। एक डेढ़ घंटा मानसी का कालेज आने-जाने में लग जाता था। इस दौरान भी मेरी शाम और रात की शिफ्ट चालू थी”।
“मालिनी जी मैं अपने घर की बारे में भी कुछ बता दूं। हमारे घर में दरवाजे से अंदर जाने पर बीच में एक गलियारा है। घर में चार कमरे हैं। दो एक तरफ दो दूसरी तरफ। एक कमरा ड्राइंग रूम है। बाकी के तीन कमरों में एक में डबल बेड है – ये हमारा कमरा है बाकी के दो कमरों में से एक खाली है – गेस्ट रूम कह लो। तीसरे कमरे में मेरी सास ससुर सोया करते थे”।
“बाहर के में दरवाजे की चाबियां मेरे और आलोक के पास रहती थी – अब उसकी एक चाबी मानसी के पास भी है”।
“मैं अगर शाम को हस्पताल जा कर रात को लौटती हूं हमारे कमरे में ना जा कर दूसरे कमरे में चली जाती हूं, जिससे आलोक और मानसी की नींद में खलल ना पड़े।
“वक़्त गुजर रहा था। मानसी का शरीर हल्का-हल्का भरने लगा था। छोटी-छोटी छातियां दिखने लगी थी और चूतड़ों पर भी मांस चढ़ने लगा था। मानसी अब शीशे के आगे खड़ी हो कर अपने आपको आधा-आधा घंटा निहारती रहती थी”।
“एक इतवार को छुट्टी वाले दिन मानसी अपनी सहेली के घर गयी हुई थी, और शाम को आने वाली थी। दोपहर को आलोक और मेरा चुदाई का प्रोग्राम बन गया। आलोक को रात के खाने से पहले दो तीन व्हिस्की के पेग लगाने की आदत है और ये आदत कई सालों से है और कभी कोइ परेशानी नहीं हुई”।
“उस दिन जब हमारा दोपहर को चुदाई का प्रोग्राम बना तो आलोक ने दिन में ही तीन पेग व्हिस्की के लगा लिए”।
जब मैंने पूछा, “क्या बात है आलोक आज दिन में ही”?
आलोक बोला, “रागिनी कई दिन हो गए ना तुम्हारी चूत देखी ना चूसी। आज मस्त चूत चूसने और चुदाई का मन है। इसलिए व्हिस्की पी है जिससे मस्त चुदाई हो। आज मेरा तुम्हारी मस्त चुदाई करने का मन है”।
“मुझे भी इसमें कोइ बुराई नजर नहीं आयी। कभी-कभी ऐसा भी करना चाहिए। मुझे भी कई दिन हो गए थे आलोक का लम्बा लंड नहीं चूसा था, ना ही चूत में लिया था, ना गांड में। मेरी तो आदत थी कि मैं महीने में एक बार आलोक का लम्बा लंड गांड में जरूर लिया करती थी”।
“उस दोपहर को हमारी मस्त चुदाई हुई। आलोक ने खूब रगड़-रगड़ कर मुझे चोदा”।
“मुझे आलोक की उस दिन वाली चुदाई कुछ अलग सी लगी। इस तरह की रगड़ाई वाली मेरी चुदाई तो आलोक तब किया करता था जब हमारी नई-नई मुलाकात हुई थी और नई-नई चुदाई शुरू हुई थी”।
“तब तो हम चुदाई के दौरान दुनिया भर की सेक्सी बातें, दुनिया भर की गंदी बातें भी बोला करते थे”।
“पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लग रहा था जैसे आलोक चोद तो मुझे रहा है, मगर उसके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। फिर मैंने सोचा हो सकता है मेरा वहम हो। आलोक को कई दिनों के बाद चूत चोदना नसीब हुआ है, शायद इस कारण इस तरह जबरदस्त चुदाई कर रहा हो। डेढ़ घंटे की चुदाई से मेरी और आलोक की दोनों की तसल्ली हो गयी”।
हम बिस्तर पर लेटे ही हुए थे कि आलोक ने कहा, “रागिनी कई दिनों से तुमसे कुछ बात करने की सोच रहा था”।
“मैं थोड़ा हैरान हुई। पहले तो आलोक ने मेरी जबरदस्त चुदाई की थी, और अब आलोक इस तरह मुझसे बात कर रहा था। इस तरह पहले कभी नहीं हुआ था। तब मुझे लगा जरूर कुछ बात है जो आलोक को परेशान कर रही है”।
मैंने पूछा, “क्या बात है आलोक, ऐसी क्या बात है जो तुम्हें ऐसे बोलना पड़ रहा है”?
आलोक बोला, “रागिनी तुम्हें याद है जब एक बार मैंने तुम्हें मानसी की एक बात बताई थी – जब वो 11 साल की थी”?
मुझे आलोक की पूरी बात याद आ गयी , जब अलोक ने कहा था, “रागिनी, मानसी अब बड़ी हो गयी है – 11 की हो चुकी है। रात को मेरे साथ सोती है तो कुछ अच्छा नहीं लगता”।
“उस वक़्त आलोक की इस बात पर मैंने फिर पूछा था, “क्या बात है आलोक, मानसी अभी बच्ची है ,11-12 साल की और फिर तुम्हारे बेटी ही तो है। साथ सोती है तो उसमें क्या बात है, साफ़-साफ़ बताओ बात क्या है। कुछ हुआ है क्या”?
आलोक थोड़ा रुक कर बोला था, “रागिनी तुमने देखा ही है मानसी का शरीर विकसित हो रहा है। उसकी छातियां बढ़ रही हैं” – अलोक शायद चूचियां बोलने में शर्मा रहा था – “रात को कई बार मानसी अपनी छातियों को मेरे शरीर के साथ रगड़ती है जैसे उसे ऐसा करने में मजा आ रहा हो। मेरे हटाने पर वो हट तो जाती है मगर थोड़ी देर के बाद ही वो फिर ऐसा ही करने लगती है।
एक दिन मैंने मानसी से कहा, “मानसी ये अच्छी बात नहीं बेटा”।
“मानसी कुछ नहीं बोली और दूसरी तरफ मुंह करके सो गयी।
“अगली रात जब मानसी मेरे साथ सोने आयी तो मैंने उससे कहा ,”मानसी अब तुम बड़ी हो गयी हो, तुम अपने फोल्डिंग बेड पर सो जाओ”।
“इसके बाद मानसी ने फोल्डिंग पर सोना शुरू कर दिया। रात में कभी-कभी मानसी उठ कर मेरे पास आ जाती, लेकिन उसने फिर वो पहले जैसी हरकत नहीं की”।
“मालिनी जी मुझे आलोक की कही हुई सारी बातें याद आ गयी।
मैंने सोचा कि ये बात तो कुछ साल पुरानी है फिर आज अचानक से आलोक मुझे ये सब क्यों बता रहा है। क्या फिर कुछ ऐसा ही हुआ है”?
मैंने आलोक से ही पुछा, “आलोक ये जो तुम आज बता रहे हो, ये तो बहुत पहले की बात है, तुमने मुझे या बात बताई भी थी फिर आज क्यो दोहरा रहे हो? कुछ और भी हुआ है क्या”?
“आलोक आगे बोला, “हां रागिनी, उस बात को अब सात साल हो चुके हैं। आज की 18 साल की मानसी अभी भी मेरे साथ ही कमरे में फोल्डिंग लगा कर सोती है, और पहले की ही तरह कभी-कभी मेरे साथ आ कर लेट जाती है और मुझे इसमें कभी कुछ अजीब भी नहीं लगा”।
– मानसी ने छुड़ाया हाथ से अपनी चूत का पानी।
यहां आलोक थोड़ा रुका और हिचकिचाता सा बोला, “रागिनी दो दिन पहले की बात है। मानसी हमारे कमरे में फोल्डिंग लगा कर सोई हुई थी। तुम तो जानती ही हो मैं रात को रोज तीन चार पेग लगा कर सोता हूं। आधी रात को ऐसे ही मानसी मेरे पास आ कर लेट गयी। मेरी नींद हल्की सी खुली तो मुझे लगा कि मानसी ने मेरा हाथ पकड़ा हुआ है और अपने शरीर पर कहीं रगड़ रही है”।
“मेरी नींद पूरी तरह से खुली तो समझ आया मानसी मेरे साथ लेटी हुई थी। मानसी ने अपना पायजामा उतारा हुआ था और मेरा हाथ अपनी चूत पर रगड़ रही थी। मुझे मानसी की चूत के छोटे-छोटे मुलायम बाल साफ अपनी हथेली पर महसूस हो रहे थे। अनजाने ही मेरा लंड खड़ा हो गया”।
मैंने फिर मानसी से कहा, “क्या बात है मानसी क्या कर रही हो? नींद नहीं आ रही क्या”?
मानसी कुछ नहीं बोली और मेरा हाथ अपनी चूत पर जोर-जोर से रगड़ने लगी। मैंने मानसी का हाथ जबरदस्ती हटाया तो मानसी का हाथ मेरे खड़े लंड पर आ गया। मानसी ने मेरा लंड कस कर पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपनी चूत जोर-जोर से रगड़ने लगी।
मानसी के मुंह से हल्की-हल्की आवाजें निकल रही थी जैसे चुदाई के मजे की सिसकारियां ले रही हो, “हह… हह ….आआह…आआ… आहहह… आह”।
“मुझे पहले तो समझ ही नहीं आया कि मानसी ये कर क्या रही है। फिर मुझे एक-दम ध्यान आया क्या मानसी चूत रगड़ कर अपनी चूत का पानी निकल रही है? मैंने सोचा क्या मानसी चूत का मजा ले रही है”?
“हैरानी और परेशानी के कारण मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करुं। मानसी ने इतनी कस के मेरा हाथ पकड़ा हुआ था कि मैं अपना हाथ छुड़ा ही नहीं पा रहा था। पांच छह मिनटों में ही मानसी ने जोर से अपनी चूत रगड़ी और कस कर मेरे लंड को पकड़ा और आअह आह उन्ह उन्ह की आवाज की एक लम्बी सिसकारी ली और ढीली हो कर लेट गयी”।
“फिर मुझे एक-दम ध्यान आया कि मानसी ने अपने चूत को मेरे हाथ से रगड़-रगड़ कर अपनी चूत का पानी छुड़ाया था। क्या मानसी की चूत पानी छोड़ गयी थी? क्या मानसी को चुदाई जैसा मजा आ गया था? क्या मानसी जवान हो गयी थी? ये सारे सवाल मेरे दिमाग में घूम रहे थे”।
“इसके बाद मानसी ने मेरा हाथ अपनी चूत से हटा लिया और मेरा लंड भी छोड़ दिया और चुपचाप उठ कर फोल्डिंग जा कर लेट गयी”।
“मालिनी जी, आलोक बता रहा था, “रागिनी उस वक़्त मुझे बड़ी शर्म आ रही थी। रागिनी मेरी बेटी, और मेरा हाथ मानसी की चूत पर और मेरा लंड मानसी के हाथ में”?
“सुबह जब मानसी से मेरा सामना हुआ तो वो बड़े खुश लग रही थी जैसे रात को कुछ हुआ ही ना हो। रात की बात को या तो भूल चुकी थी, या फिर उसे याद करके उसे मजा आ रहा था और उसी मजे के मारे वो खुश हो रही थी”।
“अगले दिन जब मानसी फोल्डिंग ले कर बिछाने लगी तो मैंने कह दिया, मानसी अब तुम उधर दूसरे कमरे में सोया करो”।
“मेरे ऐसा कहने के बाद मानसी कुछ नहीं बोली और चुप-चाप दूसरे कमरे में चली गयी”।
“मालिनी जी ये कह कर आलोक तो चुप हो गया मगर मैं भी परेशान हो गयी। अगर सच में ही मानसी ने अपने चूत का पानी छुड़ाया है और मजे के लिए आलोक का हाथ अपनी चूत पर रगड़ा है तो फिर मानसी जवान हो रही है। मानसी ने अभी छह महीने पहले ही अपना अट्ठारहवा जन्मदिन मनाया था”।
“मगर मालिनी जी अठारह-उन्नीस की ऐसी कच्ची जवानी में लडकियां लड़कों की इच्छा करने लगती हैं और कुछ भी कर लेती हैं। मैंने कुछ सोच कर आलोक से कहा, “आलोक छोड़ो, तुम टेंशन मत लो, मैं बात करूंगी मानसी से। तुम भी ध्यान रखना”।
“बात खत्म हो गयी। अलोक रिलैक्स हो गया। अलोक के सर से लगता था एक बड़ा बोझ सा उतर गया था। आलोक उठा और उठ कर मेरी चूत चूसने लगा। मेरी चूत भी फिर से चुदाई के लिए तैयार हो गयी और फिर हमारे एक धुआंधार चुदाई और हुई”।
इतना बोल कर रागिनी चुप हो गयी – शायद थक गयी थी ।