अब तक आपने पढ़ा, डाक्टर प्रमिला यादव ने साफ़ कह दिया के युग के लंड में कोइ कमी नहीं थी, वो चुदाई के लिए बिल्कुल ठीक था। कहीं अगर कमी थी तो केवल उसकी सोच में। युग एक गांड चुदवाने वाला गांडू है, जिसके कारण लड़कियों में उसकी कोइ दिलचस्पी नहीं।
यही कारण था, कि लड़की की नंगी चूत देख कर भी उसका लंड खड़ा नहीं होता। डाक्टर प्रमिला यादव ने सुभद्रा को किसी मनोचिकित्सक से मिलने की सलाह दी।
अब आगे का हाल जानिए कहानी के इस भाग में।
— चित्रा का मनोचिकित्सक मालिनी अवस्थी से मिलना
‘डाक्टर प्रमिला चाची से बोली, “सुभद्रा, इस बारे में मेरी सलाह है तुम्हें चित्रा को और युग को किसी साइकाइट्रिस्ट यानि मनोचिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। मनोचिकित्सकों के सोचने समझने और समझाने का ढंग हम जैसे डाक्टरों से अलग होता है। अब युग तो अभी है नहीं तो तुम चित्रा को ही ले जाओ। वैसे भी जो भी करना है चित्रा को ही करना है।”
‘डाक्टर आंटी बता रही थी, “यहां लखनऊ में मेरी मनोचिकित्सक जानकार है, डाक्टर कृष्णा सोबती। जानी-मानी मनोचिकित्सक है। मैं उससे बात करती हूं और टाइम ले कर तुम्हें फोन करती हूं। उम्मीद है वो कोइ ना कोइ हल जरूर निकालेगी।”
‘चाची बोली, “ठीक है प्रमिला, एक बार उसे भी मिल लेते हैं, “हम जाने के लिए उठ खड़े हुए। आंटी ने मेरे सर पर हाथ रख कर कहा, “चिंता मत करो चित्रा सब ठीक हो जाएगा।” मैंने भी हां में सर हिलाया, डॉक्टर प्रमिला को नमस्ते की और हम घर जाने के लिए गाड़ी में बैठ गए।”
‘घर पहुंच कर अभी हम अभी गाड़ी से उतरे भी नहीं थे कि प्रमिला आंटी का फोन आ गया।”
‘आंटी बोली, “सुभद्रा, मेरी डाक्टर कृष्णा से बात हो गयी है। एक अच्छी बात ये ही कि उसके पास कानपुर की जानी मानी मनोचिकित्सक डाक्टर मालिनी अवस्थी यहां आयी हुई है। मालिनी जी का किसी हस्पताल में मनोचिकित्सा विषय पर सेमीनार चल रहा है।
कल मालिनी जी खाली हैं और कृष्णा के साथ ही रुकेंगी। उन्होंने तुम दोनों के कल सुबह दस बजे का टाइम दिया है। कृष्णा का पता नोट कर लो, कल सुबह ठीक दस बजे कृष्णा के क्लिनिक पहुंच जाना।”
‘ठीक है कह कर चाची ने फोन बंद कर दिया। मैं सोच रही थी चाची तो बहुत तेज काम कर रही थी। कुछ दिन रुक कर देख तो लेती, क्या पता युग ऐसे ही ठीक हो जाता। मगर फिर मैंने भी सोचा एक तरीके से तो ठीक ही है। कम से कम पता तो चले युग कैसे और कितने दिनों में चुदाई करने लायक हो जाएगा। चुदाई की बात सोचते ही मेरी चूत ने फुर्रर से पानी की पिचकारी छोड़ दी।”
‘जैसे ही मेरी चूत ने पानी छोड़ा, मेरे दिमाग में बस यही ख्याल आया, “ये चुदाई भी क्या चीज है। होती रहे तो मजे ही मजे, ना हो तो मुसीबत।”
‘अगले दिन हम दस बजे ठीक कृष्णा सोबती के क्लिनिक में पहुंच गए। लखनऊ के सबसे आलिशान इलाके सिविल लाइन्स एरिया में था। जिस दोमंजली बिल्डिंग में क्लिनिक था वो बिल्डिंग भी बड़ी आलीशान थी। मैं समझ गयी कृष्णा सोबती कोइ छोटी-मोटी मनोचिकित्सक नहीं थी।”
‘कृष्णा सोबती हमारा इंतजार ही कर रही थी। कृष्णा के पास ही एक और महिला भी बैठी थी। मुझे लगा मालिनी जरूर अवस्थी ही होंगी। दोनों ही लम्बी ऊंची कमाल की पर्सनालिटी वाली महिलायें थी जिनके चेहरे से उनकी उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल था।”
‘बात कृष्णा सोबती ने शुरू की, “आईये सुभद्रा जी। प्रमिला ने आपके और आपकी भतीजी चित्रा की समस्या के बारे में बताया था।”
‘फिर मेरी ओर इशारा करके बोली, “ये चित्रा है? बड़ी प्यारी लड़की है। आओ बेटा बैठो।”
‘फिर दूसरी महिला की तरफ इशारा करके कृष्णा सोबती बोली, “ये मालिनी अवस्थी हैं कानपुर की जानी-मानी मनोचिकित्सक। इन्होने मनोचिकित्सा विषय पर कई पुस्तकें भी लिखी हैं। एक सेमीनार के सिलसिले में यहां आई हुई हैं। आप लोगों के लिए ये बड़ी अच्छी बात है कि इनसे आप लोगों की मुलाक़ात हो गयी। अब मालिनी जी ही चित्रा के समस्या सुनेंगी फिर जैसा ठीक होगी सलाह देंगी।”
‘मालिनी जी ने बात शुरू की, “देखिये सुभद्रा जी हम मनोचिकित्सक साफ़-साफ़ भाषा में बात करते है जिसे अंगरेजी में कहते हैं ‘कॉलिंग ए स्पेड’। हिंदी में कहें तो ‘बिना लाग लपेट के बात करना’ – साफ़ और` सीधे शब्दों में। ये इसलिए होता है जिससे किसी भी शब्द का या बात का कोइ और मतलब ना निकल जाए। बातें जितनी सीधी और साफ़ और सीधी होंगी हमें नतीजे पर पहुंचने पर उतनी ही आसानी होगी।”
‘हां तो सुभद्रा जी। जैसा कि डाक्टर प्रमिला ने बताया है, कि आपका, चित्रा, और चित्रा के हस्बेंड का?” बात बीच में रोक कर मालिनी जी ने पूछा, “क्या नाम है चित्रा के हस्बेंड का?”
‘जी युग, युग त्रिपाठी, मेरा भतीजा है”, चाची ने जवाब दिया।
‘मालिनी जी ने फिर बात शुरू की, “हां युग त्रिपाठी, युग आपका भतीजा है और चित्रा आपकी भतीजी। फिर तो आपका चित्रा और युग त्रिपाठी दोनों से ही नजदीक का रिश्ता हुआ।”
‘चाची बोली, “जी हां। युग मेरे भाई का बेटा है और चित्रा मेरे जेठ जी की बेटी है। युग के पिता, मेरे भाई बाराबंकी में रहते हैं, और वहीं जहांगीराबाद के पास उनकी जिमींदारी है। युग और चित्रा एक-दूसरे को बचपन से जानते हैं। असल में छुट्टियों में हमारे परिवार के सारे बच्चे लखनऊ से बाराबंकी चले जाते थे। वहां के बड़े से खुले घर में उनका खूब मन लगता था।”
‘फिर मालिनी जी चाची से बोली, “हां तो चित्रा की शादी को अभी एक हफ्ता भी नहीं हुआ और अब पता चला है कि चित्रा का पति युग एक गे है, समलिंगी, और लड़कियों के साथ सम्बन्ध बनाने में उसकी दिलचस्पी नहीं। आप डाक्टर प्रमिला के पास गयीं और उन्होंने ने ही आपको बताया है कि युग शरीरिक तौर पर एक-दम फिट है। डाक्टर प्रमिला ने ही आप लोगों को हमें मिलने की सलाह दी।”
‘चाची बोली, “जी हां।”
‘मालिनी जी बोली, “ठीक है सुभद्रा जी, चलिए देखते हैं क्या हो सकता है।”
‘फिर मालिनी जी कुछ रुक कर बोली, “वैसे जो कुछ चित्रा के साथ हुआ है, यही अगर कही विलायत या अमेरिका जैसे देश में हुआ होता तो अब तक तो दोनों में तलाक भी हो जाना था। ये तो हमारा देश है जहां तलाक अभी भी आख़री विकल्प चुना जाता है। घर के बुजुर्गों की तो अभी भी तलाक के नाम फटती है।”
“फटती है”, मैं सोच रही थी डाक्टर मालिनी तो सच में ही बिना लाग लपेट के बात करती थी।
‘फिर मालिनी जी बोलीं, “सुभद्रा जी पहले हमें चित्रा से अलग से बात करनी होगी। जिस प्रकार के शब्दों का प्रयोग होगा, शायद चित्रा आपके सामने सहज ना हो पाए।”
‘चाची उठते हुए बोली, “ठीक है मालिनी जी।”
‘मालिनी जी ने एक-दम कहा, “सुभद्रा जी, एक मिनट बैठिये।”
‘चाची उठते-उठते बैठ गयी।”
‘डाक्टर मालिनी ने बात जारी रखते हुए कहा, “हम जो भी बात चित्रा से करेंगी उसकी हम रेकार्डिंग भी करेंगी। ये मनोचिकित्स्कों का तरीका होता है।
कई बार बात को समझने के लिए रेकार्ड की हुई बात कई बार सुनने पड़ती है। अगर जरूरत हुई तो वो टेप हम आपको भी सुनाएंगी। आपकी समस्या के हल होने के बाद वो रेकार्ड की हुई टेप या तो आप ले लीजियेगा, नहीं तो हम ही उसे नष्ट कर देंगी। आपको कोइ एतराज तो नहीं?”
‘चाची हंसते हुए बोली, “इसमें एतराज वाली तो कोइ बात ही नहीं है मालिनी जी। सभी डाक्टरों का या कह लीजिये सभी पेशेवरों, मतलब प्रोफेशनल्स का काम करने का अपना एक तरीका होता है। आप को जो करना है आप करिये।”
‘ये बोल कर चाची उठ गयी। डाक्टर कृष्णा ने उन्हें क्लिनिक के साथ लगे पीछे के कमरे में बिठा आयी।”
‘मालिनी जी मुझ से बोली, “हां तो चित्रा, बात शुरू करें? तैयार हो?”
‘मैंने कहा, “जी मालिनी जी।”
‘मालिनी जी बोली, “चित्रा तुम मुझे और कृष्णा को या तो डाक्टर या आंटी कह कर बुला सकती हो।”
‘मैंने कहा, “जी आंटी।”
‘मालिनी जी बोली, “हां अब ठीक है। मैं टेप चालू कर रही हूं। अब तुम अपने बचपन से शुरू हो जाओ।”
‘इसके बाद मालिनी जी ने सवाल जवाब का सिलसिला शुरू किया। मालिनी जी बिना किसी हिचकिचाहट के चूत लंड चुदाई जैसे शब्दों का प्रयोग कर रहीं थीं। इससे मुझे भी यही शब्द बोलने पड़े।”
‘मालिनी जी ने टेप चालू कर दी और मैं बोलना शुरू हो गयी।”
‘मैंने बचपन से लेकर अपनी युग के साथ शादी तक की पूरी कहानी सुना दी। उसमें तुम्हारा भी जिक्र आ गया कि तुम युग के ख़ास दोस्त थे। बाराबंकी से पढ़ाई के बाद तुम लोग कालेज की पढ़ाई के लिए यहां लखनऊ आ गए। तुम दोनों हॉस्टल में रहते थे। ये भी बता दिया कि शनिवार इतवार या दूसरी छुट्टियों में तुम दोनों हमारे घर रहने आ जाया करते थे।”
‘युग से शादी के बाद अगले चार दिनों में क्या-क्या हुआ ये भी बता दिया। कैसे मैंने युग का लंड मुंह में लिया और मेरे मुंह में युग का लंड पानी छोड़ गया। अगले दिन युग लंड चूत में डाल भी नहीं पाया और उसका लंड पानी छोड़ गया। मतलब सब कुछ साफ़-साफ़ बता दिया।”
“इसके बाद डाक्टर मालिनी अवस्थी के साथ सवाल जवाब का सिलसिला शुरू हो गया।”
मालिनी जी: चित्रा ये बताओ, बचपन में तुम जब बाराबंकी जाती थी तो युग के साथ खेलती थी?
मैं: जी नहीं, मैं या तो अपने भाईयों के साथ खेलती थी जो लखनऊ से साथ ही जाते थे, या युग का एक दोस्त होता था राज, उसके साथ खेलती थी।
मालिनी जी: युग के साथ क्यों नहीं?
मैं: युग ही मेरे साथ नहीं खेलता था। युग तो मुझसे बात भी बड़ी कम करता था।
मलिनी जी: और राज खेलता था तुम्हारे साथ?
मैं: जी हां राज मेरे साथ खेलता था, और बात भी करता था।
मालिनी जी: तुम्हें राज के साथ खेलना, बात करना अच्छा लगता था?”्
मैं: जी हां। क्योकि राज ही तो होता था जिससे मैं कभी-कभी मिलती थी। बाकी तो मेरे भाई ही होते थे। उनसे तो मेरी रोज ही बात होती रहती थी।
मालिनी जी: ये युग और राज क्या एक ही उम्र के हैं?
मैं: जी हां, एक ही उम्र के भी और इक्ट्ठे एक ही क्लास में भी पढ़ते थे। मेरी ही क्लास में।
मालिनी जी: तुम्हारी क्लास में? मगर तुम तो युग से छोटी हो, फिर एक ही क्लास में कैसे?
मैं इस पर हंसते हुए बोली: असल में आंटी ये दोनों पढ़ाई में फिसड्डी हुआ करते थे। ये दोनों तो पास ही बड़ी मुश्किल से होते थे और मैं पढ़ाई में तेज थी। हमेशा क्लास में अव्वल आने वाली।
मालिनी जी भी हंसते हुए: लड़कियां पढ़ाई में होती ही तेज हैं। अच्छा ये बताओ तुम लोग कितनी उम्र तक छुट्टियों में बाराबंकी जाती रहे?
मैं: हमारा बाराबंकी जाना तो कभी बंद ही नहीं हुआ जब तक युग और राज कालेज में पढ़ने लखनऊ नहीं आ गए। उससे पहले तो हम छुट्टियों में अक्सर बाराबंकी जाते थे।”
मालिनी जी: चित्रा जब तुम लोग बाराबंकी जाते थे तो राज ने कभी तुम्हारे साथ कोइ छेड़खानी की, या कभी प्यार जताने जैसा कुछ किया?
मैं: जी नहीं ऐसा तो कुछ नहीं होता था। बाराबंकी जब जाते थे, तो मैं ही कभी राज का हाथ पकड़ लेती। राज हाथ नहीं छुड़ाता था। बस, इससे आगे कुछ नहीं होता था।
मालिनी जी: इससे आगे तुम दोनों में कभी भी कुछ नहीं हुआ?
मैं: जी नहीं बाराबंकी में तो नहीं हुआ। यहां हुआ, जब युग और राज लखनऊ कालेज में पढ़ने आ गए। दोनों कालेज के हॉस्टल में रहते थे, और दोनों शनिवार को हमारे घर आ जाते और सोमवार वहीं से सीधे कालेज चले जाते। उस दौरान हम बड़े भी हो रहे थे। युग और राज की छोटी-छोटी मूछें आने लग गयी थी। मेरी चूचियां भी बड़ी हो रही थी। अभी भी राज और मैं मौक़ा देख कर एक-दूसरे का हाथ पकड़ लेते थे। उन्हीं दिनों एक दिन राज ने मुझे पकड़ा और मुझे होठों को चूम लिया।
मालिनी जी: फिर तुमने क्या किया?
मैं: कुछ नहीं, मैं हंस कर होंठ पोंछती हुई भाग गयी।
मालिनी जी: तुम्हें ये राज का चूमना अच्छा लगा?
मैं: जी हां अच्छा लगा तो था।
मालिनी जी: इससे आगे राज नहीं बढ़ा?
मैं: इसके बाद एक दिन राज मुझे अक्सर चूमा करता था या मेरी बड़ी होती हुई चूचियां दबाया करता था। एक दिन वो मुझे चूम रहा था कि उसका लंड खड़ा हो गया। राज ने लंड मेरे हाथ में पकड़ा दिया।
मालिनी जी: फिर तुमने क्या किया?
मैं: मैंने लंड छोड़ दिया और ‘गंदी बात’ कहते हुए भाग गयी।
मालिनी जी: इसके बाद फिर राज ने लंड नहीं पकड़ाया तुम्हारे हाथ में?
मैं: जी हां पकड़ाया।
मालिनी जी: फिर नहीं छुड़ाया तुमने? फिर नहीं बोला गंदी बात?
मैं: जी नहीं। क्योंकि मुझे भी लंड पकड़ना अच्छा लगने लगा था।
मालिनी जी: इससे आगे नहीं बढे तुम? मतलब सेक्स, चुदाई?
मैं: जी नहीं।
मालिनी जी: क्यों? जब तुम्हें राज का तम्हारी चूचियां दबाना अच्छा लगता था, उसका तुम्हें चूमना अच्छा लगता था। हाथ में लंड पकड़वाना अच्छा लगता था तो आगे का काम करने का, मतलब सेक्स का या चुदाई का मन क्यों नहीं करता था?
मैं: मेरा कभी ऐसा करने का मन नहीं हुआ। शायद इसलिए भी कि घर पर ये हो ही नहीं सकता था। हमारा संयुक्त परिवार था चूमना, चूचियां दबाना, लंड हाथ में पकड़वाना तो बस एक या हद दो मिनट में पूरा हो जाता है, लेकिन चुदाई के लिए तो वक़्त चाहिए।
“इस पर मालिनी जी ने कृष्णा जी की तरफ देखा और मुस्कुरा कर दोनों ने सर हिलाया, जैसे कह रही हों, लड़की बात तो साफ और सही करती है।”
इसके बाद मालिनी जी ने पूछा: अच्छा चित्रा ये राज अब भी आता है तुम्हारे घर?
मैं: जी नहीं राज तो 2018 में ही आगे की पढ़ाई करने के लिए ऑस्ट्रेलिया चला गया था।
मालिनी जी: 2018 में। अब तो तीन साल हो गए। अच्छा चित्रा ये बताओ, तुम अपनी सहेलियों की घर भी जाती होगी। या तुम्हारी सहेलियां भी तुम्हारी घर आती होंगी। अक्सर लड़कियां ऐसे में कमरा बंद कर के ठिठोली करती हैं। तुम भी करती होगी। सभी लड़किया करती हैं। मैं भी करती रही हूं। कृष्णा भी अपनी उम्र में करती रही होगी।
फिर मालिनी जी ने कृष्ण आंटी को पूछा: क्यों कृष्णा?
“कृष्णा आंटी ने कोइ जवाब नहीं दिया। केवल हंस दी।”
मैं: जी हां, अक्सर। ये तो अक्सर होता ही था।
मालिनी जी: ऐसी ठिठोलियां कहां तक बढ़ जाती थी?
मैं: मैं आपका मतलब समझ रही हूं आंटी। जब हम इक्ट्ठी होती थीं तो कभी-कभी ब्लू फिल्म यानी पोर्न फिल्म, चुदाई की फिल्में देखा करती थी। ये फ़िल्में देखते-देखते हम एक-दूसरी की चूत के साथ छेड़खानी करती थी। खेल-खेल में कई बार अपनी चूत में उंगली डाल कर मजा लेतीं थीं।
मालिनी जी: ऐसी फिल्मों में सब से ज्यादा क्या अच्छा लगता था, मतलब सब से ज्यादा किस बात पर मजा आता था?
मैं: जी, जो लड़के इन फिल्मों में काम कर रहे होते थे उनके हाथी की सूंड जैसे लंड देख कर हम लड़कियां बहुत शोर मचाया करती थी। सब कहती थी कि ऐसा लंड मिल जाए तो जिंदगी में चुदाई का मजा ही आ जाए।