कुछ दिनों के बाद राज बाराबंकी गया तो युग घर पर नहीं मिला। चित्रा के साथ बात करते हुए राज ने यूं ही पूछ लिया, कि क्या चित्रा की अंकल के साथ चुदाई के बारे में पूछ लिया। उसके बाद चित्रा ने क्या जवाब में क्या बताया ये पढ़िए कहानी के इस भाग में।
चित्रा बता रही थी, “राज, मुझे जब लगा कि युग मेरी बिल्कुल सही चुदाई करने लग गया है, तो एक दिन मैंने चाची को युग और अपनी चुदाई के बारे इशारों-इशारों में बता दिया।”
“इसके बाद अंकल ने मुझसे जो बात की, इससे मैं समझ गयी कि चाची और अंकल की भी इस बारे में बात हुई है। अंकल और चाची के बीच क्या बात हुई ये तो मुझे नहीं मालूम, मगर चाची के अंकल से बात करने के बाद एक दिन चुदाई करते हुए अंकल ने मुझसे बोला था, “चित्रा सुभद्रा कह रही थी युग के साथ अब तुम्हारा साथ ठीक-ठाक करने लग गया है।”
जब मैं कुछ नहीं बोली, तो अंकल तो अंकल ने साफ़-साफ़ ही बोल दिया, “चित्रा बताओ, क्या युग अब तुम्हारी ठीक से चुदाई करने लग गया है?”
— अंकल ने मानी गौरी को चोदने के बात
“मैं बोली तो कुछ नहीं, बस हां में सर हिला दिया।”
“मेरे हां में सर हिलाने पर अंकल बोले, “चित्रा अब जब युग तुम्हें ठीक-ठीक चोदने लग ही गया है तो अब हमारी चुदाई बंद होनी चाहिए। तुम क्या कहती हो?”
मैंने हंसते हुए पूछा, “अंकल एक बात बताओ, अगर मेरी और आपकी चुदाई बंद हो गयी तो आप क्या करेंगे? मेरी चुदाई तो युग कर देगा, आपके लंड का पानी कौन छुड़ाएगा?”
“अंकल ने मेरी इस बात का कोई जवाब नहीं दिया।”
मैंने वैसे ही हंसते हुए बोल दिया, “क्यों अंकल बताओ कौन चूसेगा आपका लंड, कौन चाटेगा आपके चूतड़, कौन पिलायेगा आपको चूत का शहद और छुड़ाएगा आपके लंड का पानी? क्या वो फार्म हाउस वाली गोल-मटोल गौरी करेगी ये सारे काम?”
अंकल थोड़ा सकपकाए और बोले, “अरे, ये गौरी बीच में कहां से आ गयी।”
“माहौल तो हल्का-फुल्का ही था। शर्म नाम की चीज मेरे और अंकल के बीच कब की खत्म हो चुकी थी। मैं ही बोली, “तब आप ही सच-सच बताओ अंकल, आप गौरी को चोदते हो या नहीं?”
अंकल भी उसी तरह बोले, “तुम्हें क्या लगता है, मैं गौरी को चोदता हूं?”
मैंने भी वैसे ही जवाब दिया, “मुझे लगता नहीं अंकल, मुझे मालूम है आप गौरी को चोदते हो।”
अब अंकल भी हंसे और बोले, “अच्छा? तुम्हें मालूम है मैं गौरी को चोदता हूं? अच्छा तो फिर ये भी बताओ, तुम्हें कैसे मालूम है कि मैं गौरी को चोदता हूं? तुमने क्या देखा है मुझे गौरी की चुदाई करते हुए?”
मैंने कहा, “नहीं अंकल मैंने गौरी को आपसे चुदते हुए तो नहीं देखा नहीं, लेकिन जितना मैंने देखा है उतना देखने से ही मैं पक्का जानती हूं कि गौरी आपसे चुदाई करवाए बिना नहीं रह सकती।”
”गौरी की चुदाई की बात चल निकली थी और मुझे और अंकल दोनों को इस बात का बड़ा मजा आ रहा था।”
अंकल ने वैसे ही हंसते हुए पूछा, “अच्छा चलो बताओ कैसे पक्का जानती हो?”
”मैंने बता दिया, “अंकल एक दिन मैं और युग फार्म पर गए थे। उस दिन गौरी आपकी टांगों की मालिश कर रही थी।”
अंकल बीच में ही मुझे टोकते हुए बोले, “टांगों की मालिश कर रही थी तो? मालिश तो वो मेरी टांगों की हमेशा ही करती है। ये तो पूरन को भी पता है, पूरन के सामने भी गौरी मेरी टांगों की मालिश करती है।”
मैंने कहा, “अंकल पूरन को छोड़ो आप। पूरन क्या बोलेगा? बुड्ढे शराबी पूरन के लंड के बस में कुछ नहीं है और गौरी तो अभी कड़क जवान है। पूरन क्या उस गौरी की चुदाई कर पाता होगा? पूरन भी ये जानता होगा के गौरी को मोटा सख्त लंड चाहिए, जो उसके पास है नहीं लेकिन आपके पास है।”
“गौरी को लंड चाहिए अच्छा मोटा लंड – बिल्कुल आपके लंड जैसा लंड, और साथ चाहिए मस्त चुदाई, जैसी चुदाई आप करते हो।”
अंकल मेरी इस बात पर बस मुस्कुरा भर दिए।
मैंने ही बात जारी रक्खी, “अंकल जिस दिन की मैं बात बता रही हूं, उस दिन आप बनियान और तहमद पहन कर लेटे हुए थे। आपका तहमद घुटनों से ऊपर था और गौरी बैठी नीचे पैरों से लेकर घुटनों के ऊपर तक की मालिश कर रही थी।”
“अब आप ही बताओ अंकल, तीस साल की गोल-मटोल गौरी के हाथ घुटनों से आपके ऊपर तक, अब आपका लंड वहां से दूर ही कितना रह गया। कहीं आपके लंड ने जरा सी भी हरकत कर दी तो बताओ गौरी की चूत की क्या हालत होगी। वो भी तब जब उसकी बुड्ढे शराबी पति का लंड उसकी चूत के प्यास ना बुझा पाता हो।”
मेरी इस बात पर अंकल खुल कर हंसे और बोले, “सही पकड़ा तुमने चित्रा। तुम ठीक कह रही हो। मैं चोदता हूं गौरी को, मगर जो मजा मुझे तुम्हारी चुदाई से आता है, वो गौरी की चुदाई से नहीं आता। तुम्हारे साथ मेरी चुदाई हर तरह से पूरी चुदाई होती है, मगर गौरी के साथ तो बस लंड का पानी छुड़ाने वाली बात होती है।”
अंकल बता रहे थे, “चित्रा गौरी के साथ चूत चुसाई, चूतड़ चुसाई जैसी कोइ बात नहीं होती। बस गौरी आती है, आते ही कुछ देर मेरा लंड चूसती है और जब लंड बिल्कुल तैयार हो जाता है बिस्तर पर लेट जाती है। दस पंद्रह मिनट हम दोनों के चुदाई होती है, हम दोनों का पानी छूटता है और बस – गौरी उठती है और चली जाती है।”
इतना कह कर अंकल ने मुझे बाहों में ले लिया और बोले, “चित्रा, मेरी असली चुदाई तो तुम्हारे साथ होती है। मैं तुम्हारी चुदाई किए बिना नहीं रह सकता।”
“मैंने की बातें सुन कर मैंने भी अंकल से कह दिया, “अंकल मेरी और आपकी चुदाई अब कभी बंद नहीं हो सकती। ये जो दो-दो घंटे आप मुझे चोदते हैं, और जो चुदाई के दौरान आप करते हैं, मेरी चूतड़ चाटना, अपने चूतड़ चटवाना, मुझे चूत भींचने के लिए कहना, मेरी चूत का शहद पीना, मुझे से मुट्ठ मरवाना और मुझे अपने लंड का पानी चाटते देखना, ये सब युग के बस में नहीं है। मेरी और आपकी चुदाई तो अब युग की चुदाई के साथ-साथ ऐसी ही चलेगी।”
“जैसे ही अंकल ने ये सुना, उन्होंने एक सेकण्ड भी नहीं लगाया और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। पूरे कपड़े भी नहीं उतारे, ना मेरे, ना अपने। मेरी खाली सलवार उतारी और अपना पायजामा उतारा और मुझे बाहों में जकड़ कर लंड मेरी चूत में डाला और चुदाई चालू कर दी।”
“आधे घंटे की इस चुदाई में ना अंकल के लंड ने पानी छोड़ा ना मेरी चूत ने ही पानी छोड़ा। बस आअह अंकल… आअह चित्रा… आअह अंकल… आअह चित्रा की आवाजें ही सुनाई दे रहीं थीं।”
“इस चुदाई मैं ना लंड चुसाई हुई, ना चूत चुसाई। ना चूतड़ चाटने जैसे कोई बात हुई ना चूत का शहद पीने वाली ही कोइ बात हुई। फिर भी ये चुदाई मेरी जिंदगी की सबसे मस्त चुदाई थी।”
चित्रा बता रही थी, “अंकल के साथ चुदाईयां वैसे ही चल रही हैं जैसे पहले चलती थीं। इसमें इतना और हो गया है कि जिस दिन अंकल के साथ चुदाई होती है मैं पूरी रात अंकल के कमरे में ही रहती हूं। लक्ष्मी के जाते ही मैं अंकल के कमरे में चली जाती हूं और फिर सुबह ही बाहर निकलती हूं।”
मैं पूरी दिलचस्पी के साथ चित्रा की बातें सुन रहा था। चुदाई की बातें सुन-सुन कर तो मेरा अपना लंड खड़ा हो रहा था।
— चित्रा की अंकल के साथ भी शुरू हुई गांड चुदाई
तभी चित्रा ने मेरी तरफ देखा और मेरे खड़े होते हुए लंड को हाथ में पकड़ कर बोली, “और राज, एक और बात बताऊं?”
मैंने चित्रा की तरफ देखा और इतना ही कहा, “बताओ।”
चित्रा धीरे से मेरा लंड दबाते हुए बोली, “अब तो अंकल के साथ गांड चुदाई भी शुरू हो गयी है।”
मेरे मुंह से बस इतना ही निकला, “अरे? ये कैसे हुआ? गांड चुदाई कब से शुरू हुई शुरू हुई? ये तुमने शुरू की या अंकल ने शुरू की? किसने पहल की इस गांड चुदाई में? किसने पहले बोला इस चुदाई के लिए?”
चित्रा हंसते हुए बोली, “अरे-अरे राज, इतने सारे सवाल एक बार में ही? सबर करो, बताती हूं, सब बताती हूं।”
फिर चित्रा बताने लगी, “राज मेरी और अंकल गांड चुदाई के लिए किसी ने कुछ नहीं बोला। किसी को कुछ बोलने की नौबत ही नहीं आयी।”
मैं हैरान था कि बिना कुछ कहे बोले गांड चुदाई कैसे शुरू हो गयी।
इसके बाद चित्रा ने जो बताया वो कमाल था।
चित्रा बोली, “राज मैंने तुम्हें बताया ही था अंकल कभी-कभी लंड का टोपा मेरी गांड में डाल कर मुट्ठ मार कर अपने लंड का पानी मेरी गांड के अंदर निकालते हैं। एक दिन जब अंकल मेरी गांड में अपने लंड का टोपा डाल कर इस तरह से लंड का पानी छुड़ाने का काम कर रहे थे, तो मेरा मन अंकल का लंड गांड के अंदर लेने का हो गया।”
“अब तुमसे तो मैं गांड चुदवा ही चुकी थी। एक बार गांड चुदवा कर मन से गांड चुदाई का डर तो निकल ही चुका था। मैंने अपने चूतड़ों का एक जोर का झटका पीछे की तरफ लगाया और अंकल का आधा लंड मेरी गांड के अंदर चला गया।”
“राज मेरी गांड के छेद पर और अंकल के लंड पर वो वाली जैल नहीं लगी हुई थी जिससे लंड गांड में आसानी से चला जाता है, फिर भी मेरे एक ही झटके से अंकल का आधा लंड मेरी गांड के अंदर बैठ गया।”
“जरूर तुमसे गांड में लंड डलवाने के बाद मेरी गांड का छेद थोड़ा सा खुल चुका होगा, इसी लिए बिना क्रीम के भी आधा लंड अंदर गांड में जाने से मुझे कोइ बहुत ज्यादा दर्द नहीं हुआ। अगर जरा सी भी वो वाली क्रीम मेरी गांड पर या अंकल के लंड पर लगी होती, तो जैसा जोर का झटका पीछे की तरफ मैंने लगाया था, अंकल का पूरा-पूरा लंड मेरी गांड में बैठ जाना था।”
“मेरे इस झटके से जैसे ही अंकल का लंड मेरी गांड में गया अंकल तो जैसे हैरान से रह गए।”
“कुछ पल तो अंकल ऐसे ही खड़े रहे। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा होगा कि ये क्या हुआ है, या शायद ये सोच रहे होंगे कि अब क्या करूं?”
“फिर कुछ सेकण्ड के बाद अंकल ने मुझसे ही पूछ लिया, “चित्रा ये क्या हुआ, आधा लंड तेरी गांड में चला गया है। अब क्या करूं?”
“मैं कुछ नहीं बोली, बोलती भी तो क्या बोलती? मैं जानती थी बिना लंड और गांड पर क्रीम लगाए के लंड अंदर जा नहीं सकता था। अब क्रीम के बारे में मैं कैसे बोल देती? इसलिए मैं चुप ही रही। ना मैंने अंकल को लंड गांड में से निकालने को बोला ना अंदर डालने को ही बोला।”
“अंकल ने मुझे कुछ ना बोलते देख लंड बाहर निकाल लिया। मैंने सोचा शायद अंकल गांड नहीं चोदेंगे। मगर ऐसा नहीं था राज अंकल ने तो कुछ और ही सोच कर लंड गांड से निकाला था।”
“अंकल ने ढेर सारा थूक मेरी गांड के थोड़े से खुले हुए छेद में डाल कर लंड गांड के छेद पर रखा, मेरी कमर पकड़ी और एक जोर का झटका लगाया और “ले चित्रा, आज गया तेरी गांड में मेरा लंड” और इसके साथ ही पूरा लंड मेरी गांड में डाल दिया।”
“इसके बाद अंकल से रुका नहीं गया और अंकल ने मेरी ऐसी गांड चुदाई की कि जब तक अंकल के लंड का पानी मेरी गांड के अंदर नहीं निकल अंकल रुके ही नहीं।”
गांड चुदाई पूरी होने के बाद जब अंकल ने लंड गांड में से बाहर निकाला तो बस इतना ही बोले, “चित्रा आज तो मजा ही आ गया तुम्हारी गांड चोदने का। इतने दिन क्यों नहीं चुदवाई?”
“बस उस दिन के बाद तो अंकल के साथ ये गांड चुदाई का सिलसिला भी चालू हो गया।”
मैंने पूछा, “और युग, क्या वो भी गांड में डालता है?”
चित्रा बोली, “नहीं राज। युग नहीं डालता। एक दो बार मैंने युग से कहा भी की आज गांड चुदवाने का मन है, मगर युग ने कोइ दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। इसके बाद मैंने भी युग को गांड चोदने के लिए बोला ही नहीं।”
चित्रा हंसते हुए बोली, “युग मेरी गांड तो नहीं चोदता, मगर गांड का छेद चाटने का वो बड़ा शौक़ीन है।”
मैंने भी हंसते हुए कहा, “युग क्या, तुम्हारे मुलायम चिकने चूतड़ों का हल्का भूरा गुलाबी छेद चाटने में तो मुझे भी बड़ा मजा आता है।”
चित्र ने मेरी इस बात पर ध्यान नहीं दिया और फिर, “राज अब तो अंकल के साथ ये गांड चुदाई होने लग ही गयी है, इससे ज्यादा गांड चुदाई का करना भी क्या है। गांड चुदाई असल में तो एक ठरक सी ही है, मजा तो फिर भी चूत का दाना रगड़ने से ही आता है।”
वैसे ये गांड चुदाई में ठरक वाली बात चित्रा की ठीक ही तो थी। युग भी तो गांड चुदाई के दौरान अपने लंड की मुट्ठ मार कर पानी छुड़ाता था।
खैर चित्रा की चुदाई मस्त हो रही थी। युग और अंकल दोनों अपने अपने तरीके से चित्र के साथ मस्त चुदाई कर रहे थे, और फिर मैं भी तो था।
— ऐसे ही दिन निकलते गए।
वैसे तो युग अब खुद भी चित्रा की चुदाई करने लग गया है, मगर फिर भी मुझे चित्रा को चोदने के लिए बुला लेता है। मुझे लगता है युग मुझे शायद चित्रा को चोदने के लिए इस लिए भी बुलाता है क्योंकि उसे लगता था कि शायद उसके छोटे लंड से चित्रा की चूत की पूरी रगड़ाई नहीं हो पाती थी, और चित्रा को चुदाई का पूरा मजा नहीं आ पाता।
शायद युग अपने छोटे लंड के कारण वो हीन भावना से ग्रस्त था। युग को पता नहीं था कि चित्रा अंकल के मोटे लंड से मस्त चुदाई करवाती है।
खैर जो भी है, अब तो मुझे भी तो चित्रा की इस खुलेआम, युग के सामने चुदाई करने में बड़ा मजा आता है। थ्रीसम वाली चुदाई में, हिंदी में बोलें तो तिगड़ी वाली चुदाई में। इसके साथ साथ चित्रा की गांड चोदना, वो तो जैसे सोने पर सुहागा है। चित्रा के नाजुक, चिकने मुलायम चूतड़? मेरा तो उन चूतड़ों के ख्याल भर से लंड खड़ा होने लगता है।
जब अंकल भैंसों की खरीददारी के लिए सात दिन के लिए करनाल गए, तब मैं भी पांच दिन का प्रोग्राम बना कर बाराबंकी पहुंच गया। तभी तीन दिन के लिए लक्ष्मी भी छुट्टी पर चली गयी। इन तीन दिन तो ये हालत रही कि हम दोपहर से ही कपड़े उतार देते और चुम्मा-चाटी चुसाई का सिलसिला शुरू हो जाता, और रात को गांड चुदाई के बाद ही खत्म होता।
युग के साथ अब गांड चुदाई भी जारी है। चित्रा को भी युग को गांड चुदवाते हुए देखने में मजा आता है। जब मैं युग की गांड चुदाई कर रहा होता हूं, चित्रा पास खड़ी अपनी चूत का दाना रगड़ रही होती है। पहले की ही तरह जिस दिन युग की गांड चुदाई होती है उस दिन चित्रा मुझसे गांड जरूर चुदवाती है।
कहने का मतलब ये है कि चित्रा की मस्त चुदाई हो रही है, अंकल के साथ, युग के साथ, और मेरे साथ।
युग भी अब अपने दुसरे गांडू दोस्तों के साथ गांड चुदाई के चक्कर में बाहर घूमने नहीं जाता। युग ने मुझे बोला हुआ है इसलिए मैं पंद्रह बीस दिन में मैं ही दो तीन दिनों के लिए बाराबंकी चला जाता हूं। तभी युग की गांड चुदाई भी हो जाती है।
अगर किसी कारण से इस दौरान मैं इस दौरान बाराबंकी ना जा पाऊं, तो युग का फोन आ जाता है, “आजा भाई राज, चित्रा बहुत पूछ रही है तेरे बारे में”
बाराबंकी में मैं और युग मिल कर चित्रा को चोदते हैं। अब चित्रा मुझ से चुदाई के दौरान अब आह युग आह युग नहीं बोलती, आह राज ही बोलती है।
— तो दोस्तो ये थी “अजब गांडू की गजब कहानी।”
और अब अंत में एक आवश्यक सूचना और साथ ही एक विनती।
अब जैसा की मैंने बताया ही है अब युग का गांडूपना पूरी तरह से खत्म हो गया है और वो चित्रा की चुदाई करने लग गया है, ऐसे मैं दिल की बात बोलना चाहता हूं?
अगर मुझे पता होता कि युग का गांडूपन एक दिन बिल्कुल ठीक हो जाएगा और वो हम चुद्दकड़ों की तरह ही चूत चोदने लग जाएगा तो मैं इस कहानी का शीर्षक “अजब गांडू की गजब कहानी” रखता ही ना। आखिर को मैं भी कैसे भूल जाऊं कि युग त्रिपाठी, अगर गांडू भी था तो भी था तो मेरा दोस्त ही।
मेरे बचपन का प्यारा दोस्त। अगर कुदरत ने उसे ऐसा ही बनाया था, गांड चुदवाने वाल गांडू, तो इसमें उसका क्या कसूर? वैसे पूछो तो मैं ही कौन सा दूध का धुला था। मैं भी तो गांडू ही था। युग त्रिपाठी गांड चुदवाने वाला गांडू और मैं राज भारद्वाज गांड चोदने वाला गांडू।
अब विनती ये है कि अगर आप इस कहानी को कभी दुबारा पढ़े तो इसे “अजब गांडू की गजब कहानी” शीर्षक से ना पढ़ कर इसे मन में इस कहानी का ये शीर्षक दोहराएं – “अजब दोस्त की गजब कहानी।”
समाप्त – The End – इति: