ही फ्रेंड्स, मई हू 36 साल की लंबी, गोरी और कामुकता से भरे बदन वाली निशा. कमाल की पंखुड़ियो सी मेरी कजरारी आँखें और लबालब शराब से भरे हुए मेरे कोमल, चमकीले और गोरे-गोरे गाल कहर धाते है.
मेरी सुरहीदार गर्दन, और अपने दीवानो को पागल कर देने वाली, मेरी बड़ी-बड़ी पर क़ास्सी हुई गोरी-गोरी चूचियो का तो क्या ही कहना. मई हर जगह अपनी रूप लावन्या की वजह से मुसीबत मे पड़ती रहती हू. लेकिन दूसरी तरफ मुझे खुद पर गर्व भी होता है, क्यूकी उपर वाले ने मुझे रूप की रानी बना कर धरती पर उतारा है.
अब ज़्यादा इधर-उधर की बाते ना करते हुए, मई कहानी पर आती हू. मई एक मल्टिनॅशनल कंपनी मे काम करती हू. अभी मेरी पोस्टिंग नॉइदा मे है. यहा मई एक अपार्टमेंट मे सिंगल भक मे रह रही हू. मेरे दिन मज़े से काट रहे थे.
ये बात इसी साल के जून महीने की है. मेरी दीदी का देवर, जो इसी साल 12त किए हुए था, वो नॉइदा आ रहा था. वो इंजिनियरिंग कॉलेज का एंट्रेन्स एग्ज़ॅम देने के लिए नॉइदा आ रहा था. उसको दो-टीन दिन ही नॉइदा रुकना था, तो दीदी ने मुझे रिक्वेस्ट की, की मई उसको अपने साथ अपने घर मे रख लू.
मैने भी दीदी को हा बोल दी. उसको बस 2 दिन ही मेरे घर पर रुकना था. मैने उसको ये सोच कर साथ रख लिया, की वो एक छ्होटा लड़का था. उसका नाम विवेका था. उसकी हाइट करीब 5’8″ थी और वो एक स्मार्ट लड़का था.
अभी उसकी दाढ़ी मूचे ठीक से नही आई थी. खैर विवेका आने के दूसरे दिन एग्ज़ॅम के लिए चला गया और मई अपने ऑफीस चली गयी. ऑफीस मे मेरा फ्रेंड राजन आज मेरे घर आने की ज़िद करने लगा.
मैने राजन को बहुत माना किया, लेकिन राजन नही माना. वो ऑफीस से मेरे साथ ही मेरे घर आ गया. घर आने के साथ ही मई उसको बोली –
मई: देखो राजन, मेरे यहा गेस्ट आए हुए है. तुम जल्दी-जल्दी अपना काम निपटा लो.
फिर राजन मेरे मढ़-भरे होंठो का रस्स चूसने लगा. और मई राजन का लंड पंत से बाहर करके सहलाने लगी. धीरे-धीरे राजन ने मेरे सारे कपड़े उतार दिए. मई भी राजन की पंत को उतार कर उसके लंड से खिलवाड़ करने लगी.
कुछ ही मिंटो मे राजन का लंड टवर की तरह खड़ा हो गया. फिर मई राजन के लंड को अपनी छूट पर रगड़ने लगी और उसको बोली-
मई: अब अंदर डाल दे यार. अब और देर मॅट कर, विवेका कभी भी आ सकता है.
राजन ने मुझे चिट लिटाया और मेरी टाँगो को फैला कर टाँगो के बीच बैठ गया. फिर उसने और अपने मस्ताने लंड को मेरी बर मे कील की तरह थोक दिया. मई आ आ करने लगी और राजन मुझे ढाका-धक छोड़ने लगा.
मई भी गांद उछाल-उछाल कर मस्ती से छुड़वाने लगी. हम लोगो की चुदाई अब चरम पर थी. और उसी समय विवेका आ गया. विवेका को देख कर मेरे और राजन पर से चुदाई का सारा नशा ही उतार गया. राजन मुझसे अलग हो गया और अब मई विवेका के सामने बिल्कुल नंगी थी.
मई संकोच से अपने आप को चादर से ढकने लगी. फिर राजन बातरूम मे घुस गया और मूठ मारने लगा. फिर वो अपना माल झाड़ कर चलता बना. मैने विवेका की तरफ देखा, तो विवेका मुझे बोला-
विवेका: सॉरी निशा!
मई संकोच मे थी और कुछ बोल नही पाई. फिर विवेका मेरे बिल्कुल करीब आ गया और उसने मेरे सिर पर अपना हाथ रख दिया. मई अपने नागे जिस्म के साथ विवेका से लिपट गयी और बोली-
मई: किसी से कुछ मत बताना प्लीज़.
विवेका: ठीक है, मई किसी को कुछ नही बतौँगा. लेकिन इसके बदले मे मुझे क्या मिलेगा?
मई विवेका का इशारा समझ गयी थी. मई तो खुद ही वासना की आग मे जल रही थी और तड़प रही थी. और मई आधी-अधूरी चुदाई को पूरा करना चाहती थी. फिर मई विवेका को अपनी आगोश मे बाँधते हुए बोली-
मई: तुम्हे सब मिलेगा, जो तुम्हे चाहिए. तू तो सिर्फ़ बच्चा है. बता सिर्फ़ ढूढ़ पीने से तुझे तसल्ली हो जाएगी, या बर भी छोड़ेगा?
विवेका बोला: मुझे ढूढ़ भी चाहिए और बर भी चाहिए.
मई बोली: अछा? तू तो ऐसे बात कर रहा है, जैसे गबरू जवान मर्द हो. अछा एक बात तो बता. तूने पहले भी कभी बर छोड़ी है? या मेरी बर से शुरुआत करेगा?
विवेका बोला: मई छूट छोड़ने का मज़ा ले चुका हू.
मई: वाह रे मेरे यार! शाबाश बेटे! अब ये भी बता दे, की तूने किसकी बर छोड़ी है?
तभी विवेका बोला: सालू की.
मई तो उसकी ये बात सुन कर डांग रह गयी. क्यूकी सालू उसकी बड़ी बेहन है. मैने सवालिया नज़रो से विवेका को देखा. फिर विवेका ने बताया –
विवेका: एक दिन पापा-मों को नंगा करके छोड़ रहे थे. तभी मेरी और सालू की नज़र पापा-मम्मी पर गयी और हम दोनो ने उनकी चुदाई देख ली. चुदाई देख कर हम लोग अपने आप को रोक नही पाए, और उस दिन मैने अपनी बेहन को छोड़ डाला. उस दिन के बाद, मुझे जब भी मौका मिलता है, मई तब उसको छोड़ता हू.
मई विवेका की कहानी सुन कर काफ़ी रोमांचित हो गयी. फिर मई उसको बोली-
मई: शाबाश बेटे! आ अब मेरी छूट की गर्मी भी तू निकाल ही दे.
ये कहते हुए मैने विवेका के पंत को उतार दिया. अब विवेका का कड़क लंड मेरी बर के सामने फड़फड़ाने लगा. विवेका के लंड के आस-पास अभी बाल उगने शुरू हो रहे थे. लेकिन उसका लोड्ा मस्त था. उसका लोड्ा पुर 6 इंच लंबा था और 3 इंच मोटा था.
मई लंड के आकार-प्रकार को देख कर मस्त हो गयी. अब मई लगातार विवेका के लंड की मूठ मार रही थी. विवेका मेरी चूचियो को सहला रहा था और अपने होंठो से मेरे होंठो को चूस रहा था. मूठ मारते-मारते विवेका का लंड अपने चरम पर पहुँच गया.
उसका बदन काँपने लगा और वो मुझसे कस्स के लिपट गया. फिर आ आ के साथ विवेका के लंड की फूचकारी छ्छूट गयी. मई जो चाह रही थी, वही हुआ. कमसिन लड़को का लोड्ा सीधे बर मे जाने से, वो अंदर ज़्यादा देर रह नही पाता है.
लेकिन एक बार बाहर पानी निकालने पर वो बर की मस्त चुदाई करता है. और मुझ जैसी चुड़क्कड़ को तो बर मे पूरा लोड्ा ही चाहिए. मई अब भी विवेका के लंड को सहला रही थी. फिर 5 मिनिट के अंदर लोड्ा तंन कर खड़ा हो गया.
मेरी चूचिया भी बिल्कुल तन्नी हुई थी. और मेरी बर तो लोड्ा लेने के लिए कब से तड़प रही थी. मैने विवेका के लंड को अपनी बर पर रखा और विवेका की गांद पर थपकी लगाई. फिर विवेका ने पूरा का पूरा लोड्ा एक ही बार मे मेरी बर मे डाल दिया.
उसका लोड्ा घाप से मेरी बर के अंदर समा गया. तभी मई उसको बोली-
मई: अब छोड़ दाना दान मुझे.
विवेका मुझे मस्ती से छोड़ने लगा, और मई गांद उछाल-उछाल कर अपनी छूट छुड़वाने लगी. विवेका के छोड़ने की स्पीड तो काफ़ी तेज़ थी. इतने तेज़ धक्के को कोई नही गिन सकता. विवेका ने लगातार आधे घंटे तक मेरी छूट को छोड़ा.
मेरी छूट से धड़ा-धड़ रस्स तपाक रहा था. मई मस्ती से आ आ करते हुए कह रही थी-
मई: छोड़ दाना दान छोड़ बेटा. क्या मस्त छोड़ता है.
विवेका का भी अब बदन काँपने लगा. और आ आ करते हुए विवेका भयंकर तेज़ चुदाई कर रहा था. मेरी छूट सिकुड कर लंड को काससे जेया रही थी. विवेका बार-बार चिल्ला रहा था-
विवेका: क्या मस्त बर है तेरी. क्या मस्त चुड़वति है.
और फिर विवेका ने अपनी पिचकारी मेरी छूट मे छोढ़ दी और शांत हो गया. मुझे भी अब पूर्ण तसल्ली हो गयी थी. छुड़वाने के बाद, मई मॅन मे कंपॅरिज़न कर रही थी, की कों अछा छोड़ता है.
उस कंपॅरिज़न मे विवेका ही टॉप पर था. उसके लंड मे ज़रा भी नर्मी नही थी, जब की राजन का लंड ढीला था.
आज के लिए बस इतना ही फ्रेंड्स. अगर आपको कहानी अची लगी हो, तो लीके और कॉमेंट ज़रूर करे. जल्दी मिलेंगे, अगली स्टोरी के साथ.