ही फ्रेंड्स, मैं हू 25 साल की जूही. जूही के फूलों सी ही मेरी कामुक कोमल सुगंधित काया है, जो मर्दो का मॅन मोहने की पूरी क़ाबलियत रखती है. गोरे रंग के साथ-साथ तीखे नैन नक्श है मेरे. उस पर मेरी बड़ी-बड़ी हिलती डुलती मदभरी चूचियाँ, लोगो को पागल करती है.
उभरी हुई बिल्कुल गोल-गोल गांद है मेरी. जब मैं इठला कर चलती हू, तो आशिक़ो पर कामदेव के बानो की बौछार खुद-बखुद होने लगती है. पढ़ाई में तो मैं अव्वल थी ही, उसके साथ मैं अपने टीचर्स को अपने रूप की मदिरा पिलाने में कभी कंजूसी नही करती थी.
इसीलिए मैं हमेशा आचे रिज़ल्ट्स से पास होती गयी. और आज मैं बॅंक में कार्यरत हू. मेरी ब्रांच में शुशील नाम का लड़का मेरे सीनियर की पोस्ट पर आया. शुशील बेहद हॅंडसम और स्मार्ट लड़का था. 06 फीट की हाइट, मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर मैं तो शुशील पर फिदा हो गयी.
मैने मॅन ही मॅन में तन लिया, की मुझे उस लड़के को किसी भी सूरत में जीवनसाथी बनाना था. उसके आने के साथ ही मैने उस पर डोरे डालने शुरू कर दिए. लंच टाइम पर मैने अपने लंच के साथ शुशील को शामिल कर लिया. फिर इधर-उधर की और प्यार भारी बातो की शुरुआत भी मैने ही की.
मैं तंन-मॅन-धन से शुशील के पीछे पद गयी थी. शाम में दूसरे सहयोगियो ने शुशील से पूछा, की उसने रुकने का अरेंज्मेंट कहा किया था. तभी मैं झट से बात लपकते हुए बोली-
मैं: मेरे फ्लॅट में दो कमरे है. सिर वाहा ही रुक जाएँगे.
मैं कोई भी मौका छोढ़ना नही चाहती थी. फिर सारे लोगो ने मेरी हा में हा मिलते हुए बोला-
लोग: खुश-किस्मत हो शुशील बाबू. नौकरी और छ्छोकरी एक साथ मिल गयी आपको.
शुशील उनकी बात सुन कर तोड़ा झेंप गया. पर मेरी अंतर-आत्मा तक खुशी से झूम उठी. फिर जब शुशील ने मेरे प्रस्ताव को माना, तो हम दोनो मेरे घर आ गये. मैने शुशील की तरफ़दारी में कोई कसर नही छोढ़ी थी.
साथ में मैने उसको खाना खिलाया, नहलाने का सारा इंतेज़ां किया. अब बारी थी शुशील से बर छुड़वाने की. शुशील मुझसे मूह मोड़ रहा था, तो मैं बोली-
मैं: तुम्हे मुझसे प्यार ना सही, लेकिन मुझे तो तुमसे प्यार हो गया है. तुम्हे मैने जब से देखा है मुझे यू लगा, की मेरी ज़िंदगी की कश्ती को किनारा मिल गया. इबादत मेरे दिल ने इस तरह की, जैसे दिल को दिल का सुकून मिल गया.
ये सब कहते हुए मैं शुशील से पूरी तरह लिपट गयी. शुशील इस अचानक आए पल के लिए शायद तैयार नही था. फिर मैं आयेज बोली-
मैं: तुझे मुझसे इश्क़ ना सही, पर मुझे तुझसे इश्क़ है. अब मैं क्या करू.
ये बोल कर मैने शुशील के गाल को चूम लिया. मेरे मादक बदन की खुश्बू में शुशील गीयी की तरह पिघल गया. उसने मुझे आगोश में भर लिया, और मेरा जिस्म लहरा उठा. मैं नागिन की तरह शुशील से लिपट गयी.
फिर शुशील मेरे गोरे गालो को चूमने लगा, और मेरे मढ़-भरे लबों की मदिरा पीने लगा. मैने शुशील की वासना जगाने में कोई कसर नही छोढ़ी थी. फिर मैने धीरे से शुशील की शर्ट को उसके बदन से अलग कर दिया.
उसके बाद मैने उसके सीने पर अपनी नाज़ुक उंगलियो को फिराया. चुदाई के बुखार से शुशील टपने लगा. उसके हाथ अनायास ही मेरी चूचियों पर फिरने लगे. फिर मैने आयेज बढ़ कर अपनी टॉप को बदन से अलग किया, और शुशील के लिए अपनी नंगी चूची को उसके सामने कर दिया.
सुशील ने मेरी ब्रा उतारी, और चूचियों को मूह में ले लिया. मेरी कोमल नाज़ुक गोरी-गोरी चूचियाँ तंन सी गयी थी. मुझे लंड की बेहद बेसब्री थी. फिर मैने शुशील के पंत की इप को खोला, और हाथ डाल कर लंड हाथो में ले लिया.
शुशील के विशाल मोटे लंड को देख कर मैं फूली ना समाई. मेरे मॅन में आया, की उपरवाला जब देता है च्चपद फाड़ कर देता है. अछा कमाने वाला लड़का और मज़े से बर छोड़ने वाला लड़का मिले, तो फिर और क्या चाहिए.
अब मेरा सबर टूटा जेया रहा था. और अब मैं बिना देरी के शुशील का लॉडा अपनी बर में लेना चाहती थी. मैने लंड को हथेली में थामा, और अपनी छूट पर रगड़ने लगी. लंड की रग़ाद ने मेरी छूट में आग सी लगा दी. फिर मेरे मूह से आ आ के साथ निकला-
मैं: अब और देर नही, अब और देर नही.
शुशील को मेरी छूट में धधक रही आग का एहसास हो गया. फिर उसने अपना लॉडा मेरी बर के मुहाने पर टीकाया, और धकेल दिया भीतर की तरफ. उसका फौलाद सा लॉडा मेरी बर को चीरता हुआ अंदर दाखिल हो गया.
मुझे बर में लॉड का बेहद सुखद एहसास हुआ. शुशील खड़े-खड़े ही मेरी बर छोड़ने लगा. हर धक्के के साथ मेरे मूह से आ श की आवाज़ निकल रही थी. मैं मज़े से छुड़वा रही थी. शुशील भी पूरी मेहनत से मेरी चुदाई कर रहा था.
लेकिन अब ज़रूरत थी पटट्री बदलने की. फिर मैं शुशील को बोली-
मैं: चलो मेरे राजा, अब बिस्तर पर चलो. मैं तुझे जन्नत की सैर करौंगी.
फिर लॉडा बर में डाले हुए ही शुशील मुझे बेड पर ले गया. उसके बाद धीरे से उसने मुझे बेड पर लिटा दिया. उसका लॉडा मेरी बर में पूरी गहराई तक चला गया था. मुझे लग रहा था, की लॉडा मेरी यूटरस के मूह पर हात्ोड़ा मार रहा था.
बहुत मज़ा आ रहा था मुझे छुड़वाने में. मैं मस्ती से चुड़वति गयी, और शुशील उछाल-उछाल कर ढाका धक मुझे छोड़ रहा था. मैं कभी गांद उछालती, तो कभी शुशील को खींच कर उसको चूम लेती.
चुड़वते-चुड़वते मेरी बर से मदन रस्स झड़ने लगा था. चुदाई की हर ठोकर से फॅक-फॅक की आवाज़ आ रही थी. अब शुशील की पकड़ काफ़ी मज़ूत हो गयी थी. वो पूरी ताक़त से मुझे अपने बदन से जकड़े हुए था.
उसका लॉडा मोटा हो कर दोगुना हो गया था. इधर मेरी बर सिकुड कर छ्होटी हो गयी थी. मोटा लॉडा सिकुड़ी बर को कितना मज़ा दे रहा था चुदाई में. फिर शुशील के मूह से आ आ आ की आवाज़े आने लगी, और शुशील ने गरम-गरम माल से मेरी बर को भर दिया.
साथ ही मेरी महारानी ने भी गरमा-गरम माल को स्वीकारते हुए तोड़ा सा अपना रस्स मिला कर माल को कॉकटेल बना दिया. अब शुशील एक तरफ लूड़क चुका था. मैं भी छुड़वा कर पस्त हो गयी थी. पूरी रात हम लोग चुदाई करते रहे.
बिना शादी के सुहाग-रात का मज़ा ही कुछ अलग था. हम लोग हर रात चुदाई का खेल खेलते रहे. अब मेरे पेट में बच्चा ठहर गया था. फिर हम लोगो ने सगाई की, लेकिन सुहाग-रात नही मनाई.
हम सुहाग-रात मनाते भी कैसे, प्यार की निशानी पेट में पुर सबब पर थी. इसलिए कठिनाई हो गयी, की पहले बर चुदाई और फिर माँग भरवाई.
आज की कहानी बस यही तक थी मेरे दोस्तो. अगली कहानी लेके मैं फिर अवँगी आपके पास. आज के लिए शुभ रात्रि आंड थॅंक्स