मानसी ने एक रात अपने पापा आलोक को अपना पायजामा सूंघते हुए मुट्ठ मारते देख लिया। मानसी कमरे में गयी और आलोक के हाथ से पायजामा लेकर आलोक के मुंह पर बैठ गयी, और नीचे हाथ करके अपनी चूत की फांकें खोल दीं।
आलोक मानसी की चूत चूसने लगा। चूत चूसते-चूसते आलोक ने मानसी को अपने लंड पर झुका दिया। अब मानसी आलोक का लंड चूस रही थी, और आलोक मानसी की चूत चूस रहा था। इसी चुसाई की मस्ती में आलोक ने मानसी को बिस्तर पर लिटा दिया, और लंड चूत में रख कर चुदाई की तैयारी करने लगा। अब आगे-
मानसी बता रहे थी, “आंटी पापा ने लंड ऊपर-नीचे करते हुए एक जगह लंड रोक लिया। पापा का लंड मेरी चूत के छेद पर सटीक बैठा हुआ था। प्रभात ने भी ऐसा ही किया था और इसके बाद धीरे-धीरे लंड अंदर डाला था। मैं सोच रही थी, क्या पापा भी वैसे ही लंड धीरे-धीरे अंदर डालेंगे”?
“मगर पापा कुछ भी नहीं कर रहे थे। मैं सोच रही थी पापा को जो भी करना है कर क्यों नहीं रहे, लंड अंदर क्यों नहीं डाल रहे”?
“तभी पापा ने मेरी टांगों के नीचे से ही मेरे कंधों को पकड़ा और एक झटका दिया। उस एक झटके से ही पापा का खड़ा सख्त लम्बा लंड मेरी चूत में बिल्कुल अंदर तक चला गया”।
“मेरे लिए तो ये स्वर्ग जैसा मजा था। क्या मजा आया था जब रगड़ता हुआ पापा का लंड मेरी चूत में अंदर तक चला गया था। मेरे मुंह से बस यही निकला, “आअह पापा”।
“इसके बाद जो पाप ने मुझे चोदना शुरू किया कि पापा रुके ही नहीं। मेरी चूत का पानी एक बार छूटा, फिर एक बार और छूटा, पर पापा थे कि मुझे चोदते ही जा रहे थे”।
“मैं बस यही बोलती जा रही थी, “आआह पापा आअह आअह पापा बड़ा अच्छा लग रहा है आआह पापा”।
“पता नहीं कितनी देर पापा मुझे चोदते रहे। तभी पापा के लंड में से गरम-गरम कुछ निकल कर मेरी चूत में गया और पापा बोले, “ले मानसी ले”।
“मेरी चूत पापा के लंड से निकले गर्म-गर्म पानी से भर गयी थी। प्रभात ने भी मेरी चूत में ऐसे ही पानी छोड़ा था, मगर जितना पानी पापा के लंड में से निकला था, प्रभात के लंड में से तो चुदाई के बाद इसका आधा भी पानी नहीं निकला था”।
“इसके बाद पापा कुछ देर तो मेरे ऊपर ही लेटे रहे। पापा का लंड ढीला होने लगा। पापा ने लंड मेरी चूत से निकाला, और मेरे साथ ही लेट गए।
“पापा के साथ हुई इस चुदाई में तो मुझे जैसे स्वर्ग जैसा मजा आया था”।
“कुछ देर बाद पापा उठ कर बैठ गए और बोले, “मानसी ये क्या हो गया? तू क्यों आई इस तरह हमारे कमरे में और ये क्या अनर्थ हो गया। मानसी मेरे-तेरे बीच ये सब होना पाप है। ये बोल कर पापा सर झुका कर बैठ गए”।
“पापा को इस तरह बोलते और सर झुकाये बैठे देख कर मैंने भी कह दिया, “क्या अनर्थ और कैसा पाप पापा? जो भी हुआ है ठीक ही तो हुआ। आप मेरे पायजामे को सूंघते हुए अपने लंड के साथ जो भी कर रहे थे, वो क्या था? आपका लंड चूत ही तो मांग रहा था। वो मिल गयी उसको”।
“फिर पापा ने कहा, “मानसी जाओ अपने कमरे में और भूल जाओ जो हुआ है। अब दुबारा ये नहीं होना चाहिए। ये गलत है बेटा। बाप-बेटी में ये रिश्ता गलत है”।
“मैं तो चुदाई के मजे की मस्ती में थी। मैंने बोल ही दिया, “पापा आप ये सोचो ही मत कि ये आपकी बेटी की चूत है। आप बस ये सोचो कि आपके सामने एक चूत है और आप एक चूत चोद रहे हो”।
“मैं कुछ देर वहीं लेटी रही। पापा भी चुप थे मैं भी चुप थी। कुछ देर बाद जब मेरा मजा उतरा तो मैं उठी, अपना पायजामा उठाया, और कमरे से निकल गयी”।
“इसके बाद कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए और मेरी और पापा की चुदाई नहीं हुई।
मानसी बोल रही थी, “आंटी मेरे और पापा के बीच कुछ हो तो नहीं रहा था, लेकिन मेरा मन पापा से एक बार और चुदाई करवाने का होने लगा था। जब भी मैं लेटती मेरी आंखों के सामने पापा का लंबा लंड आ जाता और मेरा हाथ अपने आप मेरी चूत पर पहुंच जाता”।
“जब मम्मी रात को ड्यूटी पर हस्पताल में होती है तो पापा अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद नही करते। मैं कई बार पापा के कमरे में झांकती और देखती पापा क्या कर रहे हैं। अक्सर पापा सो ही रहे होते या लेटे लेटे-टी.वी. देख रहे होते”।
“एक दिन जब मैंने पापा के कमरे का दरवाजा थोड़ा खोला और अंदर झांका तो देखा उस दिन की तरह पापा ने अपना पयजामा नीचे किया हुआ था, और पापा लंड पकड़ कर मुट्ठ मार रहे थे”।
“पापा को मुट्ठ मारते देख मुझसे रहा नहीं गया। मेरा मन कई दिनों से चुदाई करवाने का हो रहा था। मैंने सोचा आज मौक़ा है। मैं अंदर चली गयी, और पापा के पास लेट गयी”।
“पापा ने धीमे सी आवाज में से पूछा, “क्या हुआ मानसी, यहां क्यों आई हो इस वक़्त? जाओ अपने कमरे में”।
“पापा ने मुझे ये कहा तो जरूर, मगर मुझे जाने के लिए नहीं कहा। पापा का लंड तब भी उनके हाथ में ही था”।
“मैंने पापा का लंड हाथ में पकड़ लिया। जैसे ही मैंने पापा का लंड पकड़ा, पापा ने अपना हाथ अपने लंड से हटा लिया, और जैसे पापा लंड की मुट्ठ मार रहे थे, मैं पापा के लंड की मुट्ठ मरने लगी। कुछ देर बाद मैं उठी और पापा का लंड मुंह में लेकर चूसने लगी”।
“कुछ देर बाद पापा ने मेरे मुंह से अपना लंड निकाल लिया और मेरे कपड़े उतार दिए। पहले की तरह उस दिन भी पापा ने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया, और वैसे ही मेरी टांगों के नीचे अपनी बाहें डाल कर मेरी चूत उठा दी और लंड चूत में डाल कर मेरी चुदाई शुरू कर दी”।
जब मेरी चूत पानी छोड़ गयी, और पापा के लंड में से भी गरम पानी की धार मेरी चूत में निकला गयी पापा मेरे ऊपर से उतरे और मेरे पास ही लेट गए”।
“उस दिन की चुदाई के बाद पापा कुछ नहीं बोले, बस छत्त की तरफ देखते रहे। मैं भी चुप-चाप लेटी रही। हम दोनों ही चुप थे। कुछ देर बाद मैं उठी और अपने कपड़े उठा कर कमरे से बाहर निकल गयी”
“इसके बाद पंद्रह दिन या एक महीने के बाद जब भी मेरा मन चुदाई का होता तो मैं पापा के पास चली जाती। खुद ही अपने कपड़े उतार कर पापा के साथ लेट जाती, पापा का लंड पकड़ती, चूसती और हमारी – मेरी और पापा की चुदाई हो ही जाती”।
“कभी-कभी तो पापा चुदाई के बाद चुप-चाप लेट जाते। कभी-कभी पापा वहीं बात दोहराते, “मानसी ये ठीक नहीं बेटा, मुझे नहीं अच्छा लगता। तू समझती कयों नहीं? तू जिस तरह मेरा लंड चूसने लगती है और चूत खोल कर मेरे सामने लेट जाती है, इस सबसे मैं अपना आपा खो देता हूं और तुझे चोद देता हूं। पर ये गलत है मानसी, मेरी बेटी, ये ठीक नहीं है”।
“मगर आंटी अब मुझे पापा से चुदाई करवाने में मजा आने लग गया था। मैं पापा से चुदाई करवाए बिना बहुत दिन नहीं रह सकती थी। पापा के ऐसा कहने पर मैं भी वही बात बोल देती, “पापा आप ये सोचो ही मत कि ये आपकी बेटी की चूत है, आप बस ये सोचो कि आपके सामने एक चूत है और आप उसे चोद रहे हो”।
— और आलोक ने मानसी को चोदने से मना कर दिया।
“एक दिन जब मेरा मन चुदाई करवाने का हो रहा था। एक महीने से ऊपर हो गया था मेरी और पापा की चुदाई नहीं हुई थी। मेरी चूत पानी-पानी हुई पड़ी थी। मैं पापा कमरे में चली गयी। पापा सोने की तैयारी में थे। मैंने हमेशा की तरह अपने कपड़े उतारे और मैं पापा के पास लेट गयी, और पापा का नाड़ा खोलने लगी जिससे मैं पापा का लंड हाथ में ले सकूं”।
“पापा ने मेरा हाथ अपने पायजामे की नाड़े से हटा दिया। मुझे पापा के ऐसा करने पर थोड़ी हैरानी सी हुई। मैं तो पहले भी ऐसा ही करती थी, और पापा ने मुझे कभी भी पायजामे का नाड़ा खोलने से इस तरह नहीं रोका था। मैंने पापा से पूछा, “क्या हुआ पापा”?
“पापा ने साफ़ ही बोल दिया, “नहीं मानसी अब और नहीं। मैं ये नहीं कर सकता। मेरे तुम्हारे बीच ये नहीं होना चाहिए, ये ठीक नहीं है”।
“पापा ने मुझे चोदने से मना कर दिया। मेरी चूत गरम थी। मेरी चूत को लंड चाहिए था। मैंने एक बार फिर पायजामे के ऊपर से ही पापा के लंड को हाथ में लिया तो पापा ने फिर से मेरा हाथ अपने लंड से हटा दिया”।
“मैं तो पापा के कमरे में चुदाई का मजा लेने के लिए गयी थी। मुझे उस वक़्त चुदाई चाहिए ही चाहिए थी। पापा का इस तरह चुदाई के लिए मना करने पर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने अपने कपड़े उठाये और पैर पटकती हुई मैं अपने कमरे में चली गयी”।
इतना बोल कर मानसी चुप हो गयी।
“मैंने मानसी से पूछा, “फिर क्या हुआ मानसी? क्या उस रात तुम्हारी चुदाई नहीं हुई”?
मानसी बोली, “हां आंटी, चुदाई तो हुई। पापा थोड़ी देर में मेरे कमरे में आ गए। पक्का ही पापा मेरे इस तरह उठ कर आ जाने से घबरा गए होंगे। आंटी असल में ये चुदाई वाली बात छोड़ भी दें तो भी पापा बचपन मुझसे बहुत प्यार करते हैं। उनसे मेरी उदासी, मेरा बीमार होना नहीं देखा जाता। मेरे इस तरह उठ कर बिना कुछ बोले आ जाने से पापा जरूर घबरा गए होंगे। पापा आ कर मेरे पास ही बैठ गए”।
“मेरे चूत गरम थी और चुदाई ना होने के कारण मुझे गुस्सा चढ़ा हुआ था। चूत गरम होने के बावजूद चूत में उंगली लेने का मेरा मन नहीं हो रहा था”।
“पापा ने मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मैंने पापा का हाथ झटक दिया। जब मैंने ना पापा की तरफ देखा ना उनसे बात की तो पापा समझ गए कि मैं चुदाई ना होने के कारण नाराज थी”।
“कुछ देर तो पापा ऐसे ही बैठे रहे फिर पापा मेरी चूचियों पर हाथ फेरने लगे। मस्ती में तो मैं थी ही। मैंने पापा का हाथ अपनी चूची पर दबा दिया और पापा को अपनी तरफ खींच लिया”।
“पापा मेरे साथ ही लेट गए। मैं पापा का लंड हाथ में लेने के लिए पापा के पायजामे का नाड़ा खोलने लगी। इस बार पापा ने मुझे नाड़ा खोलने से नहीं रोका। मैंने पापा का पायजामा थोड़ा नीचे करके पापा का लंड हाथ में ले लिया। पापा का लंड उतना सख्त नहीं था जितना अक्सर चुदाई के वक़्त हुआ करता था”।
“मैं पापा का लंड पकड़ कर पापा के लंड की मुट्ठ मारने लगी। जल्दी ही पापा का लंड सख्त हो गया। मैं पापा के लंड की मुट्ठ मारती जा रही थी। तभी पापा ने कहा, “बस मानसी”।
“मुझे लगा पापा को मजा आने वाला है। मैं उठी और पापा के ऊपर उल्टा लेट गयी। मेरी चूत पापा के मुंह के ऊपर थी और मैं पापा का लंड चूस रही थी”।
“कुछ देर ऐसे ही मैं पापा का लंड चूसती रही। तभी पापा ने मेरी चूत चूसना बंद करके मेरे चूतड़ों को हिलाया। शायद पापा मुझे लंड चुसाई बंद करने के लिए कह रहे थे”।
“मैं पापा के ऊपर से उतरी। मुझे पेशाब लग रहा था। मैं बाथरूम गयी, पेशाब किया और वहीं सारे कपड़े उतार कर नंगी ही कमरे में चली गयी”।
“कमरे में जा कर मैं पापा के पास लेट गयी और पापा का लंड फिर से हाथ में ले लिया। कुछ ही देर में पापा उठे, उन्होंने मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया लगाया और मेरे चुदाई चालू कर दी”।
“साफ़ लग रहा था पापा की इस चुदाई में वो जोश वो दम वो रगड़ाई नहीं थी जो अक्सर हुआ करती थी। लेकिन मेरी चूत गरम थी मैं कुछ बोली नहीं। जल्दी ही मुझे मजा आ गया, जैसे ही मेरे मुंह से सिसकारी निकली आआआह पापा, तभी पापा के लंड ने भी पानी छोड़ दिया”।
“ये पहली बार हुआ था। पापा जब भी मुझे चोदते थे मेरी चूत जब दो-तीन बार पानी छोड़ चुकती थी तब पापा का लंड पानी छोड़ता था”।
“पापा मेरे ऊपर से उतरे और बिना मेरी तरफ देखे अपने कमरे में चले गए। इस चुदाई से मेरी चूत का पानी तो छूट गया था, मगर चूत की वैसी रगड़ाई नहीं हुई थी जैसी हुआ करती थी। मुझे रगड़ाई वाली चुदाई चाहिए थी जैसी अक्सर पापा किया करते थे”।
“सोचते-सोचते मैं अपनी चूत पर हाथ फेरने लगी। जल्दी ही मैंने चूत में उंगली करनी शुरू कर दी। मेरी चूत फिर गरम हो गयी। मेरा मन दुबारा चूत में लंड लेने का होने लगा। मुझसे रहा नहीं गया और मैं उठी और नंगी ही पापा के कमरे में चली गयी”।
“पापा चुप-चाप लेटे हुए थे। मैं जा कर पापा के पास ही लेट गयी और पापा से पूछा, “पापा नाराज तो नहीं हो”?
“पापा पहले तो कुछ नहीं बोले, फिर पापा ने कहा, “नहीं मानसी मैं नाराज नहीं हूं”।
“पापा का इतना कहना था कि मैंने पायजामे के ऊपर से ही पापा का लंड पकड़ लिया। पापा ने मुझे कुछ नहीं कहा। मेरे हाथ में पापा का लंड फिर से खड़ा होने लगा”।
“मैं उठी और पापा के पायजामे का नाड़ा खोल कर पापा का लंड मुंह में ले लिया। इस बार पापा ने मुझे लंड पकड़ने और मुंह में लेने से मना नहीं किया। थोड़ा सा ही चूसने के बाद पापा का लंड पूरा सख्त हो गया। मैंने लंड मुंह में से निकाला और बिस्तर पर लेट गयी। मैंने पापा का हाथ पकड़ा और बोली, “पापा इस बार अच्छे से करना”।
“पापा ने कुछ सोचा और मेरी टांगों के नीचे बाहें डाल कर आगे की तरफ होते हुए मेरे चूतड़ और चूत ऊपर उठा दी। पापा ने लंड को मेरी चूत की दरार में जरा सा ऊपर नीचे किया और जैसे ही पापा का लंड चूत के छेद पर रुका, पापा ने एक ही झटके में लंड पूरा मेरी चूत में डाल दिया”।
“इसके बाद जो पापा ने मुझे चोदा, वो वैसी ही चुदाई थी, जैसी चुदाई मुझे चाहिए थी, रगड़ाई वाली चुदाई। दस-पंद्रह मिनट चली इस चुदाई ने मेरी चूत की तसल्ली कर दी। मुझे मजा ही आता जा रहा थी। जैसे ही पापा के लंड ने पानी छोड़ा, पापा बोले, “ले मानसी निकला तेरे अंदर”।
“कुछ देर में जब पापा का लंड ढीला हो गया तो पापा मेरे ऊपर से उतरे और लेट गए। मैं भी उठी और पापा की तरफ देखते हुए बोली, “थैंक यू पापा, आप बहुत अच्छे हो”। ये बोल कर मैं अपने कमरे मैं चली गयी”।
“मानसी जिस बारीकी से अपने चुदाई की कहानी सुना रही थी उसे सुन कर तो मेरी चूत गीली भी गीली हो गयी”।
“मैंने मानसी से पूछा, “मानसी इसके बाद तेरी प्रभात के साथ चुदाई हुई”?
मानसी ने जवाब दिया, “नहीं आंटी नहीं हुई। वैसे तो आंटी उस दिन भी प्रभात के साथ मेरी चुदाई नहीं होनी थी। मैंने तो प्रभात को उस तरह से कभी देखा ही नहीं था, और ना ही मेरी प्रभात के साथ चुदाई में कोइ दिलचस्पी ही थी”।
“ये तो स्नेहा और प्रभात मेरे वहां होते हुए ही चुदाई करने लग गए और उनकी मस्ती वाली सिसकारियां सुन-सुन कर मेरी चूत में कुछ अजीब सा कुछ होने लगा। आंटी उस वक़्त तो मेरी चूत की ये हालत हो गयी थी कि अगर प्रभात की जगह कोइ और भी होता तो भी मैंने चुदाई करवा ही लेनी थी”।
“मानसी कुछ रुक कर बोली, “आंटी प्रभात के साथ मेरी चुदाई तो एक तरह से एक एक्सीडेंट की तरह थी”।
“मानसी की बात सुन का मेरी हंसी छूट गयी। मैंने सोचा मानसी क्या, किसी भी लड़की के सामने अगर चुदाई हो रही हो तो सामने वाली की चूत गरम हो ही जाती है”।
“मैंने मानसी से कहा, “मानसी ये कोइ बड़ी बात नहीं है अगर तुम्हारी सामने लड़का लड़की चुदाई कर रहे हों तो तुम्हारा मन भी चुदाई का होने ही लगता है”।
— मानसी की चुदाई की कहानी से डाक्टर मालिनी की चूत गीली हो गयी।
“मेरी चूत तो मानसी की चुदाई की बातें सुन सुन कर ही गरम हो चुकी थी। मेरा मन चूत में उंगली करने और रबड़ का लंड लेने का होने लगा था”।
मैंने मानसी से कह ही दिया, मानसी तुमने तो स्नेहा और प्रभात की चुदाई होते हुए देखी थी तब तुम्हारा मन चुदाई का हुआ था। यहां तो मेरी चूत तुम्हारी चुदाई का बातें सुन-सुन कर ही गीली हो गयी है”।
“मैंने चूत में खजली की तो मुझे देख कर मानसी ने भी अपनी चूत खुजलाई। चुदाई की कहानी सुनते-सुनते मानसी की चूत भी गरम हो चुकी थी”।
मानसी बोली, “आंटी, प्रभात और पापा की चुदाई याद करके मेरी तो अपनी भी पानी से भरी पड़ी है”।
मानसी कुछ चुप हुई फिर बोली, “आंटी अब आप क्या करेंगी? ऐसे में आप क्या करती हैं? किसी को बुलाएंगी क्या”?
आगले भाग में डाक्टर मालिनी मानसी को बताएगी की ऐसे मौकों पर जब उसकी चूत गरम हो जाती है तो कैसे वो चूत की गर्मी निकालती है, और चुदाई जैसा मजा लेती है।