ही फ्रेंड्स, मैं वरुण अपनी कहानी का अगला पार्ट लेके आया हू. पिछले पार्ट को आप सब ने पढ़ा और पसंद किया, उसके लिए आप सब का धन्यवाद करता हू. जिन लोगों ने पिछला पार्ट अभी तक नही पढ़ा है, वो पहले उसको ज़रूर पढ़ ले.
पिछले पार्ट्स में आपने पढ़ा, की मैने मज़ाक-मज़ाक में अपनी मा से फेक ईद बना कर दोस्ती की. फिर जल्दी ही मा ने मुझसे सेक्सी बातें करना शुरू कर दिया. इस बार तो हमने वीडियो कॉल करके सेक्स भी कर लिया. अब आयेज बढ़ते है.
मेरा और मा का हम दोनो का माल निकल चुका था. माल निकलते ही हमने वीडियो कॉल बंद कर दी. मैं ये सोच रहा था की ये मैने अपनी ही मा के साथ क्या कर दिया. आज मैने मा का वासना भरा वो रूप देखा था, और मैं हैरान और परेशन दोनो था.
मैं सोच रहा था की ये तो मैं था, तो घर की बात घर में ही रहेगी. अगर कोई बाहर वाला होता, तो वो तो मा को छोड़ डालता. मुझे ये बात भी समझ आ गयी थी, की मा में वासना कूट-कूट कर भारी हुई थी. इसका मतलब वो पापा से संतुष्ट नही थी.
अब मेरा भी दिल मा को छोड़ने का करने लग गया था. घर में जब भी मा को मैं देखता था, तो मुझे मा को वो नंगी गांद और छूट नज़र आती थी. मा को इधर-उधर आते-जाते देख कर मेरा लंड खड़ा हो जाता था. पता नही क्यूँ वो कपड़े पहन कर भी मुझे बिना कपड़ों के दिखाई देने लगी थी.
मा को छोड़ना तो मैं चाहता था, लेकिन ये समझ में नही आ रहा था की मैं कैसे छोड़ू. उनके साथ सेक्सी बातें करना, और वीडियो कॉल पर अपना माल निकालना रोज़ का काम हो गया था. लेकिन इससे आयेज बात बढ़ नही रही थी. बढ़ती भी कैसे, मैं सामने तो आ नही सकता था उनके, तो पूछने का फ़ायदा भी नही था. फिर एक दिन मा ही बोल पड़ी-
मम्मी: हम रोज़ ऐसे ही सेक्स करेंगे या मिलने का इरादा भी है.
अब मैं उनके इस सवाल का जवाब क्या देता. फिर मैने लिख दिया-
मैं: मिलेंगे-मिलेंगे, जल्दी ही मिलेंगे. मुझे भी तो आपकी इस गरम छूट का मज़ा लेना है.
मम्मी: छूट नही मिलेगी तो मिलोगे नही.
मैं: छूट ना मिले ऐसा कैसे हो सकता है. या फिर रखी बांड देना मुझे.
मम्मी: धात! बेशरम, शरम नही आती रखी की बात करते हुए.
मैं: इसमे शरम कैसी. आज-कल ज़माना बदल गया है. आज-कल तो भाई-बेहन में भी चुदाई का रिश्ता बन जाता है.
मम्मी: अर्रे ये क्या बोल रहे हो? ऐसा कैसे हो सकता है?
मैं: ऐसा ही होता है. घर के मर्द जब घर की औरतों को छोड़ते है, तो बात घर में ही रहती है. भाई अपनी बेहन को, बेटा अपनी मा को, बाप अपनी बेटी को, हर कोई एक-दूसरे को छोड़ता है.
मम्मी: नही मुझे यकीन नही है.
मैं: ये देख लो, यकीन हो जाएगा.
फिर मैने मा को फॅमिली पॉर्न वीडियोस और स्टोरीस के लिंक भेज दिए. उसके बाद हम दोनो ने थोड़ी देर में बात बंद कर दी. फिर अगले दिन मा का मेसेज आया-
मम्मी: अर्रे ये तो सच में होता है, जो आपने कहा था.
मैं: देखा, मैने ठीक कहा था ना?
मम्मी: हा बिल्कुल ठीक. वैसे एक दिक्कत हो गयी है.
मैं: क्या दिक्कत?
मम्मी: जब से मैने वो कहानियाँ पढ़ी है, और वीडियोस देखी है. तब से मेरी सेक्स की भूख और भी बढ़ गयी है. जल्दी मिलो ना.
मैं: हा जल्दी मिलते है. मैं कल बताता हू आपको, की कब और कहा मिलना है.
मम्मी: ठीक है, मैं वेट करूँगी.
मैने बोल तो दिया की कल बता दूँगा. लेकिन मुझे समझ नही आ रहा था की मैं बोलूँगा क्या. अगर मैने मा को मिलने से माना कर दिया, तो कही वो मुझसे बात करना ही बंद ना कर दे. फिर मैं जैसे-तैसे सो गया. अगले दिन मैं सुबा उठा. उठते ही मेरे दिमाग़ में रात वाली बात याद आई, और मुझे टेन्षन हो गयी.
फिर मैं तैयार होके कॉलेज चला गया. वाहा भी मैं यही सोच रहा था की मा से मिलू कैसे बिना अपनी पहचान बताए. तभी मेरा एक दोस्त मेरे पास आया. उसके हाथ में एक पॅंफलेट था. वो मुझे बोला-
दोस्त: क्या सोच रहा है वरुण?
मैं: कुछ नही. तू बता ये क्या है तेरे हाथ में?
दोस्त: ये बड़े काम की चीज़ है.
मैं: वो कैसे?
दोस्त: हमारे शहर में एक क्लब खुला है. वाहा हर रोज़ लोग च्छूप कर मिलते है.
मैं: तो इसमे क्या है? लड़के-लड़कियाँ वैसे भी क्लब में च्छूप कर मिलते है.
दोस्त: अर्रे वैसे नही. सब चेहरा च्छूपा कर मिलते है.
मैं: मतलब?
दोस्त: देख जो भी अंदर जाएगा, उसको बाहर खड़े एंप्लायीस एक मस्त देते है. वो मस्त आइज़ पे पहनना होता है. इससे सामने वाला आपको पहचान नही सकता. तो आप किसी से भी मज़ा करने के लिए पूच सकते हो. क्यूंकी जब उसको पता ही नही होगा की आप कों हो, तो वो कुछ कर भी नही सकता. गर्लफ्रेंड से मिलने के लिए इससे अची जगह नही हो सकती.
उसकी बात सुन कर मैं खुश हो गयी. यही क्लब था जो मेरी प्राब्लम का सल्यूशन था. अब मेरे पास मा के सवाल का जवाब था. फिर कॉलेज ख़तम हुआ, और मैने मा को मेसेज किया घर आते ही.
मैं: आप मिलने के लिए बोल रही थी ना? तो मैं आपको जगह बता देता हू. दिन आप अपनी सुविधा के हिसाब से चुन लो.
मम्मी: ठीक है.
फिर मैने मम्मी को उस क्लब और उसकी ख़ासियत के बारे में बताया. वो उस क्लब के बारे में सुन कर बहुत खुश हुई. क्यूंकी इससे उनकी पहचान भी च्छूपी रहती. फिर मम्मी ने मुझे 2 दिन बाद का टाइम दे दिया. उसी रात मम्मी ने डिन्नर टेबल पर पापा से कहा-
मम्मी: सुनो जी.
पापा: हा.
मम्मी: मेरी ना एक फ्रेंड की मा बहुत बीमार है. वो जॉब भी करती है. तो उसकी कंपनी की तरफ से उसको एक दिन के लिए शहर से बाहर जाना है. उसके पीछे उसकी मा का ख़याल रखने वाला कोई नही है. तो क्या मैं उनका ख़याल रखने जेया सकती हू. मुझे एक रात वही रहना पड़ेगा.
पापा: हा ठीक है, चली जाना. किसी की हेल्प करना अछा होता है.
मम्मी: पापा ही हा सुनते ही मम्मी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी.
इसके आयेज क्या हुआ, वो आपको कहानी के अगले पार्ट में पढ़ने को मिलेगा. अगर कहानी अची लगी हो, तो शेर ज़रूर करना.