अब तक आपने पढ़ा, मानसी अपनी सहेली स्नेहा के बॉयफ्रेंड प्रभात से चुदाई करवा कर आयी थी। ये बात मानसी ने अपने पापा आलोक को बताई। अब आगे पढ़िए कि मानसी और प्रभात दोनों में चुदाई हो कैसे गयी।
मानसी बताने लगी, “पापा आज जैसे ही मैं स्नेहा के घर पहुंची, प्रभात पहले से ही वहां बैठा हुआ था। प्रभात और स्नेहा के आपसी रिश्तों के बारे में मुझे पता था। मुझे उस वक़्त वहां रुकना अच्छा नहीं लगा। मैंने स्नेहा से कहा, स्नेहा मैं चलती हूं, फिर आ जाऊंगी”।
स्नेहा ने कहा, “नहीं मानसी तुम बैठो, प्रभात अभी थोड़ी देर में चला जाएगा”।
“मैं वहीं बैठ गयी। मुझे लगा प्रभात जाने ही वाला था। मगर सामने बैठे स्नेहा और प्रभात आपस में एक-दूसरे को अजीब अजीब तरीके छू रहे थे। उन्हें ये सब करते देख मुझे शर्म भी आ रही थी”।
“थोड़ी देर बाद ही दोनों में कुछ इशारा सा हुआ और स्नेहा बोली, “मानसी तुम बैठो हम अभी आते हैं”।
“ये बोल कर दोनों दूसरे कमरे में चले गए, और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। पहले तो मैं हैरान हुई, कि ये क्या बात हुई, मुझे बैठा कर स्नेहा उठ कर प्रभात के साथ दूसरे कमरे में चली गयी है”।
“मैं ऐसे ही बैठी-बैठी उनके बाहर आने का इंतजार करने लगी”।
“कुछ ही देर में कमरे में से अजीब-अजीब आवाजें आने लग गयीं – सिसकारियों की आवाजें। दोनों कुछ ऐस ऐसा बोल रहे थे, आआह प्रभात, आआह स्नेहा। साफ़ लग रहा था वो दोनों सेक्स, चुदाई कर रहे थे। मेरे वहां पहुंचने से पहले ही उनका सेक्स का प्रोग्राम बना हुआ था”।
आलोक बोला, “रागिनी मेरे साथ बात करते हुए पहली बार मानसी ने ‘चुदाई’ शब्द का प्रयोग किया था”।
आलोक रागिनी को बता रहा था, “मानसी मुझे बता रही थी, थोड़ी ही देर में कमरे में से आने वाली आवाजें ऊंची हो गयी। उनकी आवाजें सुन कर मुझे अजीब-अजीब सा लगने लगा। पापा मेरी अपनी इसमें”, मानसी ने अपनी चूत को हल्का सा छू कर कहा, “कुछ-कुछ होने लगा। ऐसा लगा जैसे इसमें से कुछ गीला-गीला निकल रहा है। मैंने सलवार के अंदर हाथ डाल कर इसमें उंगली अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी। उंगली अंदर-बाहर करते ही मुझे अजीब सा मजा आने लगा”।
“कोइ दस बारह मिनट तक अंदर सी ऐसी ही आवाजें आती रहीं। फिर कमरे से आवाजें आनी बंद हो गयी। लगता था उनकी चुदाई खत्म हो चुकी थी। कुछ देर के बाद कमरे का दरवाजा खुला और स्नेहा और प्रभात दोनों वापस कमरे में आ गए”।
“मेरा हाथ तब भी सलवार के अंदर ही था”।
“स्नेहा ने जैसे मेरी तरफ देखा तो वो बोली, “मानसी ये क्या कर रही हो”?
“मैं अपना हाथ सलवार के अंदर से निकालना ही भूल गयी, और चुप-चाप स्नेहा और प्रभात की तरफ देखने लगी”।
“फिर स्नेहा ने साफ़ ही बोल दिया, “मानसी चूत में उंगली ले रखी है क्या? चुदाई करवाने का मन हो रहा है क्या”?
“मैं चुप रही। मन तो मेरा कुछ कुछ चुदाई का मजा लेने का हो ही रहा था”।
“स्नेहा मेरे पास आयी और मेरा हाथ पकड़ कर बोली, “मानसी बोलो, क्या चूत में लंड लेने का मन हो रहा है? क्या चुदाई करवानी है”?
“मैं जब फिर भी चुप रही तो स्नेहा ने प्रभात कि तरफ मुड़ कर बोली, “प्रभात लगता है मानसी की चूत लंड मांग रही है। ले जाओ मानसी को और लंड इसकी चूत में डाल कर इसे भी चुदाई का बढ़िया मजा दो”।
“स्नेहा की इस बात से प्रभात भी हैरान था। मैं कई बार प्रभात से मिली थी, बात भी हुई थी। मगर इस तरह चुदाई की बात ना तो कभी मैंने सोची थी ना ही शायद प्रभात ने। स्नेहा के कहने पर भी प्रभात अपनी जगह से नहीं हिला”।
“फिर स्नेहा प्रभात की पास गयी, और प्रभात का हाथ पकड़ कर उसे मेरे पास ले आयी”।
“स्नेहा फिर प्रभात को बोली, “प्रभात मैं कह रही हूं, मानसी की चूत लंड मांग रही है। देख नहीं रहे मानसी का हाथ कहां है? मानसी ने चूत में ऊंगली ले रक्खी है। जाओ अंदर ले जाओ और चुदाई का मजा दो मानसी को”।
“स्नेहा की बात सुन कर जैसे मैं नींद से जागी। मैंने एक-दम अपना हाथ अपनी सलवार में से निकाल लिया”।
“स्नेहा के दुबारा कहने प्रभात ने मुझे बाहों से पकड़ कर खड़ा किया, उठाया, और मुझे उस दूसरे कमरे में ले जाने लगा”।
“पापा, उस वक़्त मेरा दिमाग सुन्न हो चुका था। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। मेरे पैर मेरा साथ नहीं दे रहे थी। प्रभात मुझे कमरे की तरफ ले जा रहा था और मैं प्रभात के साथ खिचती चली जा रही थी”।
आलोक बता रहा था, “मैंने मानसी से पूछा, “मानसी तुमने ये पहली बार किया क्या”? मानसी चूत चुदाई जैसे शब्द बोल रही थी, मगर मुझे ये सब बोलने में शर्म आ रही थी”।
“मानसी ने अपने चूत की तरफ इशारा करते हुए कहा, “हां पापा पहली बार किया और इसमें से थोड़ा ब्लड भी निकला था”।
आलोक बता रहा था, “रागिनी अब तुमसे क्या छुपाऊं, जिस वक़्त मानसी मुझे ये सब बता रही थी उस वक़्त मेरी आंखों की आगे नंगी मानसी प्रभात के नीचे लेटी दिखाई दे रही थी, जिसे प्रभात चोद रहा था। मेरा लंड हरकत करने लगा था”।
“जब मानसी मुझे अपनी और प्रभात की चुदाई की बात बता रही थी, तो मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था। मुझे लग रहा था जैसे कि मेरे सामने नंगी मानसी और खड़े लंड के साथ प्रभात खड़ा था”।
“मैंने बड़ी मुश्किल से अपने लंड को खड़ा होने से रोका हुआ था। मैं जल्दी से जल्दी मानसी की सामने से हट जाना चाहता था कि कहीं मानसी की नजर मेरे खड़े होते हुए लंड पर ना पड़ जाए। तुम तो जानती ही हो रागिनी मेरा लंड जब खड़ा हो जाता है तो पेंट के ऊपर से भी लंड का उभार साफ़ दिखाई देता है”।
“मैंने जल्दी से मानसी से कहा, “मानसी तुम्हें ये बात मुझे नहीं अपनी मम्मी को बतानी चाहिए, अपनी मम्मी से बात करनी चाहिए। तुम्हारी मम्मी एक ट्रेंड नर्स है, आधी डाक्टर। हो सकता है वो तुम्हें कुछ बताना या समझाना चाहे “।
“मानसी मेरी बात बीच में ही टोक कर एकदम से बोली, “नहीं पापा, मम्मी से नहीं। मम्मी के पास कहां टाइम है। मुझे मम्मी से इस बारे में बात नहीं करनी। आप भी मम्मी को मत बताना, आपको मेरी कसम। आप बस जा कर मुझे i-pill ला दो। चौबीस घंटों के अंदर खानी है”। ये बोल कर मानसी बाथरूम में चली गई।
“मैं आगे मेरे लिए कहने के लिए कुछ नहीं था। मैंने कार निकाली और i-pill लेने निकल गया”।
“कार चलाते हुए भी मैं यही सोच रहा था कि एक बाप की बेटी की पहली चूत चुदाई हुई है और वो बाप अपनी बेटी के लिए बच्चा ना ठहरने की दवा लेने जा रहा है। कार में बैठे-बैठे भी मेरी आखों के सामने मानसी का नंगा जिस्म ही घूम रहा था जिसे प्रभात ने बाहों में ले रखा था और उसकी चुदाई कर कहा था”।
आलोक ने फिर बताया, “रागिनी मैं चार पैकेट i-pill के लाया और मानसी को दे दिए। मैंने सोचा हो सकता है एक बार चुदाई का मजा लेने के बाद मानसी दुबारा चुदाई करवाना चाहे”।
आलोक ने मुझे कहा, “रागिनी तुम्हें तुम्हारे सवालों का जवाब मिल गया? मानसी की पहली चुदाई मैंने नहीं की। मानसी की चूत की सील मैने नहीं तोड़ी। मगर एक बात बताओ रागिनी, जो बात मानसी को तुमसे करनी चाहिए थी मानसी को मुझसे करनी पड़ी। क्यों? तुम्हें पता भी है, मानसी मुझे ये सब बता रही थी, तो मुझे कितनी शर्म आ रही थी, और मानसी भी मुझसे नजरें नहीं मिला पा रही थी” I
“मालिनी जी, आलोक की बात सुन कर मुझे अपने आप पर बड़ा ही गुस्सा आया। आलोक सच ही कह रहा था, कि एक बेटी को जो बात अपनी मां को पहले बतानी चाहिए, वो बात बेटी को बाप को बतानी पड़ रही थी। और बेटी समझ रही थी कि जिस औरत को अपने पति की फ़िक्र नहीं वो अपनी बेटी की क्या फ़िक्र करेगी”।
“मैं और आलोक बिस्तर पर लेटे-लेटे ही बात कर रहे थे। फिर आलोक बोला, “रागिनी अब आते हैं तुम्हारी दूसरी बात पर जो तुम पूछ रही हो कि मेरी और मानसी की चुदाई कब से शुरू हुई”।
अलोक बता रहा था, “मानसी की प्रभात के साथ उस पहली चुदाई को दो हफ्ते गुज़र चुके थे। मानसी बिल्कुल नार्मल थी। सब फिर वैसा ही चलने लगा था। एक बात जरूर हुई, हर रात को जब मैं बिस्तर पर लेटता मुझे मानसी की चुदाई दिखाई देती। मैं सोचता रहता कैसे प्रभात ने मानसी को पकड़ा होगा, कैसे मानसी की कुंवारी चूत में लंड डाला होगा। कैसे मानसी को चोदा होगा I कैसे नीचे से चूतड़ घुमा-घुमा कर मानसी ने चुदाई करवाई होगी”।
“ये सोच-सोच कर मेरा लंड खड़ा हो जाता और मुट्ठ मारे बिना काम नहीं चलता था। पहले तो मैं तुम्हारी और अपनी चुदाई का सोच-सोच कर मुट्ठ मार कर लंड का पानी निकालता था, मगर अब मुट्ठ मारते हुए मेरी आंखों के आगे उस प्रभात की और मानसी की चुदाई का सीन ही नाचता रहता”।
“और फिर एक दिन कुछ अजीब सा हुआ। कुछ ऐसे हालात बन गए कि मानसी उस रात मेरे कमरे में आयी, और मेरे ना चाहते हुए भी मेरी और मानसी की चुदाई हो गयी”।
“मानसी को चोदने की बाद मुझे बहुत पछतावा हुआ, कि ये मैंने क्या कर दिया, मगर चुदाई तो हो ही चुकी थी। मानसी चुदाई करवा कर वापस अपने कमरे में चली गई। मानसी की जाने की बाद उस रात मुझे नींद नहीं आयी”।
“अगले दिन मानसी बिल्कुल ही नार्मल थी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था”।
“इसके बाद पंद्रह दिन, एक महीने बाद, जब भी मानसी का चुदाई का मन करता वो मेरे पास आ जाती। मैं हर बार उसे समझाता के ये बाप बेटी की चुदाई ठीक नहीं। मगर मानसी की पहल और जिद के आगे मेरी कुछ नहीं चलती थी। मानसी कपड़े उतार कर टांगें उठा कर लेट जाती थी, और मैं कमजोर पड़ जाता था। उस वक़्त मेरे पास उसे चोदने के अलावा कोइ चारा नहीं होता था”।
“सब से बड़ा डर मुझे यही लगा रहता कि अगर मैंने सख्ती से मना किया तो कहीं मानसी कोइ गलत कदम ही ना उठा ले”।
“मालिनी जी मुझे आलोक की इस बात से कुछ हैरान हुई, कुछ परेशानी भी हुई। गलत कदम ना उठा ले, इसका क्या मतलब हुआ? किस तरह के गलत कदम की बात कर रहा था आलोक”?
मैंने आलोक से पूछा, “गलत कदम ना उठा ले? क्या ऐसी कुछ बात कही थी मानसी ने”?
अलोक ने जवाब दिया, “हां रागिनी ऐसा एक बार हुआ था। एक रात मानसी चुदाई के इरादे ऐसे हमारे कमरे में आयी। हमेशा की तरह मेरा उसे चोदने का मन नहीं था। मानसी ने हमेशा की तरह चुदाई की जिद की और कपड़े उतार कर मेरे पास लेट गई”।
“उस रात मैंने मन बना लिया था कि अब ये बंद होना चाहिए। मैंने मानसी को चुदाई के लिए मना कर दिया। मानसी कुछ देर वैसे ही लेटी रही। जब मैं चुदाई की लिए नहीं उठा तो मानसी गुस्सा हो गयी और कुछ देर वहीं बेड की पास खड़ा रहने के बाद उसने अपने कपड़े उठाए और अपने कमरे में चली गयी”।
“उस वक़्त मुझे तुम्हारा वहां ना होना बहुत खल रहा था। मुझे तुम्हारी कमी महसूस हो रही थी। तब ऐसा लग रहा था कि अगर तुम घर पर ही होती तो शायद ये नौबत ही ना आती। मैं अपने आप को बहुत कमजोर सा समझ रहा था”।
“आधा घंटा हो गया। मुझे मानसी की फ़िक्र होने लगी, जवान लड़की है, गुस्से में कुछ गलत ही ना कर बैठे”।
“मैं मानसी को देखने उसके कमरे में गया तो देखा मानसी बिस्तर पर लेटी हुई है। मैं मानसी के पास बैठा, मगर मानसी ने मुझसे बात भी नहीं की। मैंने उसे कंधे से पकड़ा ही था, कि उसने मेरा हाथ झटक दिया”।
“मैं समझ गया कि मेरे उसे ना चोदने के कारण मानसी नाराज हो गयी थी। अब ऐसा तो था नहीं कि हममें पहले चुदाई ना हुई हो। आखिरकार मैंने मानसी को उसके ही कमरे में चोद दिया। बेमन से हुई ये चुदाई पांच सात मिनट ही चली, मगर इतना हुआ हम दोनों का पानी छूट गया और दोनों को मजा आ गया”।
“मानसी को चोदने के बाद मैं चुप-चाप उठा, और अपने कमरे में जा कर बिस्तर पर लेट गया। लेटा-लेटा मैं यही सोच रहा था कि क्या मानसी को चुदाई का चस्का लग चुका था, और अब वो चुदाई के बिना नहीं रह सकती”?
“मेरे दिमाग में ये बातें चल ही रही थी कि मानसी कमरे में आ गयी और आ कर बिस्तर के पास खड़ी हो गयी। मैं हैरान परेशान सा मानसी को देख रहा था। मानसी के जिस्म पर एक कपड़ा नहीं था। मानसी बिलकुल नंगी खड़ी थी”।
“साफ़ ही था कि मानसी दुबारा चुदाई करवाने आयी थी। शायद मानसी को पहली वाली बेमन की चुदाई में पूरा मजा नहीं आया था”।
“मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था। मानसी बेड पर बैठ गई। मानसी ने मेरे पायजामे का नाड़ा खोला और मेरा लंड मुंह में लेकर चूसने लग गयी। मैं मानसी को हटाना चाहता था, मगर मुझे कुछ समय पहले वाली बातें याद आ गयी, जब मानसी नाराज हो कर अपने कमरे में चली गई थी”।
“मानसी बहुत जोर जोर से मेरा लंड चूस रही थी और हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। मेरा लंड मानसी की चुसाई से खड़ा और सख्त हो चुका था। मानसी मेरा लंड चूसती ही जा रही थी। शायद मानसी को इंतजार था कि मैं उसके मुंह में से लंड निकालूं और उसकी पहले जैसी रगड़ाई वाली चुदाई करूं”।
“रागिनी उस वक़्त मेरे सामने कोइ चारा नहीं था। अंत में मैंने मानसी का सर पीछे की तरफ किया। मानसी ने लंड मुंह से निकाला और बिस्तर पर लेट गयी। जब मैं मानसी को चोदने की लिए उठने लगा तो मानसी ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली, “पापा इस बार अच्छे से करना, जैसे पहली पहली बार किया था”।
“अच्छे से करना – जैसे पहली-पहली बार किया था”?
“मतलब मेरा सोचना ठीक ही था। मानसी को थोड़ी देर पहले हुई उस बेमन वाली चुदाई का पूरा मजा नहीं आया था। मैंने भी सोचा, जब चोदना ही है तो फिर जैसी चुदाई मानसी चाहती है, वैसी चुदाई की करता हूं”।
“फिर मैं भी उठा मगर इस बार मानसी के चूतड़ों के नीचे तकिया नहीं लगाया। पहली बार की चुदाई की तरह मैंने मानसी की टांगों के नीचे अपने बाजू डाले और ऊपर की तरफ होने लगा। मानसी की चूत ऊपर उठती चली गयी”।
“मानसी की चूत में लंड ऊपर-नीचे करते हुए जैसे ही लंड चूत के छेद पर अटका, मैंने एक झटके से लंड मानसी की चूत के अंदर डाल दिया और जोर-जोर से लम्बे-लम्बे धक्के लगाने लगा। बीच-बीच में मैं पूरा लंड बाहर निकाल कर झटके से अंदर डाल रहा था”।
“मानसी जोर-जोर से चूतड़ घुमाते हुई बोल रही थी, “आआआह पापा, हां पापा, ऐसे ही किया करो”।
“मुझे उस वक़्त लगा कि कहीं मानसी को मेरी लम्बे लंड से चुदाई की आदत तो नहीं पड़ गयी? अगर ऐसा था तो ये बहुत गलत था। मैंने उसी वक़्त सोच लिया था कि अब ये सब बंद हो जाना चाहिए। उस दिन की बाद से मैं यही सोचता रहता कि क्या किया जाए कि मानसी मुझे चुदाई की लिए कहे ही ना”।
“इसके बाद मानसी जब भी चुदाई के लिए मेरे पास आती मैं हर बार मानसी को चुदाई के लिए मना करता। हर बार उसे समझाता कि बाप बेटी के बीच ये रिश्ता सही नहीं है। एक दिन तो मैंने उसे यहां तक कह दिया कि अगर वो चाहे तो प्रभात से चुदाई करवा सकती है”।
“मगर पता नहीं मानसी के दिमाग में क्या था। मैं समझाता रहता और मानसी सुनती रहती। मेरे समझने पर हर बार मानसी यही कहती, “पापा आप ये सोचते ही क्यों हो की आप अपनी बेटी की चूत चोद रहे हो? आप बस इतना ही सोचो कि आप के सामने एक चूत है और आप उसे चोद रहे हो। किसकी चूत चोद रहे हो ये सोचो ही मत”।
आलोक की मानसी को इस तरह चोदने की बात सुन कर रागिनी ने क्या सोचा, ये आप पढ़ेंगे कहानी के अगले भाग में।