डाक्टर मालिनी के जापान से वापस आने पर दो-तीन दिन के बाद ही रागिनी आलोक को लेकर मालिनी के क्लिनिक में पहुंच गयी। आलोक को वहां छोड़ कर जाते-जाते रागिनी ने अपनी गांड से साड़ी निकालते हुए मालिनी को याद भी करवा दिया और इशारा भी कर दिया – आलोक से गांड चुदवाने का। आगे क्या हुआ ये पढ़िए इस भाग में।
“44 का आलोक, पांच फुट ग्यारह इंच लम्बा, बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व वाला मर्द था। रागिनी जवानी में आलोक के साथ फंसी थी तो ठीक ही फंसी थी। आलोक को देखते ही मेरी आंखों के सामने आलोक का लम्बा लंड घूम गया, और मेरी अपनी चूत एक-दम से गीली हो गयी”।
“अलोक भले ही लम्बे लंड का मालिक था और चुदाई का उस्ताद भी, मगर मुझे आलोक देखने में शर्मीला आदमी लगा। रागिनी ने ठीक ही कहा था, कि लड़की पटाना और पटा कर चोदना आलोक के बस की बात नहीं थी। मैंने आलोक को सहज करने के लिए पहले उसकी CA वाले कारोबार से बात की। इधर-उधर की बातें करने के बाद मैं सीधा मुद्दे पर आ गयी”।
“मैंने आलोक से पूछा, “आलोक एक बात बताओ, रागिनी से तुम्हारी क्या बात हुई है? रागिनी तुम्हें क्या बोल कर यहां मेरे पास लाई है”?
“आलोक ने जवाब दिया, “मालिनी जी हम मानसी के बारे मैं बात करने के लिए आपके पास आये हैं। हमारी समस्या कुछ इतनी घरेलू और निजी है कि इसके बारे में हर किसी से बात नहीं की जा सकती। हमारी समस्या का हल कोइ मनोचिकित्स्क ही कर सकता है। रागिनी आपको पहले से जानती थी, इसलिए रागिनी ने आपसे मिलना ठीक समझा, और हम यहां आ गए”।
मैंने कहा, “अच्छा आलोक अब मुद्दे पर आते हैं। अब बताओ, जो कुछ भी मानसी और तुम्हारे बीच जो भी हो रहा रहा है वो किसकी मर्जी और किसकी पहल के साथ शुरू हुआ”।
आलोक बोला, “मालिनी जी बड़े ही अजीब से हालात में मेरे और मेरी बेटी मानसी के बीच जिस्मानी रिश्ते बन गए। जिस दिन हममें पहले-पहल ये सब हुआ, वो सब कुछ इस तरह हुआ कि मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आया। और जब समझ आया तो सब कुछ हो चुका था। लेकिन इतना था कि जो कुछ भी मेरे और मानसी के बीच हुआ, उसका मुझे तो पछतावा था, मगर मानसी को कोइ पछतावा नहीं था”।
“झिझक के कारण आलोक बड़ी ही ढकी छुपी भाषा में बात कर रहा था। इस तरह से बात करने से कई बार बातों के अलग मतलब भी निकल जाते हैं। मुझे आलोक से साफ़-साफ़ भाषा में सारी बात सुननी थी जिस तरह रागिनी ने मुझे पूरी बात बताई थी”।
“आलोक की झिझक दूर करने के लिए मैंने आलोक को रागिनी की आवाज वाले टेप का कुछ हिस्सा सुनाने का फैसला किया”।
मैंने आलोक से कहा, “आलोक तुम साफ़-साफ़ लफ्जों में मुझे बताओ कि तुममे और मानसी में मर्द और औरत वाला चुदाई का रिश्ता कैसे बन गया? और जो तुम ये कह रहे हो कि बड़े ही अजीब से हालात में मेरे और मेरी बेटी मानसी के बीच जिस्मानी रिश्ते बन गए। जिस दिन हममें पहले-पहल ये सब हुआ वो सब कुछ इस तरह हुआ कि मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आया। और जब समझ आया तो सब कुछ हो चुका था, या तुम्हें पछतावा था मानसी को नहीं। इन सब बातों क्या मतलब है”?
मैंने बात जारी रखते हुए कहा, “आलोक मुझे लग रहा है, तुम साफ़ बात करने से कुछ झिझक रहे हो। ऐसा होता है। अपनी बहुत ही निजी बातें साफ़ शब्दों में बताने में दिक्कत होती ही है। लेकिन हम मनोचिकित्स्क साफ-साफ शब्दों का इस्तेमाल ही करते हैं, और ये इसलिए भी होता है जिससे किसी भी बात के दो या ज्यादा मतलब ना निकाले जा सकें”।
“आलोक हालांकि पति-पत्नी की चुदाई” – मैंने जान बूझ कर चुदाई शब्द का इस्तमाल किया – “चुदाई के दौरान होने वाली बातें किसी तीसरे को नहीं सुननी चाहिये फिर भी मैं तुम्हें रागिनी से हुई मेरी बात की टेप का एक छोटा सा हिस्सा सुनाती हूं जिससे तुम्हे पता लगे कि मनोचिकित्सक किस तरह की साफ़-साफ़ बात सुनने की उम्मीद करते हैं”।
“ये कह कर मैंने रागिनी की टेप थोड़ी आगे की और रिमोट का बटन दबा टेप रिकार्डर चालू कर दिया”।
क्लिक की आवाज के साथ टेप चलनी शुरू हो गयी।
रागिनी की आवाज आ रही थी, “मैंने भी आलोक का ढीला पड़ा लंड हाथ में ले लिया कर बोली, “आलोक सच सच बताना क्या तुम मानसी को चोदते हो? मानसी चुदाई करवाती है तुमसे”?
आलोक ने एक बार मेरी और देखा, मगर हैरानी से नहीं। उल्टा आलोक ने मुझी से सवाल किया, “तुम्हें क्या लगता है रागिनी”?
मैंने आलोक के आंखों में देखते हुए कहा, “आलोक मैंने मानसी को तुमसे अपनी चूत चुदवाते हुए देखा है। मैंने तुम दोनों की चुदाई होते हुए देखी है”।
कुछ देर आलोक चुप रहा, और फिर बोला, “हां रागिनी, मानसी चुदवाती है मुझसे, मैं चोदता हूं मानसी को”।
पहले तो मैं हैरान हुई कि आलोक को ये बताते हुए जरा सा भी पछतावा नहीं हो रहा कि वो अपनी ही बेटी को चोदता है? उसके इस रवैये से मैंने लगभग चिल्लाते हुए कहा, “मगर क्यों आलोक? मानसी तुम्हारी बेटी है तुम्हारी अपनी बेटी। तुम अपनी बेटी को ही चोदते हो? जानते भी हो इसका मतलब? ये समाज की नजरों में गलत है, पाप है”।
“आलोक ने कोइ जवाब नहीं दिया, बस ऐसे ही लेटा रहा। आलोक का हाथ अभी भी मेरे मम्मों पर ही था। फिर कुछ चुप रहने के बाद मैंने ही पूछा, “कब से चल रहा है बाप बेटी की इस चुदाई का सिलसिला? और मैं कहां थी? तुम्हारी अपनी चूत, तुम्हारी अपनी फुद्दी। मुझे तो तुम जब चाहते, जैसे मर्जी चाहते चोद सकते थे। फिर मानसी क्यों? बोलो आलोक”।
“यहां मैंने रिमोट से क्लिक की एक आवाज के साथ टेप रिकार्डर बंद कर दिया”।
“मर्द होने के बावजूद शर्म से आलोक के चेहरे का रंग गुलाबी हो गया था। मैंने ही बात आगे बढ़ाई, “अलोक, अब समझे किस हद तक साफ़ बात की उम्मीद करती हूं मैं”।
“आलोक ने हां सर हिलाया, और इसके बाद उसने भी चूत चुदाई जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया”।
मैंने आलोक से कहा, “तो आलोक फिर बताओ तुम जो कह रहे थे कि बड़े ही अजीब से हालात में मेरे और मेरी बेटी मानसी के बीच जिस्मानी रिश्ते बन गए या जो भी तुमने कहा, इसका क्या मतलब है”?
“आलोक थोड़ा सा हिला और फिर साफ़ शब्दों में ही बोला, “मालिनी जी मेरी और मानसी की पहली चुदाई बड़े ही अजीब हालात में हुई। कम से कम उस चुदाई से पहले मेरे मन में तो कभी भी मानसी को चोदने का ख्याल भी नहीं आया था”।
“आलोक जब ये बोल कर चुप हुआ तो मैंने ही कहा, “अगर तुम्हारे मन में मानसी को चोदने का कभी ख्याल भी नहीं आया, तो भी आलोक मानसी की चुदाई तो तुमसे हुई ही”।
आलोक बोला, “यही तो मैं भी कहना चाह रहा हूं मालिनी जी। मेरे ना चाहने के बावजूद मेरी और मानसी की चुदाई हो गयी”।
फिर आलोक थोड़ा रुका और बोला, “मालिनी जी रागिनी ने प्रभात और मानसी की चुदाई के बारे में तो आपको बता ही दिया होगा”।
मैंने कहा, “हां आलोक रागिनी ने बताया है और ये भी बताया है कि मानसी ने तुम्हें i-pill लाने के लिए कहा था”।
आलोक बोला, “बस मालिनी जी, मेरी और मानसी की चुदाई का बीज उसी दिन डल गया था जिस दिन मानसी ने अपनी और प्रभात की चुदाई की बात मुझे बताई थी और मुझे i-pill लाने के लिए बोला था”।
“मानसी की प्रभात के साथ चुदाई और मानसी के लिए i-pill लाने वाले दिन के बाद तो मानसी से आमना-सामने होते ही मेरी आंखों के आगे मानसी और प्रभात के चुदाई घूमने लगती। मानसी नंगी लेटी हुई और नंगी मानसी के ऊपर लेटा हुआ दिखाई देता। मुझे तो ख्यालों में प्रभात का लंड भी मानसी की चूत में गया हुआ दिखाई देता था”।
“मानसी और प्रभात की चुदाई के ख्याल से ही मेरा लंड खड़ा होने लग जाता मगर, इतना सब होने के बावजूद भी मैंने मानसी को चोदने का कभी नहीं सोचा था”।
फिर आलोक थोड़ा चुप हुआ और फिर बोला, “मालिनी जी, ये तो एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि बस चुदाई हो गयी”।
“ये बोल कर आलोक फिर चुप हो गया”।
“मैंने भी आलोक को सोचने का मौक़ा दया और आगे के बात का इंतजार करने लगी”।
“दो तीन मिनट के बाद फिर आलोक ने बोलना शुरू किया”।
“मालिनी जी मैं रोज रात को व्हिस्की के तीन-चार पेग पीता हूं और ये मेरी बरसों पुरानी आदत है।
“एक दिन रात को TV पर क्रिकेट का मैच आ रहा था और मैं ड्राईंग रूम में बैठा TV देख रहा था और साथ साथ व्हिस्की पी रहा था। ड्राइंग रूम के साथ वाला कमरा मानसी का है। ड्राईंग रूम के साथ लगे बाथरूम का एक दरवाजा मानसी के कमरे में खुलता है, दूसरा ड्राईंग रूम में खुलता है”।
“उस दिन मैच देखते-देखते व्हिस्की के चार पेग मैं पी चुका था और पांचवां पेग मेरे हाथ में था। साढ़े दस बज चुके थे। मुझे नींद आने लग गयी थी। मुझे पेशाब भी लग रहा था। मैंने व्हिस्की से भरा गिलास मेज पर रखा, और ड्राईंग रूम के साथ लगे बाथरूम में पेशाब करने चला गया”।
“पेशाब करके हाथ धो कर जब मैं तौलिये के साथ हाथ पोंछने लगा, तो तौलिये के साथ ही मानसी का पायजामा लटका हुआ था। तौलिया उतारते ही पायजामा नीचे गिर गया।
मैंने पायजामा उठाया और जब मैं पायजामा खूंटी पर टांगने लगा तो मुझे पायजामा में से कुछ महक सी आयी। बिल्कुल वैसे महक आ रही थी जैसी रागिनी की चूत में से आया करती है”।
“इतना सुनना था कि मैंने मन ही मन सोचा, “अबे गधे आलोक, हर लड़की और औरत की चूत से वैसी ही महक आती है I मानसी अभी नयी-नयी जवानी में आयी है, इस लिए चुदाई के ख्याल से उसकी चूत ज्यादा पानी छोड़ रही होगी।”। ये सोचते-सोचते मैंने अपनी चूत खुजलाई”।
आलोक बोल रहा था, “मानसी के पायजामे में से उठ रही चूत के पानी और पेशाब की मिली-जुली गंध से मेरी आंखों के आगे मानसी और प्रभात की चुदाई घूम गयी। फिर से वही सीन मेरे आंखों के आगे आ गया। प्रभात मानसी के ऊपर लेटा हुआ है। प्रभात का लंड मानसी की चूत में गया हुआ है। इन ख्यालों ने मेरा लंड खड़ा कर दिया”।
“ना जाने क्या हुआ मैंने पायजामा उठा लिया। ड्राईंग रूम में आ कर व्हिस्की का गिलास खाली किया, TV बंद किया, और अपने कमरे में चला गया”।
“बिस्तर पर लेटा तो मेरी नींद गायब हो चुकी थी। मेरी आंखों में आगे से मानसी और प्रभात की चुदाई हट ही नहीं रही थी। मेरा लंड सख्त होता जा रहा था। मैंने लंड पकड़ लिया। अब मुट्ठ मार कर पानी छुड़ाने के अलावा कोइ चारा नहीं था”।
“मैंने अपने पायजामे का नाड़ा खोल कर पायजामा थोड़ा नीचे किया, और एक हाथ से लंड की मुट्ठ मारने लगा। दूसरे हाथ से मैंने मानसी का पायजामा अपनी नाक से लगा लिया और उसमें से उठती हुई चूत के पानी और पेशाब की मिली-जुली की गंध सूंघने लगा”।
“क्या बताऊं मालिनी जी, मुझे तो बताते हुए शर्म आ रही है, मगर मुट्ठ मारते हुए मेरी आंखों के आगे मानसी का नंगा जिस्म ही तैर रहा था। उस दिन मानसी का पायजामा सूंघते-सूंघते मुझे मुट्ठ मरने का मजा भी बड़ा अजीब आ रहा था”।
“थोड़ी देर में लंड की मस्ती शुरू हो गयी। पहले तो मुट्ठ मारते हुए मैं आआह रागिनी आआह रागिनी बोलने लगा। मगर मेरी आंखों के आगे उस दिन रागिनी नहीं मानसी थी। जल्दी ही मेरे मुंह से आआह रागिनी की जगह आअह मानसी आआह मानसी निकलने लगा”।
“मुट्ठ मारते हुए मेरा लंड जल्दी नहीं झड़ता। मेरी आखें बंद थी, और मुट्ठ मारना जारी था”।
“तभी मुट्ठ मारते-मारते मुझे कोई आवाज सी सुनाई पड़ी जैसे कोई कह रहा हो “ये क्या कर रहे हो पापा”? मैंने सोचा ये मेरा वहम होगा, यहां इस वक़्त कौन आएगा। मैंने आंखें नहीं खोली, और मुट्ठ मारना जारी रखा”।
“तभी दुबारा मुझे फिर वही आवाज सुनाई दी, “ये क्या कर रहे हो पापा”?
मैंने आंखें खोली तो देखा मानसी खड़ी थी। नीचे से नंगी, बिना पायजामें के”।
“कुछ पल के लिए तो मुझे जैसे सांप सूंघ गया। मुझे समझ ही नहीं आया कि ये क्या हो गया है। मेरा खड़ा लंड मेरे हाथ में था और मानसी नंगी मेरे सामने खड़ी थी। मैं तो मुट्ठ मारना ही भूल गया”।
मैं कुछ बोलने ही वाला था कि मेरे बोलने से पहले मानसी बोल पड़ी, “ये क्या कर रहे हो पापा? मेरा पायजामा क्यों सूंघ रहे हो? मैं कहां थी? मुझे बुला लेते”।
“ये बोल कर मानसी ने मेरे हाथ से पायजामा छीन कर बिस्तर पर फेंक दिया। मानसी कुछ सेकण्ड के लिए रुकी, और फिर अपनी दोनों टांगें मेरे मुंह के दोनों तरफ करके अपनी चूत की फांकें खोल कर मानसी घुटनों के मेरे मुंह के ऊपर ही बैठ गयी”।
मानसी के चूतड़ मेरे सर की तरफ थे, और मानसी का मुंह मेरे लंड की तरफ था। मानसी की खुली चूत मेरे मुंह के ऊपर थी। मानसी ने जरा सा सर घुमाया और बोली, “लो पापा, अब जो भी करना है करो”।
“जैसे ही मानसी मेरे ऊपर बैठी, मैं तो हैरान ही रह गया कि ये क्या हो रहा था। मेरी बेटी नंगी मेरे मुंह पर बैठी थी। एक बार तो मन में आया मानसी को हटा दूं, लेकिन ये ख्याल मेरे मन से जल्दी ही निकल गए और मेरा मन भी मानसी की चूत चूसने का होने लगा”।
“मानसी चुदाई के मामले मैं अनाड़ी थी। मानसी मेरे मुंह पर सीधी बैठे हुई थी। मेरे मुंह से कुछ ही ऊपर मानसी की चूत नहीं चूतड़ थे। लेकिन मानसी की चूत लग रहा था बहुत पानी छोड़ रही थी। मानसी की चूत से पानी टपक-टपक कर मेरे मुंह में जा रहा था। चूत के पानी में से मस्ती भी गंध आ रही थी”।
“मुझे भी मस्ती आने लगी। मुझे साफ़ महसूस हो रहा था कि मेरा लंड सख्त होने लगा है। मैंने मानसी के चूतड़ों पर हाथ फेरने शुरू कर दिए। मानसी के चूतड़ बहुत ही मुलायम थे, रेशमी कपड़े की तरह”।
“फिर अचानक से ना जाने क्या हुआ, मैंने मानसी की बाहों के नीचे से हाथ करके मानसी की छोटी-छोटी सख्त चूचियां पकड़ ली और चूचियों के निप्पल मसलने लगा। मानसी के मुंह से ऊंह आह ऊंह आह की सिसकारियां निकलने लगीं”।
“मानसी की चूत के पानी की महक और मेरे हाथों में मानसी की चूचियां। मुझ से और नहीं रहा नहीं जा रहा था”।
“मैं मानसी की चूत चूसना चाहता था। मगर जिस तरह मानसी मेरे मुंह पर बैठी हुई थी मेरे मुंह के ऊपर मानसी के चूतड़ थे चूत नहीं। मैंने मानसी की चूत अच्छे से चूसने के लिए मानसी को आगे की तरफ झुका दिया”।
“आगे की तरफ झुकी हुई मानसी की चूत बिल्कुल मेरे मुंह पर थी और मानसी का चेहरा मेरे लंड के ऊपर था। मानसी की चूत के आस-पास छोटे-छोटे नरम झांटों के बाल थे जो मेरे होठों को छू रहे थे”।
“आगे झुकाने पर शायद मानसी ने सोचा होगा कि मैंने मानसी को लंड चूसने के लिए झुकाया है। मानसी ने मेरा खड़ा लंड मुंह में ले लिया और चूसने लगी”।
“व्हिस्की का सुरूर, मानसी की चूत में से उठ रही खुशबू और हल्के नमकीन पानी का स्वाद – ना जाने क्या हुआ मैं जो जोर से मानसी की चूत चूसने लगा”।
“उस वक़्त मैं भूल गया कि मानसी मेरी बेटी है। मेरा मन मानसी को चोदने का होने लगा। चुदाई के ख्याल से ही जल्दी ही मेरा लंड फटने को हो गया। मुझसे और रहा नहीं गया। मैंने मानसी को चूतड़ों से पकड़ कर अपने ऊपर से उठाया और इतना ही कहा, “बस मानसी”।
“इतना कह कर मैंने मानसी को बिस्तर पर लिटा दिया। मैंने मानसी के घुटनों के नीचे अपने कुहनियां फंसाई और मानसी आगे की तरफ कर दिया। मानसी के चूतड़ और चूत ऊपर उठती चली गयी”।
“टांगें चौड़ी होने के कारण मानसी की चूत का छेद मेरे लंड के बिल्कुल सामने था। एक-दो बार चूत की फांक में लंड थोड़ा ऊपर-नीचे करने से मेरा लंड मानसी की चूत के छेद पर सटीक बैठ गया”।
“मैंने नीचे लेटी मानसी को कंधो को पकड़ा और एक झटका लगाया। मेरा सख्त हुआ पड़ा लंड मानसी की चूत में बिल्कुल अंदर तक चला गया। मानसी की चूत का छेद बिलकुल टाइट था। मेरा खड़ा लंड रगड़ा खाता हुआ मानसी की चूत में बैठा”।
मानसी के मुंह से हल्के दर्द और मजे की एक सिसकारी निकली, “उह पापा आअह पापा”।
“इसके बाद जो मैंने मानसी को जो चोदना शुरू किया, कि फिर मैं नहीं रुका”।
आलोक डाक्टर मालिनी को बता रहा था, “मालिनी जी जिस तरह मानसी नीचे चूतड़ झटका-झटका कर घुमा-घुमा आकर चुदाई करवा रही थी – मेरा लंड चूत के अंदर ले रही थी लग रहा था मानसी को चुदाई का बहुत मजा आ रहा था”।
“चूतड़ हिलाते-हिलाते मानसी सिसकारियां ले रही थी,” आआह पापा आअह आअह पापा बड़ा अच्छा लग रहा है आआह पापा”।
“तभी मानसी ने जोर से चूतड़ ऊपर-नीचे किये और आआआह पापा बोल कर कस कर मुझे पकड़ लिया। मैं समझ गया मानसी की चूत का पानी निकल गया था, और मानसी की चूत झड़ चुकी थी। मानसी को मजा आ चुका था”।