ही फ्रेंड्स, मैं हू 40 साल की पूनम. नाम के अनुरूप मैं पूनम के चाँद की तरह सुंदर हू. मैं चंदन की तरह शीतल हू, और खुश्बुदार हू. मेरे बदन की खुश्बू के दीवाने बहुत है. लेकिन किसी भी दीवाने को आज तक मैने अपने बदन की खुश्बू लेने के लिए बदन से सताया तक नही.
मेरी काया भी कमाल की है. बड़ी-बड़ी गोरी दमकती चूचियो और उभरी हुई गांद के साथ एक-दूं हाइ वोल्टेज सेक्सी काया है मेरी. मदिरा से भारी मेरी आँखें शराब की बंद बोतल के समान है. मेरे रस्स-भरे गुलाबी होंठ जिसके रस्स के लिए तड़प्ते भंवरे मेरे इर्द-गिर्द मंडराते तो है. लेकिन मैने इन मंडराते भँवरो को सताया तक नही.
पर नियती का खेल देखिए. अब 40 की उमर में ऐसी ज्वाला बदन में जागी है, की मैने सब कुछ उस 18 साल के निमोच्चे छ्होरे पर न्योछावर कर दिया. अब मैं कहानी पर आती हू.
उस छ्होरे का नाम कामदेव है. बिल्कुल कामदेव की तरह उसकी काया है, जिस पर कोई भी अप्सरा मॅर-मिट जाए. पुर 06 फीट लंबा एक-दूं सॉलिड बदन वाला है वो. ना गोरा ना काला रंग है उसका. कामदेव के सिर पर उसके काले घुघराले बाल उसको और भी आकर्षक बनाते है.
कामदेव मेरे ही विलेज का लड़का है. आकर्षक देह दृष्टि है उसकी, पर बेचारा ग़रीब मा-बाप की संतान है. 1स्ट्रीट एअर का स्टूडेंट है वो. उसकी मा माया ने कामदेव को मेरे पास रखवा दिया. ये कहते हुए की वो मेरे घर का काम-काज कर देगा, और शहर में रह कर अपनी पढ़ाई भी जारी रख पाएगा.
मैने जब कामदेव को देखा, तो पहली ही नज़र में उस पर मोहित हो गयी. मैं कामदेव को अपने साथ रखने को राज़ी हो गयी. मेरे हज़्बेंड की आज से 20 साल पहले रोड आक्सिडेंट में डेत हो गयी थी. मेरी एक बेटी थी, जिसका नाम था पारी. रिश्तेदारो ने बहुत कहा, पर मैने दूसरी शादी नही की.
साथ ही सती धरम का पालन करते हुए मैने कही किसी से चुडवाई भी नही. मेरी छूट लगभग सूखी पद चुकी थी. पिछले दीनो मेरी बेटी की शादी हुई, और वो मुझसे डोर चली गयी. कामदेव को साथ रखने का फैंसला भी मैने इसी बात को ध्यान में रखते हुए लिया था.
फिर कामदेव मेरे साथ रहने के लिए आ गया. पहले ही दिन से मैं कामदेव पर मोहित थी. कामदेव भी मुझे बार-बार घूरता रहता था. हम दोनो की नज़रे मिलती, और फिर झुक जाती. रात में कामदेव ने खाना तैयार किया. फिर हम लोग साथ बैठ कर खा रहे थे.
इस समय भी हम दोनो की नज़रे टकराती, और फिर झुक जाती. फिर मैं कामदेव से पूच बैठी-
मैं: कामदेव बताओ तो, तुम मुझे बार-बार क्यू घूर रहे हो?
कामदेव बोला: पता नही माँ, मेरी नज़रें बार-बार आपकी कामुक काया की तरफ खीची चली जाती है. जितना मैं अपने आप को रोकने की कोशिश करता हू, उतना ही आपके करीब पहुँच जाता हू.
फिर मैं बोली: मेरे साथ भी यही हो रहा है. मैं पिछले 20 सालो से किसी मर्द की तरफ इतनी आकर्षित नही हुई, जितनी तुम्हारी तरफ हो रही हू.
मेरी बातो से कामदेव को ग्रीन सिग्नल मिला, और अब तक वो जो डोर बैठा था, मेरे और करीब आ गया. फिर वो बोला-
कामदेव : आपके बदन की खुसबु मुझे पागल किए जेया रही है. मेरी सुध-बुध ठिकाने पर नही रह पा रही है. लगता है मैं इस खुसबु में बस डूब जौ.
फिर मैने आयेज बढ़ कर कामदेव को सीने से लगा लिया. मेरी मादक कोमल चूचियों के एहसास ने कामदेव के बचे कुचे होश भी उड़ा दिए. अब बस वो मेरी सुंदरता में डूब जाना चाहता था. और मैने अपने नाज़ुक कोमल बदन को उसकी मज़बूत बाहो में समर्पित कर दिया.
कामदेव मेरे रस्स से भरे गुलाबी होंठो का रस्स अपने लबों से चूस रहा था. मुझे इससे बहुत सुकून मिल रहा था. मेरी बरसो से सूखी पड़ी छूट अब गीली होने लगी थी. बड़ी-बड़ी मेरी चूचियाँ तंन-ने लगी थी.
मैं कामदेव से और छिपकती चली गयी, और कामदेव मेरे होंठो का रस्स पी रहा था. उसके हाथ मेरी चूचियों पर थे. मैं अपनी चूचियों पर कामदेव की उंगलियो के खिलवाड़ से उत्तेजना से भारती चली गयी.
मेरी छूट का रस्स लगातार ताप-ताप कर निकल रहा था. कामदेव ने मेरी नाज़ुक हथेलियो को अपने हाथो में लिया, और अपने कड़कड़ते फुफ्कार रहे लंड पर रख दिया. अब तक मैने लंड को ना तो च्छुआ था, और ना ही देख पाई थी.
विशाल, मोटे और लंबे लंड को हाथो में पा कर मेरा पूरा के पूरा बदन झंझणा गया. क्या मस्त लॉडा था, एक-दूं फौलाद की तरह सख़्त और गुलाबी. फिर कामदेव मेरे जिस्म को नंगा करने लगा. सबसे पहले उसने मेरा ब्लाउस खोला और ब्रा के उपर से चूचियों को रगड़ा.
फिर उसने मेरी चूचियों पर मूह लगाया. इस बीच मैने खुद से अपनी सारी उतार दी. मैं अब पेटिकोट और ब्रा में थी. मेरी अर्धनगन काया का असर ये हुआ, की कामदेव बार-बार अपने कड़कड़ते लंड को पेटिकोट के उपर से ही छूट पर रगड़ने लगा.
मुझे अब असीम सुख का एहसास हो रहा था. कामदेव मेरी ब्रा को खोल रहा था. फिर मैने कामदेव की पंत को उतार दिया. उसके बाद मैने उसके अंडरवेर को भी उतार दिया. अब लंड महाराज साक्षात मेरी महरानी छूट को सलामी दे रहे थे.
मैं अब अपने से आधी उमर के छ्होरे के सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी. मुझे लाज भी नही आ रही थी, और लग रहा था, की कितनी जल्दी ये फौलाद रूपी लॉडा मेरी बर में समा जाए. मेरी चिकनी सपाट छूट जिससे लगातार मदन-रस्स तपाक रहा था, कामदेव के सामने उसके लंड के स्वागत के लिए तैयार थी.
फिर टपकते हुए मदन रस्स का स्वाद चखने के लिए कामदेव नीचे झुका. उसने मेरी छूट पर लवनि की तरह मूह को लगाया, और चाट-चाट कर चाटने लग गया. कामदेव रह-रह कर अपनी जीभ को छूट में घुसेड देता.
जब छूट के अंदर जीभ का स्पर्श ज़्-स्पॉट से होता, तो मैं मस्ती से उछाल पड़ती. कामदेव जो मेरी छूट चाटने में मशगूल था उसको झकझोरते हुए मैं बोली-
मैं: मेरे प्यारे राजा, अब और मुझसे रहा नही जाता. अब सब छोढ़ो, और डाल दो इस कड़कड़ते लंड को मेरी छूट में. एक बार रस्स से भर दो मेरी छूट को. फिर जैसे मॅन करे वैसे छोड़ते रहना. ये रात सिर्फ़ तुम्हारी है.
मेरी बात सुन कर कामदेव को मुझ पर दया आ गयी. फिर उसने मुझे बिस्तर पर चिट लिटाया, और मेरी टाँगो को फैलाया. उसके बाद वो मेरी दोनो टाँगो के बीच बैठ कर अपना लॉडा मेरी बर पर रगड़ने लगा. वो लॉडा बर पर रग़ाद रहा था, और रगड़ते-रगड़ते लॉडा बर की दरार पर आ गया.
तभी मैने नीचे से गांद उछाल दी, और उसका लॉडा घाप से मेरी बर के अंदर चला गया. ठीक उसी वक़्त कामदेव ने अपने लंड को नीचे दबाया, और पूरा का पूरा लॉडा मेरी बर में समा गया. कितना मज़ा मिल रहा था मुझे उस पल में, मैं शब्दो में बयान नही कर पौँगी.
मैं तो अपनी सभी छूट वालीयो से कहूँगी, की रानी छुड़वा के देख ले कितना मज़ा है. जब लॉडा बर में हो, मूह में जीभ हो, और चूचियों पर आशिक़ का हाथ हो, तब तो जन्नत कही और नही है. तब जन्नत इसी बिस्तर पर ही है.
अब कामदेव मुझे हौले-हौले छोड़ रहा था. मुझे बड़ा मज़ा मिल रहा था, लेकिन मेरी आत्मा कह रही थी.
आत्मा: रानी हौले-हौले मॅट छुड़वा. घोड़े को चाबुक लगा, साला ज़ोर से दौदेगा. फिर देखना उसमे कितना मज़ा है.
फिर मैने अपनी अंतर-आत्मा की आवाज़ पर अमल किया, और कामदेव को बोली-
मैं: अर्रे मादरचोड़, तुझे छोड़ना नही आता क्या? धुकुर-धुकुर मॅट कर, और कस्स-कस्स के ठोकर मार कर छोड़. ये दिन मेरे नसीब में पुर 20 साल बाद आया है.
मेरी बात सुन कर कामदेव को ताव आ गया, और लगा वो ढाका-धक पेलने मेरी छूट को. कामदेव ढाका-धक छोड़ रहा था मुझे, और मैं गांद उछाल-उछाल कर मस्ती से छुड़वा रही थी. कामदेव ने पुर आधे घंटे तक मेरी बर को छोड़ा.
इस आधे घंटे में मैं 02 बार चरम सुख को प्राप्त कर गयी थी. कामदेव अब पूरी ताक़त से मुझे जकड़े हुए फ़चा-फॅक छोड़ रहा था. अब उसका लंड छोड़ते-छोड़ते फूल कर 1.5 गुना ज़्यादा मोटा हो गया था. और मेरी छूट सिकुड कर छ्होटी हो गयी थी.
मोटे लंड और सिकुड़ी छूट में जुंग जारी थी. लेकिन लंड महाराज तक कर अब पसीने-पसीने हो चुके थे. छूट महारानी भी लंड महाराज की फुहार के लिए तैयार थी. फिर कामदेव आ आ करता हुआ छूट के अंदर ही झाड़ गया.
मैं असीम सुख को पा कर गहरी निद्रा में चली गयी. जब मेरी आँख खुली, तो मैने देखा कामदेव मेरी बर को चाट रहा था. अब मेरी ज़िंदगी में बहार ही बहार है. कोई भी दिन ऐसे नही गुज़रता, जब चुदाई का खेल ना हो.
आज की कहानी बस यही तक दोस्तो. अपनी मस्त चुड़क्कड़ पुष्पा को दीजिए इजाज़त. थॅंक्स फॉर रीडिंग.