इसी कहानी की पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा, की कैसे एक शैतान जिसने अपना नाम सपान बताया था मेरी छूट को छोड़-छोड़ कर भोंसड़ा बना दिया. मुझे मज़ा तो बहुत आया था, पर मैं दररी हुई थी. अब आयेज की कहानी पढ़िए.
आज मैं अपनी ड्यूटी से लौट कर अपने बेड पर पड़ी कल की घटनाओ को भूलने की कोशिश कर रही थी. मैं लेते-लेते नेट सरफिंग भी कर रही थी. उसी वक़्त सपान ने मेरे बेड के बिल्कुल करीब आ कर मुझे हेलो किया. मैं सपान को देख काफ़ी हैरान हुई, और तीखे लहजे में बोली-
मैं: आज फिर तुम आ गये?
सपान मुस्कुराता हुआ बोला: तेरी छूट में ग़ज़ब का मज़ा है रानी. अब मैं तुझे भुला नही पौँगा. और तुम भी मुझे मत भुलाओ. तुम्हे चुदाई का सब सुख दूँगा. मैं फटकार्टे हुए बोली: मुझे तेरी ज़रूरत नही है. चले जाओ तुम.
सपान बोला: मैं जाने के लिए नही आया हू. मैं तो तुझे अब छोड़ कर ही जौंगा.
मैं बोली: मैं शोर मचा दूँगी.
सपान बोला: कोई फ़ायदा नही है, बस बर पसार कर छुड़वा ले रानी. क्यूँ नखरे कर रही है.
ये कहते हुए सपान मुझसे बिल्कुल सात कर बैठ गया. उसने मेरे गालों को च्छुआ, लेकिन मैं कुछ नही बोली. फिर मैने उससे पूछा-
मैं: दरवाज़ा बंद है, तुम अंदर कैसे आए?
सपान ने मेरे गालों को चूमा और बोला: मेरे लिए कोई दरवाज़े बंद नही होते. चल प्यार कर प्यार.
ये कहते हुए सपान ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए, और बड़ी ही कामुकता से मेरे रसीले गुलाबी होंठो को चूसने लगा. मेरे अंदर कामुकता का ज़ोरदार संचार हुआ, और मैं भी काम-क्रीड़ा में टल्ली हो गयी होंठो को चूस्टे हुए.
सपान ने मेरी चूचियों पर हाथ रख दिया. मैं सर से लेकर पावं तक झंझणा गयी. मैं सब भूल गयी की सपान आदमी नही शैतान था. अब मैं बस खुल कर छुड़वा लेना चाहती थी, और इसी सोच को आयेज बढ़ते हुए मैने सपान की पंत उतार दी.
सपान का विशाल, लंबा, मोटा, मस्त लंड मेरी आँखों के आयेज उछालने लगा. मैने घाप से लंड हाथ में ले लिया, और लंड को सहलाने लगी. सपान भी कहा पीछे रहने वाला था. उसने मेरी टॉप उतारी, और मेरी मस्त-मस्त चूचियाँ आज़ाद हो कर हवा में फुदकने लगी.
गोरी-गोरी गोल तराशि चूचियों को देख कर सपान का सबर टूट गया. उसने मेरी एक चूची मूह में ली, और दूसरी को हाथ से हौले-हौले सहलाने लगा. मेरी मस्ती मुझे झकझोरने लगी. पुर बदन में सुरसुरी सी होने लगी.
अब मैं ज़्यादा से ज़्यादा सपान का स्पर्श फील करने लगी. सपान ने भी मेरी भावनाओ को परखा, और सेक्षुयल टच दिया. वो मेरे पेट और नाभि से होते हुए छूट तक हाथ फिरने लगा. मैं धीरे-धीरे मदहोश होते जेया रही थी. मेरे मूह से बरबस ही सिसकारी के साथ आ श आ श निकालने लगा.
मेरी उत्तेजना बढ़ती गयी, और धीरे-धीरे मेरी छूट गीली होने लगी. मैं फील कर रही थी अपनी छूट के गीले-पन्न को. जैसे-जैसे मेरी छूट गीली होती गयी, मैं लंड पर हॅंजब की रफ़्तार को बढ़ती गयी.
सपान इतनी तेज़ हॅंजब से सिसकारने लगा. उसका लॉडा फूल कर गुब्बारा बन गया था. वो लगातार आ आ आ करके मस्ती ले रहा था. बड़बड़ा भी रहा था वो-
सपान: तेरे हाथो में तो जादू है रानी. जादू चलाओ अपना, और तेज़ चलाओ. आहह गया मैं गया.
ये बोलते हुए सपान ने पूरी मज़बूती से मुझे अपनी आगोश में बाँध लिया. हर पल में उसका बंधन मज़बूत होता जेया रहा था. फिर आ आ के साथ सपान के लंड से तेज़ फुहार छ्छूट पड़ी, जिसकी बूंदे सामने दीवार पर पद रही थी.
सपान को तो मैं झाड़वा चुकी थी, पर मेरी बर तो प्यासी ही रह गयी. जिन बूँदो को मेरी बर में जाना था, वो दीवार पर चली गयी थी. मैं अब भी लंड को हिलाए जेया रही थी. बस एक ही मिनिट लगा, और उसका लोड्ा फिरसे तमतमा कर मेरी बर को सलामी देने लगा.
सपान ने हल्के से मेरी हथेली को लंड से हटाया, और मुझे गोद में उठा कर बेड पर लिटाया. उसने मेरी टाँगो को फैलाया, और दोनो टाँगो के बीच में बैठ कर लोड को बर पर रगड़ने लगा. रगड़ते हुए लोड्ा एक बार बर की दरार में फ़ासस गया.
फिर क्या था, खच से लोड को सपान ने मेरी बर के अंदर धकेल दिया. फौलाद की तरह सख़्त लोड्ा बर को चीरता फाड़ता सनसानता हुआ अंदर चला गया. मुझे परम सुख की अनुभूति हुई. ऐसा लगा जैसे मैं जन्नत में आ गयी थी.
वास्तव में बर में लोड्ा हो, मुट्ठी में चूचियाँ हो, मुख में जीभ से जीभ टकरा रही हो, इससे बड़ा सुख शायद ही इस जगत में है. सपान ढाका-धक मुझे छोड़ रहा था. मैं गांद उछाल-उछाल कर मस्ती से छुड़वा रही थी.
मैं ये भूल गयी थी, की सपान मनुष्या नही शैतान था. धमाकेदार चुदाई अपने चरम पर थी. मैं मस्ती में आ श कर रही थी. सपान उछाल-उछाल कर मेरी बर की तबाद-तोड़ ठुकाई कर रहा था, और इसी वक़्त मेरे साथ काम करने वाली मेरी सहेली मधु आ गयी.
हम लोग तो अपनी मस्ती में धमा-धाम छुड़वा रही थी. कुछ देर निहारने के बाद मधु बोली-
मधु: अर्रे क्या बात है पुष्पा, बड़ा ही सुंदर छ्होरा पटाया है तूने. तू तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली.
ऐसे तो मधु के साथ मैने बहुत बार चुडवाई थी. फिर भी मुझे संकोच लगा, और मैं हिचकिचाते हुए बोली-
मैं: मधु, तुम कब आई?
वो बोली: मैं तब आई जब तेरी चुदाई पुर शबाब पर थी.
मैं: ओह-हो चल तू आ गयी है. तो छ्होरे के मस्त लंड का मज़ा तू भी ले ले.
मधु बोली: छ्होरे को देख मेरी तो लार टपकने ही लगी है.
वो सपान की तरफ मुखातिब होके बोली: क्यूँ रे छ्होरे, तेरा लंड हम दोनो सखियो की छूट की गर्मी मार पाएगा या नही?
सपान बोला: बिल्कुल मारेगा.
मधु: चल फिर तोड़ा मेरी छूट में भी डाल मस्ताने लोड को.
ये कहते हुए मधु अपने सारे कपड़े उतार के बगल में लेट गयी. सपान ने लोड्ा मेरी बर से बाहर खींचा, और मधु की छूट में डाल दिया. मैं सपान से बोली-
मैं: ऐसे नही देखो. जब तू मेरी छूट छोड़ रहा होगा, तब मधु की बर को जीभ से चाटना. और जब मधु को छोड़ रहा होगा, तब मेरी बर चाटना.
इसी तरह घनघोर चुदाई चलती रही. हम लोग आ आ करते रहे. दो-दो बर छोड़ते हुए सपान का गांद फटत गयी. उसके लंड में ज़रा भी रस्स नही बचा था. दो-दो बर की मार पड़ी, और सपान सारी शैतानी भूल गया. आख़िर-कार इसीलिए ही तो कहा गया है हुस्न की मार बुरी है.
सपान मुझे और मधु को पूरी तरह पेल कर जेया चुका था. मैं और मधु बिना कपड़ो के आजू-बाजू में लेते थे. आज की कहानी बस यही तक मेरे दोस्तों. कहानी से रिलेटेड कॉमेंट मुझे यहा देना