ही फ्रेंड्स, मैं हू 36 साल की मनोरमा. मेरी मस्त गडरल जवानी पुर शबाब पर थी. मैं अपने पति के साथ शहर में रहती थी. मेरे पति प्राइवेट कंपनी में जॉब करते थे. अची सॅलरी थी उनकी, और हम सुखमय जीवन काट रहे थे.
मेरा पति बांका जवान करीब 38 साल का था. हम लोगो का कोई दिन और कोई रात ऐसी नही गुज़रती थी, जिस दिन हम लोग चुदाई ना करते हो. मेरे पति तो छोड़ते भी बहुत मज़ेदार थे. मैं उनकी चुदाई से बेहद संतुष्ट थी.
रात में सोते समय लगभग रोज़ हम लोग कम से कम टीन बार चुदाई करते थे. फिर दिन में वो लंच के लिए आते तो बिना बर छाते वो काम पर नही जाते थे. पिछले साल जन्वरी की बात है. वो लंच के लिए घर आए थे.
फिर लंच के बाद अपना लंड मेरी गांद में सताते हुए बोले-
पति: आ मेरी रानी, थोड़ी छुड़वा ले. फिर ड्यूटी जौंगा.
ये कहते हुए उन्होने मुझे अपने सीने में सता लिया. अब मेरी चूचियाँ उनके सीने में चिपकी हुई थी, और मैं आनंदित हो रही थी. फिर वो मेरे होंठो को चूमने लगे. वो मेरे लाल गुलाबी होंठो का रस्स-पॅयन करने लगा.
होंठो को चूस्टे हुए वो मेरी चूचियों को सहलाने लगे, और मूह से चूमने लगे. मैं अब काफ़ी गरम हो चुकी थी. मैं उनके लंड को हाथ में लेके सहलाने लगी. पति का मोटा विशाल लंड फंफना कर मेरी छूट का अभिवादन करने लगा.
मेरी छूट ने भी लंड के स्वागत के लिए पानी की बौछार कर दी. छूट से पानी गिरते देख मेरे पातिदेव अपने को रोक ना पाए, और बर पर मूह लगा कर जीभ से चत्तर-चत्तर चाटने लगे. वो बर चाट भी रहे थे, और रह-रह कर जीभ को बर में घुसेध देते.
मैं इससे मस्ती से उछाल पड़ती. फिर मैं बोली-
मैं: अब देर ना करो जानू, रहा नही जेया रहा है.
मेरे पातिदेव को शायद मुझ पर तरस आ गया. उन्होने देर नही लगाई, मुझे बेड पर चिट लिटाया, बर पर लोड्ा सेट किया, और खच से लोड को बर में घुसेध दिया. लोड्ा बर में गया, और मुझे जन्नत मिल गयी.
मेरे पातिदेव अब ढाका-धक मेरी बर छोड़ रहे थे. मैं उछाल-उछाल कर छुड़वा रही थी. मुझे छूट चुड़वते मॅन भर गया था. अब मैं कुटिया बन कर छुड़वाना चाह रही थी. मेरे पति ने मुझे कुटिया बनाया, और खुद कुत्ता बन गया.
फिर वो चढ़ गया मेरी गांद पर. वो अपने फौलादी लंड का प्रहार मेरी गांद पर करने लगा. लोड्ा निशाने पर बैठ नही रहा था. लोड का धक्का बर के च्छेद की बजाए कभी गांद पर ठोकर मार देता, तो कभी मूत्रनल पर. ऐसा होने से मुझे हस्सी आ रही थी.
आख़िर में पातिदेव को सफलता मिली, और लोड्ा बर में घुसने में कामयाब हो गया. उसके बाद शुरू हुई धककपेल चुदाई. मैं हर धक्के पर आ आ करती. मेरे मूह से निकलता-
मैं: हाए मोरे राजा, कितना मज़ा दे रहे हो. आ आ चोदो, और चोदो मोरे राजा.चुड़वते-चुड़वते बर सिकुड कर छ्होटी हो गयी, और उसके उलट लोड्ा फूल कर और भी मोटा हो गया. अब बर में लोड्ा बिल्कुल कॅसा हुआ आ-जेया रहा था. पातिदेव छोड़ रहे थे, और हाँफ रहे थे. उनके मूह से भी आ आ निकालने लगी. साथ में वो बोलते-
पति: हाए मेरी रानी, कितनी प्यारी है तेरी छूट. मैं गया, मैं गया आह..
और मैने फील किया बर में गरमा-गरम रस्स फुहार की तरह गिरा. मेरी छूट भी साथ-साथ झाड़ गयी. पातिदेव साइड में लूड़क गये. मुझे भी पता नही कब नींद आ गयी. सोए में ही फोन की घंटी बाजी. मैने फोन देखा, तो इनके बॉस का फोन था.
04 बाज चुके थे. ये जल्दी-जल्दी में ड्यूटी पर निकल गये. हड़बड़ाहट में पातिदेव का आक्सिडेंट हो गया. बहुत कोशिश के बाद भी उन्हे बचाया नही जेया सका. मुझ पर तो बिपत्टि के पहाड़ टूट पड़े.
मैं फिर अपने माइके आ गयी. जैसे-तैसे एक साल गुज़ारा. फिर परिजनो ने मेरी शादी 58 साल के बीसुंदेब जी से करवा दी. बीसुंदेब का छ्होटा सा परिवार था. उसका सिर्फ़ एक बेटा था परिमल, जो करीब 22 साल का था.
वो गूवरमेंट जॉब कर रहा था. मैं शादी करके बीसुंदेब के घर आ गयी. उस दिन घर में परिमल नही था. रात में बीसुंदेब ने मुझे चूमना चाटना शुरू किया. मैं भी पुर उत्साह से बीसुंदेब का साथ दे रही थी.
चूमते चाट-ते बीसुंदेब मेरी चूचियों से खेलने लगा. मैं अब काफ़ी गरम हो गयी थी. फिर मैने बीसुंदेब के लंड को हाथ में ले लिया. लंड लंबा और मोटा तो था. लेकिन उसमे सख्ती नही थी. बीसुंदेब ने किसी तरह लंड बर में घुसाया.
अभी एक-दो धक्के ही लगाए थे, की बीसुंदेब का लंड जवाब दे गया. लंड से पानी गिरा, और लंड शांत हो गया. मैं तड़पति रह गयी. मैं फिर भी खुश थी, की चलो अमन चैन तो है. चुदाई नही थी, तो ना सही. लेकिन ज़्यादा समय का अमन चैन भी नही रहा.
परिमल अपने बाप की शादी से बिल्कुल खुश नही था. सो उसने घर में पैसा देना बंद कर दिया. वो घर भी नही आ रहा था. अब बीसुंदेब काफ़ी परेशन हो गया था. बीसुंदेब तो कुछ करता नही था, और घर का सारा खर्च परिमल ही उठता था.
फिर बीसुंदेब बेटे को मानने गया, और परिमल को लेकर घर आ गया. मैं परिमल को पहली बार देख रही थी. वो लंबा, हॅंडसम, और स्मार्ट युवक था. मैने परिमल को जब देखा, तो देखती ही रह गयी. यही हाल परिमल का भी था.
उसने भी मुझे देखा, और देखता ही रह गया. मैं देख रही थी, की बीसुंदेब की आँखें हम दोनो को देख कर चमक गयी. फिर उसी ने तंद्रा भंग की और बोले-
बीसुंदेब: बेटे के लिए कुछ बनाओ.
मैं जैसे ही नींद से जागी, तो हा-हा बोल कर किचन में चली गयी. उस रात बीसुंदेब घर से बाहर चला गया था. घर में मैं और परिमल ही थे. फिर क्या था, सूना घर और दो बिपरीत सेक्स के लोग. चुंबक के दो ध्रुव जैसे खीछे चले जाते है, ठीक उसी तरह मैं और परिमल आपस में सतत गये.
परिमल ने मुझे चूमना चाटना शुरू किया. मैं भी अपना सारा प्यार परिमल पर उधेल रही थी. परिमल मेरी चूचियों को सहलाने लगा. अब मुझे असीम सुख की प्राप्ति हो रही थी. धीरे-धीरे परिमल ने मेरे सारी, ब्लाउस, पेटिकोट सब उतार दिए.
अब खुले मैदान में मेरी बर और परिमल का लंड जुंग के लिए एक-दूं आमने-सामने थे. फिर मैने लंड को अपने नाज़ुक हाथो से पकड़ा. लगभग 08″ लंबा, और 04″ मोटा लोड्ा मेरी नाज़ुक हथेलियों में समा नही रही था.
उसका लोड्ा बिल्कुल तंन के खड़ा फंफना रहा था. मैने हाथो से बड़े ही प्यार से लंड को सहलाया. परिमल उत्तेजना में उछाल पड़ा, और उसने मेरे नंगे बदन को गोद में उठाया. फिर वो मुझे बेड पर ले आया.
बेड पर उसने मुझे सीधा चिट लिटा कर मेरी टाँगो को फैलाया, और मेरी दोनो टाँगो के बीच बैठ कर बर को बड़े ही प्यार से निहारने लगा. मुझे थोड़ी शरम आ गयी, और मैं उसको बोली-
मैं: जल्दी से डाल अपने लंड को मेरी बर में.
फिर परिमल ने बर के मुहाने पर लंड को रखा. उसके बाद उसने थोड़ी रग़ाद मारी, और फिर पूरी ताक़त से लोड्ा बर में धकेल दिया. फौलादी लोड्ा बर की सभी दीवारो को चीरता फाड़ता सन-सानता हुआ बर में समा गया.
मेरी छूट ने इतने लंड खाए हुए थे, फिर भी मैं चहक उठी. मेरे मूह से दर्द भारी आ निकल पड़ी. लोड्ा पूरी तरह बर में समाया हुआ था. परिमल ढाका-धक बर छोड़ रहा था. मैं भी गांद उछला-उछला कर लंड को घपा-घाप ले रही थी.
परिमल की तूफ़ानी स्पीड मुझे जन्नत की सैर करवा रही थी. मैं आ आ करते हुए बोल रही थी-
मैं: बहुत मज़ा आ रहा है. छोड़, ज़ोर से छोड़ो मेरे लाल, ज़ोर से छोड़. तेरा लोड्ा बड़ा धांसु लग रहा है. कस्स के छोड़ो कस्स के. मार धक्का ज़ोर से, मार धक्का.
मैं उछालती जेया रही थी, और मस्ती से चुड़वति जेया रही थी. परिमल का लोड्ा छोड़ते-छोड़ते फूल गया था. उसके उलट मेरी बर सिकुड गयी थी. परिमल मुझे काससे जेया रहा था. उसकी पकड़ अब काफ़ी मज़बूत हो गयी थी.
फिर वो बोला: आ आ कितनी अची और प्यारी है तेरी छूट.
ये कहते हुए उसने आ आ करके गरमा-गरम माल मेरी बर में छोढ़ दिया. साथ में मैं भी आ आ के साथ झाड़ गयी. परिमल शांत हो कर एक तरफ लूड़क गया था. मैने संपूर्ण संतुष्टि को प्राप्त कर लिया था.
मेरी और परिमल की चुदाई हुई और सब कुछ सामानया हो गया. परिमल कमाई को पूरा पैसा मुझे देने लगा, और हम लोग अमन चैन से रहने लगे. आज की कहानी बस यही समाप्त होती है. मेरे प्यारे दोस्तो, थॅंक्स कहानी को पढ़ने के लिए. मुझे यहा पर अपना कीमती फीडबॅक ज़रूर देना आप सब.