अंकल चित्रा के साथ पूरी बेशर्मी वाली बातें करने लग गए थे। अंकल ने तीन पेग शराब के लगाए और चित्रा की अगली चुदाई के लिए तैयार हो गए। अंकल चित्रा के ऊपर आये। अंकल ने अपनी कुहनियां चित्रा के घुटनों के नीचे डाल दी, और ऊपर की तरफ होने लगे। चित्रा की चूत खुद-बा-खुद ऊपर उठने लगी। जब अंकल पूरा ऊपर हो चुके तो चित्रा की चूत भी पूरी ऊपर उठ चुकी थी, और अंकल का लंड बिल्कुल चित्रा की चूत के छेद के ऊपर था।
अंकल दो सेकंड के लिए रुके, फिर उन्होंने एक जोरदार झटका लगाया और पूरा का पूरा लंड चित्रा की चूत के अंदर बैठ गया। अब आगे-
चित्रा बता रही थी, “राज, मेरी जबरदस्त चुदाई हो रही थी। चुदाईयों की गिनती तो मैं भूल ही चुकी थी। पता नहीं कितनी बार मुझे मजा आ चुका था। अब तो मैं सच में ही थक चुकी थी। पूरा जिस्म टूट रहा था। मन कर रहा था कि अंकल का लंड पानी छोड़े और अंकल आज की चुदाई खत्म हो।”
“जल्दी ही अंकल का भी झड़ने वाला हो गया। इधर लंड की इस रगड़ा-पच्ची से मेरी चूत दुबारा गर्म हो चुकी थी। मेरे मुंह से भी अनजाने में निकल गया, “अंकल लगाओ। अब निकलेगा मेरा, दबा कर लगाओ। अंकल और भर दो मेरी चूत लंड के पानी से।” मेरी चूत किसी भी पल पानी छोड़ सकती थी। मेरे चूतड़ अपने आप ही ऊपर नीचे होने शुरू हो गए।”
“उधर अंकल लंड के धक्के लगाते हुए बोलते जा रहे थे, “ले चित्रा, अब भरूंगा तेरी फुद्दी आह, मजा आ गया आज की चुदाई का। आअह चित्रा, रोज चोदूंगा तुझे ऐसे ही। आअह चित्रा जब तक तू चाहेगी तब तक चोदूंगा। लंड की कमी नहीं होने दूंगा तुझे। चित्रा निकला मेरा आआह, निकला तेरी फुद्दी में आआह, चित्रा, ले, ले चित्रा। आह, आह आह और अंकल ने ढेर सारी गर्म मलाई मेरी चूत में डाल दी।”
“जैसे ही अंकल के लंड से पानी निकल कर मेरी चूत में गया, मुझे भी जन्नत का सा मजा आ गया। अंकल थोड़ी देर ऐसे ही मेरे ऊपर लेटे रहे। जैसे ही अंकल का लंड ढीला हुआ अंकल ने लंड मेरी चूत से निकाल लिया, और मेरे ऊपर से उठ गए। इसके बाद अंकल पहले की तरह मेरे पास लेटे नहीं। अंकल उठे, कपड़े उठाए ,लाइट जलाई, और बिना कुछ बोले बाथरूम में चले गए।”
“मतलब उस रात की चुदाई या कह लो चुदाईयां खत्म हो गयी थी। क्या मस्त सुहागरात हुई थी मेरी। अंकल का लंड गांड के छेद में ही नहीं गया था, बाकी मुंह, चूत, सब में गया था। चुसाई चटाई की तो बात ही मत पूछो, कैसी-कैसी और कितनी हुई। ऐसी सुहागरात तो अगर युग चुदाई करने लायक होता, तो उसके साथ भी ना होती। अंकल शायद तीन बार पानी छोड़ चुके थे, मेरी चूत के मजे की तो कोइ गिनती ही नहीं रही थी। लेकिन मैंने सच में शुक्र मनाया की उस रात की चुदाई खत्म हो गयी थी।”
“मैं भी उठी, और कपड़े उठा कर अपने कमरे में चली गयी। घड़ी पर नजर पड़ी तो एक बजने वाला था। मतलब चार घंटे अंकल ने चूत रगड़ी थी मेरी। चार घंटे की चुदाई, चुदाई क्या थी अच्छी खासी रगड़ाई थी। इतना सोचने भर से ही मेरी चूत ने फुर्र से फिर पानी छोड़ दिया।”
“चाची ना जाने कब की सोने जा चुकी थी। मैं बाथरूम गयी और गर्म पानी से नाहने के बाद आयी और सो गयी।”
— चाची से चित्रा का आमना-सामना
“चार घंटे तक हुई ताबड़-तोड़ चुदाई की थकान के कारण लेटते ही नींद आ गयी और सुबह ग्यारह बजे मेरी जाग खुली। अंकल फार्म पर जा चुके थे। चाची जाने के लिए तैयार बैठी थी, बस मेरे जागने का इंतजार ही कर रही थी। जैसे ही मैं चाची के पास गयी, चाची ने फिर वही सवाल किया, “आज कैसी है मेरी बन्नो? बड़ी देर तक सोई तू तो।” मतलब वही था, “आज कैसी चुदी मेरी बन्नो?”
“मैंने फिर से अंगूठे और तर्जनी उंगली से जीरो का निशान बनाया मगर साथ ही बाकी की तीन उंगलियां भी उठा दी, “ऐसी है आज आपकी बन्नो।” मतलब साफ़ था, “आज मस्त चुदी आज आपकी बन्नो।”
“साथ ही मैंने बोल दिया, “चाची, नौ बजे की अंदर गयी मैं और एक बजे कमरे से बाहर निकली।”
“चाची हैरानी से बोली, “क्या कह रही है चित्रा? चार घंटे? चार घंटे अंदर ही रही तू?” फिर पता नहीं चाची ने कैसे पूछ लिया, या अनजाने में ही चाची के मुंह से निकल गया, “चार घंटे? चार घंटे क्या करती रही तू अंदर?”
“लगता है चाची भी वही सोच रही थी जो अंकल के कमरे में जाने से पहले मैंने सोचा था। कि अंकल युग के गांडूपने के कारण एक जिम्मेदारी समझ कर मेरी चुदाई करेंगे। अपना लंड खड़ा करके मेरी चूत में डालेंगे, लंड के धक्के लगाएंगे, और मेरा पानी छुड़ा कर मुझे चुदाई का मजा दे देंगे। और बस, ये हो गयी मेरी चुदाई और मैं दस पंद्रह मिनट या हद हुई तो आधे घंटे में चूत चुदवा कर और चूत का पानी छुड़वा कर अपने कमरे में वापस आ जाऊंगी।”
“अब चाची से शर्माने वाली बात तो थी नहीं। चाची भी जानती थी कि मैं अंदर क्या करने गयी थी, और मैं तो जानती ही जानती थी कि मैं क्या करने गयी थी। मैंने भी कह ही दिया, “चाची चार घंटे वही होता रहा जिसके लिए आपने मुझे अंकल के पास भेजा था। सच में कमाल का दम है इस उम्र में भी आपके भाई में। मुझे तो अब तक भी विश्वास ही नहीं हो रहा कि अंकल ने चार घंटे मेरे साथ ये कुछ किया।”
“चाची के साथ ये बातें करते-करते मेरी आंखों के आगे रात को हुई मेरी ताबड़-तोड़ चुदाई घूम गयी और मेरी चूत में फिर से खुजली मच गयी। मैंने सलवार के ऊपर से चूत खुजलाई और ये चाची से छुपा नहीं रहा। चाची का चेहरा शर्म से लाल हो गया। चाची बिना मुझसे नजरें मिलाये बोली, “अच्छा चित्रा मैं चलती हूं। मेरी टेंशन खत्म हो गयी। आज मैं भी चैन की नींद सोऊंगी। तू युग के साथ देखना क्या हो सकता है। कुछ होता है तो मुझे बताती रहना।”
“ये बोल कर चाची ने पर्स में से गोलियों के दो पैकेट निकाले और बोली, “ये ले, जिस दिन देस के पास जाए उससे अगले दिन खा लेना। युग के साथ अगर कुछ हो जाता है तो खाने की जरूरत नहीं।” मैं समझ गयी ये बच्चा ना ठहरने वाली गोलियां थीं।”
“ये कहानी सुना कर चित्रा चुप हो गयी। चित्रा और अंकल की चुदाई सुन कर मेरा लंड फिर खड़ा हो गया। मेरी पैंट का उभार और ये चित्रा से छुपा नहीं रहा। चित्रा बोली, “क्या हुआ राज, लगता है तुम्हारा तो खड़ा हो गया है, क्या करूं? चूस कर निकाल दूं?”
मैंने कहा, “नहीं चित्रा रहने दो, तुम्हारी चुदाई ही इतने गर्मा गर्म थी कि लंड खड़ा हो गया। वैसे तो सच में ही है तो हैरानी की बात ही, कमाल का चोदा तुम्हें अंकल ने इस उम्र में भी?”
— चित्रा की आने वाले दिनों की चुदाईयां
चित्रा बोली, “हां राज, कमाल का तो चोदा, मगर मेरी चुदाई का असली कमाल इस चुदाई के बाद आने वाले दिनों में होना शुरू हुआ।”
मेरी हैरानी की सीमा नहीं रही। इससे भी ज्यादा चुदाई और क्या हो सकती थी। पहली चुदाई मैं ही अंकल ने चित्रा की चूत का पानी पता नहीं कितनी बार निकाल दिया था। आगे से, पीछे से, मुंह में लंड, चूत में लंड। हर तरह की चुसाई-चुदाई तो हो गयी थी। अब क्या रह गया था?
मैंने चित्रा से पूछा, “चित्रा इतनी तो जोरदार तुम्हारी चुदाई हुई, और तुम कह रही हो असली कमाल बाद की चुदाईयों में हुआ? ऐसा भी क्या हुआ बाद वाली चुदाईयों में?”
चित्रा बोली, “राज इसके बाद की चुदाईयां हुई तो ऐसी ही मगर जो सब से बड़ी बात हुई वो ये हुई कि सब की सब चुदाईयां रोशनी में होने लग गयी। जलती लाइट की रोशनी में लंड, चूत, गांड देखने का मजा ही अलग होता है। और इन चुदाईयों के बीच में मैं और अंकल इक्क्ठे बाथरूम जाने लग गए। और राज जो कुछ बाथरूम में जा कर अंकल मेरे साथ करते हैं और मुझसे करवाते हैं, वो तो समझो सोने पर सुहागे वाली बात होती है।” इस बात पर चित्रा फिर हंस पडी।
चित्रा बता रही थी, ” पहले रात वाली चुदाई के टाइम चाची घर पर थी। कमरे का दरवाजा मैंने बंद कर दिया था। अब जो चुदाई होती है उसमें पूरे घर में खाली मैं और अंकल होते हैं। चुसाई-चुदाई, हर काम खुल कर होता है। लाइटें जल रहीं होती थी। दरवाजा तो जैसे हम भूल ही चुके हैं कि कमरे का कोइ दरवाजा है भी या नहीं। अंदर चुदाई हो रही होती है और सिसकारियों की आवाजे पूरे जोर-शोर से बिना किसी डर के निकलती हैं और पूरे घर में गूंजती हैं।”
“जैसे अंकल मेरे चूतड़ों का छेद चाटते हैं, वो अपने आप में कमाल होता है। चाटते हुए जोर-जोर से मुंह से ऊंह चित्रा ऊंह चित्रा की ऐसी ऐसी आवाजें निकालते हैं की मस्ती आ जाती है।”
“कभी कहते हैं, “चित्रा चूतड़ ढीले छोड़ो, मैंने जुबान अंदर डालनी है। कभी कहते हैं, “चित्रा आज अपनी चूत का रस पिलवाओ।”
“पहले तो मुझे शर्म सी आती थी कि अंकल ये सब क्या बोल रहे थे, मगर अब तो मुझे भी मजा आने लग गया है, मैं भी बेशर्म हो गई हूं। जब कभी मेरा मन चूत चुसवाने या गांड चटवाने का होता है, मैं ही बोल देती हूं, “क्या बात है अंकल, आज चूत का रस नहीं पीना, आज चूतड़ों में जुबान नहीं डालनी?”
“जैसे अंकल मेरी चूतड़ों का छेद चाटते हैं वैसे ही कभी-कभी अंकल मुझसे अपने चूतड़ों का छेद चटवाते हैं। इस चूतड़ों के छेद चाटने चटवाने का तो मुझे चस्का ही लग गया है। इसके बिना तो चुदाई अधूरी लगने लगी है। बेड के किनारे लिटा कर जब अंकल ये चुसाई कर रहे होते हैं तो कभी-कभी तो एक टक अंकल मेरी चूत या चूतड़ों का छेद देखते रहते है, और साथ मेरी चूत का दाना अंगूठे से रगड़ते रहते हैं।”
“शर्म तो कब की खत्म हो चुकी है। कभी जब अंकल का मन करता है कह देते हैं, “चित्रा आज मुंह में ही निकालना है।”
“मैं भी कह देती ठीक है अंकल, बताईये आपने लेटना है, या मैं लेटूं? चलिए चूस कर हल्का करती हूं अपना लंड।”
“कभी अंकल कहते हैं, “चित्रा आज लंड की मुट्ठ मार कर पानी निकालो, तुम्हें लंड का पानी चाटते हुए देखने का मन है। ये कह कर अंकल सोफे पर बैठ जाते हैं। मैं सामने फर्श पर बैठ अंकल के लंड की मुट्ठ मारती हूं और अंकल “आआह चित्रा आअह चित्रा बोलते हुए मुझे लंड की मुट्ठ मारते देखते रहते हैं।”
“जब अंकल को मजा आता है और अंकल का लंड पानी छोड़ता है तो जैसे-जैसे उनके लंड से पानी की बूंदें निकलनी शुरू होता है मैं चाटती जाती हूं। अंकल “आअह चित्रा मजा आ गया। आआह चित्रा ऐसे ही चाटो”, बोलते रहते हैं।
“जब मेरा मन पीछे से कुतिया की तरह चुदवाने का होता तो मैं बोल देती, “अंकल आज पीछे से चोदो। राज, सब से ज्यादा मजा मुझे अंकल से इस तरह चुदवाने में आता है। एक तो पूरा लंड चूत के अंदर तक जाता है। और जब अंकल पूरा लंड बाहर निकाल कर अंदर डालते है तो अंकल के ये बड़े-बड़े मोर के अंडों जैसे टट्टे”, चित्रा ने हथेली गोल करके टट्टों का साइज़ बताया, “मेरी चूत से टकराते है और ठप्प-ठप्प की मस्त आवाज करते हैं तब तो अलग ही मजा आता है।”
“और तुम्हें पता है राज? कई बार जब लड़की को चुदाई का बहुत ज्यादा मजा आ जाये तो मजे के चलते लड़की का पेशाब भी निकल जाता है। एक दिन जब मैं अंकल के मुंह के ऊपर बैठी अपनी ‘चूत का रस’ पिलवा रही थी तो मैंने ऐसे ही हंसी हंसी मैं अंकल से कहा, “अंकल आपकी चुसाई मैं कई बार इतना मजा आता है कि बता नहीं सकती। किसी दिन मजे के साथ साथ पेशाब भी निकल जाएगा मेरा।”
“मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा जब अंकल बोले, “निकल जाने दो पेशाब। चूत का हल्का नमकीन रस भी तो आ ही रहा है मुंह में। ज्यादा वाला नमकीन पानी आ जायेगा तो क्या हो जाएगा?, निकाल देना जिस दिन निकलने वाला होगा।”
“चित्रा की बात सुन कर मेरे मुंह से निकला, “कमाल है ऐसा भी हो सकता है क्या?”
चित्रा बोली, “राज ये तू अपने आप से पूछ रहा है या मुझसे पूछ रहा है? ये तो तू बता कि ऐसा हो सकता है या नहीं हो सकता? तू भी तो चुदाई करता रहा होगा ऑस्ट्रेलिआ में? तू बता क्या-क्या करता रहा है तू जब चुदाई करते हुए? मेरी तो ये पहले मर्द के साथ चुदाई थी, और तू दूसरा मर्द है जिसने मुझे चोदा है। युग तो सीधी सादी चुदाई ही कर ले, वही बहुत है। ऐसा ताम-झाम उसके बस में कहां।”
फिर चित्रा शायद अपने आपसे बोली, “कभी-कभी तो सोचती हूं क्या कभी युग भी मेरी “सीधी सादी” चुदाई भी कर पायेगा या नहीं ?”
मेरे पास इसका कोइ जवाब नहीं था। जो कुछ चित्रा ने अंकल के साथ किया था और जो कुछ कर रही थी, ऐसा तो मैंने भी तबस्सुम, पारुल और किम की चुदाई करते वक़्त नहीं किया था।
मुझे चुप देख कर चित्रा ही दुबारा बोली, “कभी अंकल लंड चूत से पूरा बाहर निकाल कर बोलते हैं, “चित्रा चूत भींच लो। जैसे ही मैं चूत बंद करके बोलती हूं, “भींच ली अंकल”, अंकल एक झटके से लंड अंदर डालते हैं और साथ ही बोलते हैं क्या टाइट फुद्दी है चित्रा, क्या रगड़ा लगा है लंड को।”
“सच राज जब अंकल कभी चूत की जगह ‘फुद्दी’ बोलते हैं तो ‘फुद्दी’ सुन कर बड़ा ही मजा आता है। इसके बाद ये शुरू नया खेल हो जाता है। हर बार अंकल लंड चूत से बाहर निकालते है और जैसे ही अंकल का लंड बाहर निकल जाता है मैं चूत भींच लेती हूं और अंकल झटके के साथ “उन्हें ये गया चित्रा” की आवाज के साथ झटके के साथ लंड अंदर डाल देते है।”
चित्रा बता रही थी, “और राज अब तो हालत ये हो चुकी है कि कुछ बोलने कहने की या इशारा करने भी जरूरत ही नहीं पड़ती। सब कुछ अपने आप होता चला जाता है। अगर अंकल सीधे लेटे हैं और हाथ उठाये हुए हैं तो मतलब हैं उन्हें मेरी चूत का रसपान करना है। मैं टांगें चौड़ी करके चूत खोल कर उनके मुंह के ऊपर बैठ जाती हूं और अंकल मेरी कमर पकड़ कर मेरी चूत में मुंह घुसेड़ देते हैं और चूत का पानी चूसने चाटने लग जाते हैं।”
“अगर अंकल ने बिस्तर के बीच में तकिया रख दिया है तो मतलब है मैंने अपने चूतड़ तकिये पर टिका कर लेट जाना है और टांगें उठा कर चौड़ी करके चूत खोल देनी है। इसके बाद या तो अंकल उल्टा लेट कर लंड मेरे मुंह में डालेंगे और उधर मेरी चूत चूसेंगे चाटेंगे या फिर सीधे लंड चूत के अंदर डालेंगे और चुदाई करेंगे।”
“इसी तरह अगर तकिया बेड के किनारे पर रक्खा है तो समझ उस दिन गांड और चूत की खूब चुसाई होगी और गांड में उंगली भी अंदर बाहर हो सकती है। मतलब सब कुछ अपने आप होता रहता है।”
— चित्रा का मन भी हुआ व्हिस्की पीने का