अगले दिन युग जब फार्म से वापस आया तो बहुत खुश था शायद इसलिए कि बीती रात पहली बार ढंग से चित्रा की चुदाई कर पाया था। जब राज और युग शाम को पीने बैठे तो युग बहुत जल्दी-जल्दी व्हिस्की के घूंट लगा रहा था। चित्र और राज दोनों ने युग को आराम-आराम से पीने के लिए कह रहे थे, मगर युग था कि खुशी के मारे किसी की सुन ही नहीं रहा था। अब आगे-
जब युग ने किसी की नहीं सुनी और गिलास खाली कर दिया तो चित्रा बोली, “खुशी के मारे पागल हो गया है।”
मैंने पूछा, “किस बात की खुशी?”
चित्रा ने कोइ जवाब नहीं दिया, मगर पता तो हम तीनों को ही था कि युग को किस बात की खुशी थी।
युग ही हंसते हुए बोला, “अरे चित्रा जवाब तो दो। राज पूछ रहा है किस बात की खुशी।”
ये बोलते हुए युग ने अपने गिलास में व्हिस्की का दूसरा पेग डाल लिया और मुझसे बोला, “भाई राज, असल में चित्रा बताने में शर्मा रही है। मैं सच में ही बहुत खुश हूं कि कल पहली बार चित्रा की मस्त चुदाई हुई है।”
युग खुश तो था ही भावुक भी हो गया था। युग मुझ से बोला, “सच राज, तू ना होता तो कुछ नहीं होना था यार।”
ये कह कर युग ने दूसरा पेग भी खत्म कर दिया।
जैसे ही तीसरा पेग बनाने के लिए युग ने बोतल की तरफ हाथ बढ़ाया, चित्रा ने बोतल उठा ली और बोली, “पागल हो गए हो क्या युग। आराम-आराम से पियो, कहीं जाना है क्या? देखो राज का पहला भी खत्म नहीं हुआ और तुम तीसरे के चक्कर मे हो।”
युग बोला, ” ठीक है, नहीं डालता तीसरा।”
— युग की जिद और चित्रा का दारू पीना
युग ने गिलास थोड़ा आगे सरका दिया। जल्दी-जल्दी पीने के बाद युग की जुबान हल्की लड़खड़ाने लगी थी। युग चित्रा से बोला, “चित्रा आज तुम्हें मेरी एक बात माननी पड़ेगी।”
चित्रा पेप्सी के घूंट लेते हुए बोली, “बोलो क्या बात है “I
युग बोला, “ऐसे नहीं। पहले कसम खाओ कि मानोगी।”
मैंने और चित्रा ने एक-दूसरे की तरफ देखा। मैंने सोचा लगता है युग चित्रा को मेरा लंड चूसने, या ऐसा ही कुछ करने के लिए बोलेगा। जरूर चित्रा के दिमाग में भी ऐसा ही कुछ ख्याल आया होगा, वर्ना एकाएक, युग ये कसम वाली बात बीच में कहां से ले आया।
चित्रा बोली, “लगता है चढ़ गयी है तुम्हें युग। कसम-वसम नहीं खाती मैं। बात बताओ क्या है। और मैं वैसे ही कौन सी बात टालती हूं तुम्हारी?”
युग वैसे ही मस्ती में चित्रा की चूत को हल्का सा छू कर बोला, “अरे मेरी जान चित्रा, कसम तो आज तुझे खानी पड़ेगी। तभी बात बताऊंगा।”
चित्रा ने युग का हाथ झटका और मेरी तरफ देखती हुई बोली, “पागल हो गया है ये, चल खाई कसम। अब बता क्या बात है।”
युग वैसे ही लड़खड़ाती सी आवाज में बोला, “आज तुझे हमारे साथ दारू पीनी पड़ेगी।”
युग की इस बेतुकी बात पर मुझे हैरानी हुई। चित्रा भी लगभग चिल्लाते हुए बोली, “युग तुम तो सच में ही पागल हो गए हो। ये क्या बात हुई, दारू पीनी पड़ेगी। मैं क्या दारू पीती हूं?”
फिर चित्रा मुझे बोली, “राज तुम समझाओ इसे, क्या बोल रहा है।”
मैंने युग से कहा, “युग यार ये क्या बात कर रहा है। मस्त मजा तो आ रहा है। क्यों चित्रा को इस दारू-वारू के बीच में घसीट रहा है?”
युग दुबारा चित्रा की चूत को छू कर बोला, “बस आज का दिन। एक बार हमारा साथ दो। चुदाई का मजा आ जाएगा।”
चित्रा ने फिर युग का हाथ झटका और बोली, “मुझे वैसे ही बड़ा मजा आ जाता है चुदाई का। तुम लोगों को मजे के लिए दारू पीने की जरूरत होती होगी, मुझे मजे के लिए दारू पीने की जरूरत नहीं है।”
युग फिर जिद करते हुए बोला, “बस चित्रा आज, एक बार। देखो तुमने कसम खाई है।”
चित्रा ने फिर मुझे कहा, “राज ये क्या बोल रहा है, तुम क्यों नहीं समझाते इसे?”
मैंने कह दिया, “चित्रा आज ये सच में ही बहुत खुश लग रहा है, नहीं मानेगा। इसका मन रखने के लिए लगा लो दो घूंट।”
फिर मैंने बहुत ही धीमी आवाज में कहा, जिससे युग सुन ना ले, “पहले भी तो एक बार पी ही है, एक बार और सही।”
मेरी ये बात सुन कर चित्रा ने एक बार मेरी और देखा और कुछ सोचते हुए अपना पेप्सी वाला गिलास मेज पर रख दिया और बोली, “युग तुम सच में पागल हो। मुझे पता होगा तुमने ऐसी चूतियापे वाली बात करनी है तो मैं कसम ही ना खाती। चलो डालो इसमें। मगर आज के बाद मुझे पीने के लिए मत बोलना।”
युग बेशर्मों की तरह ही ही ही ही कर के हंसा और बोला, “ठीक है, नहीं बोलूंगा।” और इसके साथ ही युग ने चित्रा के गिलास के साथ-साथ मेरे और अपने गिलासों में भी व्हिस्की डाल दी। सब ने अपने-अपने गिलास उठाए और चियर्स बोल कर व्हिस्की के घूंट लेने शुरू कर दिए।
पीते-पीते युग बोला, “आज असली मजा आएगा चुदाई का। क्यों राज, क्या कहता है?”
युग अब तक तीन पेग लगा चुका था। उसकी जुबान लड़खड़ानी शुरू हो चुकी थी।
मैंने बस इतना ही कहा, “मुझे नहीं पता। तेरी बातें तू ही जाने।”
फिर युग चित्रा की तरफ देख कर बोला, “तू बता चित्रा आएगा कि नहीं आज असली मजा चुदाई का?”
चित्रा ने गिलास खाली किया और मेज पर रखते हुए बोली, “मैंने बोला ना मुझे वैसे ही बड़ा मजा आ जाता है चुदाई का। तुम लोगों को मजे के लिए दारू पीने की जरूरत होती होगी, मुझे मजे के लिए दारू पीने की जरूरत नहीं है। कल कौन सी पी थी मैंने। कल भी तो मजा आया ही था मुझे। तू आज कुछ ज्यादा ही जोश में आ गया है।”
चित्रा ‘तुम’ से ‘तू’ पर आ चुकी थी।
मेरा भी गिलास खाली हो गया। युग तो पी ही बड़ी जल्दी-जल्दी रहा था। युग ने फिर गिलासों में व्हिस्की डाल दी।
हल्के सुरूर मैं आयी चित्रा ने इस बार चित्रा ने भी मना नहीं किया। मैंने ही युग को कहा, “अबे गधे और मत पी। थोड़ी पीने से ही मजा आएगा। ज्यादा पीने के बाद लंड खड़ा नहीं होता। तीन तो पहले ही लगा चुका है तू। अब थोड़ा रुक जा, आराम कर ले।”
युग ने गिलास मेज पर रख दिया और सुरूर में ही ही करता हुआ बोला, “हां यार तू ठीक कहता है। चुदाई के मजे के लिए ही तो पी रहे हैं। ज्यादा पीने से कहीं ऐसा ना हो साली चुदाई हो ही ना पाए।”
फिर चित्रा की तरफ देखते हुए बोला, “क्यों चित्रा ठीक कह रहा हूं ना।”
चित्रा ने, “मुझे नहीं पता, जो मर्जी कर। आज तूने किसी की सुननी तो है नहीं।”
ये बोल कर चित्रा अपने गिलास में से घूंट भरने लगी। चित्रा को भी अब पीने का मजा सा आने लगा था।
युग उठा और पायजामे के ऊपर से लंड पकड़ कर हिलाता हुआ बोला, “यार मैं जरा टॉयलेट जा कर थोड़ी दारू निकाल कर आऊं।”
ये कह कर युग अपनी ही बात पर हंसने लगा। पक्की बात थी, पूरी नहीं तो थोड़ी तो चढ़ गयी थी युग को।
जब युग चला गया तो मैंने चित्रा को पूछा , “चित्रा एक बात सच-सच बताना, अंकल के साथ तुमने एक बार ही पी है क्या?”
चित्रा बोली, “क्यों राज ऐसा क्यों लग रहा है तुम्हें?”
मैने कहा, “ऐसे ही। तुम्हारे पीने के तरीके से मुझे ऐसा लगा कि तुम अक्सर पीती रहती हो। तुम्हें दारू कड़वी नहीं लग रही थी। बहुत कम पीने वालों को या कभी-कभी पीने वालों को भी अक्सर शराब का स्वाद बड़ा बकबका सा लगता है। आखिर को कड़वी तो होती ही है ये शराब।”
चित्रा ने दो बड़े घूंट भरे और गिलास मेज पर रख दिया। फिर खुद ही थोड़ी सी व्हिस्की गिलास में डाल कर बोली, “तू सही बोल रहा है राज। एक बार तो नशे में चुदाई करते हुए बातें सुनने के चक्कर में पी थी। उसके बाद जब कभी अंकल बहुत बढ़िया मूड में होते थे तो चुदाई से पहले मुझे पीने के लिए बोल देते थे।”
चित्रा ने मुझे जो बताया वो भी हैरान करने वाला ही था। चित्रा बता रही थी, “पहले-पहले अंकल की बात कुछ अजीब सी तो लगी, मगर पहली बार पी कर चुदाई का मजा भी बड़ा आया था। लेकिन फिर मुझे लगा कि कहीं चुदाई से पहले ये साली पीने की एक नई आदत ही ना पड़ जाए।”
“मैंने ये आदत पड़ने वाली बात अंकल को भी बता दी। अंकल भी समझ गए और उसके बाद मुझे कभी पीने के लिए नहीं कहा। लेकिन कई बार जब मेरा बहुत मन होता है तो मैं अंकल को बोल देती हूं और दो पेग लगा लेती हूं।”
“अंकल अपनी तरफ से ना तो मुझे पीने के लिए बोलते हैं, ना पीने से मना करते हैं। अब तो महीनों ही हो गए है पिए हुए। मैं तो आज भी मना करने वाले थी, मगर फिर मैंने सोचा, बड़ी मुश्किल से तो ये गांडू चूत चोदने लायक हुआ है। मेरे मना करने से कहीं ऐसा ना हो, फिर खस्सी हो कर बैठ जाए और आज की रात मेरी चूत तुम्हारे लंड के भरोसे ही रह जाए।”
“मेरी चूत तुम्हारे लंड के भरोसे ही रह जाए।” चित्रा की ये बात सुन कर मेरी हंसी निकल गयी।
— चढ़ गयी दारू चित्रा को
चित्रा ने जैसे ही बात खत्म की युग आ गया। बिल्कुल नंगा, लंड हाथ में पकड़ा हुआ। युग को नंगा देख कर चित्रा जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, “ये क्या हुआ भोसड़ी के युग? कपड़े कहां गए तेरे?”
युग भी वैसे ही हंसते हुए बोला, “अरे मैंने सोचा जब कपड़े उतारने ही हैं तो अभी उतार देता हूं?” और फिर खड़ा लंड हिलाता हुआ बोला, “चलो तुम लोग भी उतारो कपड़े।”
ये कह कर युग सीधा चित्रा के सामने गया और मुंह के सामने लंड हिलाने लगा।
चित्रा बोली, “क्या करूं?”
युग बोला, “जो तुम्हारा मन है करो।” फिर मेरी तरफ देख कर बोला, “चल भाई उतार ले तू भी अब।”
मैं ना कुछ बोला, ना अपनी जगह से हिला। उधर चित्रा ने व्हिस्की वाला गिलास मेज पर रक्खा और युग का लंड मुंह में ले लिया और चूसने लगी।
पांच मिनट चूसने के बाद चित्रा ने लंड मुंह से निकाला और युग से पूछा, “बस या और? ध्यान रखना मुंह में ही ना निकल जाए। पूरी रात पड़ी है अभी।” ये कहते हुए चित्रा ने चूत खुजाई।
युग ने चित्रा को छूट खुजलाते हुए देख कर हंसते हुए कहा, “क्या हुआ चूत पानी छोड़ गयी क्या?”
चित्रा ने मेज से गिलास वापस उठाया और बोली, “और क्या, इसमें बेचारी चूत का क्या कसूर? लंड मुंह में हो तो चूत क्यों चुप बैठेगी?
चित्रा की इस बात पर सब हंस पड़े। युग बोला, “चलो यार क्या चक्कर है? तुम लोगों के क्या बड़ी शर्म आ रही है?” फिर मेरी तरफ देख कर युग बोला, “राज उतारता है या मैं आऊं?”
चित्रा ही बोली, “उतार ले राज उतार ले। दिखा तेरे लंड की क्या हालत है। खड़ा है या मुझे ही कुछ करना पडेगा।”
चित्रा की इस बात से मुझे लग गया कि चित्रा को हल्की चढ़ गई है। सुरूर तो मुझे भी आ चुका था और युग तो मस्ती में था ही। बस यही शर्म थी कि बीवी युग की और चुदाई मैं करता हूं। उसी शर्म-शर्म में मैंने कहा, “पहले तुम उतरो चित्रा।”
चित्रा ने हंस कर कहा, ” ये बात है?” चित्रा ने गिलास में से बची हुए व्हिस्की गले में उड़ेली, गिलास मेज पर रक्खा और खड़े होते हुए बोली, “ये लो।” कहते हुए चित्रा ने फट से कपड़े उतार दिए।
ना नीचे ब्रा थी, ना चढ्ढी। खड़ी चूचियां चूत की लाइन और चिकने मुलायम चूतड़। मेरे लंड ने एक झटका सा लिया।
युग बोला, “क्या मस्त है तू चित्रा। मेरी तो किस्मत चमक गयी तेरी जैसी बीवी पा कर।”
मैंने मन ही मन सोचा, साले तेरी ही क्यों, तेरे बाप की भी किस्मत चमक गयी है। इस उम्र में उसे ऐसी कड़क लड़की चोदने को मिल रही है।
कपड़े उतार कर चित्रा वापस सोफे पर बैठ गयी और मेरे तरफ देखते हुए बोली, “कपड़े तो उतर गए, अब बोलो?” चित्रा भी दो पेग लगा चुकी थी।
मैंने भी मस्ती में कहा, “चल भाई युग एक एक हल्का पेग बना फिर चलें अंदर।” ये कह कर मैंने भी कपड़े उतार दिए। मेरा साढ़े छह इंची खड़ा लंड देख कर चित्रा बोले, “इधर आ राज।”
मैं चित्रा के सामने खड़ा हो गया। चित्रा ने मेरा लंड पकड़ा और मेरी तरफ देखते हुए लंड मुंह में ले लिया। चित्रा के चुसाई से लंड और सख्त हो गया।
युग सबका पेग बनाते-बनाते बोला, “राज चित्रा की लंड चुसाई में जादू है। है या नहीं?”
सब के कपड़े उतर चुके थे अब सबकी शर्म खत्म थी। मैंने चित्रा के मुंह में लंड के छोटे-छोटे धक्के लगाते हुए कहा, “चुसाई क्यों, चित्रा की चुदाई में भी जादू है।”
चित्रा ने लंड मुंह में लिए लिए ही मेरी तरफ देखा और हल्का सा मुस्कुरा दी।
युग का लंड भी खड़ा हो चुका था। युग ने तीनों गिलासों में व्हिस्की डाली मुझ से बोला, “चलो भाई राज, चित्रा, आ जाओ। अगले पेग तैयार हैं।”
चित्रा ने मेरा लंड मुंह से निकाल लिया और युग के लंड की तरफ देखती हुई बोली, “युग तुम्हारा लंड भी तैयार हो गया है। तुम लोग तो लगता है तैयार हो अब चूत बजाने के लिए।”
युग ने एक बार अपना लंड हिलाया और चित्रा का गिलास उठाया कर चित्रा की तरफ बढ़ाते हुए बोला, “और तुम चित्रा, तुम्हारी चूत तैयार नहीं हुई अभी?”
चित्रा ने फिर जो किया, वो सबको पागल करने के लिए बहुत था। चित्रा ने अपनी टांगे उठा कर सोफे पर रक्खी और दोनों तरफ से नीचे से हाथ करके चूत की फांकें खोल दी और बोली, “लो देख लो। बाढ़ आयी हुई है इसमें। सालो दो-दो खड़े खूंटे जैसे खड़े लंड सामने हों तो ये क्या भजन गायेगी? इसका मन नहीं करेगा लंड अंदर लेने का?”
युग और मैं दोनों ही हंस दिए। युग ने हाथ में पकड़ा गिलास वापस मेज पर रख दिया और जा कर चित्रा के सामने बैठ कर चित्रा की चूत की फांके थोड़ी और खोली और जुबान अंदर घुसेड़ कर चित्रा की चूत चूसने लगा।
क्या मस्त नजारा था। मेरे एक हाथ में मेरा दारू से भरा गिलास था और दूसरे हाथ में खड़ा लंड। युग ने पांच मिनट चित्रा की चूत चूसी और खड़ा हो कर बोला, “क्या मस्त चूत है, क्या खुशबू है, क्या स्वाद है।”
चित्रा ने मेरी और देखा और मुझसे बोली, “राज तू भी आ जा, तू ही क्यों पीछे रह जाए। तू भी खुशबू ले ले।”
चित्रा की बात सुन कर मैंने गिलास मेज पर रक्खा और जा कर चित्रा की चूत चूसने लगा। पांच सात मिनट ही मैंने चित्रा की चूत चूसी होगी, कि चित्रा ने मेरा सर अपनी चूत पर दबा दिया और जोर से चूतड़ हिलाते हुई बोली, “राज, साले निकाल दिया तूने मेरी चूत का पानी, मजा आ गया मुझे।”