हाए फ्रेंड्स, मैं हू 40 साल की शालु. मुझे अगर रूप की मल्लिका कही जाए तो अतिशयोक्ति नही होगी. कहने का मतलब मैं सनडर हू. ये मैं यू ही नही कह रही हू. मेरी सुंदरता और कोमलता का आलम ये है की 40 की उमर में मैं 20 की दिखती हू.
मेरे काले घुंघराले बाल, मोतियों सी मेरे दाँत, कमाल की पंखुड़ियों से मेरे काले कजरारे नयन, संतरे की फाँक से मुलायम रस्स भरे होंठ, और इन सबसे अलग कहर मचाते 36″ साइज़ की उछालती मचलती मेरी चूचियाँ. लंबे बदन पर हल्की सी उभरी मेरी गांद कमाल की है.
मेरी शादी 20 की उमर में हो गयी थी. मेरे हज़्बेंड हर ड्रस्थिकोण से परिपक्व थे. मैं उनसे प्यार करती थी. कोई प्राब्लम नही थी. पहली बार जब मैं ससुराल आई, और अपने नंदोई से मिली. उस समय उसकी आगे 24 साल थी. वो काफ़ी हॅंडसम स्मार्ट थे.
किसी भी आंगल से वो आचे लगते थे. हासमुख माधुरभाषी, उनका एक अलग मेरिट था. मुझे वो काफ़ी आचे लगते थे. उनका झुकाव भी मेरी तरफ था. ये मैं उनकी आक्टिविटी से जानती थी, चूँकि रिश्ता भी वैसा ही था. तो आपस में घुलना-मिलना पकड़ना-ढाकड़ना आम बात थी.
वो करते थे, तो मैं बुरा नही मानती थी. मसलन हम दोनो के बीच काफ़ी प्यार था. समय बीतता गया. आज मैं 40 की हो गयी हू. मेरी एक बेटी है. मेरी ननद को भी एक बेटा है. समय का चकरा कितना अजीब होता है. रोड आक्सिडेंट में वी दोनो भाई बेहन की जान चली गयी आज से 05 साल पहले.
उस समय मैं 35 की थी, और मेरे नंदोई भी लगभग 35 के ही थे. उनका नाम प्रकाश है. मुझ पर तो विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा. जैसे-तैसे ज़िंदगी की गाड़ी आयेज बढ़ती गयी. मेरी बेटी 20 की हो गयी. पिछले दीनो मैने बेटी की शादी कर दी. शादी में मेरे नंदोई प्रकाश मेरे घर आए थे.
मेरे सोए अरमान जाग उठे थे. बेटी को विदा किया. फिर धीरे-धीरे सारे मेहमान चले गया. आज मैं बिल्कुल अकेली घर में थी. पता नही इतने दीनो के बाद क्यूँ अकेलापन मुझे काटने के लिए चारो तरफ से मेरी तरफ दौड़ रहा था.
मैं काफ़ी परेशन हो उठी. कभी बेटी की याद सताती, कभी पति देव की. किसी भी तरह से मुझे सुकून नही मिल रहा था. जैसे-जैसे रात बीट्टी गयी, मेरी परेशानी भी बढ़ती गयी. अब तो मुझे लगने लगा ज़िंदगी मुझे काट रही थी. मुझे बहुत दर्र लगने लगा. सोचने लगी क्या करू, ना करू.
लगता था कोई साथ होता तो बात कुछ और होती. मैने फैंसला कर लिया किसी को बुला लेते है. मैं मॅन में ढूँढने लगी किसे कॉल करे, कों आ सकता है. कॉल बुक को काई बार देखा. ऐसा कोई फिट नज़र नही आया.
घूम फिर कर मेरा ध्यान प्रकाश पर जाके अटक जाता. आख़िरकार मैने प्रकाश को फोन लगा दिया. मैने अपनी परेशानी बता कर उन्हे आने को बोल दिया.
प्रकाश ने बोला: मैं आ रहा हू. आप परेशन मत हो.
प्रकाश से बातें कर मेरे जी को सकूँ मिल गया. मॅन प्रफुलित हो गया. जीतने भी मॅन में बिसाद थे सारे मिट गये. प्रकाश मेरे पास रात के 1 बजे पहुँचा. आमने-सामने होते ही मैं अपने को रोक ना पाई, और लता की भाँति प्रकाश से लिपट गयी.
प्रकाश ने भी मुझे बाहों में भर लिया. आँखों से अश्रु-धारा बह निकली. प्रकाश ने मेरे आँसुओं को प्यार की च्चाओं से धक दिया. थोड़ी आश्वस्त होने की बाद प्रकाश ने गोद में उठा कर सोफे पर बिताया, और खुद भी बैठ गया.
मैं प्रकाश में चिपकी हुई थी. उसने मेरे सर को अपनी गोद में लिया, और मेरे गालों पर हाथ फिरने लगा, झुक कर छुए भी. लगा मेरी आँखें प्यार की चाओं में बंद हो गयी. प्रकाश मेरे लबों को चूस रहा था. मेरे पुर बदन में मस्ती छ्चाने लगी थी.
प्रकाश ने मेरी बंद आँख को देख मुझे झकझोरते हुए पुकारा-
प्रकाश: भाभी!
मेरे हाथ खुद बा खुद प्रकाश के मूह को बंद कर गये और मैं बोली: मुझे भाभी ना कहो. भाभी ना कहो, मैं तुम्हारी शालु हू.
प्रकाश ने अपने लबों से मेरे होंठो को सील दिया. वो मेरे रस्स-भरे लबों के एक-एक बूँद को पी जाने की नीयत से मेरे होंठो को चूसने लगा. अनायास ही उसके हाथ मेरी चूचियों पर आ गये. बिल्कुल हल्के-हल्के प्रकाश मेरी चूचियों को सहलाने लगा.
ज़रा सी सहलाने भर से मेरी चूची सख़्त होती गयी. मेरी छूट सुरसुराने लगी. मैं पति के मरने के पुर 06 साल बाद छुड़वाने जेया रही थी. प्रकाश को ब्लाउस के उपर से तसल्ली ना मिली. अब वो मेरे ब्लाउस को उतार रहा था. उसने मेरे ब्लाउस ब्रा सब उतार दिए.
मेरी चूची आज़ाद पक्षी की तरह फुदकाने लगी. प्रकाश ने हाथो से चूचियों को मसला. अब मेरी चूचियाँ सख़्त हो चुकी थी. छूट के डेने भी खड़े हो गये. मैं लंड पर हाथ ले गयी.
लंड में भी काफ़ी तनाव था. मैं प्रकाश की दोनो टाँगो के बीच बैठ उसके पंत उतारने लगी. पंत के उतरते ही लंड उछाल कर जंप करके उठा, और मेरी नाज़ुक कोमल हथेलियों से बार-बार चालक जेया रहा था.
मैं लंड को सहला रही थी. प्रकाश ने मेरी सारी पेटिकोट पनटी सब उतार दिया. पनटी देख प्रकाश मुस्कुरा रहा था. पनटी का आयेज का भाग छूट टपकने की वजह से लगभग भीग गया था. उसने छूट को हाथो से सहलाया.
छूट में हल्की सी उंगली क्लिट से टकराई, तो मैं उछाल पड़ी. प्रकाश समझ गया छूट लंड लेने को पूर्णत रेडी थी. उसने मुझे बेड पर सुलाया, फिर टाँगो को फैलाया. मेरी बर का मूह पूरा खुल गया था. वो बर पर लंड रगड़ने लगा. रगड़ते हुए जैसे ही लोड्ा बर की मुहाने पर अटका, प्रकाश ने लोड्ा बर में पेल दिया.
मैं अचानक उठी, लेकिन लोड्ा बर में समा चुका था. अब आहिस्ते-आहिस्ते प्रकाश बर छोड़ने लगा. बर में लोड्ा पा कर मैं जन्नत की सैर करने लगी. मेरे सारे सोए अरमान जाग उठे. निराशा की ज़िंदगी में बहार आ गयी. प्रकाश की छोड़ने की स्पीड अभी कम थी.
मैं मचल कर बोली: छोड़ो मेरे राजा, ज़ोर से छोड़ो. बड़ा मज़ा आ रहा है.
प्रकाश बोला: ले मेरी रानी ले.
उसने चुदाई की स्पीड बढ़ा दी. मैं भी मचलती रही, चुड़वति रही, आ आ करती रही. अब लोड्ा फूल कर मोटा भी ज़्यादा हो गया था. मुझे बहुत मज़ा मिल रहा था.
प्रकाश ने और ज़ोर लगाया, और स्पेआद और तेज़ हो गयी थी. इतनी तेज़ मानो लग रहा था बर के अंदर लोड्ा नही राजधानी एक्सप्रेस दौड़ रही हो. मैं आ आ कर मज़े ले रही थी.
फिर मैं बोली: छोड़ो मेरे राजा, मेरी जैसे प्यासी को.
फिर कुछ देर में प्रकाश ने बर में वीर्या छ्चोढ़ दिया. गरमा-गरम वीर्या की धार ने मुझे तृप्त कर दिया था. प्रकाश मेरी चूचियों को पकड़े एक तरफ लूड़क गया था. मैं चुदाई का खेल ख़तम होने के बावजूद अपने हाथों से ऐसे जकड़ी थी, मानो प्रकाश छूट कर कही भाग रहा हो.
जब प्रकाश पूरी तरह नॉर्मल हुआ, ढेरो बातें हुई. कुछ बातें समय की, तो कुछ आने वाले समय की. मैने प्रकाश के साथ कभी अलग ना होने की कसमे खाई, और फिर अगली चुदाई की तैयारी में जुट गयी. प्रकाश उस रात मुझे छोड़ता रहा. मैं चुड़वति रही.
जब तक की रात नही बीट गयी, दोनो की आँखों से नींद गायब हो गयी थी. दोस्तों आप गायब ना हो जाना, क्यूंकी हमे आपकी फीडबॅक का इंतेज़ार रहेगा. मैं यहा मिलूंगी.