बात अब से 3 साल पहले की है, जब मैं 1स्ट्रीट एअर में पढ़ती थी. उस टाइम 19 साल की आगे थी मेरी. शरीर में नये-नये बदलाव आ रहे थे. शरीर पहले से तोड़ा भर गया था, और बूब्स भी निकल आए थे. कॉलेज में आधी लड़कियों के बाय्फ्रेंड बन गये थे, तो सब एक दूसरे को टीज़ करती रहती थी.
मेरी बेस्ट फ्रेंड का भी पास में रहने वाले 2न्ड एअर के लड़के से चक्कर चल रहा था, तो वो अक्सर अपनी बातें मुझे बताया करती थी. मुझे सुन कर बड़ा रोमांच आता था. पर क्या करती, ऐसा कोई अभी फ्रेंड बना ही नही था.
मे का महीना था. हमारे फ्लॅट के सामने एक नया परिवार रहने आया था. उन्होने कुछ दिन पहले ही ये फ्लॅट खरीदा था. हज़्बेंड (विजय), वाइफ (श्रुति), और उनकी 2 साल की एक बेबी (वृंदा) थी. नये-नये शिफ्ट हुए थे, तो कोई बात पूछनी होती थी तो उनकी वाइफ मम्मी के पास आती थी.
थोड़े दिन में ही हम दोनो परिवरो का अछा मेल-मिलाप हो गया. उनकी बेटी बहुत प्यारी थी. मैं और मम्मी हमेशा उसे खिलाने की कोशिश करते रहते थे. भाभी को भी घर का काम निपटना होता था, तो कुछ टाइम के लिए वृंदा को हमारे यहा छ्चोढ़ देती. मैं भी जब मॅन करता था वृंदा को अपने यहा खिलाने के लिए ले आती थी, या उनके यहा चली जाती थी.
घर में अक्सर मैं त-शर्ट और शॉर्ट्स पहना करती थी. त-शर्ट के नीचे या तो समीज़ पहनती थी, या फिर ऐसे ही रहती थी. भैया शाम को 8 बजे तक घर आ जाते थे. वो इट कंपनी में जॉब करते थे, तो बड़े स्मार्ट बन कर रहते थे. भैया और भाभी दोनो ही बहुत स्मार्ट थे, इसलिए उनकी बेटी भी बहुत प्यारी थी.
शाम को मैं काई बार वृंदा को खिलाने के लिए भाभी के घर पर होती थी. तो एक शाम जब मैं उनके घर पर थी, तो बेल बाजी. भाभी डोर ओपन करने गयी. शायद भैया होंगे उन्हे पता था, क्यूंकी उनके आने का ही टाइम था.
भैया जब अंदर घुसे तो डोर बंद करके भाभी को लीप किस कर लिया, और कस्स के हग किया. भाभी बिना कुछ बोले उन्हे अपने से डोर करने लगी. भैया को मेरे होने का पता नही था, शायद इसलिए वो ऐसा कर रहे थे. तब भाभी ने मेरे बारे में कहा की निशा घर में ही है. तब भैया अलग हुए.
भैया भाभी की ये च्छेदखानी मैने देख ली थी. उसके बाद मैं उठकर घर वापस आ गयी. रात को सोते टाइम मुझे वो सारी बातें दिमाग़ में घूमती रही, जिसकी वजह से मेरे शरीर में अजीब सी तरंग उठने लगी. मुझे वो सब अछा लग रहा था. अब मैं अक्सर शाम को भैया-भाभी के घर पर ही रहती, और भैया के आने का इंतेज़ार करती.
ऐसा करते-करते 4-5 महीने बीट गये. इस दौरान मैने नोटीस किया की भैया भी मुझमे कुछ इंटेरेस्ट लेने लगे थे. वो जब भी मौका मिलता मेरी ब्रेस्ट को घूरते रहते थे. मम्मी ने मुझे काई बार टोका था ब्रा पहना कर घर पर. वो मार्केट से मेरे लिए 32″ साइज़ की एक्सट्रा ब्रा ले भी आई थी. पर मैं कॉलेज से आने के बाद उसे उतार देती थी.
मुझे पता था की मा मुझे क्यूँ माना करती थी, क्यूंकी टाइट त-शर्ट पहनने पर मेरे निपल टाइट होकर खड़े हो जाते थे, और सॉफ नुकीले दिखते थे. या फिर लूस त-शर्ट में झुकने पर मेरे बूब्स निपल तक दिखाई देते थे. मैं ये सब जानती थी, और विजय को अपनी और आकर्षित करने के लिए करती थी.
बात कुछ दिन पहले की है. भाभी को डेंग हो गया, और वो सीरीयस बीमार हो गयी. उन्हे हॉस्पिटल में अड्मिट करना पड़ा. वृंदा बहुत छ्होटी थी, तो उसे हॉस्पिटल ले जेया नही सकते थे. तो वो सारा दिन हमारे यहा रहती. भैया ने अपनी मा को पुणे से यहा बुला लिया था.
पर वो ना तो काम कर पाती थी, और उन्हे दिखाई भी कम देता था. भैया दिन भर हॉस्पिटल रहते थे, क्यूंकी भाभी आइक्यू में थी. रात को 11 बजे भैया आते थे, और सुबा फिर नाश्ता करके जल्दी हॉस्पिटल चले जाते थे.
भाभी के लिए चिंता की बात ये भी थी, की वो प्रेग्नेंट थी. उनको 6त मंत लग गया था. सुबा तो मम्मी भैया को नाश्ता करा देती थी, क्यूंकी मुझे कॉलेज जाना होता था. पर शाम को मम्मी वृंदा को संभालती थी, तो उनका खाना भैया के आने पर मैं बना कर दे देती थी.
इस दौरान मुझे उनके करीब आने का मौका भी मिल रहा था. उनकी मम्मी 9 बजे खाना खा कर सो जाती थी. आज भी शाम की सब्ज़ी बना कर मैं उनके आने का इंतेज़ार कर रही थी. फिर डोरबेल बाजी. मैने दौड़ कर डोर ओपन किया. सामने भैया खड़े थे. मैने उनको स्माइल दी. उन्होने भी जवाब में मुझे देख कर स्माइल किया और कहा-
भैया: अरे तुम अभी भी यही हो? सोने नही गयी?
मैने कहा: आपको खाना कौन देता फिर?
वो मुस्कुराते हुए बोले: मैं खुद ले लेता.
मैने कहा: सब्ज़ी बनी है. रोटी अभी ताज़ी-ताज़ी गरमा-गरम बना कर देती हू. भाभी कहती थी आपको सब गरम-गरम पसंद है (मैं डबल मीनिंग में बोली).
भैया बोले: और क्या है गरम-गरम में?
मैं: आप बताओ क्या खाना है? मैं थोड़ी देर में तैयार करके लाती हू.
उन्होने सोफे पर बैठते हुए कहा: अछा जब खाना होगा तब बतौँगा.
भैया सामने जेया कर सोफे पर बैठ गये. मैं किचन से पानी का ग्लास लेकर आई, और सामने झुक कर उन्हे दिया. भैया की नज़र मेरे खुले हुए गले के अंदर झाँक रही थी. उन्होने पानी पी कर ग्लास टेबल पर रख दिया. मैने दोबारा झुक कर ग्लास उठाया, और लेकर चली गयी. भैया पीछे से मेरे बट को देखते रहे.
फिर मैं वापस किचन से आ कर भैया के बगल में सतत कर बैठ गयी, और भाभी का हाल-चाल पूछने लगी. वो बोले-
भैया: प्लेट्लेट्स बहुत डाउन है. 5-6 दिन और लगेंगे.
उनका हाल-चाल जान कर मैं उठी, और भैया को भी बोला: आप नहा धो कर फ्रेश होकर आओ. मैं तब तक रोटी सेक देती हू.
भैया उठे, और बातरूम में नहाने चले गये. मैने गॅस जला कर तवा रख दिया. उधर बातरूम से शवर में नहाने की आवाज़ आ रही थी. थोड़ी देर में वो आवाज़ बंद हो गयी. दरवाज़ा खुला, और उन्होने आवाज़ लगाई.
भैया: निशा मेरा टवल दे देना ज़रा.
मैने कहा: कहा पर है?
तो वो बोले: बाल्कनी में होगा. सूख रहा होगा. सॉरी वो मुझे आदत है इसलिए बिना टवल के ही आ गया.
मैने कहा: कोई बात नही, आपका ही घर है.
भैया: हा वो तो है, पर भूल गया था बीवी घर पर नही है.
मैने कहा: तो क्या हुआ, मैं तो हू. मैं कर दूँगी आपके सारे काम.
ये कहते हुए मुस्कुराते हुए मैने उन्हे टवल पकड़ा दिया.
भैया बोले: तुम्हारी भाभी तो बिना बोले मेरे और भी बहुत से काम कर दिया करती थी.
मैने कहा: आप बोलिए तो सही, मुझे नही पता की वो क्या-क्या काम करती थी.
भैया तब तक टवल लपेट कर बाहर आ गये. पहली बार मैने भैया की मस्क्युलर बॉडी को पानी में भीगे हुए नेकेड देखा. टवल में उनका आयेज का उभरा हुआ हिस्सा सॉफ दिख रहा था. शायद डबल मीनिंग की बात करके वो हॉर्नी हो गये थे.
उन्होने कहा: तुम खाना ले आओ, उसके बाद बताता हू. मैं तब तक कपड़े पहनता हू.
मैने च्चेड़ते हुए बोला: आप ऐसे भी आचे लग रहे हो. खाना खा कर कपड़े पहन लेना.
भैया बोले: ये जो टवल में है ना, इसकी भूख का भी टाइम हो रहा है. मेरा पेट तो खाने से भर जाएगा, पर इसका खाना इसे नसीब नही होगा. क्यूंकी इसकी भाभी तो है नही. फिर ये पूरी रात मुझे परेशन करेगा.
मैं तब तक किचन की तरफ बढ़ गयी, और खाना परोसने लगी. ऐसी बातें करने से मेरे अंदर भी अब कुछ-कुछ होने लगा था. और मेरा मूड भी करने लगा था. मैं किचन से ही ज़ोर से बोली-
मैं: पहले आप तो खा लो, फिर इसका भी देखा जाएगा क्या करना है.
भैया बोले: पहले इसे आश्वासन तो मिले, वरना ये मुझे खाना नही खाने देगा.
मैं तब तक खाना लेकर आई, और डाइनिंग टेबल पर खाना रख कर बोली-
मैं: इसके लिए तो आज कुछ बनाया नही. आज इससे कहो दूध पी कर सो जाएगा. कल इसके लिए भी कुछ बनाया जाएगा.
भैया को जब लगा की आज कुछ तो होकर रहेगा, तो आ कर ऐसे ही टेबल पर बैठ गये. मैने उन्हे खाना परोस दिया, और सामने बैठ गयी.
भैया बोले: तुम्हारी भाभी मुझे अपने हाथो से खिलती थी. अगर तुम खिला सको तो देख लो. वरना मैं अपने आप खा लेता हू.
मैने कहा: नही आपको भाभी की कमी नही खलने देंगे.
ये कह कर अपनी चेर भैया के पास ला कर सामने बैठ गयी. लेफ्ट साइड में खाना रख कर रोटी तोड़ कर विजय को खिलाने लगी. हम दोनो के पैर एक-दूसरे के बीच में फ़ससे हुए थे. मैं विजय को रोटी खिलाने में बिज़ी थी, तो उन्होने अपने दोनो हाथो से मेरी नंगी टांगे सहलानी शुरू कर दी, और अपने हाथ को जितना अंदर मेरी शॉर्ट में ले जेया सकते थे ले जेया रहे थे.
मैं थोड़ी टेढ़ी हो कर इस काम में उनकी मदद कर रही थी. अब उनका हाथ मेरी पुसी को छ्छूने लगा था, जो अब पूरी तरह से भीग गयी थी. अब मेरी साँसे तेज़ चलने लगी थी. विजय ने अब मेरी पनटी को तोड़ा साइड में किया और पुसी को अंदर से टच किया. मैं एक-दूं सिहर उठी. उन्होने भीगी हुई उंगली निकली और उसे चाट लिया. फिर बोले-
भैया: ये देसी गीयी तो तुमने सब्ज़ी में डाला ही नही.
मैने आँख खोली और कहा: ये सील बंद डिब्बा है. अभी खुला नही है. इसलिए आपको नही दिया. और आज तो दूध की बात हुई थी, इसलिए गीयी नही दिया.
विजय बोले: बिना गीयी के रोटी सूखी लग रही है, इसलिए गले से उतार नही रही है.
और ज़िद करने लगे की आयेज रोटी तभी खा पाएँगे जब उन्हे गीयी भी साथ मिलेगा. ऐसा कह कर वो खड़े होने लगे. उन्हे बिताने के लिए मैने उनका टवल पकड़ा और नीचे की तरफ खींच कर उन्हे बिताने की कोशिश की. ऐसे में उनका टवल खुल कर मेरे हाथ में आ गया और वो नंगे मेरे सामने खड़े हुए थे.
उनका लहराता हुआ लंड ठीक मेरी आँखों के सामने था. पहली बार मैने इतना बड़ा लंड इतना नज़दीक से देखा था. मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी, और साँस गले में अटक गयी. मैं विजय का हाथ पकड़ कर उन्हे बिताने की कोशिश कर रही थी, पर उनकी ताक़त के आयेज मेरी एक ना चली. उनका लंड मेरे मूह के आस-पास झूल रहा था. अब मैने खड़े होने में ही अपनी भलाई समझी, और विजय से कहा-
मैं: आप खाना तो खा लो.
उन्होने कहा: गीयी के साथ.
मैने उन्हे टवल दिया, की इसे लपेट लो.
भैया: अब या तो तुम अपना गीयी चटवओ, नही तो मुझे अपना गीयी निकालना पड़ेगा. तभी खाना खा पौँगा.
मैं उनका कहने का मतलब समझ गयी थी. अब मैने एक शर्त रखी की गीयी तो खिला दूँगी, पर डब्बा आज नही खुलेगा. मेरी ये बात वो झट से मान गये. वो अब किसी भी तरह आयेज बढ़ना चाहते थे, और मैं उनके मॅन की ये बात समझ रही थी. बढ़ना तो मैं भी चाहती थी, पर टाइम बहुत ज़्यादा हो रहा था और दर्र था की मम्मी की नींद खुल गयी तो वो कभी भी आ सकती थी.
अब मैने खड़े होकर अपनी शॉर्ट उतरी, तो विजय ने मेरा हाथ पकड़ लिया, और नीचे बैठ कर मेरी पनटी नीचे खिसकने लगे. वो नंगे मेरे सामने बैठ कर मेरी पुसी को निहारते हुए मेरी पनटी उतारते चले गये.
बिना बालो वाली मेरी पुसी देख कर उनके मूह से ‘वाउ’ निकल गया. उन्होने मेरी पुसी को किस किया.
इसके आयेज की कहानी अगले पार्ट में.