पिछली रात की धुआंधार चुदाई की थकान से नींद तो बढ़िया आयी थी। सुबह उठा तो ज्योति ने ऊपर चाय के लिए बुला लिया।
मैं ऊपर चला गया, शीला और ज्योति नहा चुकी थी। शीला चाय बना रही थी, और ज्योति सोफे पर बैठी थी। मैं भी ज्योति के पास ही बैठ गया। शीला चाय लेकर आयी, तो मुझे संधू की रात वाली काटने वाली बात याद आ गयी।
मैंने ज्योति से पूछा “भरजाई एक बात बताओ, रात को नैंसी भरजाई, ये संधू के काटने की क्या बात कर रही थी?”
ज्योति हंस कर बोली, “जीते ये तो शीला बताएगी।” शीला फिस्स-फिस्स करके हंस रही थी।
ज्योति ही फिर से बोली, “शीला दिखा जरा जीत को क्या हाल किया संधू सर ने तेरे चूतड़ों का।”
शीला ने भी सलवार का नाड़ा खोला, सलवार और चड्ढी नीचे की, और मेरे पास आ कर चूतड़ मेरी तरफ करके खड़ी हो गयी। शीला के खरबूजे जैसे गोल चिकने चूतड़ों पर तीन-चार जगह नीले निशान पढ़े हुए थे, संधू के काटने के निशान।
शीला के सेक्सी चूतड़ देख कर मेरा लंड फिर खड़ा होने को हो गया। मैंने शीला के चूतड़ों पर हाथ फेरते शीला के मुलायम चूतड़ों का एक चुम्मा लेने के बाद कहा, “अजीब है ये संधू! ऐसे काटता है चुदाई करते हुए?”
ज्योति शीला की तरफ इशारा करके बोली ,”इसको तो मजा आया है इस काटने में। पूछ लो इसी से।” फिर ज्योति शीला की तरफ देख कर बोली, “बोल अब शीला, बता जीत को कितना मजा आया तुझे संधू साहब के इस काटने-पीटने का।”
मैंने शीला की तरफ देखा, और वो फिर से फिस्स-फिस्स करके हंस दी और बोली, “भाभी आपके मम्मों पर भी तो हैं अंकल के दांतों के निशान। आप भी तो दिखाइए अपने मम्मे जीत भैया को।”
मैंने ज्योति के तरफ देख कर बस इतना ही कहा, “कमाल है।” लेकिन दोनों के बताने के तरीके से लग रहा था दोनों को ही संधु की इस जोरदार, चाटने काटने वाली चुदाई का मजा आया था।
चाय पीते-पीते मैंने पूछा, “भरजाई अब आगे क्या प्रोग्राम है?”
ज्योति बोली, “जीते मेरी तो कमर दुःख रही है इतना चुदने के बाद। दो तीन दिन चुदाई की छुट्टी करते हैं, चूतों को आराम करने देते हैं I तेरे लंड को भी तो आराम की जरूरत है। शीला भी यही बोल रही है।”
मेरा तो अपना मन एक-दो दिन चुदाई करने का नहीं था। मैंने एक-दम ही बोल दिया, ठीक है भरजाई दो दिन तो रेस्ट करते हैं, फिर देखेंगे।”
फिर मैंने शीला की तरफ देखते हुए पूछा, “क्यों शीला?”
शीला बोली, “ठीक है जीत भैया, मैं तो भाभी से कह ही रही हूं, बहुत चुदाई हो गयी इन दिनों में। अब दो-तीन दिन आराम करते हैं। पर अगर आपको आपके इस पप्पू ने तंग किया तो?” और फिर से हिस्स-हिस्स फिस्स-फिस्स करके हंस दी।
ज्योति मेरी तरफ देख कर बोली, “पप्पू? कौन पप्पू?”
मैंने पयजामे के ऊपर से ही लंड पकड़ कर हिलाया, और हंसते हुए बोला, “इसको पप्पू बोलती है ये।”
ज्योति की भी हंसी छूट गयी।
चाय पी कर मैंने कहा, “चलता हूं भरजाई।”
शीला ने अब तक सलवार ऊपर नहीं की थी। मैंने शीला को बाहों में लेकर उसकी गांड के छेद में थोड़ी सी उंगली की, और चूतड़ों पर एक हल्का सा धप्पड़ लगाया और उसे बोला, “इनकी सिकाई कर ले। इतने सुन्दर मुलायम चूतड़ हैं तेरे, निशान नहीं पड़ने चाहिए इन पर। अगर निशान रहे तो मैं नहीं चोदूंगा तेरी गांड।”
फिर वह हंसी “हिस्स हिस्स हिस्स फिस्स फिस्स फिस्स।”
फिर मैं ज्योति की तरफ गया, और उसकी चूचियों को दबाते हुए बोला, “भरजाई इन दिनों में तो सच में बड़ी चुदाई हो गयी। मगर ये नैंसी भरजाई तो गांड चुदवाने की बड़ी शौकीन लगती है। क्या मजा आता होगा गांड चुड़वाने का?
पानी तो फिर भी चूत का दाना रगड़ कर चूत का ही निकलना होता है। गांड का अपना मजा तो होता नहीं। गांड चुदाई का मजा तो आदमियों को आता है जब गांड का छेद लंड को जकड़ लेता है।”
ज्योति बोली, “जीते मैं तो खुद भी यही सोच रही थी, कि नैंसी बड़ी ही शौकीन लगती है गांड चुदवाने की।” फिर ज्योति शीला की तरफ देखते हुए बोली, “तू बता शीला, तुझे तो सारा कुछ पता रहता है।”
शीला उसी तरह हंसते हुए बोली, “दो दिन बाद बताऊंगी भाभी।”
ज्योति हंसी, और शीला से पूछा, “क्यों दो दिन बाद क्या हो जाएगा?”
शीला मेरी तरफ देख कर बोली, “भाभी दो दिन बाद जीत भैया से जो चुदवानी है गांड। तब अपने आप पता लग जाएगा। आपने भी तो चुदवानी है।”
ज्योति हंस दी और मैं ज्योति के मम्मे दबाना छोड़ वापस शीला के पास गया और शीला के होंठ अपने होठों में लेकर चूसने लगा। पांच मिनट के बाद शीला मुझसे अलग हुई और बोली, “बस करो जीत भैया, नहीं तो आज ही पता लग जाएगा गांड चुदाई का मजा क्या होता है।” मैं और ज्योति दोनों हंसे।
पिछली रात मस्त चुदाई की बातें करते-करते सब ने चाय पी और मैं चाय पी कर मैं नीचे उतर गया।
दो दिन गुजर गए, शीला भी दिखाई नहीं दी। ज्योति से बात होती रहती थी। ज्योति बता रही थी कि “अगले दिन तो संधू सर उस रात की मस्त चुदाई की ही बातें करते रहे। लगता था अमित के लौटने से पहले एक बार प्रोग्राम फिर बनाएंगे। कह रहे थे नैंसी बहुत याद कर रही थी तुझे” ये कहते हुए फिर हंस दी ज्योति।
मैंने कहा, “भरजाई एक बार इस तरह की चुदाई होने के बाद ये संधू बार बार चुदाई के लिए आपको तंग नहीं करेगा?”
ज्योति बोली, ” कैसे तंग करेंगे जीते, और क्या तंग करेंगे? क्या लोगों को बताएंगे की अपनी सेक्रटरी की चुदाई करते हैं? जीते, जिस सीनियर पोज़ीशन पर संधू साहब हैं अगर ये बात खुल जाए कि अपनी सेक्रटरी को चुदाई के लिए परेशान करते हैं, तो नौकरी जाते दो मिनट नहीं लगेंगे। अब इस उम्र में चार लाख महीनें की नौकरी कौन देगा संधू साहब को?”
मैंने सोचा ज्योति ठीक कह रही थी। पर पता नहीं क्यों, ज्योति की ये बात सुन कर मेरे मन से एक बोझ सा उतर गया।
तीसरे दिन ज्योति मिली और पूछा, “जीते कल रात का बनाएं प्रोग्राम। सुबह श्रेया को नीरज के घर छोड़ आऊंगी। शीला को भी बोल दूंगी रात का प्रोग्राम बना ले।
मैंने भी सोचा तीन दिन बिना चुदाई के बहुत हैं।” मैंने कहा, “ठीक है भरजाई बना लो।”
जिस शौंक से ज्योति और शीला ने नैंसी की गांड चुदाई देखी थी, और जिस तरह मुझसे गांड चुदाई की बातें की थीं, मुझे लग रहा था इस बार गांड ही चुदवाएंगी दोनों। अब मुझे जैल लानी थी। बिना जैल के लंड गांड में नहीं जा सकता।
बिजली महकमें में नौकरी का एक फायदा ये भी है, कि हर तरह के लोगों से जान-पहचान बहुत हो जाती है। मेरा एक जानकार केमिस्ट था (कुलभूषण) जिससे मैं जैल लेने गया।
कुलभूषण ने भी मजाक में पूछा, “कौन सी जैल चाहिए सिंह साहब ऊपर वाली या नीचे वाली, यानी बालों में लगाने वाली या गांड में लगाने वाली?”
बालों में लगाने वाली जैल सूख कर पपड़ी की तरह जो जाती है, जबकि गांड पर लगाने वाली जैल चिकनी ही रहती है और सूखती नहीं। बस काम खत्म कर के, यानि गांड चुदाई कर के धुलाई कर लो, और जैल पानी में घुल जाती है। खेल खत्म, पैसा हज्म वाली बात।
मैंने भी आंख दबा कर कहा, “नीचे वाली।”
कुलभूषण जैल लेने गया तो मेरे दिमाग में आया के उस ख़ास कंडोम के बारे में इससे बात करके देखूं। चांस था कि एक कंडोम का पैकेट मेरी जेब में ही था।
मैंने कुलभूषण से कहा, “ये देख यार कुलभूषण, ये मिलेगा यहां?”
कुलभूषण ने कंडोम का पैकेट लिया और देख कर बोला, “सिंह साहब, हमारे पास तो नहीं है, पर मंगवाया जा सकता है।”
मैंने कहा, “यार मंगवाता तो मैं भी हूं, ‘ऑन लाइन’ से। पर ऑन ‘लाइन मंगवाना’ झंझट है और कभी-कभी ये साले कुछ अलग भी भेज देते हैं।”
कुलभूषण बोला, “चलो सिंह साहब मैं इसकी फोटो ले लेता हूं और अपने डीलर को भेज देता हूं। कितने पैकेट मंगवाऊं अगर मिलते हुए तो।” और कुलभूषण ने अपने मोबाइल से पैकेट की फोटो ले ली।
मैंने कहा “पांच तो मंगवा ही ले।”
मैंने जैल ली और वापस आ गया। वो रात भी शांति के साथ गुजर गयी। पिछले दिनों इतनी चुदाईयां हो गयीं थीं कि चुदाई की तलब भी नहीं हो रही थी।
खैर, अगले दिन, यानी चौथे दिन सुबह ज्योति आयी और बोली, “जीते मैं जा रही हूं श्रेया को छोड़ने। शीला शाम को आयेगी, और रात यहीं रुकेगी। तेरी तैयारी पूरी है ना।”
मैंने भी बोल दिया “पूरी है भरजाई, आगे की भी, और पीछे की भी।” और मैंने लंड खुजलाया। ज्योति मुझे लंड खुजलाता देख कर हंसी और चली गयी।
मैं मुड़ कर कमरे में घुसा ही था, कि तभी मेरी नाक में चमेली की खुशबू आयी।
चम्पा आयी थी।
जो लंड कुछ टाइम पहले चूत चुदाई के लिए बेचैन नहीं था, चमेली की खुशबू से हरकत में आ गया।
सीढ़ियां चढ़ने से पहले दरवाजे में से झांक कर बोली, “राम राम साहब। क्या बात है बड़े दिनों से दिखे नहीं आप?”
मैंने भी लंड हिलाते हुए कहा, “आजा फिर, आज देख ले।”
चम्पा भी हंस कर बोली, ” आती हूं साहब, ऊपर भाभी का काम निपटा लूं। पीछे की सीढ़ियों से आती हूं।” पीछे की सीढ़ियों से आने का मतलब ही ये था कि चुदाई का चक्कर चलने वाला था। मैं जब से इस पोर्शन में रहने के लिए आया था, पीछे की सीढ़ियां तो इस्तेमाल ही इसी काम के लिए हो रहीं थीं, चुदाई के लिए।
पौने घंटे के बाद चम्पा आ गयी, पीछे की सीढ़ियों से, चमेली की खुशबू बिखेरती हुई। मैं ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठा हुआ था। आ कर मेरे बिल्कुल मुंह के आगे खड़ी हो गयी। कद की छोटी होने के कारण उसके भारी मम्मे मेरे मुंह के आगे थे।
मैंने सोचा यही ज्योति या शीला, और या अब नैंसी होती, तो उनकी पेट की टुन्नी मेरे मुंह के सामने होनी थी।
मैंने चम्पा को चूतड़ों से पकड़ा और दबाते हुए पूछा, चम्पा बता आज क्या चुदवायेगी, गांड या चूत?”
चम्पा हंसी, “साहब ये तो आप मुझसे पूछा ही ना करो। ये आपकी मर्जी है। चूत चोदनी है तो चूत चोद लो, गांड चोदने का मन है तो गांड चोद लो। अगर दोनों में लंड डालना है तो दोनों चोद लो।”
मतलब चम्पा आज भी चूत और गांड दोनों चुदवाने के मन से आई थी। मैंने भी सोचा क्या खुले दिमाग वाली औरत थी।
मैंने कहा “तो फिर ठीक है। जैसे उस दिन सब से ज्यादा मजा आया था वैसे ही लेट जा। रगड़ता हूं।”
चम्पा बोली , “साहब आज टाइम थोड़ा कम है, कुछ ऐसे करो कि दोनों का काम जल्दी हो जाएं।”
मैंने कहा, चल फिर चूत चुसाई लंड चुसाई छोड़ और साड़ी ऊपर करले और लेट जा उल्टी हो कर, पहले तेरी गांड का ही काम कर देता हूं।”
चम्पा ने कमर तक साड़ी उठाई साड़ी उठाई, और बेड के किनारे पर चूतड़ उठा कर उल्टा लेट गयी।
चंम्पा का रंग जरूर सांवला था, मगर भरे-भरे चूतड़ों पर एक अजीब सी चमक थी, और चूतड़ों की गोलाई नैंसी के चूतड़ों से कहीं ज्यादा सेक्सी थे। मेरा लंड एक-दम खूंटा बन गया। मुझे शीला की चूतड़ों पर संधू के काटने से बने नीले निशान याद आ गए।
मैं झुका और चंम्पा की गांड को हल्के से काटा। चम्पा ने सिसकारी ली, “आह साहब ये क्या कर रहे हो। बड़ा मजा आया, जरा जोर से काटो ना साहब।”
मैंने हल्का जोर से काटा। चम्पा ने फिर सिसकारी ली, “आआह साहब,बड़ा मजा आता है।” मैंने सोचा ये सिर्फ शीला ही नहीं, चुदाई के दौरान काटने कटवाने का सभी औरतों को मजा आता है।
ऐसे कुछ देर चुम्मा चाटी और चम्पा के चूतड़ों पर दांत मारने-काटने के बाद मैंने जैल गांड की छेद पर लगाई। फिर कंडोम लंड पर चढ़ाया, लंड गांड के छेद पर रक्खा, और धीरे से अंदर धकेल दिया।
चम्पा बोली, “आह साहब क्या फिसल कर गया है आज। चलो साहब अब करो रगड़ाई, चोदो मेरी गांड।” और साथ ही चम्पा ने नीचे हाथ डाल कर चूत का दाना रगड़ना शुरू कर दिया। चम्पा सब कुछ जल्दी-जल्दी कर रही थी। लग रहा था चूत कुछ ज्यादा ही गरम हो गयी थी, और एक-दम ही चुदवाने का मन आ गया था।
मैं चम्पा को कमर से पकड़ कर लम्बे-लम्बे धक्के लगा रहा था। खूब रगड़े लग रहे थे। जल्दी ही चम्पा चूतड़ आगे पीछे करने लगी, और साथ जोर-जोर से चूत रगड़ने लगी। अचानक ही चम्पा जोर से चिल्लायी, आअह साहब… निकल गया मेरा, लगाओ दो चार जोर के रगड़े, आह आह।”
मैंने भी ऐसे जोर-जोर से धक्के लगाए, और चम्पा को ऐसा कस के कमर से पकड़ना पड़ा, कहीं गोल मटोल चम्पा आगे की तरफ ही ना लुढ़क जाए।
चम्पा ने सिसकारियां ली, “आअह…. आआह…… साहब बस, बस हो गया। निकल गया मेरा। मजा आ गया।”
मैंने धक्के बंद कर दिए। लंड खड़ा ही था। कुछ देर बाद जब चम्पा का मजा उतरा तो बोली ,”साहब लगता है आपका नहीं निकला? फिर चोदोगे क्या?”
मैंने कहा, “क्यों चम्पा चूत नहीं चुदवानी क्या? तूने नीचे लेट कर चुदवा कर एक बार और मजा लेना है तो बता।”
चम्पा बोली, “आ जाओ साहब दे ही दो एक और मजा। जब आप ऊपर लेट कर कस के पकड़ कर चोदते हो तब बड़ा मजा आता है।”
मैंने लंड निकाल लिया। चम्पा की नजर अभी भी कंडोम पर नहीं पड़ी। उसके सर पर तो चुदाई का मजा सवार था। वो उठी और सीधी लेट कर टांगें उठा कर फैला ली। नीचे तकिये की तो जरूरत ही नहीं थी।चम्पा के तो चूतड़ ही तकिये का काम कर देते थे।
मैंने लंड चूत पर रखा और कस के एक धक्का लगाया और लंड जड़ तक अंदर पहुंचा दिया। चम्पा को नीचे बाहें डाल कर जकड़ा और चुदाई चालू कर दी। चम्पा ने भी मुझे बांहों में भींच लिया, और पीछे मेरी कमर को अपनी टांगों में जकड़ लिया।
मेरे धक्कों का जवाब चम्पा चूतड़ घुमा-घुमा कर दे रही थी। इसमें कोई शक नहीं कि चम्पा चुदाई खुल कर करवाती थी, और उसका कोई मुकाबला नहीं था।
पंद्रह मिनट की चुदाई के बाद चम्पा ने फिर सिसकारियां लेनी शुरू कर दी। आह, क्या साहब आह, बस अब निकलेगा मेरा। पानी छोड़ रही है मेरी चूत आह, क्या मजा आ रहा है आह लगाओ साहब आने वाला है, अब मत रुकना, आह करो आह साहब आह”
और बड़े ही जोर से चूतड़ घुमा कर चम्पा ढीली हो कर लेट गयी।
मैं भी खड़े खूंटे के साथ चम्पा के ऊपर ही लेटा रहा। जब चम्पा का मजा उतरा तो बोली, “साहब आप जैसे चुदाई करते हो, मुझे तो पूरी-पूरी रात मजा ही आता रहता है। मेरी तो चूत अभी भी भरी हुई है। लगता है आपका तो इस बार भी नहीं निकला।”
जैसे ही मैंने खड़ा लंड चम्पा की चूत में से बाहर निकाला, चम्पा ने फिर सिसकारी ली “आह साहब।”
मैं उठा और बाथरूम चला गया। वापस आया तो चम्पा साड़ी नीचे करके खड़ी थी। चम्पा ने जब मेरा खड़ा लंड देखा, तो धीरे से मेरे लंड को पकड़ कर शरारत से बोली, “साहब क्या बात आज लंड का पानी ना आपने मेरी गांड में निकाला, ना चूत में, लगता है कहीं और निकालने का प्रोग्राम है?”
मैं अब इसका क्या जवाब देता। चम्पा भी मेरे जवाब का इंतजार किये बिना चली गयीI चम्पा को चोदने के बाद मैं बैठा शाम की होने वाली चुदाईयों का इंतजार करने लगा।