थोड़ी देर बाद चारों बच्चे और नौकरानी मेरे कमरे में ही नाश्ता वग़ैरह लेकर आये। आरती और अभिनव आकर मेरे पास बिस्तर में चढ़ गए और मुझसे पूछने लगे कि मेरी तबियत कैसी थी और मुझे प्यार करने लगे। अभिषेक और अखिल सामने खड़े होकर मुस्कुरा रहे थे। वो दोनों भी आकर मेरे पास बैठ गए और मेरा हाथ पकड़ कर सहला रहे थे। मुझे बहुत ख़ुशी होती है, जब मेरे चारों बच्चे एक साथ होते हैं मेरे साथ।
आज गोवा में हमारा आखरी दिन था, तो मैंने अखिल और अभिषेक को कहा कि वो बाकी दोनों बच्चों को कहीं घुमाने ले जाए। मुझे चलने में भी दिक्कत हो रही थी, तो मैंने उनसे आग्रह किया कि वो चारों चले जाए, और मुझे थोड़ा आराम करने दे, और बाकी कर्मचारियों को भी देख ले।
थोड़ी देर बातचीत करने के बाद चारों बच्चे घूमने निकल गए। मैं नहीं चाहती थी, कि मेरी वजह से उनका दिन ख़राब हो। वैसे भी आज आखरी दिन था।
नाश्ता वग़ैरह करके मैं सो गयी, और सीधा शाम के वक़्त मेरी नींद खुली। मैंने एहसास किया कि शरीर में दर्द कम हुआ था। चूत और गांड की सूजन भी कम हुयी थी, पर दर्द था अभी भी।
किसी तरह मैं बिस्तर से उठी और पेशाब करने गयी। जब अपने पयजामे को खोला तो देखा कि चूत अभी भी बिलकुल लाल ही थी। सामन्य होने में अभी समय लगने वाला था। मुझे दुःख होने लगा कि आज ये आखरी रात थी हमारी गोवा में, और मेरे दोनों बेटों के साथ आज शायद चुद नहीं पाऊँगी।
खैर, मैं कमरे से बाहर निकल कर नीचे चली गयी। थोड़ी देर बाकी सब से बातें करने लगी। कुछ देर में बाहर गए लोग आ गए, मेरे चारों बच्चे भी घूम घाम के आ गए। सब के हांथो में मैंने थैली वग़ैरह देखी। अभिषेक ने सबकी शॉपिंग करवाई थी। मैंने उनके साथ बैठ के देखा कि उन्होंने अपने लिए क्या क्या ख़रीदा था।
कुछ कपड़े थे, टोपी थी, और ऐसी ही छोटी-मोटी चीज़ें थी। उसने मुझे भी दो-तीन थैली देते हुए कहा, “ये माँ आपके लिए, ऊपर जाके देखियेगा।” तो मैं समझ गयी कि यहाँ देखने से मना कर रहा था।
कल सुबह हमारी फ्लाइट थी, और बाकी सब की ट्रेन भी थी, तो मैंने सब को जल्दी सो जाने को कहा, ताकि कल किसी की ट्रेन ना छूटे। मैंने नौकरानी से कह दिया, कि वो अभिनव और आरती के रूम में उनके बैग वग़ैरह पैक कर दे, सफर के लिए ज़रूरी सामान वग़ैरह सब रख ले। सब कुछ देख दाख कर बच्चों को गुडनाईट कह कर मैं अपने कमरे में आ गयी। मैंने नौकरानी को कह दिया, कि मेरे कमरे में आकर पानी की बोतल रख जाए, दरवाज़ा खुला रहेगा।
मैं अपने कमरे में आकर अपना सारा सामान भी समेटने लगी। अभिषेक के दी हुई थैलियों को बैग में रखने से पहले एक बार देखा, कि मेरे बच्चें मेरे लिए क्या लाये थे। थैली से सामान निकालते ही मैं शर्मा गयी। 10 अलग-अलग रंग की डोरियों वाली बिकिनी, कुछ अच्छे टॉप जो बाहर पहने जा सकते हैं, एक गाउन ड्रेस, कुछ सीप से बने कान और गले के हार वग़ैरह। मुझे सब देख के बहुत ख़ुशी हुयी।
सारी चीज़ें समेटते हुए देर हो गयी। मैंने खुद को देखा तो पाया कि मेरे अंदर से पसीने की बदबू आ रही थी। सुबह बेटों ने सिर्फ तौलिये से साफ़ करके कपड़े पहना दिए थे। मैं पूरे दिन नहायी नहीं थी। और कल इतनी बार वीर्य और पसीना और थूक शरीर पे गिरने की वजह से अजीब सी ही बदबू आ रही थी बदन से।
मैंने सोचा थोड़ा खुद को साफ़ करके नहा लेती हूँ तो नींद अच्छी आएगी।
मैं जब अपने बाथरूम में गयी, तो इतने बड़े बाथ टब का ख्याल आया। सोचा क्यों ना आखरी दिन इस का भी लुत्फ़ उठाया जाए। पानी गरम करके, बाथटब का स्पेशल साल्ट और फोम वग़ैरह सब वहीं रखा हुआ था। मैंने अपने लिए बाथटब तैयार कर लिया, और नंगी होकर टब के अंदर जाकर लेट गयी।
ओह्ह… गरम पानी इस थके और दर्द वाले शरीर में ऐसा लग रहा था, मानो निरवाना प्राप्त हो गया हो। मैं थोड़ी देर ऐसे ही लेट गयी बाथटब में।
तभी बाथरूम के दरवाज़े पे मुझे खट-खट सुनाई दी। मुझे ध्यान आया मैंने नौकरानी को बोला था बोतल के लिए। तो मैं बाथरूम से ही चिल्लाई, “हाँ, टेबल पर ही रख दे।”
इतने में बाथरूम का दरवाज़ा खुला और देखा कि मेरे दोनों शैतान खड़े थे। मुझे देख कर दोनों अंदर आ गए।
“अरे, तुम दोनों शैतान हो। मुझे लगा कामवाली है। तुम दोनों सोये नहीं?”, मैंने दोनों से सवाल किया।
तो अभिषेक बोल पड़ा, “नहीं माँ, आज ये आखरी रात हमें आपके साथ बितानी थी, तो हम आपके पास आ गए।” और ये कहते ही दोनों मेरे पास आ गए और टब के बाहर ही फर्श पर बैठ गए और अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया।
मुझे बड़ी दया आयी कि मेरे दोनों शेरों के साथ मैं आज कुछ नहीं कर पाऊँगी, क्यूंकि मेरी बिल्कुल भी हिम्मत नहीं थी। पहली बार इतनी ज़्यादा ताबड़-तोड़ ठुकाई होने की वजह से मेरी हालत खराब हो गयी थी। मैंने दोनों के माथे पर सहलाते हुए कहा, “मुझे माफ़ करना मेरे शोना, मेरे बाबू, मैं अभी हिम्मत नहीं जुटा पा रही फिर से इतनी ताबड़-तोड़ चुदाई की।” और दोनों को हलके से मारते हुए कहा, “और गलती तुम दोनों शैतानो की ही है। कल रात इतनी बेरहमी नहीं दिखाते, तो आज भी चोद सकते थे।”
दोनों शैतान खिलखिलाने लगे। बहुत शैतान थे, मेरे दोनों बंदर। तो अखिल बोल पड़ा, “माँ अपने ही तो कहा था आपको कुतिया बना कर….”, और खिलखिलाते हुए चुप हो गया।
तो अभिषेक ने बोला, “नहीं माँ, आज हम बस आपके साथ रात बिताना चाहते हैं। हमें चुदाई नहीं करनी। बस आपके पास बैठ कर प्यार करना है।”
मैंने फिर दोनों के माथे को प्यार से सहलाया। और माथे को चूमने की कोशिश की पर अपने गर्दन को मोड़ नहीं पायी। तो मैंने उन्हें टब के अंदर आने का इशारा करते हुए कहा, “आ जाओ, टब के अंदर आओ, दोनों बाबू को ज़रा प्यार कर दूँ।”
अब वो अंदर आएंगे तो उनके कपड़े गीले हो जाएंगे तो मैंने उन्हें कपड़े खोल कर ही आने को कहा। दोनों नंगे होकर आ गए। और मैं दोनों को बारी-बारी चूमने लगी। वो भी मुझे चूमते। अब अगर आदमी और औरत का बदन नंगा हो और हाथ इधर-उधर ना जाए, ऐसा हो ही नहीं सकता।
वो बहुत ही प्यार से मेरे दुदू को चूमने लगे। मेरे भी हाथ पानी के अंदर जाकर उनके लौड़े के साथ खेलने लगे। मैं उनके लौड़े को सहलाने लगी, और धीरे-धीरे आगे-पीछे करने लगी। दोनों बारी-बारी से कभी मेरे होंठो को चूमते, कभी मेरे गले और गर्दन को हलके से काटते, कभी मेरे दुदू को चूसते।
वो इस बात का बखूबी ध्यान रख रहे थे, कि मेरे शरीर में दर्द था। अभिषेक अपने हांथो को नीचे ले गया, और हलके हांथो से मेरी चूत को सहलाने लगा। वो मेरी चूत की मसाज कर रहा था। दर्द के कारण उसके मसाज से काफी आराम मिल रहा था। कल रात जितने बेरहम थे मेरे दोनों शेर, आज उतनी ही सौम्य तरीके से मुझसे प्यार कर रहे थे।
मेरे मुँह से बिल्कुल धीमी आवाज़ में ओह्ह या, आह उफ़ उफ़ ह, हह, ओह, उफ़” निकल रहा था। इतने में अखिल ने अपने भैया को इशारा किया की वो हाथ हटा दे। और अखिल पानी के अंदर अपना सर डाल कर सीधा मेरी चूत के पास चला गया और अपने गरम-गरम होंठो से मेरी चूत के होंठों को सहलाने लगा। मैं सातवें आसमान में पहुंच गयी। मैं अखिल के बालों को पकड़ कर अपने चूत पे हलके से दबाने लगी। वहीं दूसरे हाथ से अभिषेक के गोटों को सहला रही थी।
मुझे अब बुरा लगने लगा कि मेरे दोनों लाल मेरी चूत और गांड नहीं चोद पा रहे, पर अपनी माँ के दर्द को कितने अच्छे से समझ कर उसकी सेवा कर रहे थे। मेरा दिल पसीज गया, “आ जा मेरे शोना, मेरी चूत चोद दे मेरे बेटु।”, मैंने अभिषेक को इशारा करते हुए कहाँ।
तो उसने मना करते हुए कहा, “नहीं माँ। आज कोई ज़रूरत नहीं। आप आज हमें आपकी सेवा करने दीजिये। हम फिर बाद में कर लेंगे चुदाई।”
तो मैंने उसके हांथो को पकड़ कर सामने की तरफ खींचते हुए कहा, “बेटु, तुम चारों को जन्म देने के लिए ये चूत इस दर्द से कई गुना ज़्यादा दर्द सही है। ये दर्द तो कुछ भी नहीं। कल तक ठीक हो जायेगी। तू आजा। ”
तो जैसे उसने सामने आकर, मुझे ज़रा से उठा कर मेरी चूत में लंड डाला, मैंने देखा मेरा अखिल निराश होकर अपनी जगह तलाश रहा था। मुझे हंसी आयी, “आजा मेरा बेटु, तेरा नाग मेरे मुँह में डाल दे, शोना। माफ़ करना, तेरा ये लौड़ा लेने की हिम्मत नहीं है आज। पर तुझे निराश नहीं करुँगी मैं। आजा, मेरा बाबू, तू मेरा मुँह चोद दे।”
उसके लौड़े को मैं अपने सामने खींच लायी, और मुँह में ले लिया। आज अखिल बहुत ही सौम्य तरीके से अपना लौड़ा अंदर बाहर कर रहा था। उसके लौड़े को मैं जीभ से लपेट-लपेट कर चूस रही थी। कुछ यूँ ही हमारा प्यार चला और अखिल मेरे मुँह में झड़ गया और अभिषेक मेरी चूत में।
फिर दोनों ने मुझे पकड़ कर टब से उठाया। मुझे तौलिये से पोंछा, खुद को पोंछा, और हम तीनो नंगे ही बिस्तर पर आ गए। मैं अपने दोनों बेटों के बीच में सो गयी। कुछ देर एक-दूसरे को चूमने के बाद, दोनों का लंड सहलाते हुए, वो भी बीच-बीच में मेरे पेट पे हाथ फिराते, दुदू को हलके से दबाते, अपने लौड़े को मेरे बदन पे सहलाते हुए हम सो गए।
और अगले दिन हम वापस अपने शहर, दिल्ली, आ गए। हमने निश्चय किया कि हर साल हम एक हफ्ते के लिए कहीं ना कहीं सपरिवार घूमने जाएंगे।
दिल्ली आकर हम अपने बिज़नेस में व्यस्त हो गए। अखिल ठीक ठाक नंबर से बारहवीं पास कर गया। अब वो अपने फुटबॉल और स्पोर्ट्स-वियर के काम में भी व्यस्त हो गया।
धीरे-धीरे दिल्ली में हमारे 8 शोरूम हो गए, 2 हमने गुडगाँव में खोल लिया, 1 हमने फरीदाबाद में खोल लिया, 1 हमने नॉएडा में खोला जो चंद महीनों में किसी कारण बंद भी करना पड़ा। अखिल ने 6-7 महीने खूब मेहनत की और हमने अपना स्पोर्ट्स-वियर कलेक्शन लॉन्च किया।
हमारा ब्रांड अच्छा चल रहा था पर 2015-16 में बिक्री थोड़ी धीमी हो गयी, क्यूंकि अब बड़े-बड़े विदेशी ब्रांड आकर सस्ते दामों में कपड़े बेचने लगे, और सारे ग्राहक इन विदेशी ब्रांड के पीछे भागने लगे।
इतने दिन हमने बिज़नेस में खूब पैसे कमाए, और अच्छा-खासा बड़ा कर लिया, गुडगाँव में भी एक 4 बी-एच-के की फ्लैट ले लिया, अभिषेक ने अपने शौंक की एक महंगी गाड़ी भी ली। पर अब किसी भी बिज़नेस का स्वाभाव ही ऐसा होता है, कभी ऊपर तो कभी नीचे।
अखिल का ध्यान बिज़नेस पर ज़्यादा बढ़ गया और धीरे-धीरे उसका फुटबॉल छूटता चला गया। उसने बहुत मेहनत की पर स्पोर्ट्स-वियर कलेक्शन की बिक्री कम होने लगी, तो हमारी कंपनी ने एक बाहर के कंपनी से डील कर ली। माल हमारा होता था और नाम उनका। तो बिज़नेस पहले से थोड़ा गिर गया था पर फिर भी हमारी अच्छी खासी आय हो जाती थी। हम अब भी ठाठ से ही रहते थे।
बाकी किसी भी व्यवसाय में आप हो, एक दिन अच्छा होता है और एक दिन बुरा। ऐसा ही चलता है व्यापारियों का जीवन।
हम तीनो की चुदाई भी होती रहती। बिज़नेस की वजह से कभी कभार नहीं हो पाती थी, पर फिर भी ठीक-ठाक हो जाती थी। अखिल अब अपनी गर्लफ्रेंड स्वाति की चुदाई ज़्यादा करता था। पर स्वाति उसको एक बार से ज़्यादा चोदने नहीं देती थी। वो अपनी गांड भी नहीं मरवाती थी, और नए-नए आसन में चुदने में असहज महसूस करती थी।
तो अखिल गुस्से में आकर मेरी बजाने लगता। मैं भी अपने बेटे के गुस्से को अपने अंदर ले लेती, तांकि वो स्वाति पे अपना गुस्सा ना निकाले। दोनों एक-दूसरे को प्यार करते थे।
अभिषेक जैसे-जैसे और बड़ा होता जा रहा था, उसका गुस्सा थोड़ा बढ़ता जा रहा था।
जिस दिन गुस्से में होता, उस दिन तो मुझे चोद-चोद कर बुरा हाल कर देता था। मुझे मार-मार कर चोदता और अपने गुस्से को शांत करता। जिस दिन वो ज़्यादा गन्दी गाली देगा, मतलब उस दिन कुछ ज़्यादा ही गुस्से में है।
कभी कभार हम कुछ बिज़नेस की ख़ुशी मनाते, तो तीनों फिर एक साथ चुदाई करते थे। अब मुझे दोनों बेटों का लौड़ा एक साथ लेने की आदत हो गयी थी।
दिल्ली आकर दोनों शैतानो ने एक साथ अपना लौड़ा चूत में डाला, दोनों लंड गांड में डाले। मुझे बिल्कुल रंडी ही बना दिया था मेरे दोनों शैतानो ने। पर मैं अपने बच्चों की लिए कोई भी दर्द सेह सकती थी। लेकिन एक बड़ी ही मज़ेदार और विचित्र बात पे मैंने गौर किया, कि मेरे दोनों बेटे एक दूसरे को कभी गाली देकर सम्बोधन नहीं करते थे। ना ही रोज़मर्रा की बातों में और ना ही हमारे आक्रामक चुदाई सेशन में।
वो मुझे हर तरह की गाली देते थे, पर एक-दूसरे को कभी नहीं देते थे। दोनों भाइयों में भी गज़ब का प्यार और एक दूसरे के लिए सम्मान था। बहुत ख़ुशी होती थी ये देख कर।
लेकिन बुरा हाल तब होता था, जब दोनों भाइयों के बीच मतभेद होता था। वैसे दोनों एक दूसरे की खूब इज़्ज़त करते पर जब दोनों का आपस में किसी बात पे झगड़ा होता या बेहेस होता, तो उसका गुस्सा वो मेरी चूत और गांड पर निकालते।
दोनों आपस में अनकहा कम्पटीशन करते कि माँ को पहले कौन झड़ायेगा। और उस दिन तो मेरा कचूमर निकाल देते दोनों शैतान। दोनों भाई भी एक-दूसरे को खूब समझते। जब सिर्फ एक को मेरी ज़रूरत होती, तो दूसरा बिना सवाल किये चला जाता। यही खूबी थी मेरे चारो बच्चों में, लड़ते थे झगड़ते थे, एक-दूसरे से मतभेद होते रहते थे, पर वो गुस्सा बस कुछ क्षण की बात होती थी।
एक और बड़ी खूबसूरत बात लगती थी मुझे अभिषेक और अखिल की। जब भी वो मुझ माँ से नाराज़ होते या किसी बात पे एक माँ-बेटे की अनबन होती, उस बात का गुस्सा वो कभी चोद कर नहीं निकालते थे। वो दोनों इस बात का पूरा ध्यान रखते कि अपनी माँ के बातों की इज़्ज़त बरकरार रहे।
पर दोनों मुझे बहुत अच्छे से समझते थे। जब मैं किसी कारण उदास होती या रोमांटिक होती, उस दिन वो मुझे उस अंदाज़ में प्यार करते। जिस दिन मुझमे वासना चढ़ी होती, उस दिन तो मेरी खैर नहीं।
अब मेरे शरीर में थोड़े बदलाव सही रूप से दिखने लगे थे। मेरी गांड इतनी ज़्यादा ठुकाई के बाद काफी बड़ी और सुडौल हो गयी थी, और इसका उभार साफ़ पता चलता था। मेरे दुदू भी हर रोज़ चुसाई और मार की वजह से थोड़े बड़े हो गए थे।
पर मैं अपने दोनों बेटों के लिए अपने पेट को सपाट और कमर को छरहरा रखने की पूरी कोशिश करती। मैंने थोड़ी बहुत कसरत शुरू कर दी थी।
मुझे कभी-कभी लगता अभिषेक कहीं मेरे लिए फंस तो नहीं गया? वो जवान था, उसे भी एक जवान खूबसूरत लड़की की ज़रूरत महसूस होती होगी।
मैंने कई बार उसे कहा है कि वो मेरी फ़िक्र ना करे, किसी और को पटाये, गर्लफ्रेंड बनाये, बाहर भी जाकर चुदाई करे, पर वो हमेशा बातों को टाल देता था।
कुल मिला कर मेरे दोनों बेटे मुझे बहुत खुश रख रहे थे। हम वैसे तो अपने ऑफिस की रेस्टरूम में ही चुदाई करते थे, पर कभी कभार घर पर कोई नहीं होता था, तो घर पे चुदाई कर लेते, पर बहुत ही कम।
अब बाकी दोनों बच्चे भी बड़े हो रहे थे। मेरी छोटी सी गुड़िया आरती एक बेहद खूबसूरत कन्या के रूप में बड़ी हो रही थी। अब उसका बदन भी बढ़ने लगा था। कम उम्र में ही उसके दुदू अच्छे बड़े हो गए थे। बिल्कुल पतली और बेहद खूबसूरत। मेरा मन करता था मेरी बेटी की रोज़ नज़र उतारूं। लेकिन आरती बिल्कुल पढ़ाई लिखाई में केंद्रित थी।
हर विषय में उसके 90 अंक से कम नहीं आते थे। उसके सपने कुछ और थे। आरती एकलौती बहन होने के कारण सबकी दुलारी थी। दोनों बड़े भाई तो उस पर अपनी जान न्योछावर करते थे। उसके लिए हर कुछ देने को तैय्यार थे, पर वो इन बातों का गलत फायदा नहीं उठाती थी। जो ज़रूरत की चीज़ें, बस वही लेती थी।
और हम सबका राजदुलारा, अभिनव। अभिनव इतना शर्मीला था कि क्या कहें। पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था। आरती से कम पर बाकी दोनों भाइयों से कई ज़्यादा। अभिनव मेरे जितने कद का हो गया था। शैतानी कभी-कभी ही करता, पर सबसे प्यारा था।
दोनों बच्चे अब बड़े हो रहे थे।
पर कहानी अभी बाकी है। इस पूरी कहानी में अब इन दो पात्रो की एंट्री होनी है। पर ना मेरी कोई ऐसी ओछी मंशा थी, ना अभिषेक की और ना ही अखिल की। और ना ही ऐसा कुछ आरती और अभिनव की तरफ से था। पर जो भाग्य में लिखा है, वो होना ही है। सोच कर कभी कुछ नहीं होता।
मैंने कभी नहीं सोचा था मेरी इतने अच्छे इंसान के साथ शादी होगी, ना ही सोचा कभी कि वो इतनी जल्दी मुझे छोड़ कर चले जाएंगे। कभी नहीं सोचा कि हम इतने बड़े बिज़नेस को चलाएंगे। ये तो कतई नहीं सोचा था कि मुझे अपने ही बड़े बेटे से इश्क़ हो जायेगा और दूसरा बेटा भी मुझे प्यार करेगा।
वक़्त-वक़्त की बात होती है।
आरती और अभिनव की एंट्री 2017-18 में हुयी। जब अगली बार कहानी लेकर आउंगी तो कुछ सालों की छलांग मार कर आउंगी।
2014 से लेकर 2017-18 तक कुछ ऐसा बड़ा नहीं हुआ। हम तीनो अपने बिज़नेस और चुदाई में व्यस्त रहे और अभिनव और आरती अपनी-अपनी पढ़ाई में।
चलिए, मिलते हैं मेरी इस कहानी के अगले अध्याय में। एक कहानी को लिखने में, फिर उसके सम्पादन में काफी समय लगता है। आरती और अभिनव वाला अध्याय कुछ दिनों बाद लिखूंगी।
आप सभी को फिर से मेरा नमस्कार।
मेरी लेखिका सहेली ने मुझसे कहा है कि मैं अपनी ईमेल दे दूँ ताकि पाठक अपने राये और अपने अभिनन्दन भेज सके।
आशा करती हूँ आप अच्छी बातें लिखेंगे। कोई बात पसंद ना आयी हो तो ज़रूर लिखें, कुछ सवाल हो तो ज़रूर पूछे पर हाथ जोड़ कर विनती है कि कोई भी ओछी बात ना लिखे। उससे मेरा मनोबल गिर जाएगा।
धन्यवाद।