हां तो हम बात कर रहे थे साईंस की तरक्की की। तरक्की का आलम तो ये है कि रबड़ के लंड ही नहीं, रबड़ की चूत, रबड़ की गांड, रबड़ के मम्मे, रबड़ के होंठ – चुदाई के मजे लेने के लिए सब कुछ मिलता है – बस जान पहचान होनी चाहिए।
वैसे जो मजा सच-मुच के लंड से आता है वो इन नकली रबड़ के लंडों में कहां। वैसे मेरी तो कोशिश होती है इन चुदाई के खिलौनों का कम से कम इस्तेमाल किया जाये जाए, इमरजेंसी में। इमरजेंसी, हिंदी में कहा जाये तो आपातकालीन में। अब अगर आधी रात को चूत गरम हो ही जाए, और लंड मिलने की कोइ सूरत ना हो, तो कोइ कर भी क्या सकता है? ऐसे ही मौके पर ये लंड और दूसरी चीजें काम आती हैं।
मैं जब कभी कानपुर से बाहर जाती हूं और किसी होटल में रुकती हूं तो कभी-कभी वहां भी चुदाई करवा लेती हूं।
मगर वहां चुदाई करवाते वक़्त मैं ये नहीं देखती कि चोदने वाला कौन है। बस ये देखती हूं कि देखने में बढ़िया होना चाहिए और उसका लंड मेरे रबड़ के लंड की टक्कर का होना चाहिए। सात इंच लम्बा और दो इंच मोटा। कई बार तो होटल के कमरे की सफाई करने वाले से भी चुदवा लेती हूं। एक बार के मजे, उसके बाद राम राम। तू अपने रास्ते, मैं अपने रास्ते।
यही वो सब कारण हैं जिनके चलते कम से कम चूत की आग बुझाने के लिए मैंने शादी जैसे बंधन में बंधने की जरूरत कभी नहीं समझी । वैसे भी बहुत लंड ले लिए पढ़ाई करने के दौरान और पढ़ाई पूरी करने के बाद।
MBBS के बाद जब मैं MD और मनोचिकित्सक का कोर्स कर रही थी। मेरा सीनियर डाक्टर, जिसके मातहत मैं ट्रेनिंग कर रही थी, मुझे मेरी एक भी समस्या का हल तब तक नहीं बताता था जब तक वो मेरे होंठों की चुम्मी ना लेले, और मैं उसका लंड ना पकड़ लूं।
मेरी मनोचिकित्सा की पढ़ाई की कापियों पर हस्ताक्षर करने के बदले में ये अधेड़ उम्र के खस्सी सीनियर डाक्टर मुझे चोदते थे विआग्रा की गोलियां खा-खा के।
अब मैं भी उम्र के उसी पड़ाव पर अधेड़ और अब इन MBBS पास नए-नए जवान लड़कों से, जो मनोचिकित्सक बनना चाहते हैं और मनोचिकित्सा की पढ़ाई कर रहे होते हैं, जब मेरे पास सलाह के लिए आते हैं तो मैं इन जवान लड़कों को साफ़ बोलती हूं, “सलाह चाहिए? हस्ताक्षर चाहिये? पहले मेरी चूत की प्यास बुझाओ। चोदो मुझे पहले फिर मिलेगी सलाह और साथ मिलेंगे हस्ताक्षर।”
इसको कहते हैं जैसे को तैसा। ये दुनिया ऐसी ही है।
अब कोइ ये ना पूछे के 52 साल की पढ़ी-लिखी औरत, और ये सब क्यों? क्या 52 साल की औरतों की चूत नहीं होती? क्या पढ़ी-लिखी औरतों की चूत नहीं होती? क्या उनकी चूत पानी नहीं छोड़ती? क्या उनकी चूत में आग नहीं लगती ?
बस यही कमी है हम हिन्दुस्तानियों में। बालों में सफेदी क्या आनी शुरू हुई कि अपने आप को हद्द दर्जे का बूढा और खस्सी समझने लगते हैं। जा कर देखो अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रेलिया में। पचास-पचास, पचपन-पचपन साल की औरतें मस्त चुदाई करवाती हैं वो भी जवान लड़कों से।
वहां के अखबारों में तो इस आशय के विज्ञापन भी छपते हैं। हस्पताल की नौकरी के दौरान जब कभी हस्तपाल वाले एडवांस ट्रेनिंग के लिए मुझे इन देशों में भेजते थे, मैं तो खुद चुदाई करवाती थी जवान लड़कों से।
चलिए वापस आते हैं रिश्तों में चुदाईयों पर जिसके बारे मैं मैंने विशेष रूप से बात करनी है।
चुदाई की जो कहानियां मैं पढ़ती हूं, उन कहानियों में मुझे रिश्तों में चुदाई की कहानियां मुझे बहुत प्रभावित करती हैं। बाप-बेटी की चुदाई। मां-बेटे की चुदाई। भाई-बहन की चुदाई और दो बहनों के समलिंगी सम्बन्ध।
इसका कारण है कि एक मनोचिकित्सक होने कि नाते मैं खुद ऐसे संबंधों कि बारे में बहुत कुछ जानती हूं, और मुझे ऐसे लोगों से दो-चार होना पड़ता है। जिनमें किन्हीं कारणों से ऐसे रिश्ते बन जाते हैं। कभी-कभी इस तरह के रिश्ते जैसे बाप-बेटी में, मां-बेटे में, या भाई बहन में चुदाई के रिश्ते बन तो जाते हैं, मगर ना तो ऐसे रिश्ते ज़्यादा समय तक चलते है, और ना ही ऐसे रिश्तों का अंत सुखद ही होता है।
कई बार तो वक़्त गुजरने के साथ ये रिश्ते एक समस्या का रूप ले लेते हैं और फिर ऐसे रिश्तों का अंत पागलपन या आत्महत्या के प्रयास से होता है। ऐसे ही मौके पर लोगों को मेरी, मालिनी अवस्थी की, एक मनोचिकित्सक की जरूरत पड़ती है। ऐसे लोगों की मदद करने के बदले में मैं उनसे कोइ फीस नहीं लेती I ऐसे लोगों की मदद करना मेरे लिए धर्मार्थ काम है।
लेकिन हां, वो बात अलग है कि अगर कभी मन हुआ तो और इन आने वाले लोगों में से आने वाला या आने वाली देखने में बढ़िया हुई तो फिर मेरा क्लिनिक के पीछे वाला कमरा बड़ा काम आता है। मैं उन्हें अपने क्लिनिक के पीछे वाले अपने प्राइवेट कमरे में लेजा कर अपनी फीस वसूल कर लेती हूं।
परिवार में चुदाईयों की कहानियां मैं शुद्ध मनोरंजन की खातिर पढ़ती हूं, वरना ये अक्सर ये कहानियां सच्चाई से कोसों दूर होती हैं और केवल उन लोगों के मनोरंजन के लिए लिखी जाती हैं। वैसे मुझसे पूछो तो होना भी यही चाहिए।
इन कहानियों में लंड, चूत, फुद्दी, चूतड़, गांड, चुदाई जैसे शब्दों का प्रयोग खूब होता है और यही पढ़ने वाले को मजा भी देते हैं। कहानियां पढ़ते-पढ़ते लड़के मुट्ठ मार लेते हैं और लड़किया चूत में उंगली कर लेती हैं।
मैं तो खुद भी इन कहानियों को पढ़ते-पढ़ते अपना रबड़ का लंड चूत में डाल कर चालू कर देती हूं और कहानी भी पढ़ती रहती हूं और चूत में लंड का मजा भी लेती रहती हूं। इन कहानियों को पढ़ने का एक कारण और भी है। मैं ये कहानियां इसलिए भी पढ़ती हूं, जिससे मुझे ये मालूम पड़ सके कि कहानी लिखने वालों का इन पारिवारिक संबंधों में चुदाईयों के प्रति क्या नज़रिया है।
वैसे जिस तरीके से कहानियों में रिश्तों में चुदाई का जिक्र होता है वास्तविक जीवन में रिश्तों में चुदाई ऐसे नहीं शुरू होती। एक दिन मैं ऐसी ही कहानी पढ़ रही थी। मां बेटे की चुदाई। बड़ी अजीब सी कहानी लिखी थी लेखक ने। जिस घर की ये कहानी थी, उस कहानी वाले घर में सब कुछ सामान्य चल रहा था।
एक दिन अचानक मां अपने बेटे के कमरे में गयी और उसका लंड चूसने लगी और बोली, “मुझे तेरी रखैल बनना है। चोद मुझे और मुझे रंडी बना दे,भोसड़ा बना दे मेरी इस चूत का। मुझे तेरे बच्चे की मां बनना है वगैरह वगैरह।”
बेटे ने पहले थोड़ी ना-नुकर की, लेकिन मां ने बेटे को चुदाई कि लिए मजबूर कर दिया। बेटे ने भी मां की चूत चूसनी शुरू कर दी और फिर उनमें चुदाई चालू हो गयी।
असल जिंदगी में चुदाई के रिश्ते ऐसे नहीं बनते।
असल जिंदगी में तो पारिवारिक रिश्तों में चुदाईयों के पीछे या तो कोइ मजबूरी या किसी तरह के बदले की भावना होती है I या फिर कोइ नशा, जिसे चलते इंसान होश खो बैठता है, और वो सब कर देता है जो वो होश में रहते हुए नहीं कर सकता, मतलब चुदाई। बाप-बेटी में मां-बेटे में या फिर सगे भाई बहन में।
कई बार तो कुछ हालात इस तरह के बन जाते हैं कि पता ही नहीं चलता और रिश्ते पनप जाते हैं और फिर चुदाई हो कर ही रहती है। ऐसी ही मां-बेटे की चुदाई की एक कहानी पढ़ते-पढ़ते मेरे दिमाग में आया कि क्यों ना मैं ऐसे परिवार में चुदाईयों के अपने अनुभव इन कहनियों के पाठकों के साथ सांझा करूं।
मैंने ऐसे परिवार चुने जिनमें बाप-बेटी, मां-बेटा, भाई-बहन, दो बहनों में रिश्ते बने और चुदाई तक पहुंच गए। रिश्तों में ऐसी चुदाईयां हुई तो जरूर, मगर अंत में हालात ऐसे बने कि उन्हें मेरे जैसे मनोचिकित्सक की शरण में जाना पड़ा। तो शुरू करते हैं किन्हीं हालातों के चलते मां-बेटे में बने चुदाई के रिश्तों की ऐसी ही एक कहानी से।
ये आगरा के एक अंसारी परिवार की कहानी है जिसमे नसरीन अंसारी और उसके बेटे असलम अंसारी के बीच चुदाई के रिश्ते पनप गए और चार साल तक चले। इस रिश्ते में अंत में हालात ऐसे बन गए कि उन लोगों को मेरी – एक मनोचिकित्सक की जरूरत आन पड़ी।
नसरीन और उसके बेटे असलम का ये केस मेरे पास ये केस आगरा के एक ” रोशनी” नाम के NGO ने भेजा था। नसरीन अंसारी का बेटा असलम अंसारी असलम 24 साल का हो चला था, और उसकी अम्मी नसरीन अंसारी अब उसकी की शादी करना चाहती थी। उधर असलम का शादी के लिए मान नहीं रहा था।
असलम का शादी के लिए इनकार करना दीवानगी की हद तक पहुंच चुका था। हालात ये हो चुके थे असलम ने अपनी अम्मी नसरीन को धमकी तक देनी शुरू कर दी थी कि अगर उसने ने दुबारा से उसे शादी के लिए कहा तो वो या तो कहीं चला जाएगा या अपनी जान ले लेगा।
घबराई हुई नसरीन आगरा में ही अपने एक जानकार डाक्टर के पास मदद कई लिए गयी। नसरीन की बातों से डाक्टर को कुछ ठीक से समझ नहीं आया और उसने नसरीन को आगरा की ही एक NGO “रोशनी” के पास मदद के लिए भेज दिया।
जब नसरीन आगरा की उस “रोशनी” नाम की NGO को कुछ बता नहीं पाई तो उस NGO ने मुझसे सम्पर्क किया और नसरीन की मदद करने की गुजारिश की ।
मैंने रोशनी NGO वालों को दोनों मां-बेटे – नसरीन और असलम को कानपुर भेजने के लिए कह दिया।
अब तीन दिन पहले नसरीन और असलम कानपुर पहुंच चुके थे, और एक होटल में रुके हुए थे।
मैंने दोनों से अलग-अलग बात करने का फैसला किया और नसरीन को पहले बुलाया ताकि मुझे समझ में आ सके कि आखिर दोनों मां-बेटे में ऐसा क्या हुआ है कि बेटा इस तरह से शादी के लिए इंकार कर रहा है, और हालात धमकी देने तक आ पहुंचे हैं।
नसरीन जब मेरे क्लिनिक में आई तो मुझे पहली नजर में वो निहायत ही शरीफ और एक घरेलू किस्म की औरत लगी। गोरी सुन्दर और तंदरुस्त। हल्के गुलाबी गाल, खड़ी चूचियां, भरे-भरे उभरे हुए चूतड़ और कसे हुए शरीर वाली औरत। खुद को बयालीस साल का बता रही थी मगर देखने में और शरीर के कसावट के कारण बत्तीस-तैंतीस से ज्यादा नहीं लग रही थी।
नसरीन की फाइल के हिसाब से पांच साल पहले दिल का दौरा पड़ने से नसरीन के शौहर बशीर की मौत हो गयी थी। कायदे से नसरीन की चूत में पिछले पांच साल में लंड नहीं गया था। लेकिन नसरीन के चेहरे पर फैले हुए नूर से नहीं लग रहा था कि वो एक विधवा जैसा जीवन जी रही थी, जो चुदाई के लिए तरसती रहती हैं। नसरीन को देखने से ऐसा लग रहा था कि उसे चुदाई में कहीं कोइ कमी नहीं। उसकी चुदाई नियमित भी होती थी और मस्त भी होती थी।
मैंने NGO रोशनी द्वारा भेजी फाइल को ध्यान से पढ़ा और फिरसे पूछा, “नसरीन इस फाइल से जो मैंने समझा है वो ये है कि तुम्हारे शौहर पांच साल पहले गुजर गए। तब तुम सैंतीस साल की थी, और तुम्हारा बेटा असलम उन्नीस साल का था और कालेज में था। ठीक है?”
नसरीन ने कहा “जी हां।”
मैंने बात जारी रखते हुए कहा, “उस बात को पांच साल गुजर चुके हैं और अब जब कि असलम चौबीस साल का है। तुम उसकी शादी करवाना चाहती हो, मगर वो मान नहीं रहा। यही बात है ना?”
नसरीन बोली, “जी हां।”
मैंने पूछा, “क्या कहता है, क्यों शादी नहीं करना चाहता? तुम्हें देखने के बाद मैं ये सोच सकती हूं असलम भी देखने में अच्छा सुन्दर और तंदरुस्त होगा। क्या किसी के साथ – किसी के भी साथ मतलब ‘किसी के भी साथ’ उसका कोइ प्यार-व्यार का चक्कर चल रहा है? या फिर दूर-दराज की रिश्तेदारी में या आस-पड़ोस में किसी लड़की के साथ उसके जिस्मानी रिश्ते बन चुके हैं, जिनके चलते वो शादी नहीं करना चाहता?”
नसरीन ने कहा, “नहीं डाक्टर ऐसा नहीं है, अगर ऐसा होता तो मुझे जरूर पता होता। घर में हम दो जन ही तो हैं, मैं और असलम।”
ये बोल कर नसरीन जरा असहज हुई जैसे कुछ ऐसा कह दिया हो जो नहीं कहना चाहिए था। नसरीन धीरे से बोली, “अगर ऐसी कोइ बात होती, तो मुझे पता होता। असलम मुझसे कोइ बात नहीं छुपाता।”
मैंने पूछा, “अच्छा नसरीन ये बताओ असलम के साथ तुम्हारा रिश्ता कैसा है?”
नसरीन ने कहा, “जी ठीक है, अच्छा है जैसा एक मां बेटे का होता है।”
मैंने नसरीन की आंखों में देखते हुए पूछा, “मां बेटे जैसा या औरत मर्द जैसा?”
नसरीन सकपकाई, और बोली, “जी? मैं समझी नहीं।”
मैंने नसरीन को कहा, “देखो नसरीन, मैं एक मनोचिकित्स्क हूं। लोगों के चेहरे पढ़ना, उनके दिमाग में क्या चल रहा होता है, ये जानना मेरे पेशे का हिस्सा है। तुमने बताया की तुम्हारी उम्र अभी 42 साल की है और पांच साल पहले तुम्हारे शौहर गुजर गए जब तुम 37 की थी। ठीक है?”
नसरीन बोली कुछ नहीं मगर उसने ने हां में सर हिलाया।
मैंने बात जारी रखते हुए कहा, “नसरीन मैंने रोशनी NGO की तरफ से भेजी तुम्हारी फाइल पढ़ी है। इसने मुताबिक, तुम एक शरीफ घरेलू औरत हो जिसकी दुनिया उसके घर की चार दीवारी के अंदर ही सिमटी रहती है, जिसका घर ही उसकी दुनिया होती है।”
मैंने बात जारी रखते हुए कहा, “लेकिन नसरीन, तुम्हारे चेहरे पर जो चमक और नूर है वो एक ऐसी बात की तरफ इशारा करते हैं कि तुम्हें उस चीज की कोइ कमीं नहीं जो एक विधवा औरत को होती है – चुदाई की कमी। चूत में लंड ना जाने की कमी। ऐसी औरत जो लंड और चुदाई के लिए तरसती रहती है, अक्सर वक़्त से पहले ही बूढ़ी हो जाती है। लेकिन तुम में तो ऐसी कोइ बात नहीं है। तुम तो एक दम कड़क हो और तुम्हारे चेहरे पर भी पूरा निखार है।”
मेरी ये बात सुनते ही नसरीन का चेहरा गुलाबी हो गया। नसरीन मुझसे से नजर चुराने लगी।
मैंने बात जारी रखते हुए नसरीन के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, “मैं दावे के साथ कह सकती हूं नसरीन कि तुम्हारी चुदाई मस्त होती है, बढ़िया होती है, बिना किसी रूकावट के और बिना किसी डर के होती है I एक बढ़िया, तुम्हारा मनपसंद का लंड है जो तुम्हारी मनमर्जी की चुदाई करता है और मस्त तुम्हारी चूत का पानी छुड़ाता है और तुम्हें चुदाई का पूरा मजा देता है।”
नसरीन ना कुछ बोल रही थी, ना मुझसे नजरें ही मिला रही थी।
मैंने नसरीन का हाथ दबाते हुए पूछा, “अब बताओ नसरीन, कि असलम के साथ तुम्हारा कैसा रिश्ता है?”
मेरे ये कहते ही नसरीन सुबक-सुबक कर रोने लगी।
मैंने नसरीन को रोने दिया। जब नसरीन चुप हुई तो मैंने प्रभा को बुला कर दो चाय लाने के लिए बोल दिया। प्रभा चाय लेकर आ गयी। मैंने एक कप नसरीन के हाथ में दिया और बोली, “नसरीन मुझे अपने और असलम के बारे में सब कुछ साफ-साफ और तफ्सील से बताओ।
मैंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “नसरीन ये तो मैं अमझ चुकी हूं कि अपने बेटे असलम के साथ तुम्हारे जिस्मानी रिश्ते हैं, अब मुझे ये बताओ कि तुम्हारे असलम के साथ जिस्मानी रिश्ते कब और कैसे शुरू हुए, और कहां तक पहुंच गए? इससे मुझे ये समझने में आसानी होगी कि क्या कारण है कि असलम शादी के लिए इस तरह इनकार कर रहा है। कहीं तुम लोगो में पनप चुके ये जिस्मानी रिश्ते – चुदाई के रिश्ते ही तो इसके पीछे नहीं?
इस पर नसरीन कुछ देर चुप-चाप कुछ सोचती रही और फिर बोली, “ठीक है मैडम, मैं सब कुछ शुरू से साफ़-साफ़ बताती हूं।” नसरीन बोलने के लिए तैयार हो गयी।
मैंने नसरीन को कहा, “एक बात और नसरीन, तुम जो भी कहोगी, मैं वो रिकार्ड करूंगी। कई बार समस्या को समझने के लिए पूरी बात बार-बार सुननी पड़ती है। और ये भी हो सकता है कि तुम्हारी बात-चीत की ये टेप पूरी या इसके कुछ अंश मुझे असलम को भी सुनानी पड़े।
लेकिन हां, इस बात का एतबार रक्खो, असलम को मैं टेप का वह हिस्सा नहीं सुनाऊंगी जो मैं समझूंगी उसे, एक बेटे को नहीं सुनना चाहिए। जब तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी, तब ये टेप मैं तुम्हें दे दूंगी या तुम्हारे सामने इसे डैमेज कर दूंगी।”