नसरीन बता रही थी, “और यही गांड, फुद्दी, चूत, लंड, मेरी राजा, मेरी रानी बोलते-बोलते हम दोनों एक साथ झड़ गए।”
“कुछ देर बाद जब जमाल का लंड ढीला हो गया और जमाल मेरे ऊपर से उतर गया तो मैं उठी और कपड़े पहनने लगी।”
“जमाल लेटे-लेटे बोला, “भाभी थोड़ा और रुक जाओ एक चुदाई और करेंगे। अब पता नहीं मौक़ा मिलेगा या नहीं।”
“जमाल के इतना कहने भर की देर थी, कि मैं फिर से जमाल की बगल में लेट गयी।”
“जमाल ने करवट लेकर अपनी उंगली मेरी चूत में डाल दी, और मैंने जमाल का लंड अपने हाथ में ले लिया, और उसे सहलाने लगी। जल्दी ही जमाल का लंड खड़ा हो गया। मैंने एक बार जमाल की तरफ देखा और पूछा, “अब जमाल?”
“जमाल कुछ नहीं बोला, बस लेटा रहा। लग ही रहा था जैसे मेरी तरह जमाल भी हम दोनों के अलग होने से परेशान था।”
“जब जमाल कुछ देर ऐसे ही लेटा रहा, तो मैं ही उठी और उल्टी हो कर जमाल के ऊपर लेट कर अपनी चूत खोल दी। मेरी खुली चूत जमाल के मुंह पर थी और मैं जमाल का खड़ा लंड मुंह में लेकर चूस रही थी।”
“हमारी आख़री चुदाई यही थी। जमाल ने मेरी चूत चूस-चूस कर मुझे मजा दिया, और मैंने जमाल का लंड चूस-चूस कर जमाल को मजा दिया। जमाल के लंड से निकली जमाल के लंड के पानी की एक एक बूंद चाटने के बाद मैं उठी, कपड़े पहने, और बस इतना ही कह पाई, “चलती हूं जमाल।”
“मुझे लग रहा था कि अगर मैं कुछ देर भी और रुकी तो मेरे आंसू निकल जायेंगे।”
“जमाल दुबई जा चुका था। मेरा दूकान पर जाना बहुत कम हो गया था। मैं जब जाती भी थी तो मुझे ऐसा लगता था जैसे उस्मान मुझे घूर रहा था। जैसे कह रहा हो, अरे भाभी हमारे नीचे भी लेट जाओ, हमारा लंड भी ले लो अपनी चूत में, अपनी गांड में जैसे जमाल का लिया था।”
“अब ये मेरा वहम था या हकीकत थी। मगर मुझे जमाल की वो बात अब तक याद थी जब जमाल ने कहा था कि अगर मैंने उस्मान से एक बार चुदाई करवा ली, तो उस्मान सब यारों दोस्तों को चढ़ा देगा मेरी चूत पर।”
“मुझे इस ख्याल से ही डर लगने लगा। मैंने अपने आप से कहा, “नहीं-नहीं, अगर ऐसा हो गया तो असलम का क्या होगा। वो बेचारा तो मर ही जाएगा। लिहाजा मैंने दुकान पर जाना बिल्कुल ही बंद कर दिया।”
“असलम मुझे कुछ मैगजीन और फिल्मों के कैसेट ला देता और मैं उन्हीं में अपना सुकून ढूंढती। मगर चाह कर भी मैं जमाल का ख्याल अपने मन से निकाल नहीं पा रही थी। मेरी भूख कम हो गयी थी। मैं हर वक़्त चुप-चुप रहने लगी थी। असलम से मेरी उदासी छुपी नहीं थी।”
“एक दिन खाना खा कर मैं बिस्तर पर अधलेटी टीवी देख रही थी कि असलम कमरे में आ गया और मेरे पास ही बैठ गया।”
“असलम ने पूछा, “क्या बात है अम्मी, मैंने आपसे पहले भी पूछा था कि आप इतनी उदास क्यों रहती हैं। मगर अपने कुछ बताया ही नहीं। अब तो मैं देख रहा हूं, आपका खाना-पीना भी कुछ ठीक नहीं है। उस दिन मैं आपकी मनपसंद बिरयानी लाया, वो भी आपने ठीक से नहीं खाई।”
“मैं चुप रही। क्या कहती – मेरी चूत में खुजली मची हुई है, मेरी गांड झनझना रही है? मेरी चूत को लंड चाहिए? मेरी गांड लंड मांग रही है? मैं लंड चूसना चाहती हूं? मुझे चुदाई चाहिए?”
“असलम ने नीचे की तरफ देखते हुए कहा, “अम्मी जिस दिन से जमाल गया है, उसी दिन से उदास हैं आप। जमाल चला गया है क्या इस लिए उदास हैं आप?”
“मैं सकपकाई और बोली, “अरे जमाल का मेरी उदासी से क्या लेना देना? उसके जाने से मुझे क्या?”
“असलम ने वैसे नीचे की तरफ देखते हुए बड़ी ही धीमी आवाज में कहा, “अम्मी, जमाल ने मुझे अपने और आपके बारे में सब बताया हुआ है।”
“मैं सकते में आ गयी। मेरी आवाज जैसे मेरे गले में ही फंस गयी। फिर मैंने लगभग फुसफुसाते असलम से पूछा, “क्या? क्या बताया हुआ है असलम क्या कह रहे हो?”
“असलम बोला, “अम्मी पहले तो आप परेशान ना होईये। जमाल अब्बू का बड़ा ही वफादार नौकर था। अगर उसे दुबई ना जाना होता तो वो कभी ये दुकान का काम छोड़ कर ना जाता, हमेशा आपकी खातिर करता।”
असलम खड़ा होते हुए बोला, “अम्मी जमाल मुझे अपनी हर बात बताता था।”
“और इतना बोल कर बिना मेरी तरफ देखे असलम चला गया।”
“मुझे बाकी की रात नींद ही नहीं आयी। मैं तो यही सोच-सोच कर परेशान थी कि आखिर जमाल असलम को क्या श-क्या बता गया होगा? क्या वो चुदाई वाली मैगजीन पढ़ने की बात? चुदाई की फ़िल्में देखने की बात? वो पैन का कवर चूत में लेने की बात? लंड चूत चुसाई या फिर चूत और गांड चुदाई – क्या बताया होगा जमाल ने? यही बातें सोच-सोच कर मेरी तो नींद ही उड़ गयी, और बाकी की रात मैं सो ही नहीं पाई।”
“अगले दिन सुबह मैं असलम से आंखें नहीं मिला पा रही थी। मगर असलम ऐसे पेश आ रहा था जैसे की कुछ हुआ ही ना हो। या फिर असलम ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहा था जैसे कि सब कुछ ठीक ठाक है। उसे मेरे और जमाल की चुदाई के बारे में कुछ नहीं पता।”
“एक तरफ ये परेशानी कि आखिर जमाल ने मेरे और अपने बारे में असलम को क्या क्या बता दिया, दूसरी तरफ ये ख्याल कि अब चूत और गांड में लंड नहीं जाएगा – मेरी चुदाई नहीं होगी।”
“मैं तो यहां तक सोचने लगी कि आखिर बशीर की मौत के बाद मैंने दुकान पर जाना शुरू ही क्यों किया, जमाल से चुदाई ही क्यों करवाई। ना मैं दूकान पर जाती, ना जमाल के साथ मेरी चुदाई होती, और ना ये दिन आता।”
“पर वहीं बात – जो कल गुजर गया, उसे बदला नहीं जा सकता और आने वाले कल को जो होने वाला है वो हमारे काबू में नहीं – जो होना है वो होना ही है।”
“मेरी परेशानी और चुदाई की प्यास मुझे मायूसी – डिप्रेशन की तरफ धकेल रही थी। मेरा कुछ भी करने को मन नहीं करता था। कई बार तो चूत में ऐसी आग लगती कि मन करता जाऊं और जा कर उस्मान से कहूं, “चोद साले भड़वे, चोद मुझे। ला अपने सारे यारों दोस्तों को और रिश्तेदारों को और चढ़ा उनको बारी-बारी मेरे ऊपर मेरी चुदाई करने के लिए। बुझा मेरी चूत की आग, निकाल मेरी चूत का पानी।”
“मैं तो परेशान थी ही, मेरी परेशानी से असलम परेशान हो रहा था – और उसकी ये परेशानी मेरी परेशानी को और बढ़ा रही थी।”
असलम रोज पूछता, “क्या बात है अम्मी, क्यों इतना परेशान हैं आप? कुछ तो बताईये, कुछ चाहिए आपको?”
एक दिन दूकान के लिए निकलते हुए असलम बोला, “अम्मी आपको दुकान से दो चार अच्छी सी मैगजीन और फ़िल्में ला देता हूं, आपका मन बहल जाएगा।”
“उस दिन शाम को असलम आया और खाना खा कर सोने जाने से पहले मुझे एक पैकेट पकड़ा दिया और बोला, “अम्मी इसमें आपके लिए कुछ मैगजीन, दो फिल्मों की कैसेट और कुछ दूसरा सामान है।”
“इससे पहले की मैं कुछ बोलती या पूछती, असलम ने मेरे हाथ में पैकेट पकड़ाया और चला गया। मैंने कमरे में आकर पैकेट खोला। जो मेरे सामने था उसने मेरा दिमाग बिल्कुल सुन्न कर दिया।”
“पैकेट में चुदाई वाली दो मैगजीन थी। दो चुदाई वाली फ़िल्में थी और साथ था वो डेढ़ इंच मोटा और छह इंच लम्बा पैन का कवर था जो मैं जमाल का लंड मिलने से पहले चूत में लया करती थी।”
“अब शक की रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं थी कि असलम मेरी और जमाल की चुदाई के बारे मैं सब कुछ जानता था। मैं सोच रही थी अगर असलम ये सब जानता ही था तो फिर असलम ने मुझे रोका क्यों नहीं। क्या जमाल के साथ मेरी चुदाई असलम की रजामंदी से हो रही थी?”
“चुदाई की मैगजीन और कैसेट देख कर मेरी चूत पानी-पानी हुई जा रही थी। मेरा मन कर रहा था जल्दी से कैसेट चालू करूं और पैन का कवर चूत में डाल लूं।”
“मैंने दरवाजा अंदर से कुंडी लगा कर बंद कर दिया – कहीं ऐसा ना हो मेरे फिल्म देखते हुए असलम ही आ जाए। फिल्म चालू कर के मैंने सलवार उतारी और थूक लगा कर पैन का कवर चूत में डाल लिया। बड़े दिनों के बाद चूत में कुछ गया था। पांच ही मिनट में मेरी चूत पानी छोड़ गयी।”
“मैं ढीली हो गयी। पैन का कवर मेरी चूत में ही था उधर टीवी पर फिल्म चल ही रही थी। मेरी चूत फिर तैयार होने लगी।”
“कुछ देर रुक कर मैंने फिर पैन के कवर को चूत में अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। इस बार दस मिनट ये सब हुआ और चूत पानी छोड़ गयी।”
“अगले दिन सुबह असलम कुछ खुश-खुश सा लगा, जैसे उसके भी मन से कोइ बोझ उतर गया हो। मेरी अपनी भी यही हालत थी। मुझे असलम से नजरें मिलाने में शर्म तो आ रही थी। मगर थोड़ा बोझ मेरे मन से भी उतर गया था।”
“नाश्ता करके जाते हुए असलम बोला, “अम्मी अगर मैगजीन और फिल्म देख ली हों तो दे दो, आज दूसरी ले आऊंगा। मैं एक कैसेट ले आयी और असलम को पकड़ा दी।”
“असलम बोला, “दूसरी फिल्म नहीं देखी अम्मी? और वो मैगजीन?”
“मैंने खाली ना में सर हिला दिया, बोली कुछ नहीं, मेरी आवाज ही नहीं निकल रही थी।”
“असलम ने कैसेट पकड़ी और साथ ही मेरा हाथ भी पकड़ लिया और बोला, “अम्मी, जमाल बहुत याद आता है?”
“मैंने बिना नजर उठाये ही हां में सर हिला दिया।”
“जिस तरह से असलम मैगजीन, कैसे और पैन का कवर लाया था, इसमें कोइ शक ही नहीं था कि असलम मेरी और जमाल की चुदाई के बारे में सब कुछ जानता था। शाम हुई और असलम आ गया साथ ही एक फिल्म की कैसेट भी लाया था। कैसेट देते हुए बोला, “अम्मी बिल्कुल नई है बिल्कुल अलग तरह की।”
“कैसेट देते हुए असलम ने मेरे हाथ को पकड़ लिया। ऐसे तो असलम मेरा बेटा था हाथ पकड़ना कोइ बड़ी और नई बात नहीं थी, मगर ना जाने उस वक़्त मेरे मन में ये बात क्यों आई कि असलम ने कैसेट, वो भी चुदाई की कैसेट देते हुए मेरा हाथ क्यों पकड़ा? क्या असलम के दिमाग में कुछ चल रहा था?”
“खैर, रात हुई। खाना खा कर असलम जल्दी सोने चला गया। मैं भी कमरे में आ गयी।”
“कैसेट लगा कर दरवाजा अंदर से कुंडी बंद करने ही वाली थी कि मेरे मन में ख्याल सा आया। असलम मुझे इस तरह की चुदाई वाली मैगजीन और कैसेट ला कर दे रहा है। पेन का वो वाला कवर भी असलम ने ला कर दे दिया जिसे मैं चूत में लेती थी। इन सब का क्या मतलब है?”
“और अगर असलम मेरी और जमाल की चुदाई के बारे में जानता है तो क्या वो भी मेरे साथ कोइ अलग रिश्ता बनाना चाहता है? चुदाई का रिश्ता?”
“मन में ये ख्याल आते ही चूत में झनझनाहट सी हुई और मैंने दरवाजा बंद तो कर दिया, मगर कुंडी नहीं लगाई। मैंने असलम की लाई हुई नयी वाली कैसेट चालू कर दी और बिस्तर पर लेट गयी।”
“फिल्म में ग्रुप में चुदाई दिखाई गयी थी। बहुत सारे लड़के और लडकियां थे। अदला-बदली करके लड़के-लड़कियों को चोद रहे थे। एक सीन में लड़की झुकी हुई खड़ी थी। एक लड़का खड़ा हो कर पीछे से लड़की को चोद रहा था और दूसरे लड़के ने झुकी हुई लड़की के मुंह में लंड डाला हुआ था। दो लड़किया उन दोनों लड़कों की गांड चूस रही थी, और साथ अपनी चूचियां मसल रही थीं।”
“वैसे तो तकरीबन सभी चुदाई की फिल्में एक सी ही होती हैं, मगर फिर भी ग्रुप सेक्स की ये फिल्म थोड़ी सी अलग थी। फिल्म देखते-देखते मेरी चूत गरम हो गयी। मैंने सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार थोड़ी नीचे की और पैन के कवर पर थूक लगा कर उसे चूत में डाल लिया।”
“मैं लेटी हुई फिल्म देख रही थी और साथ ही कवर को चूत में धीरे-धीरे आगे-पीछे कर रही थी। मेरा पूरा ध्यान टीवी की तरफ थी। मुझे पता ही नहीं चला कब असलम आ कर बेड के पास खड़ा हो गया। मैं फिल्म देखने और पैन के कवर को चूत में अंदर-बाहर करने में ही मस्त थी।”
“कवर चूत में आगे-पीछे करते हुए मुझे लगा बेड के पास कोइ खड़ा है। मैं सर घुमा कर देखा, असलम खड़ा था। मैं हैरान और परेशान हो गयी। मेरा दिमाग सुन्न हो गया, मेरे मुंह से आवाज नहीं निकली। असलम और यहां?”
“तो मेरा अंदाजा सही ही था। असलम ये सब – मैगजीन, कैसेट, पेन का कवर मुझे ला कर दे रहा, जरूर असलम के दिमाग में कुछ कुछ चल रहा था।”
“असलम को उस वक़्त वहां देख कर मेरी तो बोलती बंद थी, असलम भी कुछ नहीं बोल रहा था।”
“मेरी हैरानी खत्म ही नहीं हो रही थी। असलम क्या सोच कर इस वक़्त कमरे में आया है? क्या असलम को पता था कि मैं चुदाई वाली कैसेट चालू करके पेन का ढक्कन अपनी चूत में डाला हुआ होगा?”
“जमाल भी तो ऐसे ही आया था जब मैंने कवर चूत में डाला हुआ था। तभी जमाल ने मेरी चूत चूसी थी और टांगें उठा कर अपने कंधों पर रख कर पहली बार मुझे चोदा था।”
“मैं सोच रही थी क्या असलम भी जमाल की तरह ही कुछ करेगा? मेरी चूत चूसेगा, मेरी टांगें अपने कंधों पर रखेगा और मेरी चूत उठा कर अपना लंड मेरी चूत में डालेगा और जमाल की तरह मुझे चोदेगा?”
“मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। असलम ऐसे ही गुमसुम सा खड़ा मेरी चूत को घूरता जा रहा था। क्या असलम पहली बार किसी औरत की चूत देख रहा था?”
“असलम को इस तरह एक टक मेरी चूत की तरफ देखते हुए मैं परेशान हो गयी। परेशानी में मैंने असलम को पूछा ,”असलम तुम यहां क्या कर रहे हो और ऐसे गुम-सुम से क्यों खड़े हो?”
“असलम कुछ बोल ही नहीं रहा था, बस मेरी चूत की तरफ देखता जा रहा था जिसमें अभी भी पेन का कवर डला हुआ था।”
“मैं शर्म के मारे मरी जा रही थी। पेन का कवर अंदर तक मेरी चूत में था, टीवी पर चुदाई की फिल्म चल रही थी, और मेरा अपना बेटा मेरे पास खड़ा था और एक टक मेरी चूत को देखता जा रहा था।”
“मैंने फिर आवाज दी, “असलम …..असलम।”
“मगर असलम था कि ना हिल-डुल रहा था, ना कुछ बोल रहा था बस मेरी चूत को घूरता जा रहा था।”
“असलम को इस तरह चुप-चाप खड़े देख कर मुझे घबराहट होने लग गयी। मैंने असलम का हाथ पकड़ा और फिर दबी आवाज में पूछा, “असलम बेटा क्या हुआ, तुम ठीक तो हो?”
“असलम बोला कुछ नहीं और चुप-चाप बेड पर मेरी टांगों के पास बैठ गया। पैन का कवर तो मेरी चूत में ही था, असलम ने पेन का कवर पकड़ा और उसे मेरी चूत में आगे-पीछे करने लगा।”
“चूत तो मेरी पहले से ही गरम ही थी, और मजा मुझे आने वाला ही था। मैंने अपना हाथ असलम के हाथ पर रखा, मगर मैंने असलम को पेन का कवर चूत में आगे-पीछे करने से नहीं रोका।”
“मेरे मुंह से सिसकारियां निकलने लगी… आह… असलम… आआह… नहीं असलम… ये क्या कर रहे हो असलम… बस करो… आआह।”
“मेरा हाथ असलम के हाथ पर था मगर ना मैंने पेन का कवर चूत से बाहर निकाला, ना असलम को कवर को चूत में अंदर-बाहर करने से रोका।”
“असलम एक हाथ से पैन का कवर मेरी चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था और दूसरे हाथ से असलम ने अपना लंड पकड़ा हुआ था। छोटे रोशनी के बल्ब और टीवी की मंद रोशनी में असलम के पायजामे का उभार साफ दिखाई दे रहा था।”
“असलम का लंड खड़ा हो रहा था।”
“असलम ने एक हाथ से अपना खड़ा होता लंड जोर से हिलाया और बोला, “आअह… अम्मी ये क्या हो रहा है?”
“अचानक से असलम ने कवर मेरी चूत से बाहर निकला और मेरे ऊपर लेट गया और धक्के लगाने लगा।”
“असलम ने ना तो पायजामा उतारा हुआ था, ना असलम का लंड मेरी चूत में गया हुआ था। असलम का खड़ा लंड पायजामे के अंदर ही था।”
“असलम ने मुझे बाहों में ले लिया और ऊपर से ही मेरी चूत पर धक्के लगाने लगा। धक्के लगाते-लगाते असलम सिसकारियां ले रहा था जैसे उसे चुदाई का मजा आ रहा था। “आआआह… अम्मी… आअह… अम्मी… आआह… अम्मी… मेरी अम्मी…
“मैं नीचे लेटी हैरान से हो रही थी कि ये असलम क्या कर रहा था?”