संधू शीला की एक चुदाई कर चुका था, और बाहर आ कर दूसरा पेग लगा कर शीला की दूसरी चुदाई की तैयारी में था। कड़क जवान शीला दूसरी चुदाई के इंतजार में टांगें उठाए अंदर ही लेटी हुई थी।
पांच-सात मिनट के बाद संधू ने अपना पैग खत्म किया, और वापस कमरे में जाने के लिए उठा। शीला टांगें उठाए चूत खोल कर उसका इंतजार जो कर रही थी। जाते-जाते संधू नैंसी से बोला “नैंसी, तुम्हारी आख़री चुदाई है आज की?”
नैंसी हंस कर बोली, “मेरी तो आख़री है”, फिर मेरी तरफ इशारा करके बोली, “इसका मुझे पता नहीं। ये तो एक बार मेरी गांड चोद चुका है, एक बार चूत चोद चुका है। दो बार मेरा पानी छुड़ा चुका है और खुद अभी एक बार भी नहीं झड़ा। अब बताओ जब तक इसका लंड अपना काम पूरा नहीं कर लेता, तब तक कैसे मैं ना बोलूंगी? अब इतनी भी तो खुदगर्ज़ नहीं मैं।” ये कहते हुए नैंसी हंस दी
संधू नैंसी के तरफ इशारा करके मुझसे बोला, “जीत तेरी इन्हीं चुदाईयों के कारण ये जीत-जीत रटती रहती है। तू तो भाई बिना कहे हफ्ते में एक बार इसकी चूत और गांड को ठंडक पहुंचा जाया कर।”
मैं भी हंस पड़ा। फिर मैंने नैंसी को पूछा “भरजाई ये चुदाई आखरी है?”
नैंसी ने कहा, “मेरी तो आज की आख़री है। बहुत रगड़ाई की तूने आज, मजा आ गया।”
मैंने कहा, ” ठीक है भरजाई, फिर मैं ज्योति को फोन कर देता हूं पौने घंटे के बाद शॉपिंग मॉल पहुंच जाए।”
नैंसी ने कोई जवाब नहीं दिया और अंदर कमरे में चली गयी। मैंने ज्योति को फोन कर दिया और बता दिया कि हमारी चुदाई का आखरी दौर चलने वाला था, और वो पैंतालीस मिनट या एक घंटे में शॉपिंग मॉल पहुंच कर शीला को ले ले।
अंदर नैंसी बिस्तर पर हुई लेटी हुई थी, तकिया चूतड़ों के नीचे लगा कर चूत उठाई हुई थी, और अगले दौर की चुदाई के लिए बिल्कुल तैयार थी। मैंने कहा, “क्या बात है भरजाई आज लंड नहीं चूसना?”
नैंसी बोली, “आजा लेट जा उल्टा मेरे ऊपर। लंड डाल दे मेरे मुंह में और चूत चूस मेरी।”
मैंने लंड नैंसी के मुंह के सामने किया तो नैंसी बोली, “जीत इस पर तो कंडोम चढ़ा हुआ है।”
मैंने कहा, “कोई बात नहीं भरजाई। ये इतनी बारीक रबड़ का बना है कि आपकी जुबान मुझे लंड के सुपाड़े पर महसूस हो जायगी। आप बस चूसो इसको, थोड़ा सख्त करो इसको।” पांच ही मिनट की चुसाई के बाद लंड बांस के तरह सख्त हो गया।
नैंसी बोली, “जीत ये तो तैयार हो गया लगता है। आजा डाल दे अंदर। जब मेरा मजा निकलने वाला होगा तो मैं बता दूंगी, फिर कंडोम उतार लेना, गरम पानी चूत में डालना है तूने।”
मैं भी उठा। लंड नैंसी की चूत के छेद पर रक्खा और एक झटके से अंदर धकेल दिया। नैंसी ने एक सिसकारी ली और बोली, “सही बात है जीत, कंडोम के साथ लंड क्या रगड़ा लगाता हुआ जाता है।”
मैंने चुदाई चालू कर दी I दस मिनट की चुदाई के बाद नैंसी बोली, “जीत अब उतार ले कंडोम, कभी भी निकल जाएगा मेरा। बिल्कुल ही तैयार है मेरी चूत।”
मैंने कंडोम उतार लिया और चुदाई फिर से चालू कर दी। पांच ही मिनट की चुदाई के बाद नैंसी की सिसकारियां चालू हो गयी, और साथ ही नैंसी नीचे से चूतड़ों को झटके देने लगी।
चार-पांच मिनट में मेरा निकलने वाला हो गया। तभी नैंसी ने एक लम्बी सिसकारी ली “आ… आआह… आआह… जीत मेरे राजे, निकल गया मेराI” और चूतड़ों को जोर के झटके देने के बाद ढीली हो गयी।
नैंसी की चूत ने पानी छोड़ा। मेरे लंड का पानी भी नैंसी के साथ ही छूट गया।
फिर नैंसी मेरे कान में बोली, “जीत मेरी चूत भर गयी है। बाहर निकल रहा है पानी।” मुझे भी अपने लंड के आस-पास गीला-गीला तो लग ही रहा था।
कुछ देर लेटने के बाद हम दोनों उठे, बाथरूम जा कर पेशाब किया। नैंसी ने अपनी चूत धोई, मैंने अपना लंड। कपड़े पहने और ड्राइंग रूम में आ गए।
दस मिनट बाद ही संधू और शीला भी आ गए। शीला ने तो कपड़े पहन लिए थे। मगर संधू पायजामे और बनियान में ही था। पूरे बाजू और छाती पर घने बाल थे। शायद शीला को ये बाल ही ज्यादा पसंद थे। कई लड़कियों को ऐसे रीछ जैसे बालों वाले मर्द पसंद आते हैं।
इतनी चुदाई के बाद भी शीला थकी हुई तो नहीं लग रही थी। उलटा संधू का बैंड बजा हुआ था।
साढ़े बारह बजे की शुरू हुई चुदाई तीन घंटे चली। लगभग तीन बजे जब आख़री चुदाई शुरू होने वाली थी, तो मैंने ज्योति को आधा-पौना घंटा बाद आने के लिए फोन कर दिया था।
मैंने जेब से कंडोम निकाल कर नैंसी को दे दिया, “भरजाई ये तो लगा नहीं। आप आज करना संधू साहब के साथ ट्राई।”
नैंसी ने कंडोम संधू की तरफ फेंकते हुए कहा, “ये लो पकड़ो, जीत कह रहा है आज ट्राई करना।”
फिर हंस कर शीला की तरफ देख कर बोली, “शीला दम छोड़ा है तूने संधू साहब में? रात को चुदाई कर भी पाएंगे आज या नहीं?”
शीला बोली, “कर लेंगे भाभी, बड़ा दम है अंकल में। आप ही पूछ के देख लो।”
नैंसी के पूछने से पहले ही संधू बोल उठा, “भई आज नहीं, अब आज की छुट्टी। ये ‘टाइट फुद्दी’ खुद तो थकती नहीं इसने मुझे थका दिया।” कहते हुए कंडोम सामने पड़ी मेज पर रख दिया।
शीला हंस दी और नैंसी शीला से बोली, “ले सुन ले ‘टाइट फुद्दी’, क्या कह रहे हैं।” नैंसी के मुंह से ये टाइट फुद्दी वाली बात सुन कर सारे हंस दिए।
फिर नैंसी बोली, “मैं कुछ सनैक्स बनाती हूं। सब को भूख लग गयी होगी। पनीर के पकौड़े बना लेती हूं।”
नैंसी उठी, और नैंसी के साथ ही शीला भी उठ गयी और बोली, “चलो भाभी, मैं मदद आपकी कर देती हूं।” वो दोनों चली गयी।
संधू ने वही सवाल मुझ से कर दिया जो नैंसी ने किया था। “जीत यार ये ज्योति क्यों नहीं आयी। आ जाती तो अच्छा था। वो भी बढ़िया चुदाई करवाती है।” फिर थोड़ा रुक कर हंसते हुए बोला, “क्या यार, मैं भी तुझे क्या बता रहा हूं। तुझे तो पता ही है वो कैसे चुदाई करवाती है।”
फिर हम दोनों ऐसे ही इधर-उधर की बातें करते रहे, जिनका कोई मतलब नहीं निकलता था।
नैंसी और शीला पकौड़े निकाल कर लाई। दारू के साथ पकौड़े खाते-खाते सब लोग गप्पे मार रहे थे। शाम के चार बज चुके थे। ज्योति का फोन कभी भी आ सकता था।
संधू बीच-बीच में वही चूत गांड वाले जोक सुना रहा था।
बात-बात में नैंसी ने अपने चूतड़ इधर-उधर किये और बोली, “वो वाला कंडोम चढ़ा कर जीत ने ऐसी गांड चुदाई की है मेरी, मुझे तो लगता है मेरी गांड का छेद ही फूल गया है।”
संधू जोर से हंसा, “अरे भई नैंसी दुनिया में वैसे भी गांड से ज्यादा कोई नाजुक चीज नहीं होती। चलो एक बार की बात सुनाता हूं।” और संधू का जोक शुरू हो गया।
“एक स्कूल की छठी क्लास में एक लड़का पढता था। लड़का हमेशा क्लास में अव्वल आता था मगर जुबान का बड़ा गंदा था। कब क्या बोल दे कुछ पता नहीं चलता था। एक बार स्कूल में सरकारी इंस्पेक्शन थी और इंस्पेक्टर ने हर क्लास के अव्वल आने वाले लड़के से सवाल जवाब करने थे।”
“इस तरह की इंस्पेक्शन पहले भी होती थी और इंस्पेक्शन वाले दिन हेड मास्टर उस लड़के को स्कूल आने के लिए मना कर देते थे कि कहीं कुछ उल्टा सीधा ना बोल दे।”
“लेकिन क्योंकि इस बार इन्स्पेक्टर ने ख़ास हिदायत दी थी कि उसने क्लास में अव्वल आने वाले लड़के से ही बात करनी है, सो उस लड़के को ख़ास बोला गया कि उसने उस दिन स्कूल जरूर आना है।”
“क्लास के मास्टर और हेड मास्टर ने हाथ जोड़ कर लड़के से कहा कि भाई तू आज का दिन अपनी जुबान पर काबू रखना, स्कूल की इज्जत का सवाल है।”
“लड़का भी बोला ” मास्टर जी आप किसी तरह की कोइ फ़िक्र ही ना करो।”
“इंस्पेक्शन वाले दिन इन्स्पेक्टर के साथ बाकी क्लासों में तो हेडमास्टर नहीं गया मगर जब इन्स्पेक्टर छठी क्लास में गया तो हेडमास्टर साथ हो लिया, इसी डर से कि लड़का कहीं कुछ उल्टा-सीधा बोल ही ना दे।”
“इन्स्पेक्टर ने लड़के से कई सवाल किये। देशों की राजधानियों के नाम। देशों के प्रधान मंत्रियों और राष्ट्रपतियों के नाम। लड़के ने सारे सवालों के सही जवाब दिए। हेडमास्टर के माथे पर पसीने की बूंदें चमक रहीं थी, और वो शुकर मना रहा था कि सब कुछ ठीक चल रहा था।”
“तभी इन्स्पेक्टर ने लड़के की पीठ थपथपाई और बोला, ”शाबाश भई तुमने सवालों के जवाब तो ठीक दिए हैं अब एक आख़री सवाल और है।”
“हेडमास्टर को बड़ी खुशी हुई कि चलो कलेश कटने वाला।”
“इन्स्पेक्टर ने लड़के के कंधे पर हाथ रख कर पूछा, “अच्छा अब ये बताओ दुनिया में सबसे कठोर और सबसे नाजुक चीजें कौन सी हैं।”
“लड़के ने एक बार हेडमास्टर की तरफ देखा और बोला, “सर दुनियां में सब से कठोर चीज तो होती है हीरा।”
“इन्स्पेक्टर बोला, “बिल्कुल ठीक, और सब से नाजुक चीज?”
“लड़का बोला, “सर सबसे नाजुक चीज है हमारे हेडमास्टर साहब की गांड।”
“लड़के का जवाब सुन कर सब चुप हो कर इधर-उधर देखने लगे। इन्स्पेक्टर ने एक बार हेडमास्टर की तरफ देखा और लड़के के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “अच्छा? तब तो भाई ये भी बता दो क्यों और कैसे?”
हेडमास्टर की हालत देखने लायक थी। लड़का बोला, “ये तो आप खुद ही देख लीजिये सर। सवाल आप मुझ से कर रहे हैं और गांड फट रही आपके पास खड़े हेडमास्टर जी की।”
संधू चुटकुला सुना कर हो हो हो करके हंसने लगा। बाकी सब की भी हंसी छूट गयी।
और तभी दरवाजे की घंटी बजी।
सब हैरान हो गए कि इस वक़्त कौन आ गया। नैंसी और संधू ने एक-दूसरे की तरफ देखा, और नैंसी दरवाजा खोलने चली गयी। वापस आयी तो नैंसी के साथ ज्योति थी I
ज्योति को देख कर सब की आंखें फटी की फटी रह गयी। ज्योति ने उस वक़्त जीन्स और पतले सफ़ेद रंग के कपड़े की शर्ट पहनी हुई थी।
शर्ट में से तनी हुई चूचियों के ऊपर पहनी हुई ब्रा साफ़ दिख रही थी। जीन्स इतनी टाइट थी कि चूत का उभार सामने था। चूतड़ बाकी शरीर से अलग दिखाई दे रहे थे।
सुन्दर तो ज्योति वैसे भी थी ही। उस पर हल्का मेकअप और ये कपड़े?
छत्तीस की ज्योति तो वैसे ही छब्बीस की लगती थी, उन कपड़ों में तो वो बीस की शीला को भी टक्कर दे रही थी।
मेरे मन में कई सवाल उठ रहे थे। सुबह मैंने जब ज्योति से पूछा था कि शीला को और मुझे संधू के घर चुदाई कि लिए भेजने के बाद अगर उसकी अपनी चूत चुदाई के लिए गरम हो गयी तो? मुझे याद है कि ज्योति ने कहा था कि ऐसा कुछ नहीं होगा और फिर रात को मुझसे खुद की चुदाई करवाने के लिए भी तो कहा था।
अब अगर ज्योति इतना संवर कर आयी है तो क्यों? सीधे-सादे कपड़े पहन कर भी तो आ सकती थी। उससे भी बड़ा सवाल था कि आयी ही क्यों? क्या सच में संधू से चुदाई करवाने का मन आ गया? मुझसे चुदाई के लिए संधू के घर आने का तो मतलब ही नहीं था, क्योंकि मुझसे तो आज रात ज्योति को चुदना ही था। ये खुद ज्योति ही कह चुकी थी।
ये सवाल सिर्फ मेरे ज़हन में ही नहीं था। ये नैंसी के दिमाग में भी था, और शीला कि दिमाग में भी था।
उस वक़्त केवल संधू नहीं जानता था कि ज्योति शीला को माल तक छोड़ कर गयी थी, और माल से आगे शीला को मैं लाया था। वापसी का पूरा प्रोग्राम भी संधू को मालूम नहीं था। इसलिए ज्योति को वहां देख संधू ने यही सोचा कि ज्योति उससे चुदने आयी थी।
मैं, और शायद नैंसी और शीला भी यही सोच रहे थे, और हैरान हो रहे थे, कि ज्योति का तो आने का कोई प्रोग्राम नहीं था। मगर संधू को देख कर लगता था कि वो हैरान नहीं था। उल्टा संधू मुस्कुरा रहा था कि आखिर ज्योति उससे चुदाई करवाए बिना नहीं रह पाई।
नमस्ते-नमस्ते के बाद संधू ने एक पल की भी देरी नहीं की और उठ खड़ा हुआ। उसका लंड पहले ही पायजामें का तम्बू बना रहा था। संधू ने आव देखा ना ताव, ज्योति को हाथ से पकड़ा और कमरे में ले गया।
अगले पांच मिनट हममें से कोई कुछ नहीं बोला। हम तीनो मैं, नैंसी, और शीला यही सोच रहे थे कि ज्योति ने संधू से चुदाई करवानी ही थी तो वो सुबह हमारी साथ ही क्यों नहीं आ गयी। कोई मनाही तो थी नहीं।
कुछ ही देर में कमरे के अधखुले दरवाजे में से ज्योति और संधू की सिसकारियों की आवाजें आनी शुरू हो गयी।
कुछ ज्यादा ऊंची आवाजें थी। “आह ज्योति आआआह … ले गया पूरा लौड़ा तेरी फुद्दी में… मैं तेरा ही इंतजार कर रहा था… आह….. ज्योति मेरी जान….. आआह मेरी जान ज्योति, ये ले लौड़ा… मेरी जान जरा उछाल चूतड़… ले ले पूरा अंदर … हां ऐसे ही… आआह मजा आ गया… क्या चुदाई करवाती है तू आअह।”
ज्योति की भी सिसकारियों की आवाजें आ रही थी। “आअह संधू साहब मजा आ गया आज तो… चोदो दबा कर… हां और जोर से… आअह नहीं रहा गया मुझसे बिना लंड के… शीला की चूत… नैंसी की गांड… आआआआह और मेरी चूत खाली… अअअअअह… हां संधू साहब ऐसे ही दबा कर… आआह…. और पूरा निकाल कर लगाओ एक रगड़ा… चोदो दबा कर… और जोर से अअअअअह….।”
कमरे के अंदर से आ रही संधू और ज्योति की सिसकारियों की आवाजें ड्राइंग रूम माहौल को गर्म कर रही थीं। नैंसी और शीला की चूतें फिर पानी छोड़ रही थीं I
आवाजें सुन कर मेरा अपना लंड भी खड़ा हो गया। शीला की हालत तो ये थी उसने तो सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार नीचे की और चूत में उंगली करने लगी।
चुदाई की मस्ती में नैंसी उठी और अपनी सलवार उतारी और मेज पर पड़ा कंडोम उठा कर मुझे देती हुई बोली, “आजा जीत फाड़ मेरी गांड।”
और वो वहीं सोफे के हत्थे पर उस दिन की तरह कुहनियों कि बल खड़ी हो गई और चूतड़ पीछे कर लिए।