दोस्तों मैं आपकी चिर-परिचित पुष्पा. ऐसे तो मुझे मेरे रीडर्स मुझे जानते ही है. पर नये रीडर्स के लिए मैं थोड़ी बता डू. क्यूंकी बिना जाने कहानी पढ़ने में भी मज़ा नही आता है.
मैं 5’7″ लंबी, गोरी, लंबे बदन पर 36″ साइज़ की माधमस्त मेरी चूचियाँ. हल्की उभरी मेरी गांद, तीखे नैन नक्श, जो देखे बस देखता ही रह जाए. मेरे देखने वाले मेरे बहुतेरे आशिक है. मैं उनका जी बहलाती हू, और वो मेरा जी बहलाते है.
अब मैं कहानी पर आती हू. एक दिन मैं यू ही बैठी, और पुरानी यादें ताज़ा हो गयी थी. और मुझे कुछ भी अछा नही लग रहा था. क्या करूँ ना करूँ कुछ सोच नही पा रही थी. शाम के 7 बाज रहे थे. मैं इन्ही सब ख़यालों में खोई थी, की मेरे फोन की घंटी बाज उठी. फोन रिसीव किया तो होटेल से फोन था.
वो बोला: तुम तो अभी फ्री हो. एक बहुत ही अची पार्टी है तुम्हारे पसंद की.
मैं बोली: अर्रे छ्चोढो साहेब, धंधे में पसंद और नापसंद क्या? सब को झेलना होता है.
वो बोला: नही मैं तुम्हारी पसंद जानता हू ना. तुम्हे बिलो 25 काफ़ी पसंद है. अछा छ्चोढो, बताओ करना क्या है? तुम 8 बजे तक आ जाओ. मैं गाड़ी भेज रहा हू.
मैं: ठीक है साहेब.
बिलो 25 सुन कर मैं थोड़ी प्रफुलित हुई. 25 से नीचे के छ्होरे की चुदाई मुझे बहुत पसद है. इस उमर के छ्होरे छूट में तूफान ला देता है. इन्ही सब ख़यालों में डूबी मैं रेडी होने लगी. सबसे पहले सवेर ली फ़ैसन की, कपड़े बदले बदन पर पर्फ्यूम लगाई, और गाड़ी का वेट करने लगी.
फिर गाड़ी आई और मैं चल दी. होटेल पहुचने पर मुझे 412 में भेजा गया. मैं धड़कते दिल से 412 रूम नो के पास खड़ी थी. दरवाज़े को नॉक की तो आवाज़ आई, “दरवाज़ा खुला हुआ है, अंदर आ जाओ”.
फिर दरवाज़ा पुश करके अंदर गयी, तो सोफे पर एक बेहद हॅंडसम स्मार्ट लड़का बैठा था. मैं उसे देखी तो देखती ही रह गयी. मॅन में काई बातें घूम गयी. ठीक यही हाल उस लड़के का भी था. वो मुझे एक टक्क निहार रहा था. थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मैं बोली-
मैं: एक्सक्यूस मे, माइसेल्फ पुष्पा.
वो लड़का जैसे नींद से जागा और बोला: ओह हो, मैं तो ख़यालों में डूब गया था. मुझे अजीत कहते है.
वो आयेज बोला: यार तुम तो काफ़ी खूबसूरत हो.
मैं बोली: खूबसूरत हो, तो फुल्ली एंजाय करो.
ये कहते हुए मैं सतत के बैठ गयी. अजीत ने अपना बाजू मेरे गले में डाला, और बेतहाशा छूने लगा. उसके चुंबन मेरे गोरे फूले गालों पर मेरे रस्स-भरे होंठो पर पद रहे थे. अजीत की चुंबन कला से मैं गड़-गड़ हो गयी.
मैं अपनी चूचियाँ उसके मूह पर ले आई. अजीत ने मेरी चूचियों को मूह में ले लिया. मैं देख रही थी कपड़े से उसे परेशानी हो रही थी. मैने फिर अपना सलवार सूट उतार दिया, और बोली-
मैं: आज़ाद चूचियों का मज़ा लो अजीत बाबू. बंधन में जकड़ी चूची उतना मज़ा नही दे पाएगी.
मेरे बोलने की देर थी, अजीत ने मेरी ब्रा और पनटी भी उतार दी. अब वो मेरे पुर बदन पर स्वतंतरा विचरण करने लगा. चूचियों को चूमते हुए अजीत मेरे पेट पर होते हुए छूट तक पहुँच जाता. छूट की दरारओ को चूमते हुए जब उसकी जीभ छूट के अंदर घुस का क्लाइटॉरिस को टच करती, तो मैं उछाल पड़ती.
मैं अजीत की पंत को उतारने लगी. पंत उतारते ही उसका 8″ लंबा मोटा लंड उछाल कर उसके पेट से टकरा गया. मस्त लोड्ा देख मैं गड़-गड़ हो गयी, और झट से लंड को हाथ में ले ली. अजीत का लंड मेरे नाज़ुक हाथों में फुकरे मार रहा था. वो ज़ुबान के साथ एक होने को बेताब था.
अभी तक अजीत मेरी छूट पर ही पड़ा हुआ था. मेरे हाथो में अजीत का लंड था, तो अजीत के हाथ मेरी छूट को सहला दुलार रहा था. मेरी चूचियाँ कुलनूला रही थी. मैने चूचियों को अजीत के मूह में तूस दिया. अजीत हाथ से बर सहला रहा था, तो मूह से चूचियों को चबा रहा था.
मेरा बदन अब लंड लेने को पूरी तरह से मलने लगा. मैने अजीत को ठोकर दे-दे इशारा किया डालो लंड छूट में. लेकिन अजीत अभी और खेलना चाह रहा था. मैने अपने को सायामित किया और सब छ्चोढ़ दिया अजीत पर.
हाथ के घर्सन से लंड पूरी तरह उत्तेजित हो गया था. उससे हल्का-हल्का पानी निकालने लगा था. अजीत भी अब बर्दस्त नही कर पा रहा था. उसने मुझे घोड़ी बनाया, और लंड को मूह खुली बर के मुहाने पर रखा, और घोड़े की भाँति जंप कर गया.
पूरा का पूरा लोड्ा बर में समा गया. बर में लोड्ा गया और मैं जन्नत को पहुँच गयी.
अजीत दे धक्का दे धक्का मुझे छोड़ने लगा. छोड़ने की स्पीड मॅग्ज़िमम पर थी. बर में तो मानो तूफान आ गया हो. मैं उसके धक्को को बर्दाश्त कर रही थी. इसी बीच उसे ख़याल आया पोज़िशन चेंज करने का. अजीत ने मुझे बेड के किनारे सुलाया, और बेड के नीचे स्वयं खड़े लंड को लिए खड़ा हो गया.
फिर उसने मेरी टाँगों को अपने कंधे पर लिया. अब छूट ठीक लंड के सामने लाल मूह खोले थी. बर की लाली को देखते ही अजीत मानो पागल हो गया. उसने घाप से लोड्ा बर में थोक दिया. मेरे मूह से अया आहा आ आ निकालने लगा. इस बार की चुदाई में बर के अंदर तक लंड लग रहा था, जिससे फाटक-फाटक की आवाज़ निकल रही थी.
मेरी छूट से अमृत धारा भी बरस रही थी. अजीत के खड़े-खड़े पैर में शायद दर्द हो गया था. उसने झट से लोड्ा बर से बाहर खींचा.
मैं बोली: क्यूँ रूठे मेरे राजा?
अजीत केवल हस्स कर रह गया. उसने मुझे चिट लिटाया, और पैरों को फैलाया, और बर पर लोड्ा रख घाप से लोड्ा बर में थोक दिया. मुझे अब राहत मिली. बर को जगा कर यदि लोड्ा भाग जाए तो ये बड़ी ही दर्दनाक स्तिति होती है. अजीत घमा-घाम बर में चोट दे रहा था.
मैं भी जोश उसका बढ़ा रही थी, और कह रही थी: कूटो मेरे राजा, मेरी बर में लोड्ा कूटो.
मैं जितना जोश बढ़ती, अजीत उतना ही उछाल-उछाल कर छोड़ता. फिर छोड़ते हुए बर सिकुड गयी थी, तो लोड्ा फूल कर पंप बन गया था. आख़िर वो घड़ी आ ही गयी जब बर और लोड्ा दोनो को एक साथ शांत होने थे. आ आ आ आ करते दोनो योढ़ा शांत हो गये.
आधे घंटे बाद अजीत की तंद्रा भंग हुई, और वो बोला: बहुत मज़ा आया यार.
मैं बोली: अब क्या इरादा है? चल फिरसे शुरू हो जेया.
अजीत फिरसे छोड़ने की तैयारी करने लगा. चुदाई का खेल रात भर चला, और फिर मैं आप सब लोगों की प्रतिक्रिया जानने की प्रतीक्षा करने लगी. अपने कॉमेंट हमे ज़रूर देना. मैं यहा रहती हू