ही फ्रेंड्स, मैं हू 36 साल की गोरी चित्ति मधु लता. हा मेरा नाम मधु लता है, और मैं हू भी मढ़ की तरह मीठी. मैं लता की तरह सब को समा लेने की क्षमता वाली हू. मेरे तीखे नैन-नक्श बेहद आकर्षक और लुभावने है.
मेरी गोल-गोल बिल्कुल क़ास्सी हुई चूचिया, उभरे हुए नितंभ, और मेरी हिरनी सी चाल आकर्षण का केन्द्रा बिंदु है. इन सब के साथ मैं बिल्कुल अकेली हू. मुझे याद नही कब मेरे परिजन एक-एक कर गुज़रते चले गये. और बच गयी तो सिर्फ़ मैं.
ज़िंदगी कभी अनाथ आश्रम में, तो कभी स्कूल कॉलेज के हॉस्टिल में से होते हुए यहा तक पहुँच गयी. यही कारण है, की जहा मेरा तंन, वही मेरा घर-बार सब कुछ. फिर होली आई, और सारी सखी सहेलियो मे से कोई अपनी मा के पास गयी, तो कोई अपने पति के पास चली गयी.
बच गयी हॉस्टिल में मैं अकेली. मेरी सेक्षुयल लाइफ भी काफ़ी दिलचस्प है. दिलचस्प इस सेन्स में है, की पिछले 20 सालो से मैं छुड़वा रही हू. और वो भी अलग-अलग किस्म के लंड से. मसलन मैं काहु तो अलग-अलग लड़को से अकेले में आज भी छुड़वाने का ख़याल आया, और मैं पिछली चुदाई की घटनाओ को याद करते हुए रोमांचित हो गयी.
मुझे पता ही नही चला, की कब मेरी छूट गीली हो गयी. मैं अभी छुड़वाने के लिए तड़प रही थी. अनायास ही मेरी उंगलिया छूट पर चली गयी, और मैं ख़यालो में डूब गयी. मैं करवाते बदलती अपनी छूट को सहलाने लगी.
फिर मैं अपने ही हाथो से चूचियो को दबाने लगी. मुझे होश ही नही रहा, और मैं ये सारा कुछ खुले दरवाज़े में कर रही थी. इसी समय मेरे कमरे में रितेश आ गया. उसने शायद मेरी बैचानी को देख लिया था.
रितेश की आगे क्या होगी ये तो मैं नही जानती, पर वो गोरा चितता सुकुमार सा नाते कद का लड़का था. यू कहिए की एक लड़के की काड्द-कती ऐसी होती है ना जब बड़ी सी उमर में भी, तो वो बच्चा ही दिखता है. रितेश ठीक उसी तरह का लड़का था.
वो मेरे हॉस्टिल के गुआर्द राम सिंग का बेटा था. राम सिंग लंबा, तगड़ा और पुर 6 फुट का मस्त जवान मर्द था. वो अपने पुर परिवार के साथ नीचे रहता था. एक बार मेरा दिल या यू कहें, मैं राम सिंग पर मोहित हो गयी थी.
फिर बहाने से अपने कमरे में बुला कर मस्त चुडवाई थी. राम सिंग के लंड में ग़ज़ब का स्टॅमिना था. जब मैने राम सिंग से चुडवाई थी, तो ज़ालिम ने पुर घंटे भर मेरी बर का बजा-बजाया था.
मैं राम सिंग से छुड़वा कर मस्त से पस्त हो गयी थी. तभी से मेरी राम सिंग से दोस्ती थी. रितेश उसी रिश्ते से मेरे पास आया करता था. जैसे ही रितेश मेरे कमरे में आया मैं थोड़ी अपनी पोज़िशन की वजह से हड़बड़ा गयी. फिर भी संभालते हुए बोली-
मैं: आओ रितेश.
वो बिल्कुल मेरे करीब आया, और बोला-
रितेश: माँ मैं आपको गुलाल लगाने और बुलाने आया हू. मेरे मम्मी पापा ने आपको खाने पर बुलाया है. आप मेरे साथ चलो, पर पहले मुझसे गुलाल लगवा लो.
मैं बोली: ओक तुम अपनी इक्चा ज़रूर पूरी कर लो.
रितेश बोला: माँ मैं आपको गुलाल कहा लगौ?
मैं बोली: जहा तेरी मर्ज़ी.
ये बोलने के दूसरे ही पल रितेश ने मेरी चूची पर हाथ रख दिया. मैं थोड़ी हैरान हो गयी, पर वासना में जल रहे मेरे बदन पर लड़के के छूने से मज़ा आ गया. और वो भी चूचियों पर.
ये मुझे बेहद कामुक लगा. मैं सिर्फ़ मुस्कुरा दी. फिर मेरे मुस्कुराते चेहरे को देख कर रितेश ने मुझे चूम लिया. अब वो मेरे गालो को चूम रहा था. मेरी वासना की आग जो पहले से ही जल रही थी, अब और धड़क गयी.
मैने एक बच्चे की तरह रितेश को पकड़ कर अपनी तरफ खींचा, और अपने सीने से चिपका लिया. मेरी चूचियों की रग़ाद से रितेश के बदन में शायद आग सी लग गयी. मैने नीचे महसूस किया, की रितेश का लंड एक-दूं से कड़क होकर मेरी बर के पास धक्का मारने लगा था.
मैने पंत के उपर से ही रितेश के लंड को हाथ में ले लिया. मुझे लगा बिल्कुल व्यस्क की तरह रितेश का लोड्ा पुर 06″ के आस-पास का था. लंड की मोटाई का अंदाज़ा पंत के उपर से नही लग रहा था.
फिर लोड की मोटाई और लंड के दर्शन की उत्सुकता में मैने एक झटके में रितेश की पंत खोल दी. बाप रे बाप, लंड देख के तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी. हाइट में इतना छ्होटा और लड़के का लंड इतना बड़ा था. उसका लंड बिल्कुल उसके बाप पर गया था.
रितेश का लोड्ा एक-दूं तंन कर खड़ा फन-फन कर रहा था. मेरी नज़रे लंड पर टिकी थी, और उधर मेरी छूट से रस्स टपकने लगा. रितेश ने भी मेरी सलवार खोल दी, और रस्स टपकते बर पर अपना मूह लवनि की तरह सता दिया. अब वो लगा चत्तर-चत्तर चाटने बर को.
रितेश बर चाट-ता गया और रस्स पीटा गया और मुझे जन्नत की सैर करने लगा. जब बर चाट-ते हुए रितेश मेरी बर के अंदर जीभ को घुसेधता, तो मैं उछाल पड़ती. मैने अपनी फ्रोक भी उतार ली. रितेश बर चाट रहा था, और नज़रे उठा कर चूचियों को निहार भी रहा था.
मैं इस वक़्त अपने हाथो से अपनी चूचियों को दबा रही थी और सहला रही थी. मुझे ऐसा करते देख रितेश ने अपने हाथ उपर उठाया, और चूचियों की मालिश करने लगा. मेरी बेचैनी बढ़ती जेया रही थी. मेरे मूह से आ आ की आवाज़ निकल रही थी.
फिर मैं रितेश को झकझोरते हुए बोली-
मैं: अर्रे, बुरचटटे का बेटा बुरछट्टा. केवल बर चातेगा ही, या छोड़ेगा भी? जल्दी से कद-कड़ाते लोड को बर में डाल, और बाप की तरह छोड़ मेरी बर को और धककपेल कर.
रितेश ने मेरी गांद पर हाथ रखा, और उठा कर बेड पर लिटा दिया. लेकिन अभी शुरू में मैं लेट कर छुड़वाना नही चाहती थी. फिर रितेश को मैं बताया-
मैं: मैं बेड पर झुकती हू, तुम पीछे से बर में लोड्ा डाल कर पहले छोड़ो.
फिर मैं झुक गयी और रितेश मेरे पीछे आ गया. उसने मेरी बर पर लोड्ा सेट किया, और फिर कच से बर में लोड्ा डाल दिया. पूरा का पूरा लोड्ा घाप से मेरी बर में समा गया. मेरे तो पुर के पुर बदन में बिजली दौड़ गयी.
फिर मैं अपनी गांद को हिला-हिला कर बर को घपा-घाप छुड़वाने लगी. चुदाई ऐसे हो रही थी, जैसे कुटिया को कुत्ता छोड़ता है उछाल-उछाल. फिर कुछ देर की चुदाई के बाद मुझे एहसास हो गया, की रितेश भी बाप की तरह ही छोड़ने में ट्रेंड था. सला भरपूर मज़ा देने वाला था.
मैं प्रसन्न चिट हुई मस्ती से छुड़वा रही थी, और रितेश की हॉंसला अफज़ाइ कर रही थी.
मैं: वाह बेटा, छोड़ मुझे. कस्स के मार धक्का खचा-खच.
रितेश ललकार सुनकर मुझे तूफ़ानी स्पीड से छोड़ने लग गया. अब बारी थी अब पासा पलटने की. मैने इशारा किया, तो रितेश मुझसे अलग हो गया. फिर वो बोला-
रितेश: कमाल चुड़वति हो माँ. मैं नही जानता था, की तुम इतनी बड़ी चुड़क्कड़ हो.
मैं बोली: पूरी ट्रैनिंग लेले मेरी बर छोड़ कर. कही भी कोई बर वाली फिर तुझे पछाड़ नही पाएगी.
ये कहते हुए मैं बेड पर चिट लेट गयी. मैने अपनी टाँगो को फैलाया, और बोली-
मैं: आजा बेटा फिरसे मैदान में.
फिर रितेश मेरी टाँगो के बीच बैठ गया. उसने कदकते लंड को मेरी बर पर सेट करके खच से दबा दिया. 06″ लंबा 04″ मोटा लोड्ा मेरी बर में समा गया, और मैं आनंद से भर उठी. जब तक रितेश लोड से बर में पहला धक्का मारता, मैने उससे पहले ही गांद को उछाल कर पुर के पुर लोड को बर में ले लिया.
रितेश को लगा मैं उसको अपना ताव दिखा रही थी. फिर क्या था, लगा उछाल-उछाल कर छोड़ने मेरी बर को वो. अब वो रितेश के हर धक्के के साथ फ़चक-फ़चक कर रही थी. पुर 15 मिनिट की धमाकेदार चुदाई के बाद मेरे बदन में अकड़न सी होने लगी.
मेरे मूह से बाराँ-बार आ आ आ निकल रही थी. उधर रितेश भी आ आ करने लगा था. मैं समझ गयी, की अब ग़मे ओवर होने वाली थी, और फिर एक साथ एक ज़ोरदार झटके के साथ दोनो शांत हो गये. और रितेश मेरे सीने पर लूड़क गया.
फिर थोड़ी देर में हम लोग उठे. चुदाई तो पूरी हो गयी थी, पर मुझे और भी छुड़वाने का मॅन कर रहा था. क्यूकी रितेश को घर जाना था, सो मैं मॅन मासूस कर रह गयी. मैं रितेश के साथ उसके घर पर आ गयी, तो पता चला की रितेश की मा हम लोगो की वेट करते हुए थोड़ी दूरी पर अपनी मा के पास चली गयी थी.
फिर राम सिंग ने रितेश को मा को लाने भेज दिया. अब घर में मैं और राम सिंग ही थे. मुझे अकेले देख कर राम सिंग का लोड्ा भी मेरी बर के लिए ललचा रहा था. उधर मेरी बर भी राम सिंग के मस्त विशाल लंड लेने के लिए उतावली थी.
फिर क्या था, हम दोनो सात कर एक हुए और शुरू हो गया छोड़ने छुड़वाने का खेल. राम सिंग ने गिरा कर मुझे छोड़ना शुरू किया. मैं आ आ करके अपने पुराने यार से छुड़वाने लगी. चुड़वति गयी चुड़वति गयी, पर जो मज़ा अभी रितेश के लंड से मिला था, वो अब राम सिंग से नही मिल रहा था.
खैर जो भी हो, छ्होरे का लंड बर के अंदर तूफान ला देता है. इसलिए कहा गया है, जो मज़ा छ्होरे में है, वो बुड्ढे में कहा. आज की कहानी बस यही तक दोस्तो. अब दीजिए अपनी सखी पुष्पा को इजाज़त.
कहानी लिखते हुए मेरी बर भी पानी-पानी हो जाती है. इसलिए अब मैं भी चड़वौनगी.