— चित्रा का चाची के पास लखनऊ जाना और डाक्टर प्रमिला यादव से मिलना
“अगले दिन सुबह अंकल फार्म के लिए रवाना हो गए। मुश्किल से फार्म पर पहुंचे ही होंगे, कि मुझे अंकल का फोन आ गया।”
“अंकल बोले, “चित्रा, सुभद्रा का फोन आया था। तुम्हें दो-तीन दिन के लिए लखनऊ बुलाया है। बोल रही थी किसी को मिलवाना है। कह रही थी युग आ गया हो तो उसे भी भेज देना। युग तो है नहीं, तुम चली जाओ। मैं गाड़ी भेज रहा हूं, बद्री तुम्हें लखनऊ छोड़ आएगा।”
“मैं सोच रही थी ये चाची तो ज्यादा ही घबरा गयी है।”
“वैसे राज घबराने वाली बात भी थी। असल में रिश्तेदारी का मामला था। मेरी और युग की शादी तो चाची के कहने भर से तय हो गयी थी। अब इसमें ये युग के गांडूपने की बात बीच में आ गयी। अगर ये बात खुल जाती कि युग समलिंगी है, और अब तक घर की बेटी की चुदाई ही नहीं कर पाया, तो गज़ब ही हो जाता। पूरा परिवार बिखर सकता था।”
“मैंने तैयारी की और का इंतजार करने लगी। आधे घंटे बद्री कार ले कर आ गया और अगले चालीस मिनट में मैं चाची के सामने थी।”
“दोपहर के तीन बज चुके थे। चाची ने बद्री को वापस कर दिया। हमने चाय पी। मैं फ्रेश हुई और चार बजे चाची ने मनोहर ड्राइवर को बुलाया और मझे बोली, “चलो।”
“मैंने पूछा, “चाची क्या हो गया, कुछ बताओ तो सही। इतनी हड़बड़ाहट में हम कहां जा रहे हैं?”
चाची ने बस इतना ही कहा, “डाक्टर प्रमिला यादव के क्लिनिक।”
“प्रमिला यादव लखनऊ की मशहूर डाक्टर थी और चाची की फ्रेंड थी। प्रमिला हमारे घर भी आती जाती थी, और मुझे भी जानती थी। मैं डाक्टर प्रमिला को आंटी बुलाती थी।”
“डाक्टर प्रमिला के क्लिनिक पहुंचे तो डाक्टर बोली,”क्या हुआ सुभद्रा, ऐसी भी क्या समस्या आन पड़ी कि कल सुबह तक भी नहीं रुक पा रही थी? सब ठीक तो है?”
“फिर मेरी तरफ देख कर डाक्टर बोली, “कैसी है चित्रा, चुपके-चुपके शादी कर ली, बताया भी नहीं?” और मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना चाची से बोली, “आओ सुभद्रा बैठो। बताओ क्या बात है? फोन पर इतनी घबराई हुई क्यों लग रही थी।”
चाची बोली, “प्रमिला जरा अकेले में बात करनी है।”
डाक्टर मुझ से बोली, चित्रा बेटा तुम अंदर बैठो और पास खड़ी नर्स सुनीता को बोली, “सुनीता चित्रा को अंदर ले जाओ।” ‘अंदर ले जाओ’, मतलब तुम भी वहीं रुकना।”
“मैं और नर्स सुनीता अंदर क्लिनिक के साथ लगे कमरे में आ गए।”
“बीस मिनट के बाद चाची आयी और मुझसे बोली, “जा चित्रा, प्रमिला बात करना चाहती है तुझसे।” ये कह कर चाची वही कुर्सी पर बैठ गयी। मतलब चाची को और नर्स सुनीता को अभी भी वहीं रुकना था। डाक्टर प्रमिला ने मुझसे अकेले में बात करनी थी।”
— डाक्टर प्रमिला यादव से चित्रा के बातचीत और चित्रा के डाक्टर मालिनी अवस्थी से गुफ्तगू
“मैं उठ कर आगे वाले क्लिनिक में चली गयी। डाक्टर ने मुझे अपने सामने बिठाया और मेरी कंधे पर हाथ रख कर कहा, “चित्रा मुझे सुभद्रा ने सब बताया तो है, मगर मुझे तुम जरा साफ़-साफ़ समझाओ की बात क्या है। हो सकता है झिझक में तुम सुभद्रा को कुछ चीजें साफ़-साफ़ ना बता पायी हो। या तुम सुभद्रा को बताना तो कुछ और चाहती थी मगर वो कुछ और समझ गयी हो। मैं नहीं चाहती कि कुछ भी छूट गया हो।”
“डाक्टर बिल्कुल सही कह रही थी। मैं कुर्सी पर थोड़ा हिली तो डाक्टर ने फिर कहा , “और हां चित्रा दस मिनट के लिए भूल जाओ मैं तुम्हारी प्रमिला आंटी हूं। समझो मैं तुम्हारी सहेली हूं जिसे तुम ये सब सुना रही हो।
“मैंने डाक्टर को सब साफ-साफ़ बताना शुरू किया कि किन हालात में हमारी शादी हुई। युग शादी के लिए मान नहीं रहा था। हमारी शादी हो गयी। फिर मैंने बता दिया कि शादी की पहली को कुछ नहीं हुआ। युग चुप-चाप लेटा रहा और उस दिन थके होने का बहाना बना दिया।”
“मगर अगले दिन भी वही चक्कर। अगले दिन भी जब युग नहीं हिला तो मैंने ने ही पहल कर दी और युग का ‘एल’ पकड़ लिया। ‘एल’ मतलब लंड। मुझे डाक्टर आंटी को लंड बोलते हुए अच्छा नहीं लग रहा था।”
“मैं डाक्टर प्रमिला को बता रही थी, “मेरे पकड़ने भर से युग का ‘एल’ खड़ा हो गया। इतना बड़ा तो नहीं था जितना मैं सोचा करती थी, मगर ठीक था। मेरा मन कर रहा था कि युग अपने ‘एल’ को मेरे अंदर डाले और पति-पत्नी वाला काम करे।
मगर युग पहल ही नहीं कर रहा था। मुझसे रहा नहीं जा रहा था। ना जाने फिर मुझे क्या हुआ, मैंने युग का ‘एल’ मुंह में ले लिया। मेरे ‘एल’ मुंह में लेने भर की देर थी युग के मुंह से आवाज निकली, “निकल गया चित्रा।” और इसके साथ ही युग के ‘एल’ से ढेर सारा पानी निकल गया।”
मैंने जल्दी से ‘एल’ मुंह से निकाला और युग के ‘एल’ से जो निकला था उसे मुंह के अंदर जाने से रोका। युग लेटा ही हुआ था। मेरा ‘एल’ अंदर लेने बड़ा मन कर रहा था। अब वो तो हुआ नहीं था। मैं भी उसके साथ ही लेट गयी और अपनी ‘इसमें’ उंगली करके अपनी ‘वो’ रगड़ने लगी। मैंने युग का हाथ पकड़ कर अपनी ‘इस पर’ रक्खा और ऊपर नीचे करने लगी।”
“युग भी समझ गया होगा कि मैं क्या चाहती हूं। युग भी मेरी ‘उसमें’ उंगली ऊपर नीचे करने लगा। मेरी ये तो तैयार ही थी। जल्दी ही मुझे ‘वो वाला’ मजा आ गया और मैं ढीली पड़ गयी।”
“थोड़ी देर में जब मेरा मजा उतरा और मैं नार्मल हुई तो मैंने युग से पूछा, “क्या हुआ था युग? युग बस इतना ही बोला, “कुछ नहीं कोई बात नहीं, कल देखेंगे।” मुझे युग की ये बात कुछ समझ नहीं आयी।”
“अगली रात भी आ गयी। अब मैं युग का ‘एल’ मुंह में लेने के मूड में नहीं थी। अब मैं युग का ‘एल’ नीचे अंदर लेना चाहती थी।”
जब मेरी बड़ी कोशिशों के बाद भी युग का ‘एल’ खड़ा नहीं हो पाया तो मैं झल्ला गयी। मैं युग से बोली, “युग प्रॉब्लम क्या है? तबीयत ठीक है या कोई दिक्कत है? युग चुप रहा। कुछ नहीं बोला। मैं तो उस घर में बचपन से ही आती जाती थी। वैसी वाली शरम और हिचकिचाहट तो थी नहीं।”
“मैंने गुस्से से कहा, “युग मैं कुछ पूछ रही हूं। क्या प्रॉब्लम है? क्या किसी और लड़की के साथ चक्कर है क्या तुम्हारा?”
“युग ने मुझे बीच में ही टोकते हुए कहा , “नहीं नहीं चित्रा, ऐसा कुछ नहीं है।” मैंने फिर उसी तल्खी से पूछा, “तो बताओ फिर ‘ऐसा कुछ नहीं है तो कैसा कुछ है। कोइ तो बात है जरूर। युग समझ गया मुझे गुस्सा आया हुआ है कि आखिर बात क्या है वो मेरे साथ पति पत्नी वाला काम क्यों नहीं रहा? युग ने फिर कहा, “चित्रा कल पक्का करेंगे।”
“मुझे क्या पता था कि अगले दिन भी कुछ नहीं होना था। अगले दिन मेरे हाथ में लेने भर से युग का ‘एल’ खड़ा हो गया। मैंने पहले दिन वाली बात भूल कर युग का ‘एल’ फिर से मुंह में ले लिया। उस दिन मुंह में लेने से युग के ‘एल’ से पहले दिन जैसा कुछ नहीं निकला। कुछ देर जब मैं युग के ‘एल’ को मुंह में ले कर कुछ-कुछ करती रही तो उसका ‘एल’ एक-दम सख्त हो गया। मैंने कपड़े उतारे और लेट गयी और युग से बोली, “चलो उठो अब करो।”
“युग उठा, मगर उसके उठने में कोई शौक, कोइ उतावलापन नहीं था।
आखिर को तो वो भी मेरे साथ ‘ये’ पहली बार करने वाला था। युग को कुछ तो एक्साइटेड होना चाहिए था। मगर ऐसा कुछ भी नहीं था।”
युग ने जैसे ही ‘एल’ मेरी इस पर पर रक्खा, अभी जरा सा भी अंदर नहीं गया होगा कि युग के ‘एल’ में से ढेर सारा गरम गरम कुछ निकल गया और मेरी इसके के ऊपर फ़ैल गया।”
“युग को ‘वो’ वाला मजा आ गया था। युग के ‘एल’ अंदर ना करने के कारण मैं बेचैन हो रही थी। तभी युग मेरे साथ ही लेट गया और मेरी इसको उंगली से रगड़ने लगा। मेरी ये मेरे अपने पानी से और युग के ‘एल’ से निकले पानी से चिकनी हुई पड़ी थी। जल्दी ही मुझे मजा आने वाला हो गया। मेरे मुंह से ‘आआह युग’ की आवाज निकली और मुझे भी मजा आ गया। मैं ढीली हो गयी।”
“जब मेरा मजा उतरा तो मैंने कह ही दिया, “युग कुछ तो है। अगर ऐसे ही तुम्हारा जल्दी निकलता है तो किसी डाक्टर को दिखाओ। ऐसे कब तक चलेगा। युग कुछ देर चुप-चाप सोचता रहा और फिर बोला, “चित्रा ये डाक्टर को दिखाने वाली समस्या नहीं”। फिर कुछ चुप्पी के बाद हिम्मत बटोर कर उसने बोल ही दिया, “चित्रा मैं गे हूं, समलिंगी।”
“मेरा ये सुनना था कि मेरा तो दिमाग खराब हो गया और मैं बिफर ही गयी और युग को गालियां देते हुए चिल्ला कर बोली,”क्या? तुम गे हो? समलिंगी? अगर गे हो तो मुझसे शादी क्यों की?”
“युग ने बस इतना ही कहा, “चित्रा मैंने तो बुआ को बोला भी था ना करो मेरी शादी। मगर किसी ने मेरी एक नहीं सुनी।””मेरा गुस्सा चरम पर था। मैं उसी गुस्से से बोली, ” एक नहीं सुनी? तो फिर अब? अब मैं क्या करूं? मैं ही बात करती हूं चाची से, बताती हूं क्या है उसका भतीजा, और चाची से ही पूछती हूं कि चाची बताओ अब मैं क्या करूं?”
“मैंने फोन उठाया लेकिन युग ने मुझे फोन करने से मना कर दिया। फोन तो मैं वैसे भी नहीं करने वाली थी।”
“अगले दिन युग चार पांच दिनों के लिए फिर अपने दोस्तों के साथ चला गया। मैंने कंप्यूटर खोला और समलिंगियों के बारे में और जानकारी इक्ट्ठी करने लगी। तब मुझे पता चला कि समलिंगी भी तीन तरह के होते हैं। टॉप, वर्सेटाइल और युग जैसे बॉटम। वहीं से मुझे पता चला कि युग बॉटम है और ऐसे लोगों में कोई जिस्मानी कमी ना हो तो वक़्त के साथ वो नार्मल हो जाते हैं।”
“तब मैंने सोचा जो होना था वो तो हो चुका अब सोचना चाहिए कि इस की समस्या हल कैसे हो।अभी मैं इन ख्यालों से बाहर भी नहीं निकली थी कि अचानक से सुभद्रा चाची लखनऊ से आ गयी। आते ही मुझे बाहों में लिया और मुझसे पूछा, “कैसी रही। मतलब मेरी सुहागरात कैसी रही?” मैंने भी बता दिया की इन दिनों में कुछ भी नहीं हुआ।”
“चाची एक-दम परेशान हो गई। वैसे परेशानी वाली बात इसलिए भी थी क्योंकि चाची का दोनों तरफ से रिश्ता था। मेरी वो चाची थी और युग की बुआ। चाची ने ही ये रिश्ता करवाया था। इस रिश्ते के बारे में मेरे मम्मी पापा तो कुछ बोले ही नहीं थे।”
“चाची बाराबंकी रुकने के लिए आयी थी मगर परेशानी में एक घंटे में ही वापस लखनऊ आ गयी। ये अभी कल की ही बात है और आज हम यहां हैं।”
“डाक्टर आंटी को ये बता कर मैं चुप हो गयी। आंटी उठी और पीछे के कमरे का दरवाजा खोल बोली, “आप लोग आ जाओ।”
“चाची तो आ गयी, मगर नर्स सुनीता नहीं आयी। उसने सोचा होगा जरूर हम किसी व्यक्तिगत या पारिवारिक समस्या पर सलाह मशवरा करने आये हैं, इसलिए सुनीता ने वहां ना आना ही ठीक समझा।”
“चाची प्रमिला आंटी के साथ वाली कुर्सी पर बैठ गयी। प्रमिला आंटी कुछ देर सोचने के बाद बोली, “सुभद्रा, चित्रा ने सारी बात मुझे बड़े ही अच्छे से बताई और समझाई है। चित्रा की बातों से मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं की युग की ये समस्या मेडिकल प्रॉब्लम तो नहीं है। मतलब दवाईयों से ठीक होने वाली नहीं, क्योंकि ये कोइ बीमारी है ही नहीं।”
“मैं पहले युग के कुछ टेस्ट करवाने की सोच रही थी, मगर मुझे लगता है उससे कुछ फायदा होने वाला नहीं। करवाने भी होंगे तो बाद में देखेंगे।”
“फिर प्रमिला आंटी बोली, “सुभद्रा अब मैं बताती हूं मैं इस नतीजे पर क्यों और कैसे पहुंची हूं। हमारा समाज जब किसी के बारे मैं कहता है कि क्या मर्द है, तो इसका सीधा अर्थ होता है कि वो जब औरत के साथ सेक्स करता है तो औरत की पूरी तसल्ली कर देता है। मतलब औरत को कितना संतुष्ट कर सकता है। सीधी भाषा में समझना हो तो इसका मतलब है औरत को मजा आने के बाद मर्द को मजा आता है।”
“जब डाक्टर प्रमिला ये बातें कर रही थी तो चाची का चेहरा शर्म से गुलाबी हुआ पड़ा था।”
“इसके बाद की बातें प्रमिला आंटी ने कुछ ज्यादा ही साफ़ शब्दों में समझाई। आंटी बोली, “औरत को इस तरह से संतुष्ट करने के लिए तीन चीजों की जरूरत होती है”।
“पहला, मर्द के लिंग या ‘एल’, जैसा की चित्रा बोलती है, का खड़ा और सख्त होना। चित्रा के अनुसार युग का ‘एल’ खड़ा भी होता है और सख्त भी हो जाता है। इसका मतलब है युग में टेस्टोस्ट्रोन हार्मोन की कमी नहीं जो ‘एल’ को खड़ा करने में काम आते हैं। और युग के ‘एल’ की तरफ खून का भाव भी ठीक है जिससे ‘एल” में सख्ती आती है।”
“दूसरा है ‘एल’ का साइज़ जब वो औरत के अंदर जाने के लिए तैयार या खड़ा होता है। चित्रा युग का ‘एल’ जितना बड़ा बता रही है वो बहुत बड़ा तो नहीं मगर आमतौर पर हमारे यहां के मर्दों का उतना ही बड़ा होता है। वैसे भी सम्भोग के लिए उतना बड़ा एल ही काफी होता है। बस ये है की सम्भोग देर तक चलना चाहिए और इस दौरान एल की सख्ती बनी रहनी चाहिए।”
“ये कहते हुए प्रमिला आंटी हंस दी। मैंने चाची की तरफ देखा। चाची का चेहरा तो शर्म से पहले ही गुलाबी हुआ पड़ा था, ये सुन कर और भी लाल हो गया।”
“मैंने सोचा ये फर्क होता है एक लेडी डाक्टर और एक घरेलू औरत में।”
“फिर डाक्टर आंटी बोली, तीसरा है स्टेमिना। मतलब मर्द का ‘एल’ औरत के अंदर कितनी देर अपना काम कर सकता है। इसमे मोटी मोटी बात ये होती है की औरत को मजा आने के बाद ही मर्द को मजा आना चाहिए। अब इस तीसरी बात में युग फेल है। युग ‘एल’ अंदर डाल ही नहीं पाता की उसका ‘एल’ पानी छोड़ देता है।”
डाक्टर बोल रही थी, “लेकिन ये ‘एल’ का जल्दी पानी छोड़ देना कोइ बीमारी नहीं। शादी के शरुआती दिनों में पचास प्रतिशत लड़कों को ये समस्या होती है, जिसे शीघ्र पतन भी कहते हैं। इसके कई कारण होते हैं। सब से बड़ा कारण होता है लड़के ने शादी से पहले किसी लड़की से सम्बन्ध ही ना बनाया हो।
उसने किसी लड़की को कभी बिना कपड़ों के देखा ही ना हो। उसके ‘एल’ को कभी किसी लड़की ने छुआ ही ना हो। ऐसे में जैसे ही लड़का लड़की का जिस्म देखता है, मारे उत्तेजना के उससे रुका ही नहीं जाता और उसे मजा आ जाता है और उसके ‘एल’ का पानी निकल जाता है।”
“बचपन और जवानी की देहलीज पर खड़े लड़कों में ये रात में अक्सर होता है जिसे नाईट फाल या स्वप्न दोष कहा जाता है। युग का ऐसा होने का ये कारण भी हो सकता है। अब क्यों की युग समलिंगी है और लड़कियों में उसकी कोइ दिलचस्पी नहीं तो जाहिर है चित्रा पहली लड़की होगी जिसे उसने बिना कपड़ों के देखा होगा।
चित्रा पहली लड़की होगी जिसने युग का ‘एल’ मुंह में लिया होगा और चित्रा पहली लड़की होगी जिसके नीचे युग ने अपना ‘एल’ डालने की कोशिश की होगी और मारे उत्तेजना के उसे मजा आ गया और उसके ‘एल’ का पानी निकल गया।”
“इतना बोल कर प्रमिला आंटी चुप हो गयी।”
“चाची ने ही फिर पूछा, “लेकिन प्रमिला अब करें क्या। चित्रा कब तक ऐसे रहेगी। इस समस्या का कोइ तो हल निकलना चाहिए।” चाची यही कहना चाहती थी चित्रा कब तक बिना लंड, बिना चुदाई के रहेगी। कभी तो इसकी चुदाई होनी चहिये।”
— चित्रा का मनोचिकित्स्क मालिनी अवस्थी से मिलना