पूर्णतया काल्पनिक है और केवल मनोरंजन के लिए लिखी गयी है।
मेरा नाम विक्रम मल्होत्रा है और ये कहानी है 2018 की जब मेरी उम्र 37 साल की थी I लेकिन इस कहानी की शरुआत हो चुकी थी 1985 में जब मैंने चार साल की आयु में हिमाचल प्रदेश के छोटे से शहर धर्मपुर में नर्सरी कक्षा में दाखिला लिया था।
मेरे साथ ही दाखिला लिया था एक सुन्दर गोरी चिट्टी लड़की ने। हम दोनों में पहले दिन ही दोस्ती हो गयी। हम इक्क्ठे बैठते थे, इक्क्ठे खेलते थे।
छोटा शहर होने के कारण लगभग सब एक दूसरे को जानते थे। हमारी दोस्ती के कारण हमारे परिवार भी एक दूसरे से मिलने लगे।
वक़्त गुज़रता गया, हम भी बड़े होते गए। हमारी दोस्ती भी परवान चढ़ती गयी। हमारी नादान दोस्ती कुछ ऐसी थी की वो मेरी लुल्ली पकड़ कर मुझे चिढ़ाती,”ये क्या लटका रक्खा है “। और मैं उसके आगे चूत हाथ लगा कर कहता ,”तो तेरा कहां गया ” ?
“धीरे धीरे हमें समझ आती गयी और हमारी हरकतें भी बदलती गयी। हमारी दोस्ती बचपन के प्यार में बदलने लगी”।
उसका नाम था मुकुल – मुकुल चौधरी। बेहद हंसमुख, हमेशा फूल की तरह खिली रहने वाली I अत्यधिक गोरी होने के कारण और गालों पर गुलाबी रंगत के कारण उसको सब रूबी कह कर बुलाते थे। मेरा नाम विक्रम है लेकिन मुझे सब विक्की बुलाते थे।
मेरी ननिहाल शिमला में थी, और हम परिवार के साथ शिमला बहुत जाया करते थे। एक बार तो रूबी भी हमारे साथ गयी थी। मेरी मां को रूबी बड़ी अच्छी लगती थी। जितने दिन हम शिमला रहे, रूबी मेरी मां के साथ ही चिपकी रहती थी – उसके साथ ही सोती थी।
आठवीं कक्षा तक पहुंचते पहुंचते हममे थोड़ा अलग तरह का प्यार पनपने लगा। अब हम ये भी बातें करने लगे की बड़े हो कर हम आपस में ही शादी करेंगे। एक दुसरे को चूमते थे। मैं उसकी छोटी छोटी चूचियों को हल्का हल्का दबाता था। रूबी मेरा लंड, जो अब लुल्ली से लंड बन रहा था, हाथ में पकड़ कर आगे पीछे करती थी।
एक बार वो जब मेरा लंड निक्कर के ऊपर से पकड़ कर ऐसे आगे पीछे कर रही थी तो मेरा पानी ही निकल गया। मेरे मुंह से एक सिसकारी ही निकल गयी, “आआआह….. रूबी “। मैंने उसका हाथ अपने लंड से हटा दिया। उसने पूछा, “क्या हुआ विक्की ” ? मैंने कहा कुछ नहीं। उसे शायद इतनी समझ नहीं थी की मैं झड़ गया हूं, या हो भी तो मुझे पता नहीं ।
13 -14 साल की उम्र में लड़के मुट्ठ मारने लग जाते हैं, मैं भी मारता था – रूबी का नाम ले कर – रूबी..रूबी..रूबी..रूबी। रूबी का खूबसूरत चेहरा अपने आखों के सामने ला कर, और झड़ता भी उसी का नाम लेकर……आ….आह….ररररूबीईईइ।
वक़्त गुज़रता गया, गुज़रता क्या उड़ता गया। बाहरवीं पास करने के बाद हम सोलन कालेज में चले गए। धर्मपुर से रोज़ गाडी या बस से सोलन आते जाते थे।
रूबी बड़ी ही सुन्दर निकल रही थी। पांच फुट आठ इंच लम्बी और बेहद सुन्दर। अब तो उसके शरीर का विकास भी होने लगा। जिस्म भरने लगा था। चूचियां उभर रहीं थी। चूतड़ भारी ही रहे थे। हल्का फैशन भी करती थी। कॉलेज के लड़के उसके बड़े दीवाने थे।
अब उसकी चूचियां दबाने में बड़ा मजा आता था – मुझे भी और उसे भी। वो भी मेरा लंड पैंट से बाहर निकल कर पकड़ कर हिलती थी, मगर अब मैं झड़ता नहीं था। जब कभी कभी सलवार में हाथ डाल कर उसकी नरम नाजुक चूत पर हाथ फेरता था और रूबी की सिसकारियां निकल जाती थीं। वो मुझे कस के पकड़ लेती थी। एकदम चिकनी चूत – एक बाल नहीं था चूत पर I
चूमा चाटी सब हो रहा था, बस एक चुदाई ही नहीं हुई थी – मौक़ा भी नहीं मिला और डर भी लगता था।
हम एक दूसरे से मजाक भी बहुत करते थे। अब हमने आपस में शादी की बात खुल कर करनी शुरू कर दी । यहां तक की हनीमून शिमला में मनाने का फैसला भी कर लिया। रूबी जानती थी की शिमला मुझे बहुत पसंद है। मैं हर साल या साल में दो बार भी शिमला जाता था।
1999 में सोलन कॉलेज की एक साल की पढ़ाई के बाद मुझे सोलन छोड़ना पड़ा। मेरा बैंगलोर में एक इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन हो गया था। जब मैं जाने लगा तो रूबी बड़ा रोई थी। रोना तो मुझे भी आ रहा था, मगर कोइ चारा नहीं था।
फ़ोन अदि का धर्मपुर में इतना चलन नहीं था, केवल चिट्ठियों से ही एक दूसरे का हाल चाल मालूम होता था। 2001 के बाद रूबी की चिट्ठियां आनी भी बंद हो गयी।
वक़्त गुज़रता गया। 2004 में मैंने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और गुड़गांव में मेरी नौकरी लग गयी। 2006 में मेरी शादी हो गयी और 2008 में एक बेटा भी हो गया। रूबी को मैं कभी नहीं भूल सका – ना ही कभी मैं शिमले को भूला। 1999 से सोलन से आने के बाद पढ़ाई के कारण 2005 तक मैं शिमला भी नहीं गया। 2010 में मैंने नौकरी छोड़ कर इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का काम शुरू कर लिया I अब गुड़गांव में ही मेरा ऑफिस है।
रूबी हमेशा मेरे जेहन में रही। अक्सर किसी भी लड़की को चोदते वक़्त मैं रूबी के साथ चुदाई के बारे में ही सोचता – जो नहीं हो पायी थी। जब भी मेरी किसी लड़की के साथ चुदाई होती मुझे ऐसा लगता था जैसे मैं रूबी को ही चोद रहा हूं।
यहां तक की जब सुहागरात वाले दिन मैंने अपनी बीवी को चोदा तो मेरे दिमाग़ पर रूबी ही छाई हुई थी। मुझे पूरी चुदाई के दौरान ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं रूबी को ही चोद रहा हूं।
2005 के बाद मेरा हर साल शिमला जाने का सिलसिला फिर से शुरू हो गया। 2005 में जब मैं शिमला गया तो रास्ते में धर्मपुर भी रुका और रूबी के घर गया। वो लोग अब वहां नहीं रहते थे – अपने पुश्तैनी घर हमीरपुर जा चुके थे। रूबी के बारे में कुछ ज्यादा पता नहीं लगा – केवल इतना ही पता चला की वो आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ चली गयी थी।
मेरा साल में एक बार एक हफ्ते के लिए शिमला जाने का सिलसिला नहीं बंद हुआ। अब मेरे ननिहाल वाले भी वहां नहीं रहते थे इसलिए मैं जब भी जाता होटल में रुकता था।
शुरू शुरू में तो मेरी पत्नी वीना भी मेरे साथ शिमला जाती थी, लेकिन फिर शिमले की भीड़ से वो तंग हो गयी। अब जब मैं शिमला जाता तो वीना अपने मायके चली जाती थी जो गुडग़ांव के पास ही फरीदाबाद में था।
वक़्त बदल गया था। कंप्यूटर का चलन आम हो चुका था। 2005 में फेसबुक भी आ चुका था, मगर भारत में इसका चलन आम नहीं हुआ था। फेसबुक ने कई भूले बिसरे, बिछड़े दोस्तों को मिला दिया था। इसी फेसबुक के कारण मेरा और रूबी का भी सम्पर्क हो गया।
इतने बरसों बाद भी रूबी मेरे दिल में थी। 2018 में एक दिन मैंने ऐसे ही फेसबुक में रूबी का असली नाम लिखा – मुकुल। अब तो ये भी नहीं पता था की वो क्या करती है कंप्यूटर इस्तेमाल करती है या नहीं, अगर करती है तो फेसबुक पर है भी या नहीं। शादी के बाद उसने अपना उपनाम बदला है या वही रक्खा है – चौधरी।
मैंने फेसबुक पर नाम लिखा “मुकुल चौधरी” और ढूंढने लग गया। अब 36 साल की हो चुकी रूबी पहचान में भी आएगी या नहीं।
फेसबुक पर सैंकड़ों मुकुल चौधरी थी। फिर भी मैं ढूढ़ता रहा।
दो तीन दिनों की मेहनत के बाद एक मुकुल चौधरी ऐसी निकली जो मेरी रूबी हो सकती थी। वही गुलाबी गाल, खूबसूरत। एक फोटो में तो उसकी चूचियों और चूतड़ों के उभार साफ़ दिख रहे थे – सेक्सी।
मैंने उसके फेसबुक पेज पर लिखा “क्या आप कभी धर्मपुर रही हैं ? क्या आप किसी रूबी को जानती हैं ? क्या आप किसी विक्रम – विक्की को जानती हैं ?”
मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब एक हफ्ते के बाद जवाब आया “हां” और साथ ही उसने अपना मोबाइल नंबर भी लिखा था।
“हां”। पढ़ते मेरे दिल की धड़कन तेज हो गयी। लंड में कुलबुलाहट होने लगी। आँखों के आगे रूबी की चूत घूमने लगी जो कभी देखी नहीं थी – कैसी होगी रूबी की चूत ? उभरी हुई मांसल भरी भरी, रूबी की चूचियों और चूतड़ों की तरह मुलायम – जैसी पहले थी – जब मैंने रूबी की चूत को सहलाया था ?
मैंने फौरन फोन मिलाया। “हेलो” उधर से आवाज आयी।
“हेलो रूबी, मैं विक्रम – विक्की “।
एक पल को तो कोई जवाब नहीं आया फिर वो बोली, ” विक्की, इतने बरसों बाद ? कहां चला गया था तू ? कहां है ” ?
मैंने सारी बातें बताई की कैसे मैं उससे सम्पर्क की कोशिश करता रहा, कैसे उसकी चिट्ठियां आने बंद हो गई।
रूबी ने बताया कि 2001 में उसकी सगाई ही गयी और तब उसके मम्मी पापा को इस तरह चिट्ठियां लिखना पसंद नहीं था।
रूबी ने मुझसे मेरे और मेरे परिवार के बारे पूछा। मैंने बताया की 2004 में इंजीनियरिंग की डिग्री के बाद मैंने गुड़गांव में एक बड़ी कम्पनी में नौकरी कर ली और अब इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का मेरा अपना बिज़नेस है विदेश आना जाना लगा रहता है। 2006 में शादी हो गयी थी और 2008 में सौरभ – मेरा बेटा पैदा हुआ था।
रूबी ने अपने बारे में बताया की उसने 2001 में चंडीगढ़ से लॉ की डिग्री हासिल की और शिमला प्रैक्टिस शुरू कर दी। 21 साल कि उम्र में 2003 में उसकी शादी हो गयी। उसका पति राघव चड्ढा मिलिट्री में लेफ्टिनेंट कर्नल है आज कल उत्तर पूर्व में तैनात है।12 साल का एक बेटा है अर्जुन – जो मिलिट्री स्कूल में पढ़ता है और हॉस्टल में ही रहता है।
रूबी ने बताया की अब वो शिमला हाई कोर्ट में प्रतिष्ठित फौजदारी वकील है – क्रिमिनल लॉयर, और शिमला में ही रिज के ऊपर जाखू मंदिर जाने वाले रास्ते पर उसका अपना फ्लैट है और वो अकेली रहती है। घर के काम में मदद के लिए एक 19 -20 साल की एक लड़की रखी हुई है जो उसीके के घर में रहती है।
रूबी ने कहा, “विक्की फेसबुक की फोटो में तो बड़े अच्छे लग रहे हो आकर्षक – एट्रेक्टिव – जैसे पहले होते थे। अभी भी शिमला आते हो ? तुम तो शिमला बहुत आते थे। याद है एक बार मैं भी तुम लोगों के साथ गयी थी “?
मैंने कहा “मुझे सब याद है और मैं अभी भी लगभग हर साल शिमला जाता हूं और धर्मपुर भी रुकता हूं। अब तो धर्मपुर बहुत बदल गया है। होटल भी बन गए हैं। शिमला की तरफ जाने वाली सड़क वाला बाजार तो खत्म ही हो गया है।
“ये तो बहुत अच्छा है विक्की कि तुम हर साल पहले कि तरह शिमला आते हो। तुम्हारी पत्नी भी आती होंगी तुम्हारे साथ ” ?
“पहले आती थी और उसे अच्छा भी लगता था, मगर अब वो नहीं जाती। उसका कहना है की शिमला में बहुत भीड़ हो गयी है अब ये हिल स्टेशन ही नहीं रहा “।
रूबी बोली, “कहती तो वो ठीक ही है, शिमला अब भीड़ भाड़ वाला शहर हो गया है, बहुत फ़ैल गया है। तुम अब कब आओगे शिमला इस साल। जब भी आओ मेरे पास रुकना”।
मैंने कहा “मैं अक्सर अप्रैल, मई, के महीनों में जाता हूं या दिसम्बर जनवरी में, जब बच्चों की छुट्टियां होती हैं “।
रोज़ी ने कहा, “अभी फ़रवरी चल रहा है, तो अप्रैल में आ जाओ इस साल”।
“मेरा तो मन कर रहा था अभी उड़ कर चला जाऊं और रूबी से जी भर कर प्यार करूं और चुदाई की सारी हसरतें पूरी कर लूं – मगर सोचा कैसे हो सकता है ये सब”।
“क्या सोचती है रूबी अब मेरे बारे में – कैसा सोचती है ” ?
मैंने जवाब दिया, “ठीक है रूबी देखता हूं”। अब तो मेरे लिए भी रुकना मुश्किल था।
“बचपन कि दोस्ती और प्यार कभी भुलाये नहीं जा सकते”। फेसबुक पर लगाई हुई फोटो में ही रूबी बहुत सुन्दर लग रही थी। मेरी आखों के आगे उसकी नुकीली चूचियां और मोटे चूतड़ घूमने लगे।
“फोटो में ही रूबी बहुत सुन्दर लग रही थी पता नहीं असली में कितनी सुन्दर होगी “। मेरी आखों के आगे फोटो वाली उसकी नुकीली चूचियां और चूतड़ घूमने लगे।
फोन से हमारी बातें शुरू हो गयीं। अपनी पत्नी वीना को भी मैंने रूबी के बारे में बताया ही हुआ था। अब रूबी से बात होने के बाद ये भी बता दिया कि वो क्या कर रही है, उसका पति क्या है।
नहीं बताया तो ये कि वह अकेली रहती है।
“अगर बता देता तो पता नहीं कैसी प्रतिक्रिया होती। सोचा एक बार शिमला हो आऊं, रूबी से मिल आऊं माहौल देख लूं फिर सोचूंगा कि बताना चाहिए या नहीं बताना चाहिए”।
सोच रहा था रूबी की चुदाई का मौक़ा मिलेगा या नहीं। रूबी चुदाई करवाएगी या नहीं। आखिर को अब उसका एक पति है, और वक़्त भी बहुत गुज़र चुका है।
वीना भी सुन कर बड़ी हैरान हुई और बोली, “कमाल है ये फेसबुक तो। इसकी बदौलत कैसे कैसे पुराने दोस्त मिल जाते हैं। इस बार शिमला जाओगे तो मिल कर आना, बड़ी खुश होगी। इस बार कब जाओगे ?
मैंने जवाब दिया, “अप्रैल या मई में, तुम भी चलो इस बार। तुम भी मिल लेना “।
“पहले तुम तो मिल आओ। इतने सालों बाद मिलना है, कैसे मिलती है,कैसा वर्ताव करती है, क्या पता। वैसे भी मेरा मन नहीं करता अब शिमला जाने का। वैसे कितने दिनों के लिए जाओगे ?
मैंने भगवान का शुक्र मनाया कि वीना तैयार नहीं हुई। मैंने कहा ,”वही एक दिन धर्मपुर रुकूंगा छः या सात दिन शिमला “।
वो बोली, “तो ठीक है, वापस आ कर हम सब कुल्लू चलेंगे एक हफ्ते के लिए “।
मैंने भी कहा, “ठीक है”, मेरा भी कुल्लू और मणिकर्ण घूमने का मन था”।
प्रोग्राम बन गया। मैंने अप्रैल के आखरी सप्ताह की राजधानी दिल्ली कालका तक की बुकिंग करवा ली। आगे का सफर टैक्सी से। “रास्ते में रुकते रुकते जाने में मजा ही अलग है “।
राजधानी सुबह साढ़े छः बजे दिली से चलती है और दस बजे कालका पहुंच जाती है। आगे टैक्सी का सफर यूं तो लगभग पौने तीन घंटे का है, मगर रुकते रुकते जाने से एक घंटा फालतू लग जाता है। मतलब चार बजे से पहले मैं शिमला पहुंचने वाला था। रूबी को मैंने फोन करके बता दिया था।
वो बोली थी ,”आजा विक्की, बहुत सारी बातें करनी है तुझसे “। लग तो ऐसा ही रहा था की बड़ी खुश है।