मुझे बेहद मज़ा आया।
अखिल ने कहा, “चल कुतिया आजा, घुटनों के बल हमारे नीचे बैठ जा। और अपने हाथ और जीभ कुतिया जैसे कर ले।”
मैंने अपने हाथ को कुतिया जैसा सामने कर लिया, और जीभ खोल कर उनके लौड़े के नीचे आ गयी। मुझे लगा वो अब मुठ मार कर अपना वीर्य मेरे ऊपर गिराएंगे, पर कुछ पलों में ही उन्होंने मेरे चेहरे पर मूतना शुरू कर दिया।
मुझे अचानक से ज़रा अजीब लगा, पर उनके गरम-गरम मूत के मेरे चेहरे पर पड़ने से मेरे चेहरे को आराम मिलने लगा। दोनों के मूत में एक बड़ी ही कड़वी सी गंध थी, किसी महंगी शराब जैसी। आज की ये रात सिर्फ सरप्राइज से ही भरी हुई थी।
फिर उन्होंने ही मेरे चेहरे को साफ़ किया। एक बड़ी खूबसूरत बात दिखी। मेरे दोनों बेटे मज़े और ज़िम्मेदारी के अंतर को भली-भांति सम्मान देते थे। उन्हें भी पता था कि मूत को साफ़ कर देना चाहिए, और वो ज़्यादा देर तक चेहरे पर टिकना ठीक नहीं। उन्होंने मेरे पूरे बदन को साफ़ किया, और मेरा चेहरा धो कर बहुत स्नेह से मेरे चेहरे को पोंछा।
अभी कुछ देर पहले मेरी ऐसी दशा कर रहे थे, जैसे सच में किसी बाजार की रंडी को चोद रहे हों। पर जब ज़िम्मेदारी की बात आयी, तो पूरे आदर के साथ अपनी माँ को साफ़ कर रहे थे। अखिल ने मेरे गले में बंधा पट्टा थोड़ी देर के लिए खोल दिया, और गले को भी तौलिये से साफ़ किया। दोनों मुझे साफ़ करते वक़्त कभी माथे पे चूमते, कभी गालों पर, थोड़ी बहुत होंठों पर भी।
इस बीच हम ज़्यादा बात नहीं कर रहे थे, क्यूंकि इस माहौल की गर्मी को कोई तोड़ना नहीं चाह रहा था। पर आँखों ही आँखों में अभिषेक ने मुझसे पूछ लिया कि मुझे ज़्यादा कहीं दर्द या तकलीफ तो नहीं और मैंने उसे ना में जवाब दिया।
अखिल हम दोनों की आँखों को टेढ़ी नज़रों से भांप रहा था। मेरे सारे बच्चे मेरे जिगर के टुकड़े हैं। इन दोनों से तो अब एक नया ही रिश्ता था, पर अभिषेक से एक अलग ही मन का जुड़ाव था।
अब मेरी चूत में रस की नदियाँ बहने लगी थी। दोनों बेटों के कुछ बोलने से पहले मैंने खुद ही पट्टे को उठाया, और गले में बाँध कर वापस नीचे कुतिया जैसे चार पैरों पे बैठ गयी। और ज़ंजीर को उठा कर उनके हांथो में थमा दी। वो भी समझ गए कि अब उनकी माँ वापस से तैयार थी। अभी तो रात बस आधी हुयी थी। आधी रात अभी बाकी थी। और सच कहूं तो कुतिया बनके चुदने में मुझे बेहद मज़ा आ रहा था।
“हमारी कुतिया कितनी वफादार है, भाई। जानती है कि साली की चूत की गर्मी हम ही शांत करेंगे। चल साली बहन की लौड़ी, आजा, तेरी चूत और गांड का बाजा बजाएंगे अब हम।”, अभिषेक ने मुझे ज़ंजीर से खींचते हुए कहा। मैं कुतिया के तरह ही नीचे चलते हुए बिस्तर पर आ गयी।
अखिल ने मुझे धक्का दिया, और मुझे लिटा दिया। मेरी टांगो को फैला कर मेरी चूत में अपनी जीभ से आक्रमण कर दिया। जितनी देर में मैं कुछ बोल पाती, अभिषेक ने मेरे ऊपर आकर फिर से अपना लंड मेरे मुँह में घुसा दिया। थोड़ी देर इसी आसन में रहने के बाद दोनों ने जगह बदल ली।
अब अभिषेक मेरी चूत के पास आ गया, और अखिल ने मेरे मुँह में लौड़ा देकर चूसने को कहा। मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था। मैंने अखिल के लौड़े को मुँह से निकाला और कहा, “बेटु, अब बर्दाश्त नहीं कर पा रही, घुसा दे अपना लंड मेरी चूत में।”
“ले साली, ले अपने बेटे का लंड अपनी चूत में”, और ये कहते हुए अभिषेक ने अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया और मुझे चोदने लगा। और साथ ही साथ अखिल मेरे मुंह को चोद रहा था। थोड़ी देर बाद अभिषेक थक गया। अखिल भी थक कर लेट गया, और उसका काला नाग बिल्कुल खम्बे की तरह खड़ा हो गया। मुझे पिछली रात वाला आसन याद आ गया जिसमे मैं अखिल के लौड़े पे उछल-उछल कर चुद रही थी।
“बेटु, मुझे कल की तरह चोद ना, मेरे शोना, प्लीज़।”, मैंने अखिल को चूमते हुए कहा।
उसने मुझे मेरी कमर से पकड़ा, और खींच कर लाया, और अपने लौड़े को मेरी चूत में सेट करके मुझे बिठा दिया। फिर वो नीचे से हल्के-हल्के झटके देने लगा। इतने में अभिषेक आकर मेरे सामने खड़ा हो गया, और मेरे चेहरे को पकड़ कर अपना लंड मेरे मुंह में डाल दिया, और मैं चूसने लगी।
बीच-बीच में मैं जब उत्साह में अखिल के लौड़े पे ज़ोर-ज़ोर से उछलने लगती, तो मेरे हांथो से अभिषेक का लंड छूट जाता, और मेरे मुँह से निकल जाता। तो वो फिर गुस्से में मेरे चेहरे को पकड़ कर ज़ोर से लंड घुसेड़ कर चोदता। नीचे से अखिल मेरी बजा रहा था, और ऊपर से अभिषेक। मुंह में लंड के कारण मेरी ना आवाज़ निकल रही थी, ना कोई शब्द, पर दोनों बेटे मुझे गालियां दे-दे कर चोद रहे थे।
“हाँ साली, मज़ा आ रहा है ना तुझे रंडी, कुतिया साली। तेरे चूत का कचूमर बना देंगे हम छिनाल। गांड फाड़ देंगे तेरी बहन की लौड़ी।” अभिषेक बड़बड़ा रहा था, और अखिल भी अपने भैया का साथ दे रहा था, “हाँ भैया, हमारी माँ एक नंबर की कुतिया है, देखो ना, कैसे बेहया होकर अपने बेटों से चुद रही है, साली बेटाचोद। कुतिया की जनि। रंडी कहीं की।”
शायद अभिषेक को पेशाब लगी थी, तो वो मेरे मुँह से अपना लौड़ा निकाल कर बाथरूम चला गया।
अब सिर्फ अखिल के काले नाग पे मैं उछल रही थी, “आह बेटु, मेरे शोना बेटा, चोद दे मेरी जान। अपनी रांड को चोद बेटा। अपनी रखैल को चोद। हाँ बेटा, मैं हमेशा तुम दोनों की छिनाल बन कर रहूंगी, मेरी जान। भर दे मेरी चूत, लाल करदे मेरी चूत को। चोद अपनी माँ को मादरचोद, और ज़ोर से मार मेरी चूत, मेरे शोना।”
इतने में पीछे से अभिषेक वापस आ गया कमरे में, “क्या बोल रही है रंडी? हमारी छिनाल बनके रहेगी? तू हमारी पर्सनल रंडी है बहन की लौड़ी, तू हमारी कुतिया है।”, ये कहते हुए उसने मुझे अखिल के सीने की तरफ झुकाया और मेरी गांड में अपना लंड दाल दिया।
और मेरी चीख से पूरा कमरा गूँज गया। अपने 40 साल की ज़िन्दगी में पहली बार मेरे अंदर दो लौड़े एक साथ थे। अखिल का काला नाग मेरी चूत में था और अभिषेक का लंड मेरी गांड में, “हाय, उफ़ उफ़ उफ़, मर गयी मैं, बहनचोद, मर जाउंगी मैं, दो लौड़े, उफ़ उफ़, बेटा छोड़ दे बेटा, मेरी चूत और गांड फट जायेगी, बेटु। आह आह ओह ओह उफ़ उफ़ आह हाह हाय उफ़।” और मेरी चीख गूंजने लगी।
ये अनुभव इतना खूबसूरत होगा, मुझे पता नहीं था। मेरा एक बेटा मेरी चूत बजा रहा था, और दूसरा बेटा मेरी गांड मार रहा था। और अब दोनों भाई कुत्तों की तरह मेरी ले रहे थे। अभिषेक अब गालियां देते हुए मेरी गांड पे थप्पड़ पे थप्पड़ मारे जा रहा था और अखिल ने मेरे दुदू को मार-मार कर लाल कर दिया था।
चुदते हुए मेरी नज़र आईने पे चली गयी। उफ़, क्या नज़ारा था। पहली बार खुद को चुदते हुए देख रही थी मैं। मेरा पूरा बदन लाल हो गया था। मेरे दोनों बेटे आगे और पीछे से धक्का-पेल कर रहे थे, और मैं उन दोनों के बीच में कचूमर के तरह पिस रही थी।
फिर दोनों ने तेज़ी बढ़ा दी। जब अखिल अपना लौड़ा निकालता तो पीछे से अभिषेक अपना लंड डालता, और जब अभिषेक अपना लंड निकालता, तो अखिल अपना लौड़ा डालता। बिल्कुल एक लय में मेरी ठुकाई हो रही थी।
“कैसा लग रहा है रंडी? दोनों बेटो से एक साथ चुदके कैसा लग रहा है तुझे? हाँ, देख रही है ना खुद को आईने में। बिलकुल रंडी लगती है तू साली। बिलकुल बाज़ारू रंडी लगती है।”, अखिल ने मेरे निप्पल को ज़ोर से भींचते हुए कहा।
तो अभिषेक ने कहा, “नहीं भाई, इस कुतिया की तो बाजार में भी चुदने की औकात नहीं। बहन की लौड़ी को चोद कर हम इसकी इज़्ज़त रख ले रहे हैं। दो कौड़ी की भी औकात नहीं इस छिनाल की।”
और मैं भी उनके गालियों का जवाब दे रही थी, “हाँ भड़वो, फाड़ दो अपनी रंडी माँ को। भोंसड़ा बना दो चूत और गांड का। मैंने दो मादरचोद पैदा किए है अपनी चूत से। मसल दो इस चूत को।”
मैं अपने बेटों के बीच बिल्कुल सैंडविच जैसी लग रही थी।
अब दोनों थक गए और भाइयों ने एक-दूसरे को जगह बदली करने को इशारा किया। और ये देख के मेरी धड़कने बढ़ गयी। दोनों भाई अगर जगह बदलेंगे मतलब अब अखिल मेरी गांड में अपना ये विशाल काला नाग घुसायेगा, और मैं इतने घंटो की चुदाई के बाद थक सी गयी थी। पता नहीं इन दोनों ने आज कौन सी दवाई खा ली थी, कि अभी तक झड़े नहीं थे। और जिस प्रकार चल रहा था मुझे नहीं लगता अभी ये जल्दी छूटेंगे।
अब अभिषेक सामने से मेरी चूत की चुदाई करने लगा, और अखिल अपना लौड़ा मेरी गांड पे सेट करने लगा, और मैं उससे मिन्नतें करने लगी, “बेटु अखिल, तू मेरी गांड मत चोद, मेरे बेटु। तेरा बहुत बड़ा है। मेरी गांड फट जायेगी, मेरे बाबू। मुझ पर रहम कर बेटा। हाँथ जोड़ती हूँ मेरे शोना। ”
पर वो कहाँ मानने वाला था। वो अपना लौड़े मेरी गांड पे रगड़ने लगा, “चुप साली, कल भी नाटक कर रही थी। देखो न भैया, आपका लंड ले लेती हैं गांड में और मेरे वक़्त नाटक कर रही है ये कुतिया।”
“तू डाल दे भाई, साली को रोते रहने दे। फाड़ दे इसकी गांड।”, अभिषेक ने अपने भाई को जवाब दिया।
और एक झटके में अचानक अखिल का काला नाग मेरी गांड को चीरते हुए अंदर घुस गया, और मेरे मानो प्राण निकल गए। मेरी हालत देख दोनों रुक गए। दोनों का लौड़ा मेरे अंदर था।
दोनों अब मुझे सहलाने लगे। उस वक़्त सच में मेरा बुरा हाल हो गया था। अभिषेक मेरे माथे को चूमने लगा। अखिल भी मेरी पीठ को चुम रहा था, और सहलाने लगा। करीब 5 मिनट हम वैसे ही रहे। अब मेरा दर्द कम हुआ, तो मैंने उन्हें इशारों में फिर से शुरू करने को कहा।
अब दोनों बिल्कुल धीमी गति में अपना लौड़ा अंदर-बहार कर रहे थे। थोड़ी देर बाद मुझे फिर से मज़ा आने लगा। अखिल के लंड से हुआ दर्द अब मीठा सा लगने लगा, और उसकी गांड चुदाई से मज़ा आने लगा। फिर उन्होंने गति बढ़ानी शुरू की, और फिर से राजधानी एक्सप्रेस अपनी पुरी स्पीड से चल पड़ी। और हमारी प्यार भरी गालियों से पूरा कमरा गूंजने लगा।
शुक्र है ये कमरा एकॉस्टिक था वरना हम एक प्रदर्शनी बन जाते सबके लिए।
अब धीरे-धीरे मज़ा आने लगा, और मैं तो अब चिल्ला-चिल्ला कर गालियां दे रही थी अपने बेटों को। वो भी मुझे गालियां देते हुए, गांड, चेहरे और दुदू पर थप्पड़ मारते हुए मेरी माँ-बहन एक कर रहे थे।
और इस सिलसिले के बीच अब वो झड़ने लगे। दोनों जल्दी से उठ कर बिस्तर पे खड़े हो गए, और मुझे इशारा किया फिर से कुतिया जैसे हांथों को करके और जीभ बाहर करके बैठने के लिए।
फिर उन्होंने मेरे मुंह पे, मेरे चेहरे पे अपना पूरा वीर्य निकाल दिया। इतनी मात्रा में और इतना गाढ़ा पहली बार निकला था। दोनों का मिला कर कम से कम एक पूरा गिलास वीर्य मैं अपने गले से नीचे गटक ली। जो थोड़ी बहुत नीचे गिर गयी थी, उन्हें झुक कर मैंने चाट लिया। दोनों भाई बिस्तर पर गिर पड़े। मैं उनके बीच में बैठ के दोनों का लौड़ा अपने हाथ में लेकर जीभ से साफ़ करने लगी। उनके टोपे पे लगी एक भी बूँद को मैंने ज़ाया नहीं जाने दिया, और पूरा चाट के पी गयी।
उफ़, क्या रात थी। ज़िन्दगी बदल देने वाली रात थी। हम तीनो हांफ रहे थे। मैं मेरे दोनों राजा-बेटों के बीच जाकर लेट गयी। दोनों ने मेरे एक-एक दुदू को पकड़ कर मुझे गालों पे चूमते हुए कहा, “थैंक यू, माँ। हम आपका हमेशा ऐसे ही ख्याल रखेंगे”।
घड़ी देखी तो 4 बजने वाले थे। और हम सब सो गए। उस रात जो नींद आयी, वो बेहद खूबसूरत थी। मेरी नींद सुबह 10 बजे खुली। आँखें खुली तो देखा मेरे बदन पे कपड़े थे और मैं चद्दर से ढकी हुयी थी। शायद दोनों ने मुझे साफ़ करके कपड़े पहना दिए होंगे। यही काम मैं उनका उनके बचपन में करती थी, और अब वो मेरा हर तरीके से ख्याल रख रहे थे।
लेकिन मुझे मेरे पूरे शरीर में भीषण दर्द महसूस हुआ। पूरी रात जिस तरीके से मेरी चुदाई हुयी थी, दर्द लाज़मी था। कितनी भी जवान खुद को समझ लूँ, 40 की हो गयी थी। महिलाओं का शरीर वैसे भी 35 के बाद ढीला पड़ने लगता है। लेकिन मैंने एहसास किया कि मेरी चूत और गांड में दर्द थोड़ा ज़्यादा था। मैं बिस्तर में ज़्यादा हिल भी नहीं पा रही थी। ध्यान दिया तो पाया की मेरा चूत बिल्कुल लाल गुब्बारे जैसी सूज गयी थी, और गांड भी सूज गयी थी। पर ये एहसास बहुत अजीब था। शरीर में दर्द था, पर मन बहुत ज़्यादा खुश था।
कहानी अभी बाकी है।