हेलो रीडर्स मैं मीना आज अपनी पहली कहानी लेकर हाज़िर हू. ये कहानी नही मेरे जीवन की सकचाई है, जिसको कहानी के रूप में मैं आप लोगो के साथ शेर कर रही हू. उम्मीद है आप लोगों को मेरी कहानी पसंद आएगी, और आप लोग एंजाय भी करोगे.
आप लोगों का ज़्यादा टाइम ना लेते हुए मैं कहानी शुरू करती हू. सबसे पहले मैं अपना और अपने परिवार का परिचय करवा डू. मैं मीना भोपाल की रहने वाली हू. मेरे परिवार में मेरे पति रेटरिएद टीचर उमर लगभग 66 साल, 2 बेटे, 2 बेतिया है.
मेरी दोनो बेटियों की शादी हो चुकी है, और दोनो दूसरे शहर में रहती है. मेरे दोनो बेटे जॉब करते है. एक बेटा इंडोरे में, और दूसरा बेटा पूना में रहता है.
भोपाल में मैं और मेरे पति दोनो ही रहते है. मैं 55 साल की सीधी-सॅडी, संस्कारी, धार्मिक और पतिव्रता औरत थी. मैं थी, इसलिए ही कह रही हू. क्यूंकी 6 महीने पहले समय ने ऐसी करवट बदली, की आज की तारीख में मैं ना पतिव्रता हू, और ना मेरे में कुछ संस्कार बचे है.
मेरी 54 साल की तपस्या ऐसी टूटी, की इन 6 महीनो में मैं काई गैर मर्दों से छुड़वा चुकी हू. मैं उनका बिस्तर गरम कर चुकी हू. पहले शरम, हया, और संस्कार मेरे गहने हुआ करते थे. मैं सिंपल सारी ही पहनती थी.
लेकिन अब सब कुछ बदल गया है. ये बात शुरू होती है आज से कुछ 8 महीने पहले. हमारे घर के बगल वाले घर के गुप्ता जी के घर नये किरायेदार रहने आए थे.
शुरू-शुरू में हमारी उनसे कोई बात-चीत नही थी. ऐसे ही एक महीने से ज़्यादा बीट गया. उन लोगों से कॉलोनी के कोई भी लोग बात नही करते थे. मेरी भी उनसे कोई बात-चीत नही होती थी. मुझे उनके बारे में ज़्यादा कुछ भी नही पता था.
एक दिन मैं ठेले वाले से सब्ज़ी ले रही थी. तभी पड़ोस की किरायेदार एक लड़की उमर यही 30-32 साल की रही होगी, वो भी सब्ज़ी लेने आई. सब्ज़ी लेते-लेते उसने मुझसे बात-चीत की. तब मुझे पता चला उसका नाम फ़ातिमा था.
फिर उसने अपने परिवार के बारे में बताया. उसके परिवार में फ़ातिमा, उसका शौहर क़सिफ, क़सिफ का भाई अबरार, और क़सिफ के मामू जुनेद ये चार लोग रहते थे. उनका गारमेंट्स का बिज़्नेस था.
मैने भी उसको अपने परिवार के बारे में बताया. पहली मुलाकात में हम दोनो एक-दूसरे के परिवार से रूबरू हो चुके थे. फिर आयेज हम रोज़ ही बातें करते थे. धीरे-धीरे फ़ातिमा और मैं दोनो काफ़ी घुल-मिल गये.
हम दोनो की उमर में बहुत अंतर था, लेकिन हम दोनो की बॉनडिंग दिन-बा-दिन मज़बूत हो रही थी. लगभग एक महीने में हम दोनो पक्की सहेलिया बन गयी. फ़ातिमा का हमारे घर आना-जाना शुरू हो गया.
कभी-कभी मैं भी उसके घर जाती थी. हम दोनो का दोपहर का टाइम एक-दूसरे से गप्पे लड़ने में बीट-ता था, कभी मेरे घर पे या कभी फ़ातिमा के घर पे. धीरे-धीरे फ़ातिमा मेरे सामने उसके शौहर के मामू जुनेद की बातें कुछ ज़्यादा ही करने लगी.
अब रोज़ ही फ़ातिमा का एक ही टॉपिक रहता उसके मामू जुनेद. फ़ातिमा उसके मामू जुनेद की खूब तारीफे करती थी. जुनेद मामू ऐसे, जुनेद मामू वैसे फ़ातिमा ने उसके जुनेद मामू की तारीफो के पुल बाँध दिए. जुनेद मामू के बारे में काई बातें बताई उसने.
अब धीरे-धीरे मेरे दिल और दिमाग़ में भी जुनेद की ही बातें घूमने लगी थी. एक दिन फ़ातिमा ने जुनेद की दर्द भारी कहानी बताई, की कैसे जुनेद की बेगम उसको दागा देके किसी और के साथ चली गयी. फिर जुनेद बिल्कुल पागलों जैसा हो गया.
उस दिन मुझे जुनेद पे बहुत दया आई. मैने जुनेद को एक या दो बार ही देखा था. उस रात सोते समय मुझे जुनेद की दर्द भारी कहानी याद आई. साथ ही उसका चेहरा भी मेरी आँखों के सामने था. मैं सोच रही थी बेचारा जुनेद कितना अछा आदमी था, और उसके साथ कितना बुरा हुआ.
यही सब सोचते-सोचते मुझे नींद लग गयी. रात में मेरी अचानक नींद खुली, और मैं उठ के बिस्तर पे बैठ गयी. मैं पसीने से तरबतर थी, और गला पूरा सूखा हुआ था. मैने पानी पिया, और फिर अपना पसीना पोंछते-पोंछते मैं सोचने लगी हे भगवान ये क्या था?
असल में मैने एक सपना देखा था. जिसमे मैं जुनेद के साथ थी. जुनेद ने मुझे बाहों में जाकड़ रखा था. फिर मैं जुनेद को बोली-
मैं: जुनेद तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ, लेकिन अब मैं हू तुम्हारे साथ तुम्हे खुशिया देने के लिए.
मैं प्यार से जुनेद की बाहों में झूल रही थी. जुनेद मुझे चूमते हुए मेरे कपड़े उतार रहा था. फिर उसने मुझे पूरी नंगी कर दिया, और मेरे नंगे बदन को चूम रहा था.
जुनेद भी पूरा नंगा हो गया, और फिर जुनेद ने अपना बड़ा लंड मेरी छूट में डाला, और मेरी चुदाई करने लग. अब मैं अपने आप को संभालते हुए बोली-
मैं (मॅन में): मैं ऐसा सपना कैसे देख सकती हू?
मैं शरम और हया से पानी-पानी हो गयी थी. सुबा उठने के बाद दिन भर मेरे दिमाग़ में वही रात में देखा हुआ सपना घूमता रहा. मैं शरम से शर्मिंदा ज़रूर हो रही थी, लेकिन दिल के किसी कोने में अजीब सी हलचल थी, जो मुझे उत्तेजित कर रही थी.
इससे मेरे चेहरे पे मुस्कान टायर रही थी. घर के काम निपटाने के बाद मैं फ़ातिमा का इंतेज़ार कर रही थी. काफ़ी देर तक इंतेज़ार करने पर भी जब वो नही आई, तो मैं ही उसके घर चली गयी.
मुझे जुनेद के बारे में सुनने की उत्सुकता जो थी. फिर मैने उसके घर का दरवाज़ा खटखटाया. दरवाज़ा खुला, और सामने जुनेद खड़ा था दरवाज़े पे. उससे नज़रे मिलते ही मैं रात के सपने में खो गयी.
यही वो जुनेद है जिसके साथ सपने में मैं छुड़वा रही थी. उसको सामने खड़ा पा कर मेरी धड़कने तेज़ हो गयी, और दिल में बेचैनी सी होने लगी.
फिर जुनेद ने बोला: अर्रे मीना जी, आप? आइए, अंदर आइए ना.
मैं सर झुका के अंदर चली गयी, और सोफे पे बैठ गयी. जुनेद भी सोफे पे आके बैठ गया, और मुझसे बातें करने लगा. पहले उसने मेरा हाल-चाल पूछा.
मैने बोला: सब ठीक है.
रात के सपने के कारण मैं उससे नज़रे नही मिला पा रही थी. काफ़ी देर तक जुनेद मुझसे बातें करता रहा. मुझे उससे बात करने में अंदर से शरम और झिझक महसूस हो रही थी. फिर जुनेद उठा, और बोला-
जुनेद: मीना जी, आप बैठिए, मैं छाई बना के लता हू.
मैने माना किया, लेकिन वो नही माना. उसने बोला-
जुनेद: अरी आप घर आए, और बिना छाई पिए जाओगे तो हमे अछा नही लगेगा. अभी फ़ातिमा होती, तो वो ज़रूर आपके लिए छाई बनती, और आप फ़ातिमा को माना भी नही करती.
तब मैने जुनेद से पूछा: वैसे फ़ातिमा है कहा?
तब जुनेद ने बताया: फ़ातिमा और बाकी घर के लोग 4 दीनो के लिए उनके गाओं गये है. पता नही पर क्यूँ मेरे मूह से निकल गया “आप नही गये गाओं”? जुनेद उदास होके बोला-
जुनेद: नही मीना जी, मैं नही गया. गाओं से कुछ बुरी यादें जुड़ी है, इसलिए मैं गाओं नही जाता.
मैं समझ गयी जुनेद कों सी बुरी यादों की बात कर रहा था. मुझे अंदर ही अंदर बहुत बुरा लगा. मैने जबरन ही जुनेद को उदास कर दिया था. मैं मॅन ही मॅन अपने आप को कोसने लगी. बेचारा जुनेद फिर मेरे लिए छाई बना के ले आया.
मुझे जुनेद का स्वाभाव बहुत ही अछा लगा. हासमुख और ज़िंदा दिल इंसान था वो. उसके साथ बातें करके मुझे बहुत अछा लगा. मुझे घर जाने की कोई जल्दी नही थी. मॅन तो यही कर रहा था, की ऐसे ही जुनेद के साथ बैठी राहु, और ढेर सारी बातें करती राहु.
रात के सपने की याद आते ही और जुनेद को अपने सामने पाके मेरे जिस्म में अजीब सी सिहरन पैदा हो रही थी. मेरा मॅन तो नही था घर जाने का, पर मॅन मार कर मुझे घर जाना पड़ा. शाम को पति के साथ छाई की चुस्की लेते हुए मैं अपने पति से बोली-
मैं: सुनो जी, पड़ोस वाली फ़ातिमा 4-5 दीनो के लिए गाओं गयी है. उसके मामू अकेले है.
मेरे पति: अछा.
मैं: फ़ातिमा मुझे बोल के गयी है उसके मामू के खाने का ख़याल रखने का.
पता नही पर क्यूँ पर मैने अपने पति से झूठ बोला.
मेरे पति: ठीक है ना, उनको बुला लेंगे खाने पे.
मैं: अब पता नही रोज़-रोज़ वो आए या नही.
पति: बोल के देख लेंगे आयेज उनकी मर्ज़ी. अब वो आए चाहे ना आए.
मैं: सही कहा आपने. अगर आए तो ठीक, नही तो हम खाना पॅक करवा के उनको दे आएँगे.
पति: हा ये भी सही रहेगा.
रात में लगभग 8 बजे मैने खाना बनाया. मेरे पति जुनेद को बुलाने के लिए उसके घर पे गये. जुनेद और मेरे पति के आने के बाद हम तीनो ने साथ में खाना खाया. और फिर बैठ के बहुत सारी बात-चीत की. जुनेद के जाने के बाद मेरे पति मुझसे बोले-
पति: मीना ये जुनेद मिया है बहुत ही कमाल के स्वाभाव वाले. कितने मीठे है.
पति के मूह से जुनेद की तारीफ सुन के पता नही क्यूँ पर मुझे बहुत गर्व महसूस हुआ. फिर रात में मैं जुनेद को और कल रात में देखे सपने को सोचते हुए सो गयी.
इससे आयेज की कहानी अगले पार्ट में आएगी.