सुबा बस पिताजी शॉप मई जाने के लिया निकल ही रहे थे की दीदी माथे मई सिंदूर गले पे मंगलसूत्रा डालके घर पे पहुँच गयी. मैं एक दूं से शॉक हो गया. मम्मी भी देख के हेरान हो गई.
पिताजी दीदी को इश्स रूप मई देख कर एक दूं गुस्से से लाल हो गई. मम्मी पिताजी के गुस्सा और दीदी को उसके पति के साथ देख के आगे कुछ बड़ा ही तमाशा होगा यॅ सोच के रोने लगी. मैं तो बस स्टॅच्यू बनके खड़ा ही था.
दीदी : पिताजी हम सदी करलिया है. यह मेरी पति Pअरम्ज़ीत सिंग.
पिताजी : चुप करो, और एक लफ्ज़ भी मत बोलना. मैं कोई आँधा नही हूँ.
दीदी : पिताजी, वा असल बात यॅ थी की
पिताजी : कोई बात नही. आज से तुम्हारे और हमारे बीच कोई रिस्ता नही. चली जाओ यहा से.
पिताजी ने रोक थोक बता दिया.
दीदी : मम्मी, समझाइया ना पिताजी को.
मम्मी कुछ बोल रही थी की उस से पहेले पिताजी ने बोल दिया की
पिताजी : देखो स्मिता, आज तक तुम सोनम के साथ देती रही मैं कुछ नही कहा था. पर आगर तुम अभी भी उसके साथ हो तो तुम भी उनके साथ जेया सकते हो. मैं तुम्हे भी नही रोकुंगा आब.
पिताजी की यॅ बात सुनके मम्मी और ज़ोर से रोने लगी और रूम के आंदार चली गई.
दीदी : मम्मी, मम्मी, मम्मी. पिताजी आप साँझ
पिताजी : यहा तुम्हारा कोई रिस्त्ेदार नही रहते बस. अब तुम जेया सकते हो.
दीदी : चलो परम. हम चलते है तुम्हारे मामा जी के वाहा. वा तो हमे इनके जेसे माना नही करेंगे.
दीदी भी गुस्से मई बोलने लगी.
फिर दीदी और जीजाजी चले गई. मुझे मिलने का मोका भी नही मिला.जाते वक़्त दीदी ने ममाजी के घर बोला था तो मैं भी कन्फर्म हो गया की दीदी यहा ही रुकने वाली है.
इन्न सब चीज़ के लिया मैं आपने आपको कसूरवार मानने लगा. आगर मैं यॅ सब पहेले ही पिताजी को बता देता तो आज सयद यॅ दिन देखना नही पड़ता. पिताजी बाहर चले गई और कुच्च्ी वक़्त मई वापस आगाई घर. सयद पिताजी उससदीन शॉप पे नही गई. मम्मी भी आंदार रो रही थी. मैं अपने रूम के अंदर ही था.
पिताजी आके मम्मी के साथ झगड़ ने लगे. यॅ सब के लिया पिताजी मम्मी को ही दोषी बना रहे थे. उनके हिसाब से मम्मी की सपोर्ट से ही दीदी ने इतने बड़े कदम उठाई है. मम्मी दीदी को हमेशा से सपोर्ट करती थी इससलिया दीदी यह सब कर दिया.
दीदी को पढ़ाई के लिया बाहर भेजना इश्स बात को लेकर मम्मी पिताजी से झगड़ा की थी तो दीदी जाईपुर पढ़ाई के लिया गई. पापा को लग रहा था की दीदी जाईपुर जाके बिगड़ गई और वाहा ही परम से मिली.
उससदीन पिताजी मम्मी के साथ ज़ोर से ही झगड़ा काइया. मम्मी यूयेसेस दिन चुप ही रही. सयद मम्मी भी यॅ सब के ज़िम्मेदार खुद को ही मनती होगी. मुझे अच्छा नही लगा क्यू की यॅ सब की ज़िम्मेदार तो मैं खुद ही हूँ. और मैं अपने रूम पे ही बेता रहा.
जिस तरह से पिताजी मम्मी को दाँत रहे थे वा रुकने वेल नही लग रहे थे. वा बार बार यही बोल रहे थे की उन्हे लोवे मॅरेज पसंद नही. आख़िर कर सोनम भी रश्मि की तरह ही निकली यही बोले जा रहे थे. रश्मि बुआ को गली डेल हुआ सोनम दीदी को भी गली करने लगे.
क्यू की रश्मि मेरे बुआ भी लोवे मॅरेज करके अपने आशिक़ के साथ भाग गई थी.
रश्मि बुआ और विक्रम फूफा दोनो मिलके पढ़ते थे. वा दोनो क्लासमेट्स ही थे. दीदी की तरह बुआ भी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई करने के लिया विसखापट्नम गई और वाहा फूफज़ई से मिली. और वाहा से सीधा फूफज़ई के साथ भाग गई.
जब पिताजी के डूबरा शादी मम्मी के साथ होने वाला है सुनके बुआजी पिताजी के शादी मई आए तो पिताजी एक बड़ा तमाशा खड़ा कर दिया. और उनको अंदर आने नही दिया. यॅ सब मम्मी और पिताजी के शादी के दिन ही हुआ था. मम्मी ने खुद यह बात मुझे बताई थी.
सयद इससलिया पिताजी दीदी को ज़्यादा टोक ते थे. उन्हे शाक्त नफ़रत था लोवे मॅरेज से.
उससदीन पिताजी ने मम्मी को ज़ोर ज़ोर से बहात दांते. दिन भर भस पिताजी अनप सनप बोले जा रहे थे. यूयेसेस दिया मम्मी पिताजी और मैं कोई भी लंच नही काइया. दाँत सुनते हुआ भी मम्मी ने मुझे लंच के लिया पुच्छे पर मैं मम्मी की रोते हुआ सकल देख के माना कर दिया.
उधर पिताजी मम्मी को रुक रुक के दाँत रहे थे. मम्मी बस चुप छाप उनकी दाँत सुन रही थी. क्यू की मम्मी लचर थी, मम्मी को इश्स हालत मई देख मुझे उन्न पर दया आने लगी.
यह सब मुझ से सुना नही गया और मैं घर से बाहर निकल गया खेलने के लिया. पर मेरा मूड खराब था तो मैं बिना खेले सिर्फ़ बेता ही रहा.
तब मुझे याद आया की दीदी और जीजा तो उनके मामा के वाहा गई है. मुझे उनका घर पता था तो मैं दीदी के पास जाना ठीक समझा. यॅ सब बताने के लिया की, उनके लिया मम्मी कितना दाँत खा रही है पिताजी से.
मैं जब उनके घर पहुँचा तो देखा की दीदी जीजा और उनके मामा मामी हॉल पे बेत के गप्पे मार रहे थे. मैं कुछ देर बाहर ही डोर के पास खड़ा होके उन्न लोगो की बाते सुना.
मामी – अरे बेटा रो मत. तुम्हारे पेरेंट्स तुम्हे सपोर्ट नही काइया तो क्या हुआ हम है ना. हम साथ देंगे तुम्हारे.
मामा – अभी अभी नये नये शादी काइया हो, ख़ुसी मनाओ, यॅ रोते हुआ तुम अच्छी ना लगती हो. चुप हो जाओ बेटा.
मामी – हम भी तो तुम्हारे पेरेंट्स ही है ना. परम के पेरेंट्स तुम्हे आक्सेप्ट कर लेंगे तुम टेन्षन मत लो. वा सब हम देख लेंगे. अरे परम बेटा समझाओ ना अपने बीवी को.
मामा – जाओ, तुम दोनो रूम के आंदार जाओ. वाहा आराम से समझाओ.
जीजा – अरे सोना, तुम्हारी ग़लती नही है कुछ. तुम रोना बंद करो. उठो और रूम के आंदार आओ. थोड़ी देर आराम कार्लो अच्छी लगेगी तुम्हे.
तब मैं डोर खुला ही था तो ओपन करके आंदार गया.
मैं – दीदी,
मुझे देख के दीदी भाग के मेरे पास आई और मुझे गले से लगाई रोते हुआ ही.
मैं – दीदी, रो मत.
दीदी – क्या तू भी मुझे ग़लत सोच रहा है. क्या मैं ग़लत हूँ? तू तो परम को भी जानता है. क्या परम सही नही है? परम से मैं कितनी मिलती थी और कितनी प्यार करती हूँ वा सब भी तो तुझे पता है.
इतने सारे क्वेस्चन्स दीदी ने पुचछा की मैं कुछ बोल भी नही पा रही थी.
दीदी – क्या तू भी पिताजी के तरह मुझे पराया कर दिया. क्या तू परम को अपना जीजा नही मानता ?
मैं – नही दीदी असी बात नही. आप मेरी दीदी हो और आपके पति मेरे जीजाजी है. मैं हमेशा से आपके साथ देते हुआ आया हूँ. तो आज केसे आपको अकेला छ्चोड़ दूँगा. मैं आज भी आप के साथ हूँ.
तब जीजाजी हम दोनो के पास आए. मुझे साइड से ही अपने गले लगाया.
परम – थॅंक्स राहुल. बहात बहात सुक्रिया तुम्हारा. खेर तुम तो हमे ठीक से समझे. पता नही क्यू तुम्हारे मम्मी और पिताजी हमे ठीक से साँझ नही पाए.
मैं – नही जीजाजी. मेरे हिसाब से तो आप दोनो ने सही नही काइया. पता है दीदी तुम्हारी हरकत की वजह से आज दिन भर मम्मी को कितनी दाँत पड़ी. आज दिन भर बस मम्मी रो रही थी. पिताजी तो मम्मी को ही ज़िम्मेदार साँझ रहे.
दीदी फिर रोने लगी. जीजाजी दीदी को समझते हुआ चुप करने लगे.
दीदी – छ्होतू तू मम्मी का ख़याल रख ना. आब तो मैं भी नही रही उनका साथ देने के लिया. पिताजी इतने खाड़ुस है पता नही मम्मी केसे शादी करके उनके साथ रहती है. कोई भी नही रह सकता उनके साथ.
मैं – हाँ दीदी, बिल्कुल. मैं तो बस यहा आपको बताने आया था की मम्मी को आपकी वजह से कितना दाँत पड़ा. आब चलता हूँ दीदी घर. पता नही मम्मी पिताजी क्या कर रहे होंगे.
दीदी – ठीक है छ्होतू. हम भी कल चंडीगार्ह निकल रहे, परम के पेरेंट्स से मिलने. जो कुछ भी होता है मुझे कॉल करके बताना. भूल मत जाना.
मैं – हाँ दीदी बतौँगा रोज. अच्छा जीजाजी दीदी के ख़याल रखना. मैं निकलता हूँ अभी.
परम – तुम फिकर मत करो दीदी का. ( दीदी को हग करते हुआ) तुम बस आंटी की ख़याल रखो और टच मैं रह ना हमारे.
मैं – हाँ जीजाजी, बाइ.
परम – एक मीं रूको राहुल.
फिर जीजाजी मुझे कुछ पैसे दिया. मैं नही ले रहा था. पर दीदी के बोलने पर रख लिया और सबको बाइ बोलके निकल गया. बाहर आके जब मैं पैसा गिनती काइया तो वा 12000/- थे. मैं मान ही मान जीजाजी के तारीफ करके खुस हो गया. सोचा की दीदी की तो किस्मत ही बन गया. और मैं वाहा से आगेया.
तो बे कंटिन्यूड…