जवान शीला मस्त चुदाई करवाती थी – पूरा साथ देती थी। तीन घंटे की चुदाई के बाद शीला ऊपर चली गयी और मुझे नींद आ गयी।
शाम के छः बजे मोबाइल की घंटी बजी तो मेरी नींद खुली। ज्योति का फोन था,”जीते क्या हुआ, इतना थक गया? लगता है बराबर की टक्कर दी है लड़की ने। चल फ्रेश हो जा मैं शीला के हाथ से चाय भिजवा रहीं हूं।”
मैंने सोचा शीला गई नहीं अभी तक? कहीं रात को यहीं रुकने का प्रोग्राम तो नहीं? फिर सोचा खैर अगर ऐसा प्रोग्राम बन भी गया तो मैं क्या कर सकता था – और फिर चिंता भी किस बात की? मैंने सोचा- देखा जाएगा। मेरे पास मेरा वो ब्रह्मास्त्र तो था ही – मेरा दो सौ रुपये वाला कंडोम – बड़ी-बड़ी चुदाईयां करने वाला, चूतों के छक्के छुड़ाने वाला।
मैं बाथरूम में घुस गया। नहा कर कपड़े बदले और सामने का दरवाजा खोल कर ड्राईंग रूम में बैठ गया।
दस मिनट बाद ही शीला आ गयी। हाथ में ट्रे थी। ट्रे में चाय की केतली, और कुछ नमकीन थे। आते ही बोली, “लो भैया, भाभी ने भेजा है।”
फिर थोड़ा हंस कर बोली,” जीत भैया, भाभी ने बोला है खाना ऑर्डर मत करना। भाभी ऊपर बना रही है – चिल्ली-चिकन और चने के दाल। आज आप का डिनर भी ऊपर ही है I भाभी बोल रही थी, आठ बजे पहुंच आ जाना ऊपर – पीछे की सीढ़ियों से।”
डिनर भी ऊपर ही है। मतलब शीला भी जानती है की आज रात “कुछ और भी है जो ऊपर होना था”। क्या ज्योति ने शीला को बता दिया था कि आज रात चुदाई होनी थी? कितना खुली हुई है ज्योति शीला से?
फिर शीला मेरे लंड को पकड़ कर बोली,”पप्पू तैयार हो जा, पूरी रात का जागरण है तेरा – आज तो मजे हैं तेरे।”
“पप्पू” – मेरी तो हंसी ही निकल गयी। कमाल की है ये शीला भी। और फिर बिना मेरे जवाब का इंतजार किये शीला मुड़ी और निकल गयी – जैसे दिन में कुछ हुआ ही ना हो – मुझसे चुदी ही न हो।
रात आठ बजे मैं पीछे की सीढ़ियों से ऊपर चला गया। साथ मैं अपनी दारू की बोतल भी ले गया।
ज्योति अपने कमरे में हल्के पीले रंग झीनी नाईटी पहने लेटी हुए थी। नाईटी में से ज्योति की चूचियों के गहरे भूरे निप्पल दिखाई दे रहे थे। चूत वाली जगह पर भी चूत की हल्की झलक पड़ थी। ज्योति की नाईटी घुटनों के ऊपर तक सरक गयी थी – या ज्योति ने खुद सरका दी थी।
बिस्तर पर लेटी ज्योति गजब की सुन्दर और सेक्सी लग रही थी। ज्योति की गोरी सुडौल टांगे क्या मस्त थीं। कुल मिला कर माहौल लंड खड़ा करने के लिए काफी था। मेरा तो मन करने लगा चढ़ जाऊं अभी भरजाई पर।
मैंने दारू की बोतल टेबल पर रक्खी और ज्योति के पास ही बेड पर बैठ गया और ज्योति की नाईटी के ऊपर से चूत पर हाथ फेरता हुआ बोला, “क्या बात है भरजाई, बड़ी कातिल लग रही हो आज? किसका कत्ल करना है?”
कहते हुए मैंने ज्योति की चूचियों को हल्का भी दबा दिया। ज्योति ने हल्की सी एक सिसकारी ली “आआह… जीते”, और बोली, “जीते, शीला तो तेरी तारीफें करते ही नहीं थक रही थी। आज तो कोइ और बात ही नहीं की उसने। बस यही बताती रही, जीत भैया ने ऐसे चूत चूसी, ऐसे लंड चुसवाया, ऐसे चोदा, वैसे चोदा।”
“बीस बार तो उसने अपनी चूत खुजलाई होगी बात करते करते। ऐसा भी क्या चोद दिया तूने शीला को? शीला ने मुझे पहले भी अपनी चुदाईयों के किस्से सुनाए हैं, मगर आज तो कमाल हो गया। कोई और बात ही नहीं की उसने – बस चुदाई-चुदाई-चुदाई। जीत भैया ने ऐसे चोदा, जीत भैया ने वैसे चोदा।”
मैं हल्का सा हंसा और बोला, “भरजाई ये तो अब आप ही बताना।” ये कह कर नाईटी के ऊपर से ही ज्योति की चूत का एक चुम्मा लिया और फिर उसके होंठ अपने होठों में लेकर चूसने लगा।
ज्योति ने भी मुझे अपनी बाहों में ले लिया, और मेरे होंठ चूसने लगी। कुछ देर बाद मैंने ज्योति के होंठ छोड़े और चूचियां मसलता हुआ बोला, “एक-एक हल्का पेग लगा लें भरजाई, लंड खड़ा होने लगा है I”
“हां चल” कहते हुए ज्योति उठने लगी। मैंने ज्योति को उठने में मदद की, और फिर से उसे बाहों में लेकर उसके होंठ अपने होठों में ले लिए।
ज्योति ने भी मुझे पीछे से पकड़ कर मुझे अपनी चूचियों से चिपका लिया। मेरा लंड खड़ा होने लगा था और ज्योति की चूत के बिलकुल सामने था।
ज्योति ने एक हाथ से मेरा लंड पकड़ लिया। दस मिनट हम ऐसे ही एक दूसरे के होंठ चूसते रहे।
जब अलग हुए तो ज्योति बोली, “जीते मेरा तो चुदवाने का मन भी होने लगा है।” ये कह कर ज्योति ड्राईंग रूम के ही एक कोने में लगी अलमारी से वोदका और विस्की की बोतल निकाल लाई।
मैंने कहा, “भरजाई बस वोदका निकालो, मैं अपना ब्रांड ले कर आया हूं।”
ज्योति ने वोदका की बोतल डाइनिंग टेबल पर रख दी। मैंने वोदका का एक पेग ज्योति के लिए बनाया और व्हिस्की का एक मोटा पेग अपने लिए बना लिया।
ज्योति ने अपने गिलास में पेप्सी डाल ली, और मैंने सोडा और पानी मिक्स डाल लिए। एक-एक दो घूंट पीने के बाद ज्योति ने फिर वही बात छेड़ दी – शीला की मस्त चुदाई की बात।
ज्योति ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली,”जीते सच बता कैसे चोदा तूने शीला को कि वो सिवाय चुदाई के कुछ बात ही नहीं कर रही थी।”
मैंने कहा,”कुछ नहीं भरजाई। मैंने तो शीला को वैसे ही चोदा जैसे पिछले दिनों आपको चोदा।”
मैं अभी ज्योति को अपने स्पेशल वाले कंडोम के बारे नहीं बताना चाहता था।
मेरा इरादा था की आज रात की पहली एक चुदाई कंडोम चढ़ा कर करूं, और देखूं ज्योति क्या कहती है। अगर ज्योति को कंडोम वाली चुदाई में कुछ फरक लगा और उसे रगड़ाई वाली चुदाई का ज्यादा मजा आया तो फिर मैं ज्योति को कंडोम के बारे में बता दूंगा।
फिर मैंने बात घुमाते हुए ज्योति से कहा, “भरजाई मुझे लगता है शीला अभी तक सही माहौल में चुदी ही नहीं। घर और होटल के माहौल में फरक तो होता ही है I होटल में तो सौ तरह के खटके लगे रहते हैं। कोइ जान-पहचान वाला देख ना ले। कोइ आ ना जाए। चुदाई के मजे की सिसकारियों की आवाज बाहर ना चली जाएं।”
ये बात ज्योति को भी लगा ठीक है। इसके बाद ज्योति ने इस बारे में कोई बात नहीं की, बस इतना ही कहा,”बात तो ये ठीक है।”
मेरा लंड खड़ा हो चुका था। हल्की लाइट और भरजाई का सेक्सी जिस्म – मेरा मन मचल रहा था। मैंने ज्योति को कहा, “भरजाई मेरी गोद में आ जाओ।”
ज्योति बिना कुछ बोले उठी और आ कर मेरी गोद में बैठ गयी। अगर मैं हट्टा-कट्टा सरदार अजित सिंह गिल – उर्फ़ जीत, जीता, जीते – पंजाब के खाते पीते परिवार से न होता, तो पांच फुट नौं इंच की ज्योति को गोद में बिठा कर मेरा कचूमर निकल जाना था।
मगर मुझे गज़ब की सुन्दर पंजाबन भरजाई को गोद में बिठा कर मजा आ रहा था I मैं और ज्योति अपनी-अपनी दारू भी पी रहे थे, और बीच-बीच में एक दूसरे के होंठ भी चूस रहे थे। मैं रुक-रुक कर ज्योति की चूचियां और चूत भी सहला देता था।
जब मैं ज्योति की चूचियों और चूत पर हाथ लगाता तो ज्योति बड़े ही मादक अंदाज़ में छोटी सी सिसकारी लेती आह… जीते। मेरा लंड खड़ा हो चुका था – और ये ज्योति भी जान चुकी थी। लंड पर ही तो बैठी थी मेरी पंजाबन भरजाई।
अब मेरा मन चुदाई का हो रहा था। ज्योति की भी यही हालत थी। ज्योति रह-रह कर लंड पर चूतड़ इधर-उधर कर रही थी, और अपनी चूत पर खुजली कर रही थी।
अचानक ज्योति बोली,”जीते, चलें? एक चुदाई कर दे अपनी भरजाई की, अब नहीं रहा जा रहा।” ये कह कर ज्योति उठ खड़ी हुई।
ज्योति ने बाकी बची हुई वोदका पी, और अपनी नाईटी वहीं उतार कर मेरे सामने खड़ी हो गयी। मैं जैसे ही ज्योति की चूत में उंगली डालने लगा, ज्योति ने अपने एक टांग उठा कर कुर्सी पर रख ली।
ज्योति को पता था कि खड़ी लड़की की बंद टांगों में उंगली चूत में नहीं जाती। ज्योति ने जैसे ही एक टांग कुर्सी पर रक्खी, ज्योति की चूत खुल गयी। मैंने अपना अंगूठा ज्योति की चूत में डाल कर गीला किया, और चूत का दाना रगड़ने लगा। ज्योति की चूत ने अच्छा खासा पानी छोड़ रक्खा था।
ज्योति ने मेरा सर अपनी चूचियों पर दबा दिया। मैं ज्योति की मम्मों के निप्पल चूसने लगा।
ज्योति लम्बे-लम्बे सांस और सिसकारियां लेने लगी आह… जीत… जीते… आआह्ह। ज्योति ने टांग कुर्सी से नीचे उतारी और बोली, “चल जीते”। और यह कह कर ज्योति अंदर की तरफ चली गयी।
मैंने भी पायजामा उतार दिया, और ज्योती के पीछे-पीछे कमरे की तरफ चल पड़ा। कंडोम मेरे कुर्ते की जेब में ही थे। ज्योति बेड के किनारे पर बैठ गयी। लड़की बेड के किनारे पर तभी बैठती है जब उसका लंड चूसने का मन करता हो – मतलब ज्योति लंड चूसना चाहती थी।
मैंने झट से कुर्ता उठाया और अपना लंड ज्योति के सामने कर दिया। ज्योति ने लंड मुंह में लिया और चूसने लगी।
जैसे जल्दी-जल्दी ज्योति लंड चूस रही थी, लग रहा था की ज्योति अब चुदाई करवाना चाहती थी। मैंने भी लंड ज्योति के मुंह में से निकाल लिया, और बोला, “भरजाई थोड़ी चूत चुसवाओ, फिर चुदाई करें।”
ज्योति उठ खड़ी हुई और बोली, “जीते मुझे पेशाब आया है।” ये कह कर ज्योति बाथरूम की तरफ बढ़ गयी। दारू पीने के कारण पेशाब तो मुझे भी आ रहा था। मैं भी ज्योति के पीछे-पीछे चल पड़ा।
ज्योति टॉयलेट सीट पर बैठी पेशाब कर रही थी, और सुररर-सुररर की आवाज के साथ। क्या मस्त आवाज थी।
मैं सोच रहा था “क्या इसी आवाज के कारण पेशाब या मूत को “सुसु” भी कहते हैं?” मुझे पता नहीं क्या हुआ मैंने अपना हाथ ज्योति की चूत पर रख दिया। ज्योति का सुसु मेरे हाथ पर निकल रहा था। मैं उंगलियां से चूत को थपथपाने लगा। सुररर की आवाज के साथ छप-छप की आवाज भी आने लगी।
सुररर-सुररर छप-छप की आवाज क्या थी संगीत ही था। वैसे भी पीने के बाद तो हर चीज़ सुन्दर लगने लगती है, और अगर चुदाई का भूत सर पर सवार हो तो हर आवाज संगीत लगने लगती है। जैसे मुझे ज्योति के मूतने की आवाज लग रही थी।
ज्योति का गरम-गरम पेशाब मेरे हाथ पर पड़ा तो मेरा लंड और भी सख्त हो गया। ज्योति ने मेरे लंड को पकड़ कर इतना ही कहा, “क्या हुआ जीते ज्यादा मस्ती आ गयी है?”
मैंने भी फुसफुसाती आवाज में कहा “हां भरजाई। लगता है आज मस्त चुदाई होनी हैI” ज्योति पेशाब कर चुकी थी – बोली, चल फिर देर किस बात की।” और ज्योति उठी और अंदर चली गयी। मैंने भी पेशाब किया, ज्योति के पेशाब से सने हुए हाथ धोये, कुर्ता उतारा और अंदर चला गया। एक कंडोम मैंने अपने हाथ में ले लिया।
अंदर आखें बंद किये हुए ज्योति बिस्तर पर लेटी हुई थी। ज्योति ने चूतड़ों के नीचे तकिया सजा लिया था। टांगें हवा में उठा कर चौड़ी कर ली थी। चूत पर एक बाल नहीं था, बिलकुल मुलायम चूत थी। गुलाबी चूत का छेद मेरे सामने था।
शीला ने भी चुदाई से पहले आंखें बंद की हुई थीं। सारी लड़कियां ही कर लेतीं हैं। शायद लंड का चूत में जाना पूरी तरह महसूस करना चाहती हैं – पूरी मस्ती, मजा लेना चाहती हैं। सोच रहीं होती हैं, ये गया अंदर, ये गया, और ये गया।
मैंने चूत को थोड़ा चाटा। नमकीन पानी के स्वाद ने चुदाई की इच्छा को और बढ़ा दिया। मैंने हाथ में पकड़ा हुआ कंडोम लंड पर चढ़ा लिया। जांघों से पकड़ कर ज्योति की टांगें थोड़ी और चौड़ी की, लंड चूत के छेद पर रखा। लंड का सुपाड़ा अंदर करके एक सेकण्ड के लिए रुक कर लंड को निशाने पर लिया, और फच्च की आवाज के साथ जड़ तक लंड ज्योति की चूत में पूरा बिठा दिया।
ज्योति बस इतना ही बोली, “आआआआह… जीते क्या रगड़ा लगा है चूत के अंदर?”
बस अब ऐसी चुदाई होनी थी कि भरजाई को भी शीला की तरह आज की चुदाई याद रहती और दस दिनों तक ज्योति मेरी पंजाबन भरजाई जब मिलती चुदाई की ही बात करती और साथ ही अपनी चूत खुजलाती।
फिर तो मैंने अगले दस मिनट तक वो धक्के लगाए की ज्योति की चूत पानी-पानी कर दी।
ज्योति का मजा उसकी सिसकारियों से पता लग रहा था “आआह… जीते ये कैसे रगड़ रहा है तू? आअह… जीते तेरा लंड है या क्या है? जीते बड़ा मजा आ रहा है। जीते अब ना रुकना, लगा-लगा आने वाली हूं मैं। आह… मैं गई, और एक बार ज्योति ने जोर से चूतड़ घुमाए और चित्त लेट गयी।
ज्योति तो झड़ गयी थी मगर मेरा लंड वैसे का वैसा ही था। मैंने ज्योति को पकड़ रक्खा और धक्के लगाता गया।
एक बार झड़ चुकी ज्योति को होगा कि शायद मैं लंड बाहर निकाल लूंगा, और कुछ देर रुकने के बाद फिर से चुदाई करूंगा, मगर मैंने लंड बाहर नहीं निकाला। मेरे खड़े लंड को ज्योति की चूत में अभी पांच – सात ही मिनट हुए होंगे कि ज्योति की चूत फिर तैयार हो गयी – बिलकुल वैसे ही जैसे शीला की चूत तैयार हो गयी थी। ज्योति ने फिर चूतड़ हिलाने शुरू कर दिए I
मतलब “रुके क्यों हो लगाओ धक्के – चोदो भी अब।”