दस मिनट की एक और चुदाई के बाद ज्योति भरजाई की चूत फिर पानी छोड़ गयी, मगर मेरा लंड खड़े का खड़ा था। ज्योति झड़ चुकी थी। मेरा खड़ा लंड ज्योति की चूत में ही था। ज्योति को लगा कि मैं लंड चूत में से निकाल लूंगा, और कुछ देर बाद फिर से चुदाई करूंगा।
कुछ देर ऐसे ही लेटने के बाद ज्योति को लगा उसकी चूत अभी भी भरी हुई थी, फ़ैली हुई थी। फिर ज्योति धीरे से बोली, “जीते क्या हुआ, तेरा लंड तो अभी भी सख्त और खड़ा ही है I तेरा निकला नहीं अभी? तेरे लंड ने अभी भी पानी नहीं छोड़ा?”
शीला भी तो यही बोली थी “क्या जीत भैया आपका अभी भी नहीं निकला?”
मैंने कहा “भरजाई अभी नहीं निकला, अभी लंड खड़ा ही है I इस बार की चुदाई में भी मेरे लंड का पानी नहीं निकला, अब निकलेगा।”
ज्योति बोली, “जीते इतनी चुदाई के बाद तो मुझे फिर से जोर का पेशाब आ रहा है, वोदका भी तो पी है।”
मैंने खम्बे की तरह खड़ा लंड भरजाई की चूत से बाहर निकाल लिया, और बिस्तर पर एक तरफ लेट गया।
ज्योति बाथरूम चली गयी पेशाब करने, और मैंने लंड पर से कंडोम उतार कर चद्दर के नीचे डाल दिया।
ज्योति पेशाब करके आयी और मेरा लंड हाथ में पकड़ कर बोली, “क्या चक्कर है जीते, बड़ी ही मस्त चुदाई की तूने। निकला क्यों नहीं तेरा?” ये कह कर ज्योति ने लंड फिर मुंह में ले लिया।
ज्योति जोर-जोर से लंड चूस रही थी। मैंने बस इतना ही कहा, “भरजाई कभी-कभी हो जाता है ऐसा” और नीचे एक हाथ से ज्योति की चूत में उंगली ऊपर नीचे करने लगा।
ज्यादा देर नहीं लगी ज्योति को फिर से चुदाई के लिए गर्म होने में। कुछ ही देर में भरजाई चूतड़ हिलाने लगी। मैं समझ गया ज्योति भरजाई अगली चुदाई के लिए तैयार थी।
ज्योति लंड चूस रही थी। मैंने कहा, “बस भरजाई मेरा लंड चूत मांग रहा है।”
फिर ज्योति ने लंड मुंह से निकाला और बिना कुछ भी बोले बिस्तर पर लेट गयी। तकिया चूतड़ों के नीचे रक्खा और चूतड़ उठा दिए। साथ ही भरजाई की चूत भी उठ गयी।
दोनों हाथों से चूत के फांकें खोल कर ज्योति बड़े ही मादक अंदाज में बोली, “आजा मेरे जीते, चढ़ जा मेरे ऊपर, डाल अपना ये मोटा खूंटा मेरी चूत में, और कर चुदाई, मन मर्जी की चुदाईI”
ज्योति की गुलाबी चूत बिल्कुल मेरे लंड के सामने थी। मैंने लंड ज्योति की चूत के छेद पर रक्खा, और एक ही झटके से लंड चूत के अंदर बिठा दिया। ज्योति ने आंखें बंद कर ली, और एक मदभरी सिसीकारी ली, “आह जीते क्या लंड है तेरा I रगड़, इस चूत को दिखा दे कितना दम है तेरे लंड में I”
बीस मिनट की जोरदार चुदाई ने पंजाबन भरजाई को हिला कर रख दिया, और साथ ही हिला दिया पलंग को भी।
ज्योति ऐसे सिसकारियां ले रही थी मानो पहली बार चूत में लंड गया हो। “अअअअअह… जीत… जीते… ये क्या हो रहा है मेरी चूत में आआह… ओहोहोहोह… जीत… जीते… आआअह्ह्हा… निकला मेरा जीत, अअअअअह….”
और फिर इतनी जोर-जोर से ज्योति ने चूतड़ घुमाए, कि एक बार तो मेरा लंड ज्योति की चिकने पानी से भरी चूत में से बाहर ही फिसलने लगा था I
मैंने कस कर ज्योति को पकड़ लिया। धक्के लगाने की तो मुझे जरूरत ही नहीं पड़ रही थी। ये काम तो अब मस्ती में आयी पंजाबन भरजाई नीचे से चूतड़ हिला-हिला कर घुमा-घुमा कर कर रही थी।
फिर एक दम से ज्योति ने एक ऊंची आवाज की सिसकारी ली “अअअअअह जीते… निकल गया मेरा।” उधर मैंने भी एक हुंकार भरी “घघरररर… हाआआमं…”, और ढेर सारा पानी ज्योति की चूत में उड़ेल दिया।
ज्योति बस इतना ही बोली, “उउइइ….. इतना मजा…? मर गयी आज तो मैं… आअह इतना मजा?” और ज्योति बिस्तर पर ढेर हो गई, बिल्कुल निढाल।
मैं भी इतनी जोरदार चुदाई के बाद थक गया था, बैंड बज गया था मेरा। दिन में शीला की दो घंटे से ज्यादा की चुदाई, और अब ज्योति की रगड़ाई। अब लंड को भी आधे घंटे का आराम चाहिए था। हल्की भूख भी लग गयी थी। मगर पेट भर के खाने का मतलब था आगे की चुदाईयों का कचरा करना।
ये तो मैच की पहली पारी थी, दो-दो पेग के बाद तो चुदाई का मैच दुबारा होना था। इसलिए खाना बिल्कुल हल्का होना चाहिए था। दारू के साथ तीन-तीन चार-चार चिल्ली चिकन के पीस ही काफी थे।
जब लंड ढीला हो गया, तो मैंने लंड ज्योति की चूत में से बाहर निकाल लिया।
थकी हुई शीला दस मिनट ऐसे ही लेटी रही, बिना कुछ बोले, आंखें बंद करके। मैं बाथरूम में गया, पेशाब करके वापस कमरे में आ गया।
ज्योति अभी भी वैसे ही लेटी हुई थी। मैं भी ज्योति के साथ ही लेट गया, और ज्योति की चूचियों पर हल्के-हल्के हाथ फेरने लगा।
ज्योति ने सिसकारी ली, “आह जीते, ये क्या कर दिया तूने, कैसे चोदा आज? मेरा तो मजा ही बंद नहीं हो रहा।”
मैं ज्योति की चूचियों और पेट को चूमने लगा। ज्योति बोली, “आआह… बस जीते” I और मुड़ कर ज्योति ने मुझे बांहों में जकड़ लिया और बोली, “ये कैसी चुदाई की जीते तूने मेरी आज। भरी पड़ी है मेरी चूत।”
कुछ देर बाद ज्योति उठी और बाथरूम चली गयी। मैं भी उठ कर डाइनिंग टेबल पर आ गया, और अपना-अपना “पटियाला” और ज्योति का हल्का पेग बना दिया। ज्योति आई और आकर सीधे मेरी गोद में बैठ गयी।
“पटियाला” पेग तो हर दारूबाज को पता है क्या होता है। अंग्रेज़ जब पीते हैं तो 30 ml का पेग बनाते हैं। हिंदुस्तानी जब पीते हैं तो 60 ml का पेग बनाते हैं। जब कोई “पटियाला पेग” बोलता है तो इसका मतलब होता है 120 ml का पेग। पंजाब में ज्यादातर यही चलता है।
ये “पटियाला पेग” महाराजा पटियाला सरदार भूपिंदर के देन है जिनका “सब कुछ” ही बड़ा था। बड़ा महल, बड़ा हार जिसमें 2930 हीरे जड़े थे। महाराजा पटियाला के शौक भी बड़े थे। 365 तो बीवियां, रानियां ही थीं।
अब अगर ऐसे लाजवाब इंसान का “सब कुछ” बड़ा होने के साथ-साथ अगर पेग भी बड़ा था तो इसमें हैरानी की क्या बात है। अब हम जैसे लोग 365 तो क्या तीन बीवीयां भी नहीं झेल सकते। कम से कम पेग में तो राजा साहब की नकल कर ही सकते हैं।
खैर, मैंने अपना 120 ml का पटियाला पेग बनाया और ज्योति भरजाई के पीछे-पीछे किचन में चला गया।
मैंने कहा, “भरजाई खाना हल्का ही लेते हैं। ज्यादा खा लिया तो सुस्ती आ जाएगी। ऐसा करो आप खाली चिल्ली-चिकन ही गरम कर लो। बाद में देखेंगे।””बाद में देखेंगे” मतलब चुदाई के बाद में। ज्योति भी समझ ही गयी होगी।
ज्योति बोली, “मैं भी यही कहने वाली थी। चल बैठ तू, मैं चिकन गरम करके लाती हूं।”
भरजाई चिकन गर्म कर रही थी, साथ-साथ गिलास में से वोदका के सिप भी ले रही थी। मैंने पहली बार ज्योति को पीछे से देखा।
ज्योति जितनी आगे से खूबसूरत और सेक्सी थी, उतनी ही पीछे से भी खूबसूरत और सेक्सी थी।
कमाल के चूतड़ थे ज्योति के, बिलकुल मुलायम, गोल तरबूज की तरह। चूतड़ों के बीच की लाइन देख कर तो मेरे लंड में हरकत होने लग गयी।
मैंने गिलास एक तरफ रक्खा और ज्योति के पीछे जा कर उसे पकड़ लिया। मेरा आधा खड़ा लंड भरजाई के चूतड़ों की लाइन को छू रहा था। मैंने लंड को ज्योति के चूतड़ों पर रगड़ते हुए कहा, “भरजाई आपके चूतड़ कितने सेक्सी हैं एकदम मस्त। सच पूछो भरजाई मेरा तो आपके चूतड़ चाटने का मन करने लगा है।”
ये कह कर मैं ज्योति के चूतड़ों पर हाथ फेरने लगा। ज्योति ने कहा, “क्या बात है जीते गांड चोदने का मन करने लगा है क्या?”
मैंने कहा, “भरजाई अगर मैं हां बोलूं तो क्या आप गांड चुदवा लोगी?”
ज्योति बोली, “जीते अब तक कभी गांड चुदवाई तो नहीं। पर अगर तेरा बड़ा ही मन कर रहा है तो चुदवा लूंगी।”
मैंने कहा,”नहीं भरजाई चोदनी तो चूत ही है मगर आपके चूतड़ देख कर लंड में हरकत होने लगी थी, इसलिए मैंने ऐसे ही बोल दिया।”
ये कह कर मैं घुटनों के बल नीचे बैठ गया और ज्योति के चूतड़ चाटने चूसने लगा। ज्योति बोली, “बस कर जीते, खाना बीच में ही रह जाएगा। पहले ही मेरी चूत गीली हुई जा रही है। चल पहले खाना खाते हैं फिर देखेंगे क्या करना है। पूरी रात अपनी ही है।”
मैंने और भरजाई ने मिल कर चिकन की प्लेट डाइनिंग टेबल पर रख दी और हम साथ साथ बैठ गए।
ज्योति फिर बोली, “जीते, आज तो तूने कमाल के चुदाई की। चुदाई तो तूने पिछले हफ्ते भी बढ़िया ही की थी, पर आज की चुदाई तो कमाल ही थी। चूत का बैंड बजा दिया तूने, मजा ही आ गया ।”
मैंने सोचा ये सही वक़्त था, अब भरजाई को कंडोम के बारे में बता देना ही चाहिए।
मैंने कहा, “भरजाई आज की मस्त चुदाई में मेरा ही नहीं इसका भी हाथ है।” मैंने कंडोम का पैकेट ज्योति को दिखाते हुए कहा।
ज्योति ने पूछा, “ये क्या है जीते, ये तो कंडोम लग रहा है।”
मैंने कहा , “हां भरजाई है तो कंडोम ही, मगर कुछ अलग तरह का। अब जब लंड पर चढ़ाऊंगा तब देखना आप।”
ज्योति ने पूछा, ”अलग तरह का? इसमें ऐसी क्या ख़ास बात है? उलटा कंडोम चढ़ा के तो चूत के अंदर रगड़े नहीं लगते। इसी लिए ज्यादा लड़कियां कंडोम चढ़वा कर चुदाई नहीं करवाती। मैंने खुद अमित को कभी कंडोम नहीं चढ़ाने दिया। फिर ये? इसमें क्या ख़ास बात है? बता तो सही।”
मैंने कहा, “ठीक है भरजाई, चढ़ाओ इसको मेरे लंड पर।” और मैंने कंडोम ज्योति के हाथ में पकड़ा दिया I
ज्योति ने मुड़ा हुआ कंडोम लंड के सुपाड़े पर रक्खा और पीछे की तरफ खोल दिया।
कंडोम लंड पर पूरा चढ़ गया। मैंने ज्योति को कहा, “अब ध्यान से देखो भरजाई इसको।”
ज्योति बड़े ध्यान से कंडोम को देख रही थी और समझने की कोशिश कर रही थी कि ऐसा भी क्या करता है ये कंडोम चूत के अंदर जो लड़की को जन्नत की सैर करवा देता है।
ज्योति ने लंड के बीच वाले हिस्से पर कंडोम के ऊपर हाथ फेरा। ज्योति को कंडोम के ऊपर अलग सी पतली रबड़ की झिल्ली में असली लंड की तरह की चमड़ी का एहसास हुआ। फर्क ये था की लंड के ऊपर की असली चमड़ी पर सिलवटें इतने मोटी सिलवटें नहीं होतीं जितनी कंडोम पर थीं।
इन्हीं सिलवटों के कारण चूत के अंदर रगड़े लगते थे। ज्योति ने लंड के बीच के हिस्से की रबड़ की झिल्ली को आगे पीछे किया और मेरी तरफ देखा, जैसे कह रही हो – “तो ये बात है।”
मैंने कहा, “भरजाई अब इसके सुपाड़े वाले हिस्से पर उंगली फेरो।” ज्योति ने कंडोम के आगे वाले हिस्से पर उंगली फेरी। उभरे हुए दाने उंगली पर रगड़ा दे रहे थे। यही दाने चूत के अंदर भी रगड़ा देते थे। ज्योति को समझ आ गया की इन पहले वाली चुदाईयों में इतना मजा क्यों आया था। इसलिए आया था क्योंकि चूत के अंदर इस ख़ास कंडोम के कारण रगड़े ज्यादा लगे थे।
ज्योति बोली, “तो ये बात है। इस कंडोम का सारा जुगाड़ चूत की खुजली मिटाने के लिए है Iअसल में ये रगड़ाई ही तो असली मजा देती है चुदाई का। लंड को चूत में डालने का मकसद ही चूत की रगड़ाई होता है। तभी तो तेरे लंड जैसे मोटे लंड पर जब ऐसा कंडोम चढ़ता है तो चूत की साइडों में ज्यादा रगड़े लगते हैं और चुदाई का मजा दुगना तिगुना हो जाता है।”
फिर भरजाई कुछ रुक कर बोली,”और साथ ही चुदाई करवाने वाली लड़की को जल्दी मजा आ जाता है और वो जल्दी झड़ जाती है।”
“लंड चूत के मजे के लिए कैसी कैसी चीजें आती हैं। नक़ली लंड भी आते हैं, नक़ली चूत भी आती है।”
मैंने कहा, “भरजाई नक़ली लंड चूत ही नहीं, नक़ली चूतड़, नक़ली चूचियां भी आती हैं चोदने के लिए और नक़ली होंठ भी आते हैं लंड डालने के लिए।”
फिर मैं कुछ रुक कर बोला, “पर भरजाई असली चूत का कोइ मुकाबला नहीं ।”
ज्योति हंस कर बोली, “और असली लंड का भी जीते।” फिर ज्योति कंडोम पर हाथ फेर कर बोली, “कुछ भी कह लो, ये कंडोम है तो बड़े काम की चीज़, चूत की रगड़ाई तो बढ़िया करता है ये।”
ज्योति दुबारा से कंडोम पर हाथ फेर कर बोली, “कमाल है! सिर्फ इस कंडोम के कारण हुई ऐसी ज़बरदस्त चुदाई, और चुदाई का मजा दुगना हो गया? अब तो तू लंड पर इसको चढ़ा कर ही चोदा कर” I
फिर ज्योति ने पोछा, “क्या नाम है इसका? तू तो हमेशा नहीं होगा मुझे चोदने के लिए, मैं अमित को बोलूंगी इसे लंड पर चढ़ा कर मेरी चुदाई करे।”
मैंने पुछा, “पर भरजाई कहोगी क्या अमित से, किसने दिया है।”
ज्योति सोच में पड़ गयी। बात तो मेरी सही थी। कुछ रुक कर ज्योति बोली, “चल उसका भी रास्ता निकाल लेंगे। तू कौन सा अभी जा रहा है एक दो साल तो है ही। तब तक मजे देता रह मुझे चुदाई के।” फिर ज्योति कुछ रुकी और हंसते हुए बोली, “और शीला को भी ।”