ही फ्रेंड्स, मैं हू 35 साल की कामिनी. नाम के अनुरूप मेरी कामिनी सी काया है. अंग-अंग से कामुकता का रस्स टपकने वाले मेरे संगमरमरी बदन को देख लोग मुझे ज़िंदा ताजमहल कहना शुरू कर देता है.
मेरी कारी-कजरारी शराब की बंद बोतल के समान मढ़-मस्त आँखें, चिकने गोरे मखमली गाल, गुलाब की पंखुड़ियों से मढ़-भरे मेरे होत कमाल के है. और फिर मेरी सुरहीदार गर्दन के नीचे मेरी 36″ की साइज़ की बिल्कुल गोल-गोल गोरी चूचियाँ आशिकों के दिलों पर कहर धाती है.
उपर से मेरे जबरात नितंभ. कुल मिला कर कहे तो मैं सेक्स बॉम्ब हू, सेक्स बॉम्ब. ये सिर्फ़ मैं नही कहती, लोगों की फब्तियाँ बोलती है, जो आते-जाते मुझे सुनने को मिलती है.
“हाए-हाए इस मस्तानी हुस्न की मल्लिका पर तो मार जावा यारा मेरी भी सुध ले-ले”, ये सब कहते है लोग. ” क्या चल है तेरी”, ये सारी फब्तिया सुनते-सुनते ये सब सुनने की आदि हो गयी हू मैं.
ऐसे भी ये फब्तिया सुन कर बुरा नही लगता. हा मज़ा ज़रूर आता है. हुस्न की मल्लिका के साथ-साथ सही कहे तो मैं चुड़क्कड़ भी हू. बड़ी होके जवानी की दहलीज़ पर पावं रखा, और मैने अपनी छूट को तहख़ाने में नही रहने दिया.
मॅन मचला, जुगाड़ फिट किया, और छुड़वा ली. खैर ये मेरी अपनी कहानी है. अब मैं असली कहानी पर आती हू. थोड़ी अजीब है, पर सच है. मेरी सहेली सुनीता मेरे साथ काम भी करती है. उसका हज़्बेंड से तलाक़ हो चुका है. वो मेरी अंतरंग फ्रेंड है.
मसलन हम दोनो सारी बातें सांझा करते है. यहा तक की दोनो ने साथ-साथ चुडवाई भी है. सुनीता का एक बेटा रमण करीबन 20 साल का हो चला है. उसके साथ अजीब बातें हो रही थी.
जैसे-जैसे रमण जवान होने लगा, उसके दाढ़ी मूचे निकालने की बजाए लड़कियों सी उसके सीने पर चूचियाँ उभरने लगी. लड़कियों सा ही चेहरा बिल्कुल साफा चत्ट, एक भी दाढ़ी या मूच नही निकली है.
सुनीता बताती है, की वो ये लेकर काफ़ी परेशन रहती है. डॉक्टर से भी कन्सल्ट किया, लेकिन डॉक्टर्स ने भी बताया रेर ऐसा केस होता है.
मैं भी रमण को देख काफ़ी उत्साहित रहा करती हू. मुझे ये जानने की उत्सुकता काफ़ी थी, की वास्तव में रमण क्या था. लेकिन मैं सिर्फ़ उत्सुक भर ही रह पा रही थी.
एक बार की बात है, रमण का कॉलेज का एग्ज़ॅम चल रहा था, और इसी दरम्यान सुनीता का अपने माइके जाना आवश्यक हो गया था. सो सुनीता ने रमण को मेरे घर शिफ्ट कर दिया, और सुनीता अपने माइके चली गयी.
रमण मेरे घर में था, और मेरी निगाहें बार-बार रमण की फूली हुई चूचियों पर जेया कर अटक जाती. मुझे लगा रमण इस बात को नोटीस कर रहा था. जैसे-तैसे दिन गुज़रा और रात हो गयी. मैने अपने मॅन में फैंसला कर लिया था, की सोते समय रमण की पंत उतार कर मैं देखूँगी वास्तविकता क्या थी. मुझे इन सारी बातों से नींद नही आ रही थी.
मैं झूठ-मूठ का सो रही थी. रमण भी सो रहा था. जब मुझे लगा रमण सो रहा था, धीरे से मैं रमण के बिस्तर पर गयी, और धीरे-धीरे रमण की पंत उतारने लगी.
पंत उतार कर मेरे अचरज का ठिकाना ना रहा. रमण का तो पुर 07 से 08 इंच का मस्त लोड्ा था. लेकिन हाए दैया! ये क्या? रमण तो जाग चुका था. उसका मस्त लोड्ा तंन कर फुकारने लगा था.
रमण ने ना तो मेरे होंठ चूमे, और ना गाल का चुम्मा लिया. उसने तो सीधा मुझे अपनी बाहों में जकड़ा, और चूची को मसालने लगा.
मैं छ्छूटने के लिए झटपताई, पर रमण ने मुझे नही छ्चोढा.
वो बोला: आंटी तूने सोए शेर को जगाया है. अब ये शेर बिना शिकार के वापस नही जाएगा. मसलन मैं अब तेरी बर छोड़ कर ही शांत होने वाला हू.
इतनी देर में मेरा चुड़क्कड़ मॅन भी छुड़वाने को हो गया था. फिर भी मैं बोली-
मैं: ना रमण, ये ठीक नही है.
रमण बोला: तू मेरी मर्दानगी चेक कर रही थी ना. ले अची तरह से चेक कर ले.
और उसने मेरे नाइट गावन् को उतार दिया, और अपना तन्ना हुआ लोड्ा मेरी कसमसाती बर पर रगड़ने लगा. मेरी क्लीन-शेव्ड बर को देख रमण तो उत्तेजना से भर चुका था.
उसका डंडा मेरी बर पर चोट मार रहा था. लोड की चोट खा कर मेरी बर टपकने लगी थी. मसलन मेरी बर रमण का लोड्ा खाने को बिल्कुल तैयार थी. मेरी पन्यायी बर का आभास रमण को हुआ.
उसने मेरे नंगे जिस्म को अपनी बाहों में भर कर उठाया. फिर उसने मुझे चिट लिटा दिया. मेरी बर का मूह बाए आसमान की तरफ था. उसने मेरे पैरों को फैलाया, और मेरी दोनो टाँगो के बीच बैठ गया.
फिर उसने फड़फदते लोड को मेरी बर के छेड़ पर रखा, और खच से लोड्ा बर में धकेल दिया. लोड्ा बिना किसी रुकावट के फंफनता हुआ बर के भीतर चला गया. मोटा मस्त लोड्ा खा कर मैं तो जन्नत को पहुँच गयी.
मैं आ आ करते हुए बोली: कस्स के छोड़ो मेरे यार. ऐसा मस्त लोड्ा मुझे आज तक खाने को नही मिला था. मार खचा-खच, छोड़-छोड़ ज़ोर लगा खचा-खच.
मेरी ललकार सुन रमण दोगुने उत्साह से मुझे छोड़ने लगा. फिर वो रुक कर बोला-
रमण: चल अब घोड़ी बन जेया. इस तरह से तेरी खुल्ली बुर छोड़ने में मज़ा नही आ रहा है.
मैने घोड़ी बनते हुए पूछा: मुझसे ज़्यादा क़ास्सी बर तूने कहा छोड़ी है?
रमण बोला: मेरी छ्होटी बेहन है ना. तेरी तरह साली मेरी चूचियों को निहारती रहती थी. बस एक दिन पटक के बर में लोड्ा तूस दिया. साली की बर इतनी कड़ी थी, की मेरा लोड्ा उसकी बर को छोड़ते-छोड़ते च्चिल गया. लेकिन मज़ा इतना आया इतना आया की मैं शब्दो में नही बता सकता.
रमण: उसकी तुलना में तेरी बर तो खुले मैदान सी लगती है. कितनी ज़ोर-ज़ोर से लोड्ा फूला-फूला कर छोड़ रहा हू. लेकिन साली में तनाव नही मिल रहा है.
मेरी घोड़ी नुमा बर को रमण घोड़ा बन कर हुमच-हुमच कर छोड़ने लगा. मैं आ श करती रही मज़ा लेती रही. इस बीच दो से टीन बार मेरी बर से पानी छूटा, लेकिन रमण अब भी उतने ही जोश से खचा-खच छोड़े जेया रहा था.
रमण का 8.4 इंच का लोड्ा फूल कर 10.5 इंच का हो चुका था. मेरी बर भी अब टाइट हो चुकी थी. रमण हर धक्के के साथ बोलता-
रमण: हाए रे, मस्तानी बर. ये ले मेरी रानी, ये ले.
उसका अब छ्छूटने ही वाला था. उसने तेज़ी से मुझे फिरसे चिट लिटाया, पन्यायी बर में लोड्ा ठोका. और ये ले ये ले कहता हुआ धमा-धाम छोड़ कर एक तरफ लूड़क गया.
मैं भी पूर्ण संतुष्ट ही पद गयी.
लेकिन ये क्या, आधे घंटे की शांति के बाद रमण फिरसे हरकत में आया, और मुझे छोड़ने लगा. उस रात रमण ने पुर 10 रौंद छोड़ कर मेरी बर का भुर्ता बना दिया. लेकिन इस चुदाई से रमण के साथ-साथ मैं भी तृप्त हो गयी.
तो आज की कहानी यही समाप्त करने की इजाज़त चाहूँगी मेरे प्यारे दोस्तों. बाइ आंड थॅंक्स. कहानी अची लगी हो तो अपनी फीडबॅक मुझे यहा देना