Hindi chudai kahani मैं अपने गांव में खेती का काम किया करता था मैंने शादी की थी लेकिन मेरी पत्नी मुझे छोड़ कर चली गई और उसके बाद मैंने कभी भी अपने मन में शादी का ख्याल नहीं आने दिया। मैं उस रात अपने खेतों में बैठकर अपने खेत की रखवाली कर रहा था तभी मुझे कुछ छूट की आवाज सुनाई दी। अंधेरा काफी ज्यादा था इसलिए आगे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था मेरे हाथ में एक बड़ा सा डंडा था मैं जब उसी को लेकर आगे बढ़ा तो मुझे वहां कोई दिखाई नहीं दिया लेकिन झाड़ी में मुझे कुछ हलचल सी होती दिखाई दी। मेरे हाथ में टॉर्च थी टॉर्च जलाते हुए मैंने जब उस तरफ देखा तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गई मेरे सामने छोटी सी बच्ची थी मुझे समझ नहीं आया कि आखिरकार यह किसने किया होगा। मैंने उस बच्ची को अपनी गोद में उठाया मुझे ऐसा आभास हुआ कि जैसे वह मेरा ही कोई हो और मैंने उसे अपने पास ही रखने का फैसला कर लिया।
मैंने उसका नाम रूपा रखा रूपा को मैंने बाप की तरह ही प्यार किया और उसे कोई भी कमी मैंने होने नहीं दी मैं गांव में ही रहकर खेती बाड़ी का काम करता था उमर भी बढ़ती जा रही थी और मेरी उम्र 40 वर्ष के पार हो चुकी थी। 40 वर्ष की उम्र होते ही रूपा 10 वर्ष की हो चुकी थी वह अपने स्कूल में पढ़ने में सबसे अच्छी थी उसके स्कूल के अध्यापक रूपा की बड़ी तारीफ किया करते थे वह कहते की रूपा पढ़ने में बहुत अच्छी है तुम्हे उसे शहर लेकर चले जाना चाहिए। हमारे गाँव में सिर्फ 12वीं तक का ही स्कूल था मैं चाहता था कि रूपा को मैं अच्छी परवरिश दूँ रूपा की उम्र भी बढ़ती जा रही थी और मैं भी अब 50 वर्ष का हो चुका था। रूपा 20 वर्ष की हो चुकी थी लेकिन जिस प्रकार से रूपा का नाम था वैसे ही वह सुंदर भी थी रूपा के नैन नक्श उसके शरारती अंदाज मुझे अपनी ओर हमेशा ही प्रभावित किया करते थे। मैंने रूपा से कहा रूपा जब तुम चली जाओगी तो मैं अकेला कैसे रहूंगा रूपा कहने लगी बापू जी मैं आपको छोड़कर कभी नहीं जाऊंगी।
रूपा तो पराया धन थी और मुझे उसकी शादी कहीं ना कहीं तो करनी ही थी मैं रूपा को बहुत प्यार किया करता हूं रूपा की भी अब पढ़ाई हो चुकी थी इसलिए मैंने उसे शहर पढ़ने के लिए भेज दिया। उसने अपनी 12वीं की पढ़ाई गाँव से ही की लेकिन उसके बाद वह पढ़ने के लिए शहर चली गई। मै रूपा को अध्यापिका बनाना चाहता था क्योंकि मैं ज्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं था लेकिन मैं चाहता था कि वह अपने पैरों पर खुद ही खड़ी हो वह भोपाल शहर में पढ़ती थी और मैं कभी कबार रूपा से मिलने के लिए शहर चला जाया करता था। जब मैं एक दिन रूपा से मिलने के लिए शहर गया तो रूपा ने मुझे अपने दोस्तों से मिलवाया और जब रूपा ने मुझे अपने दोस्त से मिलवाया तो मैं मोहन से भी मिला मुझे थोड़ा सा अजीब तो महसूस हुआ। मोहन और रूपा की दोस्ती देख कर मुझे लगा कि कहीं रूपा मोहन को प्यार तो नहीं करती है लेकिन मुझे अपनी रूपा पर पूरा भरोसा था और मुझे मालूम था कि वह जो भी करेगी मुझसे जरुर पूछेगी इसलिए मैं रूपा को लेकर पूरी तरीके से निश्चिंत था। अब मैं अपने गांव लौट चुका था और रूपा के कॉलेज की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी वह कुछ दिनों के लिए गाँव आई हुई थी और जब वह गांव आई तो गांव के ही गोविंद सेठ के लड़के ने रूपा को देखकर ना जाने क्या कुछ कह दिया जिससे कि रूपा बहुत ज्यादा दुखी हुई। मुझे उसने कुछ भी नहीं बताया लेकिन जब मुझे इस बारे में पता चला तो मैं गोविंद सेठ के पास गया और उसे कहा तुम अपने लड़के को संभाल कर रखो कहीं ऐसा ना हो कि मेरे हाथ से कुछ गलत हो जाए। गोविंद सेट मुझे भली भांति जानता था इसलिए गोविंद सेट कहने लगा आखिर शमशेर हुआ क्या है तुम बताओ तो सही मैंने उसे कहा तुम अपने लड़के से ही पूछना कि उसने क्या किया है। जब गोविंद सेठ ने अपने लड़के को बुलाया तो उसका लड़का आया उसके लड़के का नाम पप्पू है, जब वह आया तो मैंने उसे कहा तुमने रूपा को क्या कहा वह बहुत ज्यादा दुखी हो गई है यदि तुमने उसकी तरफ कभी नजर उठाकर भी देखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।
गोविंद सेठ को मेरे गुस्से का अंदाजा था इसलिए उसने अपने बेटे को डांटते हुए कहा कि आज के बाद तुम कभी भी किसी की तरफ़ आंख उठाकर नहीं देखोगे उसके बाद मैं वहां से अपने घर लौट आया। रूपा बहुत ज्यादा दुखी थी वह कहने लगी बाबूजी आप ही बताइए गांव में कैसा माहौल है पप्पू मुझे छेड़ने की कोशिश कर रहा है मुझे अब गांव में नहीं रहना आप ही बताइए मैं कैसे गांव में रहूं। मैंने रूपा से कहा देखो बेटा गांव में ना रहना इसका हल नहीं है रूपा कहने लगी बाबूजी आप मेरे साथ है मैं आपको अपने साथ शहर ले जाना चाहती हूं। रूपा मुझे अपने साथ शहर लेकर जाना चाहती थी लेकिन मैं शहर जाने को राजी ना था परन्तु मुझे रूपा की बात माननी ही पड़ी और मैं शहर चला गया। शहर में तो मैं खाली ही रहता था तो मैंने सोचा कोई काम ही कर लूँ इसी के चलते मैंने भी नौकरी कर ली और मुझे एक दुकान में काम मिल चुका था। रूपा की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी वह भी नौकरी करने लगी थी मुझे एक दिन रूपा ने अपने और मोहन के रिश्ते के बारे में बताया तो मैं बहुत गुस्सा हो गया मैंने रूपा से कहा क्या तुम इसीलिए मुझे शहर लेकर आई थी रुपा मुझे कहने लगी नहीं बाबूजी। मैं रूपा और मोहन के रिश्ते को बिल्कुल भी मंजूरी नहीं देना चाहता था मैं चाहता था कि रूपा पहले अपने जीवन में कुछ अच्छा कर ले।
इसके लिए मैंने मोहन से मिलने की बात कही तो रूपा तैयार हो गई और मैंने मोहन से कहा देखो मोहन मुझे तुमसे कोई भी परेशानी नहीं है लेकिन मैं चाहता हूं कि रूपा पहले अपनी जिंदगी में कुछ कर ले वह अपने पैरों पर खड़ी हो जाए उसके बाद तुम दोनों शादी कर लो मुझे तुम्हारे रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं है। मोहन कहने लगा बाबूजी रूपा आपको बहुत ज्यादा मानती है और आपका बहुत सम्मान करती है इसलिए पहले वह कुछ कर ले उसके बाद हम लोग अपने रिश्ते के बारे में सोचेंगे। यह कहते हुए मोहन घर से चला गया जब मोहन चला गया तो उसके बाद रूपा मुझे कहने लगी बाबू जी आप मुझसे कितना प्यार करते हैं मैंने सब सुन लिया था। वह मेंरे गले लग कर के कहने लगी मैं आपको छोड़कर कभी नहीं जाऊंगी मेरी आंखों में आंसू आ चुके थे और मुझे इस बात का अंदाजा लग चुका था कि वह दोनों एक दूसरे से कितना प्यार करते हैं। मैं भी उन दोनों के रिश्ते के बीच में नहीं आना चाहता था रूपा भी पूरी मेहनत करने लगी और उसकी बीएड की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी उसके बाद उसका सिलेक्शन एक अच्छे स्कूल में हो गया। रूपा इस बात से बहुत खुश थी और कुछ ही समय बाद मैंने मोहन के साथ रूपा की शादी कर दी मुझे कभी अकेलापन सा महसूस होता था लेकिन रूपा को तो जान ही था। मैं दिन रात सिर्फ इसी चिंता में लगा रहता की जब रूपा की शादी हो जाएगी तो उसके बाद मैं कैसे अपना जीवन अकेले व्यतीत करूगा शायद मेरी किस्मत में हमारे पड़ोस में रहने वाली कल्पना भाभी थी। वह मुझे तिरछी निगाहों से देखती रहती थी एक दिन मैंने उन्हें अपने पास बुलाया तो हम दोनो ने काफी देर तक बात की उनके पति का देहांत हो चुका था वह भी अकेलेपन से जूझ रही थी। मैं उनकी पीड़ा को समझ सकता था वह मेरी पीड़ा को समझ सकती थी हम दोनों एक दूसरे से जब भी बात करते तो बहुत अच्छा लगता।
वह मेरी बातों से बहुत ही ज्यादा प्रभावित होती एक दिन उन्होंने मुझे कहा कि कभी आप घर पर भी आइए तो मै एक दिन उनसे मिलने के लिए उनके घर पर गया। उस दिन मैंने उनकी साड़ी के पल्लू को अपनी और खींचा तो वह मेरे गोद में आ कर बैठ गई लेकिन उस दिन उनका छोटा लड़का अविनाश घर पर आ चुका था इसलिए मैं उनके घर से वापस चला आया। एक दिन मैंने उनको अपने पास बुलाया तो उस दिन मुझे बड़ा अच्छा मौका मिल चुका था जब वह मुझसे मिलने आई तो मैंने उनके बड़े और सुडौल स्तनों को चूसना शुरू किया तो वह मुझे कहने लगी आप अच्छे से चूसिए ना। मैं भी कई सालों का प्यासा था मैने उनके स्तनों से दूध निकालकर अपनी प्यास को बुझाया। मैंने अपने मोटे लंड को बाहर निकाला तो वह मेरी तरफ देख कर कहनी लगी शमशेर तुम्हारा बड़ा ही मोटा लंड है। भाभी ने भी ना जाने कितने समय बाद किसी के मोटे से लंड को अपने मुंह में लिया था जब उन्होंने मेरे मोटे लंड को अपने मुंह के अंदर लिया तो वह उसे अच्छे से चूसने लगी। इतने वर्षों बाद किसी ने मेरी इच्छा को शांत करने का बीड़ा उठाया था तो मैं कैसे अब पीछे रह सकता था।
मैंने भाभी की योनि को चाटकर पानी बाहर की तरफ को निकाल दिया। उनकी चूत गीली हो चुकी थी जैसे ही मैंने अपने मोटे से लंड को उनकी योनि के अंदर बाहर करना शुरू किया तो वह मुझे कहने लगी आपके अंदर बड़ी ताकत है आप मुझे अपनी बाहों में भर लो। यह कहते हुए मैंने उन्हें अपनी बाहों में जकड़ लिया और उनको अपन नीचे ठक लिया मैं बड़ी तेजी से उनको चोद रहा था। जिस प्रकार से मैं उनकी चूत मारता मुझे बड़ा अच्छा लगता उनके अंदर की उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी। कुछ देर बाद मैंने जब उनकी गांड को हाथ लगाया तो मुझे उनकी गांड देखकर बड़ी उत्सुकता जागने लगी मेरा मन की चूत मार कर वैसे भी नहीं भर रहा था। मैंने अपने लंड को उनकी गांड के अंदर प्रवेश करवा दिया। जैसे ही मेरा लंड उनकी गांड के अंदर प्रवेश हुआ तो वह बड़ी तेजी से चिल्लाने लगी और कहने लगी तुमने मेरी गांड के छेद को चौड़ा कर दिया है। यह कहते ही मैंने भाभी की चूतडो को कसकर पकड़ लिया और उन्हें बड़ी तेज गति से धक्का देने लगा। उनकी गांड से पानी बाहर की तरफ निकल रहा था मुझे कुछ गिलेपन का एहसास हो रहा था लेकिन उनकी गांड से तो खून बाहर निकल रहा था। मैंने अपने वीर्य की पिचकारी उनकी गांड पर गिरा दी उन्हें बड़ा अच्छा लगा।