ही फ्रेंड्स, मई 35 साल की मस्त, गोरी और लंबी कूदी सुंद्री हू. मेरी मा बताती है, की जब मई पैदा हुई थी, तब बेहद सुंदर दिखती थी. ये देख कर मेरी मा ने मेरा नाम सुंद्री रख दिया. फिर मई जैसे-जैसे बड़ी होती गयी, तो मेरी सुंदरता बढ़ती गयी.
अभी मेरी उमर 6 साली की थी, जब मेरे पापा हम 2 भाई-बेहन और मा को छोढ़ कर चले गये थे. मेरी मा भी बहुत खूबसूरत थी और पापा के जाने के बाद बहुत सारे मर्द मेरी मा के पीछे पद गये.
मेरी मा ने घुटने टेक दिए और अपनी खूबसूरती का समर्पण करके उन्मुक्त जीवन जीने लगी. जैसे-जैसे मई बड़ी होती गयी, मई सब कुछ जान-ने और समझने लग गयी. मेरी मा के इस रूप का असर मुझ पर भी पड़ने लगा और मई भी अपनी जवानी के शुरू मे ही चुदाई का मज़ा लेने लगी.
मुझे 22 साल की उमर मे ही जॉब मिल गयी थी और तब से मई घर से बाहर ही रह रही हू. घर से बाहर रहने की आज़ादी मुझे अपनी मर्ज़ी के दोस्त बनाने और खुल कर छुड़वाने का चान्स देती थी. मई पहले अपने बारे मे आप सब को बता डू.
मेरी काली गहरी ज़ूलफे, मदिरा छिड़कते मेरे ये मस्त-मस्त दो नैन, रस्स से भरे मेरे दो गुलाबी होंठ और मेरे गोरे-गोरे गालो के सब दीवाने है. मेरे इस रूप के जाल मे जो भी फ़ससा, बस फ़ससा ही रह गया. संगेमरमर जैसे मेरे बदन का तो कहना ही क्या है. मेरे इस बदन पर जो बड़े-बड़े चूचे है, उसकी तो दुनिया दीवानी है.
हर कोई मेरे इन काससे हुए चूचो का मज़ा लेना चाहता है. मेरी उभरी हुई मस्त गांद के तो कहने ही क्या है. जब मई मटक-मटक कर चलती हू, तो चाहे वो बच्चे हो, बुड्दे हो, या जवान हो, सबके लंड खड़े हो जाते है. मुझे देख-देख कर सब आहें भरते है और हाए-हाए करते है. अब मई अपनी कहानी पर आती हू-
उस दिन सनडे था और उस दिन मई घर मे ही सिमटी हुई थी. रात के 9 बजे थे और मई बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी. मई अपनी छूट छुड़वाने के लिए तड़प रही थी. मेरी जवानी की आग मेरे पुर बदन को झुलसा रही थी और मई पागलो की तरह कभी कुछ करके, तो कभी कुछ करके अपने आप को बहलाने की कोशिश कर रही थी.
पर हाए रे मे जवानी, चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी, की बिना छुवाए मुझे चैन से नही रहने देगी. फिर मैने बैठ कर फ़ेसबुक चलानी शुरू कर दी. फ़ेसबुक देखते हुए, मुझे मेरी ही सोसाइटी का एक लड़का संजय ऑनलाइन मिला.
मई संजय बराबर मार्क करती थी. वो आते-जाते मुझे फॉलो करता था. तभी मेरे दिमाग़ मे एक आइडिया चमक उठा. मुझे लगा, की ये लड़का आज मेरे काम आ सकता था. फिर मैने संजय को “ही” का मेसेज किया. उसने ज़रा भी देर नही की और तुरंत रिप्लाइ किया-
संजय: ही डार्लिंग, कैसी हो?
मैने भी ज़रा भी देर नही की और कहा-
मई: मई अची हू संजय और छुड़वाने के लिए तड़प रही हू. तुम फ़ौरन मेरे पास आ जाओ.
संजय बोला: लगता है आज मेरी किस्मत चमकने वाली है. मई बस 2 मिनिट मे आता हू.
फिर मई संजय का वेट करने लगी और वो आ गया. वो आने के साथ ही, एक भूखे शेर की तरह मुझ पर टूट पड़ा. संजय मेरे गालो, होंठो और मेरी गर्दन को पागलो की तरह चूमने लगा. वो इधर मुझे चूम रहा था और मई उसका खड़ा हुआ लंड देख कर खुश हो रही थी.
संजय का बड़ा लंड सामने से बहुत ज़्यादा मोटा और बड़ा लग रहा था. मुझे लगा, की उसका लंड तकरीबन 7 से 8 इंच लंबा था और 3 इंच मोटा था. मई संजय के लंड को देख कर फूली नही समा रही थी. आख़िर मई खुश होती भी क्यू ना, मेरी मस्त चुदाई जो होने वाली थी.
उस वक़्त मई सिर्फ़ नाइट्गाउन मे थी. संजय ने एक झटके मे मेरा गाउन मेरे जिस्म से अलग कर दिया. जैसे ही उसने मेरा गाउन निकाला, तो मेरी 36″ की चूचिया हवा मे लहराने लग गयी. फिर संजय ने मेरी एक चूची को अपने मूह मे ले लिया और दूसरी चूची को दूसरे हाथ से दबाने, सहलाने और पूचकारने लगा.
उसको मेरी चूचियो के साथ खेलते देख कर मेरी छूट जर-जर रोने लगी. फिर मैने संजय का हाथ पकड़ा और अपनी छूट पर रख दिया. मेरी छूट से बहते हुए रस्स का एहसास होने पर, संजय पागल हो गया और वो उसने अपनी जीभ को मेरी छूट पे फिरना शुरू कर दिया.
जीभ फिराते हुए, वो बीच-बीच मे अपनी जीभ को मेरी छूट मे धकेल देता. उसकी जीभ छूट मे जाते ही मई चहक उठती. बर को चाटने सा सिलसिला काफ़ी देर तक चलता रहा. मुझे गुस्सा आ गया और मैने संजय को झिड़की दी-
मई: सेयेल सिर्फ़ बर को चातेगा ही, या छोड़ेगा भी? पहले मेरी बर को एक बार छोड़ कर इसकी प्यास बुझा दे. फिर जितना जी करके इसको चाट-ते रहना.
मेरी बात सुन कर संजय लज्जित हो गया और उसने मुझे उठा कर मेरी गांद को बेड के किनारे पर रख दिया. फिर उसने मेरी दोनो टाँगो को अपने कंधो पर रखा और अब उसका लंड मेरी छूट के एक-दूं सामने था. अब दोनो योढ़ा जुंग के लिए तैयार थे.
अब संजय अपने लंड के सुपारे को मेरी बर के मुहाने पर रग़ाद रहा था. रगड़ते-रगड़ते लंड मेरी छूट के द्वार मे अटक गया और संजय ने जल्दी से एक ज़ोर का धक्का मारा. धक्का पड़ते ही उसका लंड मेरी बर की दीवारो को चीरता हुआ मेरी छूट की आगोश मे समा गया.
मेरी सागर सी गहरी छूट मे उसका लंड डूबने उतार गया था और मेरी छूट ने अपनी दीवारो को जाकड़ कर उसके लंड को सहारा दिया. फिर उसका लंड मेरी छूट मे दे दाना दान दौड़ने लगा और मुझे अपनी चुदाई करवाने का पूरा मज़ा मिल रहा था. तभी संजय ने मुझसे पूछा-
संजय: मज़ा आ रहा है डार्लिंग?
मैने बोला: हा मुझे मज़ा आ रहा है. तू मुझे जितना छोड़ सकता है, बस छोड़ता जेया. मेरे तो मज़े ही मज़े है.
संजय अपनी पूरी ताक़त दे मेरी छूट को पेल रहा था और ज़ोर-ज़ोर से हाँफ रहा था. फिर मई उसको बोली-
मई: अर्रे तू तो कुत्टो की तरह हाँफ रहा है. चल हॅट अब मई कुटिया बन जाती हू और तू मुझे कुत्ते की तरह छोड़ सेयेल.
फिर मई अपनी गांद उपर करके कुटिया बन गयी. संजय जंप करके मेरे उपर चढ़ गया और घाप करके उसने अपना लंड मेरी छूट मे घुसा दिया. अब वो दे दाना दान मेरी छूट को छोड़ रहा था.
संजय के लंड की मोटाई, छूट के अंदर जाते ही बढ़ गयी थी. शायद उसका लोड्ा अपना पानी छोढ़ने वाला था. तभी मैने संजय को दाँत कर बोला-
मई: आबे रुक सेयेल, अभी फारिघ् मत होना.
और फिर मैने चिट होके अपनी टांगे फैला दी और संजय को बोली-
मई: आजा मेरी टाँगो के बीच और पेल दे अपने लंड को मेरी बर मे. और अपनी पूरी ताक़त से मेरी बर को छोड़. जब बर और लंड का पानी साथ मे छूतेगा, तब मज़ा आएगा.
संजय ने वही किया. उसने मेरी आसमान की तरफ मूह खोली मेरी छूट मे अपना लोड्ा पेल दिया और ढाका-धक छोड़ना शुरू कर दिया. मई ज़ोर-ज़ोर से आहह आहह की आवाज़े निकाल रही थी और मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.
तभी संजय के लंड से गरम-गरम वीर्या की पिचकारी फूटी और इधर मेरी छूट ने भी अपना मदन-रस्स छोढ़ दिया. अब मेरी छूट का रस्स उसके वीर्या के साथ मिल कर निकल रहा था. फिर संजय एक तरफ लूड़क गया और मई भी शिथिल हो गयी.
फिर थोड़ी देर बाद संजय उठा और मई भी तरो-ताज़ा हो गयी. तब मई संजय को बोली-
मई: अब तुझे जितनी छूट चाटनी है चाट ले.
फिर संजय पूरी रात मुझे छोड़ता रहा और मई भी गांद उछाल-उछाल कर चुड़वाती रही.
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