हाए फ्रेंड्स मैं सुमिया, एक दूं गोरी चित्ति. जवानी मेरे अंग अंग पर दस्तक दे रही हैं. मादक रस की बूंदे मेरे जिस्म से टपकने लगी थी.
मेरे पड़ोस में दादाजी रहते हैं वो टीचर थे. रिटाइयर्मेंट के बाद घर पर रहते हैं. दादा जी के बाकी परिवार बाहर रहते हैं.
मेरे बापू ने पढ़ाई के लिए मुझे दादा जी के पास जाने को बोले. मैं दादाजी के पास पढ़ाई के लिए जाने लगी. पहले दिन से ही मैं मार्क कर रही थी दादा जी मेरी चुचियों को निहारते रहते थे.
मुझ पर जवानी का नासा चढ़ रहा था. मेरी भी चूत हमएसा कुलबुलाते रहती थी. हमएसा लगता था कोई मेरी चुचियों को दबाए, मरोड़े, सहलाए.
ऐसे में दादाजी जब मेरी चुचियों पर आँख हदाए रहते तो मुझे अंडर अंडर मज़ा आता था. मैं अपने मा बाप की एकलौती औलाद त.ई सो मैं इतनी बड़ी होकर भी मा बाप के पास ही सोती थी. और अक्सर पापा मम्मी की चुदाई बड़े ही मज़े ले ले कर देखा करती थी.
अब तो आलम ये था की मैं भी छुड़वाने को तड़पने लगी थी. ऐसे में दादाजी की च्छेदखानी मेरी बदन में जलती, आग में गीयी का कम करने लगी.
दादाजी छ्होटी हरकत करते तो मैं कुछ बोलती नही. पर चाहती थी दादाजी और कुछ करे. मेरी चुचियॉनब्को मसले, मेरी रसभरी टपकती बर को छाते, फिर मस्त लोड से मेरी बर को छोड़ छोड़ कर उसकी आग को बुझा दे.
एक दिन जैसे ही मैं दादाजी के पास पहुचि उन्होने बड़े ही प्यार से मुझे पास बैठाया. फिर मेरी गॅलन पर हाथ फिरते हुए बोले.. कितनी सनडर और कोमल मुलायम हैं तेरे गाल.
मैं कुच्छ बोली नही बस मुस्कुरा दी. मुस्कुराने की देर थी की दादाजी का अगला कदम बढ़ते हुए उन्होने मेरी चुचियों पर हाथ रखे. मैं सर से पॉन तक कांप उठी. कोई मर्द पहली बार मेरी चुचियों को च्छू रहा था.
दादाजी चुचियों पर हाथ रखते हुए बोले.. तेरी चुचि तो देखते देखते ही मस्त हो गयी हैं, हाए कितनी नाज़ुक हैं ये पूरी तरह रस से भर गयी हैं. रस चुस्वा ले निखार कर कयामत बन जाएगी..
कहते हुए मेरी कुरती के उपर से ही चुचियों को मूह लगा दिए. मेरे बदन में आग सी लग गयी, मेरी पूरी जिस्म वासना से भर गयी. मेरी छूट से पानी तपाक ने लगी.
दादाजी ने मेरी बह पकड़ अपनी ओर खीछे, मैं उनकी आगोस में समा गयी.
फिर दादाजी ने मेरी कुरती खोल दी, फिर उन्होने मेरी समीज़ भी खोल दी. समीज़ काफ़ी टाइट थी जिसमे चुचि दबी हुई थी, खुलने के साथ ही तिरकार मेरी दोनो गोरी गोरी गोल गोल चुचियाँ आज़ादी की सांस लेने लगी.
दादाजी मेरी खुली हुई नंगी चुचियों से खेलने लगे. इश्स तरह से मैं सिर्फ़ नहाते वक़्त ही अपनी चुचियों को खोल पति थी. चुचियोंब पर हाथ फिरते फिरते दादाजी ने अपने होत मेरे गुलाबी पंखुड़ियों सीहोतो पर रख दिए और चूसने लगे.
मैं अब बिल्कुल चुदसी हो चुकी थी. मुझे अब यही लग रहा था बर में लोड्ा चला जाए और ढाका धक छोड़ना सुरू कर दे.
मैने दादाजी के लूँगी को खिच के बाहर कर दी. दादाजी का मुस्टंडा लोड्ा पके अधपके बार के बीच शेर सा फन फ़ना रहा था. मैने लंड को मुट्ठी में ली और बोली.. अब और ना तड़पाव दादू, लोड को पेलो बर के अंदर.
दादाजी बोले.. बस अब मैं छोड़ने वाला ही हूँ, तोड़ा लोड्ा को मूह में ले चतो. लोड्ा छोड़ने के लिए फिर आचे से तैयार हो जाएगा.
मैं बोली.. ना दादू मुझे लोड्ा मूह में लेना अछा नही लगता.
दादाजी थोड़े नीरस हुए फिर उन्होने मुझे चिट लेटया और मेरी टॅंगो को फैलाया और मेरी कुवारि कमसिन बर को निहारने लगे.
बोले.. क्या मस्त बर है तेरी रेसम सी बलों के बीच गुलाबी दरार कितनी मोहक लगती है. पहले बर चाटूँगा फिर छोड़ूँगा..
और दादाजी ने मूह मेरी कुँवारी कमसिन बर पर सता दिए. जीभ निकाल कर चाटने लगे और बड़बड़ाने भी लगे.. मेरी किस्मत अची है आज ये कुँवारी कमसिन बर छोड़ने को मिल रही है.
दादाजी को बड़बड़ाते देख मैने पूछ ही लिया.. क्या बड़बड़ाते हो दादू, बर छोड़ने पर ध्यान दो! आज छोड़ छोड़ कर मेरी बर की सारी गर्मी निकल दो.
तो दादाजी बोले.. वो तो मैं कर ही दूँगा, मैं ये सोच रहा हूँ मेरी कितनी अची किस्मत हैं इतनी सनडर कमसिन कोरी छूट छोड़ने को मिली हैं. जानती हो सूमी जब मैं शादी कर तुम्हारी दादी को लाया था तो उसकी बर कुँवारी नही थी. उस च्चीनार ने ना जाने कितना लोड्ा खा के मुझसे शादी की थी.. और आज देखो किस्मत ने पलटा मारा, मैं कोरी कुँवारी कमसिन बर छोड़ रहा हूँ.
मैं बोली बहुत हुवा दादू अब भसन छ्चोड़ो लोड को बर में पेलो और ढाका धक छोड़ो!
दादू मेरे टाँगों के बीच बैठ गये और बर की दरार पर अपना लोड्ा रख कस के धक्का मारा. पर ये क्या लोड्ा बर में जाने के बजे बाहर की और फिसल गया. मुझे थोड़ी निरसा हुई और दादाजी भी झेंप गये.
उन्होने दुबारा लोड्ा को बर पर सेट किया और धक्का मारा. लेकिन इस बार भी लोड्ा बाहर की और फिसल गया.
मैं बोली लंड को लत जैसा टाइट करो ना दादू, तभी मेरी सख़्त बर को फाड़ कर भीतर जा पाएगा तुम्हारा लोड्ा. वरना निरसा ही हाथ लगेगी.
दादाजी बोले इसीलिए तो मैं लोड्ा चाटने को बोल रहा था. चाटने से लोड्ा डंडा जैसा खड़ा हो जाएगा. मैं छुड़वाने की खातिर गॅप से लोड्ा मूह में ले ली.
इधर दादू ने भी घूम कर मेरी बर पर मूह लगा दिया और जीभ को बर के अंदर दल कर बर को फैलने की कोशिश करने लगे. लोड्ा चाटने से लोड्ा में कडपन आ गया था. फिर झट दादू ने पोज़िशन पकड़ बर पर लोड्ा रखा मेरी दोनो टाँगों को खिच कर चौड़ा किया और पूरी ताक़त से धक्का कर लोड्ा को बर में तेल दिया.
मैं तो दर्द से बिलबिला उठी, मूह से चीख निकल गयी. लोड्ा इस बार बर की सील तोड़ते हुए अंदर जेया चुका था. बर से खून की धार बहने लगी, बर में लोड्ा मुझे आग की तरह महसूस हुआ.
कुछ देर रुक कर दादू ने धीरे धीरे छोड़ना शुरू किया. लोड्ा के अंदर बाहर होने से मुझे मज़ा आने लगा था. दादू छोड़ तो रहे थे लेकिन अभी भी पूरा का पूरा लोड्ा बर में प्रवेश नही कर पाया था.
दादू मुझे छोड़ते रहे छोड़ते रहे और फिर एक मौका पाकर पहले जैसा ही ज़ोर का धक्का मार दिए. मुझे फिर से दर्द हुवा लेकिन इस बार पूरा का पूरा लोड्ा बर में समा गया था.
फिर तो दादू ने अनेको तरह की कला बाजी कर कर के मुझे पूरे घाटे भर तक छोड़ते रहे. मैं अब चुड़वते चुड़वटे उब गयी थी तो मैं बोली.. अब कितना छोड़ेगे दादू, मुझे चोर दो.
दादू ने कहा जब तक माल ना गिरेगा तो मैं छ्होरँगा कैसे. मई अब तक माल के विषय में नही जान रही थी. तो दादू से पुच्च्ी.. ये माल क्या गिरेगा दादू?
तो दादू ने बताया चुदाई के अंत में लोड्ा झामा झाम बारिश कर बर को नहलाती है. इसिको माल कहते हैं.
मई बोली.. तो बारिश करो ना जल्दी.
दादू बोले.. वो अपने आप होता है, ऐसा कर पैर को सता कर तुम बर को टाइट करो तभी माल झट से गिरेगा.
मैने दोनो पैरों को सताया और बर की दरार को सिकुदा दी. दादा जी ने टाइट बर में गमागम हात्ोड़ा मारना शुरू किया और आ आ श श.. करते हुए दादू का गरमा गरम माल मेरी बर को सराबोर कर गयी.
दादू झाड़ कर एक और लुढ़क गये थे और मेरे चूत में भी शांति आ गयी थी.
तो ये थी मेरी सील तुड़वाने की कहानी दादू से छुड़वा के मुझे इतना मज़ा आया की पूरे दो साल से अब तक मैं दादू से छुड़वा रही हूँ. अब तो मेरी शादी हो गयी हैं, मेरे पति मुझे छोड़ते हैं. पर दादू के लंड में जो मज़ा हैं वो जवान में नही.
आज की कहानी यही ख़तम करने की इज़ाज़त दीजिए. मेरे दोस्त कहानी पढ़ कर मज़ा आया हो तो मुझे ज़रूर याद करना