जिस तरीके से अंकल और चित्रा के बीच खुलकर चुदाई हो रही थी, उससे राज हैरान था। ऐसे चुदाई तो एक बस पति-पत्नी के बीच ही हो सकती है जिनमें किसी तरह का कोइ पर्दा, कोइ शर्म नहीं होती।
राज के पूछने पर चित्रा ने बताया कि ये सब चाची के कारण हुआ था, जिन्होंने अंकल और चित्रा को इस तरह के चुदाई के लिए मनाया। अब आगे-
चित्रा चुदाई के दौरान अंकल के साथ हो रही चुम्मा-चाटी, गांड में ऊंगली बाजी के बारे में बता रही थी।
“और राज ये चुम्मा-चाटी का मुझे कहां पता था, मैंने पहले कौन सी चुदाई करवाई थी। मुझे तो इतना ही पता था जितना मैं कंप्यूटर पर चुदाई की फिल्मों में देखा करती थी। मगर उन फिल्मों में ये सब देखते हुए यही ख्याल आता था कि ये सब सच में नही हो सकता, ये फिर ये सब सिर्फ मजे और मनोरंजन के लिए ऐसी फिल्मों में दिखाया जाता है।”
“हां कभी-कभी सहेलियों की बताई बातें भी याद आती थीं, मगर उनकी बातों में भी इतना कुछ नहीं होता था जितना अंकल कर देते थे, जैसे चूतड़ चाटना और चटवाना। लंड का टोपा चूतड़ों में डाल कर लंड का पानी छुड़ाना। सहेलियां भी बस यही बताया करते थी, “इतना बड़ा लंड जब जाता है चूत में तो मजा ही आ जाता है।”
“ये तो मुझे अंकल से चुदाई करवाने के बाद पता चला कि ऐसी चुम्मा-चाटी भी होती है। वैसे भी ये सब तो अंकल ने ही शुरू किया था, और बाद में मुझे भी इन सबका चस्का पड़ गया। दो तीन चुदाईयों के बाद मेरी शर्म खत्म होने लगी, और मैं भी अंकल का साथ देने लगी। धीरे-धीरे मैं भी अंकल के साथ वो सब करने लग गयी जो अंकल मेरे साथ करते थे।”
“अंकल को चूतड़ चाटने का शुरू से शौक रहा है। एक दिन अंकल मेरे चूतड़ चाट रहे थे और अंगूठे मेरी चूत का दाना रगड़ रहे थे। मैं पूरी मस्ती मैं आ चुकी थी। दस मिनट मेरे चूतड़ चाटने के बाद अंकल मुझे चोदने के लिए खड़े हुए और लंड मेरे मुंह के आगे करके, “बोले चित्रा थोड़ा लंड चूसो।”
“अंकल का लंड पूरी तरह सख्त हुआ पड़ा था। मैंने अंकल का लंड पकड़ा और मुंह में लेने ही वाली थी कि पता नहीं मुझे क्या हुआ। मैंने मस्ती में अंकल से कहा, “अंकल आप इतनी-इतनी देर तक मेरे चूतड़ चाटते हो, मुझे तो इसमें बड़ा मजा आता है। अंकल आज एक बार आप भी अपने चूतड़ चटवाईये। आज मुझे भी आपके चूतड़ चाट कर आपको मजा देना है।”
“अंकल ने एक सेकण्ड नहीं लगाया और उल्टा हो कर बेड के किनारे लेट गए और हाथों से चूतड़ खोल दिए। मैं अंकल के चूतड़ चाटने लगी। पहले पहल तो मुझे इसमें कुछ भी मजा नहीं आया, बड़ा अजीब सा लगा।”
“मगर जल्दी ही अंकल ने सिसकारियां लेनी शुरू कर दी, “आआआह चित्रा क्या जादू है तेरी जुबान में आआह। अंदर डाल जुबान मेरी चूतड़ों में आआह मेरी चित्रा। क्या मजा देती है तू आअह। जादू है तेरी जुबान में”
“इतना बोलते हुए अंकल ने नीचे से हाथ करके मेरा हाथ पकड़ा और अपना लटकता हुआ खूटे जैसा खड़ा सख्त लंड मेरे हाथ में पकड़ा दिया। लंड हाथ में आते ही मेरी चूत ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया और मैं मस्ती में आ गयी। मुझे अंकल की चूतड़ चाटने में मजा आने लगा।”
“और बस राज इसके बाद तो फिर ये चूतड़ चाटने वाला सिलसिला भी शुरू हो गया।”
जब चित्रा मुझे ये सब बता रही थी, मेरा लंड चित्रा के हाथ में ही था। बात करते करते चित्रा लंड को हल्का-हल्का दबा देती थी।
— चित्रा ने चाटे राज की चूतड़
एकाएक चित्रा बोली, “राज चल आजा उल्टा हो कर लेट जा। आज तेरे चूतड़ चाटती हूं, फिर बताना चूतड़ चटवाने में कैसा मजा आता है।”
मुझे तो शर्म ही आ गयी। मैं जब नहीं हिला तो चित्रा उठ गई और बोली, “चल उठ भी जा राज। इतना भी मत शर्मा। चल लेट उल्टा हो कर और खोल अपने चूतड़।”
मैं उठा और बेड के किनारे पर पेट के बल उल्टा लेट गया, मगर झिझक के मारे मैंने चूतड़ नहीं खोले। चित्रा मेरी झिझक समझ गयी। उसने ही दोनों हाथों से मेरे चूतड़ खोल दिए और अपनी जुबान से मेरे चूतड़ों का छेद चाटने लगी। अब मुझे ये मानने में अब कोइ झिझक या शर्म नहीं कि मुझे चित्रा की इस चूतड़ चूसने चाटने में सच में ही बड़ा मजा आ रहा था।
तभी चित्रा ने एक हाथ नीचे किया, और टांगों के बीच से मेरा खड़ा लंड हाथ में ले लिया। मेरे मजे की कोइ सीमा नहीं थी। मुझे लगा अगर चित्रा ऐसे कुछ देर और मेरे चूतड़ चाटती रही, और मेरा लंड ऐसे ही हाथ में पकड़े रही, तो मेरा लंड कहीं चित्रा के हाथ में ही ना पानी छोड़ दे।
मैंने चित्रा के हाथ से लंड छुड़ा लिया और बोला, “बस चित्रा बस। निकल जाएगा मेरा। सच में ही ये तो बड़ा मजा आता है?
ये सुन कर चित्रा हट गयी और हंसते हुए बोली, “देखा राज, ये चूतड़ चटाई भी कमाल है? ऐसा ही मजा मुझे भी आता है जब अंकल मेरे चूतड़ चाटते हैं, ऐसा ही मजा अंकल को भी आता होगा जब मैं उनके चूतड़ चाटती हूं। चल बता कैसे करनी है चुदाई।”
मैंने कहा, “तू बता चित्रा तुझे कैसे करवानी है?”
— राज से चित्रा की चुदाई, ख्यालों में युग
चित्रा थोड़ा सा चुप हुई और फिर बोली, “राज, आज मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया लगा कर मेरे ऊपर लेट कर चोद मुझे। आज मैं तुझसे चुदवाते वक़्त युग के सपने लेना चाहती हूं। बेचारा गांडू है तो क्या हुआ, है तो मेरा खसम ही। सात फेरे तो मेरे उसी के साथ हुए हैं। देखा जाए तो मेरी चूत पर असली हक़ तो असल में उसी गांडू का है।”
चित्रा की ये बात सुन कर मुझे सच में बड़ी ही हैरानी हुई। युग की गांडूपने की आदत के बावजूद और अंकल से इस तरह की चुदाई करवाने के बाद भी चित्रा युग को उतना ही चाहती थी।
मैंने भी सोचा अगर चित्रा की यही इच्छा थी, मैं भी युग की ही तरह बोल-बोल कर चोदूंगा आज चित्रा को।
चित्रा बिस्तर पर लेट गयी। मैंने तकिया चित्रा के चूतड़ों के नीचे लगा दिया। चित्रा ने टांगे उठा कर चौड़ी की और चूत पर हाथ लगाते हुए बोली, “आजा मेरे युग। फाड़ दे मेरी फुद्दी आज। दिखा कितना दम है तेरे इस हाथी की सूंड जैसे लंड में।”
चित्रा अभी भी युग को एक बड़े लंड के साथ देखना चाहती थी।
मैंने भी लंड चित्रा की खुली चूत पर रक्खा और बोला, “ले मेरी रानी, बड़ा तरसाया है मैंने तुझे इस लंड के लिए। आज फाड़ ही डालूंगा तेरी फुद्दी। चोद-चोद कर फुला ना दी तेरी फुद्दी तो मेरा नाम युग नहीं।”
और ये कह कर मैंने चित्र को बाहों में ले लिया और जबरदस्त चुदाई चालू कर दी।
नीचे चित्रा बोल रही थी, “आआह युग… गया तेरा लंड अंदर तक मेरी चूत में। आज तो फाड़ ही दे मेरी फुद्दी। घुस जा इसमें। साले बड़ा तरसाया है तूने इस फुद्दी को। रगड़ इसको,इसको रगड़ अब आआह, और रगड़ आआआह युग, आआह क्या चोदता है तू आआह।”
मैंने भी उसी लय में बोल रहा था, “ले मेरी चित्रा ले। अंदर तक ले अपनी फुद्दी के, और अंदर तक ले। अब से रोज चोदूंगा तुझे आअह ले। आआह पूरा ले।”
जल्दी ही हम दोनों को मजा आने वाला हो गया। चित्रा ने एक बार जो से चूतड़ घुमाये और बोली, “युग लगा जोर, निकलने वाला है मेरा आआह निकल गया युग, निकल गया आअह आआह।” और चित्रा झड़ गयी। निकल गया उसकी चूत का पानी। साथ ही मेरा लंड भी पानी छोड़ गया।
चित्रा ढीली होते हुए बोली, “कितना पानी निकलता है युग तेरे लंड में से।”
जैसे ही मैं चित्रा के ऊपर से उतरा,अभी बिस्तर पर लेटा भी नहीं था, कि चित्रा उठी और बिना कुछ बात किये कपड़े उठाये और अपने कमरे की तरफ चली गयी।
चित्रा के इस तरह युग का नाम ले कर चुदाई करवाने और चुप चाप चले जाने से मुझे लगा कि चित्रा अंकल से और मुझसे चुदाई करवा तो रही थी, मगर कहीं ना कहीं ये भी सोच रही थी, कि वो युग के साथ ठीक नहीं कर रही थी।
मैं भी बाथरूम गया और आ कर सो गया। सुबह देर से जाग खुली। अंकल जा चुके थे। सुबह उठ कर सीधा बाथरूम गया और नहा धो कर बाहर निकला। ड्राइंग रूम में गया, चित्रा वहीं बैठी थी। मुझे देखती ही बोली, “क्या बात है राज, बड़े देर तक सोये, रात में कुछ ज्यादा ही मेहनत की लगती है।”
मैंने चित्रा की बात अनसुनी करते हुए पूछा, “अंकल चले गए?”
चित्रा बोली, “अंकल का फार्म जाने का फिक्स टाइम है। रात जितना मर्जी देर से सोयें, सुबह उसे टाइम पर चले जाते हैं। तुम बैठो मैं लक्ष्मी को चाय के लिए बोलती हूं।” ये कह कर चित्रा रसोई की तरफ निकल गयी।
चित्रा बिल्कुल नार्मल थी। लग ही नहीं रहा था की पिछले दिन और रात मुझसे और अंकल से इतनी बार चुदी थी।
— युग की वापसी
चाय पीते-पीते हम इधर-उधर की बातें कर रहे थे कि युग आ गया। आते ही मुझे गले मिला और चित्रा से उसका हाल-चाल पूछा।
मैंने पूछा, “कहां घूमने गया था युग?”
युग बोला, “नैनीताल। इधर के लोग घूमने के लिए नैनीताल बहुत जाते हैं।” थोड़ी देर बैठ कर युग मुझसे बोला, “मैं हाथ मुंह धो कर आता हूं फिर फार्म पर चलेंगे।”
मुझे कुछ अजीब सा लगा। चित्रा से कोइ ख़ास बात ही नहीं की उसने। जब युग बाथरूम चला गया तो मैंने चित्रा से पूछा, “चित्रा क्या बात है? युग ने तुमसे कुछ ख़ास बात ही नहीं की?”
चित्रा बोली, “ऐसे ही होता है राज। वैसे युग बात भी करे तो क्या बात करे? मेरे सामने आते ही उसके दिमाग में आता होगा कि वो मेरी चुदाई नहीं कर पता और मेरी चूत चुदाई की प्यासी ही रहती है, वो भी उसकी गांडूपने की आदत के कारण।”
“अंकल दो दो घंटे मुझे चोदते हैं गांड चाटते चटवाते हैं, ये थोड़े ही पता है युग को।” और फिर कुछ रुक कर चित्रा बोली, “अब तो तुम भी आ गए हो मेरे ऊपर चढ़ने वाले।”
इतने में युग आ गया और बोला, “चल राज चलें फार्म।” फिर चित्र को बोला, “चित्रा हम चलते हैं। युग आज यहीं रुकेगा। कुछ बढ़िया प्रोग्राम बनाएंगे।”
युग ने मुझसे पूछा कि मैं रात रुकूंगा या नहीं, और ऊपर से बढ़िया प्रोग्राम वाली बात। मुझे लगा युग के दिमाग में कुछ चल रहा था। खैर हम मेरी कार से जहांगीराबाद की तरफ निकल गए।
रास्ते में युग ऑस्ट्रेलिया की ही बातें करता रहा। फिर युग ने एकाएक पूछा, “राज चित्रा कुछ कह रही थी?”
समझ तो मैं गया, मगर अनजान बनते हुए मैंने पूछा, “किस बारे में?”
युग थोड़ा हिचकिचाया और बोला, “नहीं ऐसे ही पूछ रहा था।” ये कह कर युग चुप हो गया।
कुछ देर रुक कर युग बोला, “राज यार तुझसे क्या छुपाना इतने महीने हो गए मेरी और चित्रा की शादी को, एक बार भी ढंग से चुदाई नहीं हुई।”
मैंने बनावटी हैरानी से पूछा, “क्या कह रहा है युग? एक बार भी नहीं? ऐसा क्यों है भाई। तू तो अच्छा खासा दिख रहा है। तेरा तो लंड भी खड़ा होता है फिर ये चुदाई? क्या चक्कर है?”
युग बोला, “चक्कर वही है मेरे भाई। गांडूपने का चुतियापा। लड़की देख कर लंड खड़ा ही नहीं होता। चित्रा ने भी बहुत कोशिश की। चित्रा की कोशिशों से ये तो हो गया कि अब चित्रा के साथ लेटने से खड़ा तो हो जाता है मगर चुदाई नहीं हो पाती। जल्दी पानी निकल जाता है। चित्रा बेचारी प्यासी ही रह जाती है।”
अब मैं इसका क्या जवाब देता।
फिर युग बोला, “चल छोड़ यार मैं भी क्या ले कर बैठ गया।”
फिर कुछ रुक कर बोला,” तू बता ऑस्ट्रेलिया कैसा है। सुना बहुत बड़ा देश है और लोग बहुत कम हैं। सच बताना राज कोइ ऑस्ट्रेलियन लड़की मतलब गोरी अंग्रेज़ लड़की चोदी ऑस्ट्रेलिया में?”
मैंने कहा, “युग, हम हिन्दुस्तानियों के दिल में इन गोरी लड़कियों के बारे में बड़ी गलतफहमियां हैं। वहां की लड़कियां ऐसे हर किसी से नहीं चुदवाती। ये है कि उनकी चुदाई जरूर कम उम्र में शुरू हो जाती है मगर चुदवाती वो अपने किसी एक दोस्त या साथी से ही हैं। एक लड़की के एक से ज्यादा चुदाई वाले दोस्त नहीं होते।”
“हां ये हो जाता है की उनका अगर उस लड़के से मन हट गया तो कोइ दूसरा दोस्त बन जाता है। इस बात को वहां बिल्कुल भी बुरा नहीं माना जाता, ये उनके लिया बड़ी ही मामूली सी बात है। अगर उस हिसाब से देखा जाए तो उन गोरी लड़कियों से ज्यादा तो हमारे यहां की देसी लड़कियां चुदाई करवाती हैं।”
युग ने पूछा, “तो क्या कोई लड़की चोदी ही नहीं इन चार सालों में ऑस्ट्रेलिया में?”
मैंने कहा, “बिल्कुल चोदी। दो तो यहां की ही थी – देसी, इंडियन, वो भी पढ़ाई करने वहां गयी हुई थी, पारुल और तबस्सुम। और एक लड़की विएतनाम की थी, किम नाम था उसका। क्या मस्त चुदवाती थी वो।”
फिर मैंने युग को अपनी पर्थ ऑस्ट्रेलिया वाली चुदाई की कहानी खूब नमक मिर्च मसाला लगा कर सुनाई। वैसे तो पारुल, तबस्सुम, किम की चुदाई अपने आप में गरमा गर्म थी, मगर मैंने इसमें वो भी जोड़ दिया जो चित्रा और अंकल के बीच होता था, मगर पर्थ में हमारी चुदाईयों के बीच नहीं हुआ था। जैसे कि चूतड़ चाटना वगैरह-वगैरह।
जब मैं चुदाई की कहानी सुना रहा था तो युग का लंड खड़ा हो गया। एक तो लंड खड़ा, दूसरा हम कार में बैठे थे। युग की पैंट आगे से अच्छी खासी उठ गई थी। मैंने युग के लंड को पेंट के ऊपर से पकड़ कर कहा, “तेरा तो चुदाई की बातें सुन कर ही खड़ा हो रहा है। चूत सामने देख कर क्या हालत होती होगी।”
युग बोला, “यही तो पंगा है दोस्त। पहले तो चित्रा की नंगी चूत दख कर भी खड़ा नहीं होता था। चित्रा ने बड़ी मेहनत की। अब ये है कि चित्रा के हाथ में लेने से खड़ा तो हो जाता है मगर चुदाई पांच मिनट भी नहीं हो पाती और लंड का पानी निकल जाता है। वही बात, चित्रा की चूत गरम होना शुरू होते होगी और मेरा लंड ठंडा हो जाता है।”
युग की इस बात पर सच ही उस पर मुझे बड़ा तरस सा आया। मैंने युग का खड़ा लंड दबाते हुए इतना ही कहा, “हो जायेगा ठीक युग यार, यहां तक भी तो पहुंचा ही है।”
युग चुप हो गया और कुछ सोचने लगा। इतने में हम फार्म पर पहुंच गए। फार्म में इधर-उधर घूमते रहे। युग और देसराज अंकल के बीच ज्यादा बात-चीत नहीं थी। हम फार्म में इधर-इधर घूमते रहे। चार बजे युग बोला, “चल अब घर चलते हैं। युग अंकल से बोला, “चलते हैं पापा, आप कितने बजे तक आओगे।”
अंकल बोले, “आज मैं नहीं आ पाऊंगा। सुबह कुछ मजदूर बुलाये हैं। फिर किसी को आवाज लगा कर बोले, “बद्री वो थैला ले आ।” बद्री आया हुए मुझे पहचान कर बोला, “नास्ते राज भैया।”
मैंने बद्री को गले से लगाया और कहा, “अबे इधर आ भोसड़ी के क्या भैया-भैया लगा रक्खा ही। मैं वही राज हूं जिसके साथ बचपन में लुल्लियों की पकड़न पकड़ाई खेला करता था।” अंकल मेरी बात सुन कर हंसे और दूसरी तरफ देखने लगे।
मैंने बद्री को पूछा, “ये बता शारदा ताई कैसी है, एक दिन आऊंगा मिलने।
बद्री बस इतना ही बोला, “ठीक है राज, आना, बड़ी खुश होगी अम्मा तुझसे मिल कर।”
फिर अंकल बोले, “युग ये लो चिकन कटवाया है। लक्ष्मी को बोलना बना देगी। बढ़िया चिकन बनाती है वो।