अब ज्योति और शीला दोनों एक दूसरे के सामने चुदाई करवाने लग गयी थी। रात को मैं ऊपर चला जाता, चुदाई करता और थक कर नीचे आ कर सो जाता।
दो रातों की चुदाई के बाद जब अगली सुबह ज्योति मिली तो बोली, “जीते, कल रात को ख़ास प्रोग्राम है, तैयार रहना।”
ख़ास प्रोग्राम? ज्योति के घर तो मेरा आम या ख़ास एक ही प्रोग्राम होता था, चुदाई का प्रोग्राम। ख़ास प्रोग्राम सुनते ही पहले तो मेरे लंड में हरकत हुई। फिर मैंने लंड को पैंट में ठीक से बिठाते हुए ज्योति से पूछा, “ख़ास प्रोग्राम? क्या मतलब भरजाई?”
ज्योति बोली, “कल मेरे बॉस संधू साहब बीवी नैंसी समेत डिनर पर आएंगे। तुझसे भी मिलवाउंगी दोनों को। मस्त है संधू साहब।” और फिर धीरे से बोली, “शीला भी होगी।”
मैं सच में ही हैरान हुआ और पूछा, “भरजाई शीला भी? क्या मतलब भरजाई? डिनर के अलावा भी कुछ होना है क्या?” मेरा मतलब साफ़ था, कि क्या डिनर के साथ साथ चुदाई भी होगी?”
ज्योति बोली, “हां जीते होना है I चुदाई होनी है। चुदाई नहीं बल्कि चुदाईयां होनी हैं। उधर तुम और संधू साहब। इधर मैं शीला और संधू साहब की बीवी नैंसी।”
मेरी हैरानी खत्म ही नहीं हो रही थी। मैंने फिर पूछा, “संधू साहब की बीवी? संधू साहब के सामने चुदाई करवाती है?”
ज्योति बोली, “जीते, संधू साहब तो यही कह रहे थे। वैसे संधू साहब की बीवी से मैं पहली बार मिलूंगी।” फिर ज्योति कुछ रुक कर बोली, “वैसे तो जीते इस तरह के चुदाई चक्कर में तो संधू साहब से भी मैं पहली बार ही मिलूंगी।”
मैं हैरान था कि ज्योति पहली बार अपने बॉस संधू से चुदाई करवाने जा रही थी। मैंने फिर पूछा, “पहली बार? तो फिर भरजाई अचानक ये प्रोग्राम कैसे बन गया?”
ज्योति बोली, “जीते, ये जितने भी बड़े अफसर होते हैं, ये अपने नीचे काम करने वाली लड़कियों पर नजर तो रखते ही हैं। साले बात करते हुए भी चूचियों या चूत की तरफ ही देखते रहते हैं और लंड खुजलाते रहते हैं।
संधू साहब भी जब भी मौका मिलता है मुझे केबिन में बुला कर गप्पबाजी, मजाक करते हैं। थोड़े बहुत गंदे जोक भी सुनाते हैं। कभी कभी मेरे पीछे, अब तेरे से क्या छुपा है, जीते, चूतड़ दबा देते हैं। अब तक इससे आगे संधू साहब नहीं बढ़े थे।
ज्योति बता रही थी, “मुझे संधू साहब के साथ काम करते हुए चार साल से ज्यादा हो गए है। हमारे घर के बारे में लगभग सब कुछ जानते हैं, जैसे श्रेया के बारे में, हमने नीचे का पोर्शन किराये पर दिया है। मैं अपने कपड़े शीला को दे देती हूं। शीला बड़ी सुन्दर है वगैरह-वगैरह।”
“संधू साहब को ये भी पता था, कि हमारे नीचे के किराये वाले घर खाली कर गए हैं।”
“एक दिन यूं ही बात हो रही थी कि संधू साहब ने पूछ लिया ज्योति तुम्हारे नीचे के पोर्शन में कोइ आया या नहीं? इस पर मैंने तुम्हारे बारे में भी बता दिया कि तुम आये हो। तुम भी सिख परिवार से हो, और अजित सिंह गिल तुम्हारा नाम है।। तरनतारन के जमीनदार परिवार से हो और बिजली महकमें में SDO हो।”
“फिर संधू साहब ने पूछ: तुम देखने मैं कैसे हो और क्या शादीशुदा हो? मैंने कहा, “नहीं सर शादी तो उसकी नहीं हुई, अभी तो 28 का ही है।” और जीते मेरे मुंह से निकल गया, “सर देखने में तो आपकी तरह ही हैंडसम है।”
ज्योति बोली, “बस फिर क्या था, संधू साहब एक-दम ही खुल गए और पूछ लिया,”ज्योति, क्या तुम्हारा और इस अजित का कोइ चक्कर चला या नहीं? अमित तो ज्यादातर टूर पर रहता है। कभी मस्ती करने का प्रोग्राम बना या नहीं?”
बोलते हुए संधू साहब नई एक आंख दबा दी, मतलब साफ़ था, चुदाई हुई या नहीं?”
ज्योति बता रही थी, “जीते संधू साहब की इस बात से मैं बड़ी परेशान हो गयी, और मुझे कुछ जवाब ही नहीं सूझा।”
“तभी अचानक संधू साहब उठ कर मेरे पास आ गए, और मुझे उठा कर मेरे होंठों को चूसने लगे। मुझे तो खुद मजा आने लगा। जब मैंने संधू साहब को नहीं रोका, तो संधू साहब समझ गए कि मेरी भी हां ही थी। संधू साहब ने एक हाथ से मेरी चूची इतनी जोर से दबाई, कि मेरी चीख निकल गयी।
फिर संधू साहब ने चूची छोड़ी, और मेरी चूत पर एक जोरदार चिकोटी काट कर मुझे छोड़ कर अपने कुर्सी की तरफ चले गए। थोड़ी बहुत चुहुलबाजी तो संधू साहब करते ही थे, लेकिन चुम्मी, चूची और चूत तक बात पहली बार पहुंची थी।”
” संधू साहब हट गए, याद आ गया होगा कि ये ऑफिस है और कभी भी कोई आ सकता है।”
“उस वक़्त तो उन्होंने मुझे जाने की लिए कह दिया, मगर एक घंटे के बाद ही दुबारा बुला लिया, और वहीं बात छेड़ दी, मेरे और तुम्हारे चक्कर के बारे में। साथ ही मेरी तारीफ़ भी करने लगे।
वो बोले, “ज्योति तुम सेक्सी तो हो ही। और ये अजित तो पागल हो जाता होगा तुम्हें देख कर।” ये कहते हुए नजरें उनकी मेरी चूत की तरफ ही थी।
“बोलने के साथ-साथ ही संधू साहब अपना लंड भी पेंट में इधर-उधर कर रहे थे। हर बार उठ कर आ कर या तो मेरे मम्मों को दबाते, या मेरे गालों को छूते।
“संधू साहब ने फिर मुझे जाने को कह दिया, और एक घंटे की बाद ही उन्होंने मुझे दुबारा बुला लिया।”
“मैं सोच रही थी अब क्या बात करेंगे संधू साहब। संधू साहब हर मीटिंग के बाद खुलते ही जा रहे थे। इस बार संधू साहब बोले, “ज्योति सच-सच बताना क्या अजित के साथ सेक्स किया है तुमने?”
फिर कुछ रुक कर बोले “28 साल का जवान बंदा, और तुम्हारे जैसी खूबसूरत सेक्सी लड़की अकेली हो, ऐसा कैसे हो सकता है कि कुछ भी न हुआ हो?”
“जीते सच बोलूं, जब से मैंने तुमसे पहली बार चुदाई करवाई है, तब से मेरा संधू साहब से भी चुदने का मन होने लगा था। पति के अलावा एक से चुदाई करवाओ या दो से, बात तो एक ही है।”
“दो तीन दिन ऐसे ही चलता रहा। हर मीटिंग में संधू साहब एक कदम आगे बढ़ जाते। जब भी मैं उनके ऑफिस में जाती, मम्मे और चूतड़ दबाना, चूत में उंगली करना तो अब हर बार ही हो रहा था। सच पूछो तो अब तो मुझे भी मजा आने लगा था।”
“एक दिन तो हद्द ही हो गयी। घंटी बजा कर संधू साहब ने मुझे बुलाया। मैं पेन और पैड लेकर अंदर जा कर बैठने ही वाली थी कि संधू साहब ने कहा, “ज्योति जरा इधर आना।” मैंने सोचा कोइ चीज गिर गयी होगी। उठ कर मैं घूम कर संधू साहब की तरफ गयी तो देखा संधू साहब ने खूटे जैसा लंड पेंट से निकाल रक्खा था।”
“जीते तेरे जवान लंड जितना ही मोटा लंड था संधू साहब का।”
मैंने हड़बड़ा कर कहा सर ये क्या? कोई आ गया तो? इसको अंदर करो सर।” संधू साहब बड़ी ही बेशर्मी से बोले, “एक बार पकड़ तो लो फिर करता हूं अंदर।” मुझे शर्म तो बड़ी आ रही थी, लेकिन फिर सोचा ये संधू साहब तब तक इसको अंदर नहीं करेंगे जब तक मैं एक बार पकड़ नहीं लूंगी।”
“जीते फिर मैंने एक बार संधू साहब का लंड पकड़ा और छोड़ दिया और फिर घूम कर वापस आ कर कुर्सी पर बैठ गयी। संधू साहब ने लंड पेंट के अंदर किया, और मेरी तरफ देखते हुए पूछा, “ज्योति लेना है ये?”
ज्योति बता रही थी, “जीते मैंने कभी नहीं सोचा था कि बात यहां तक भी जा सकती है। फिर संधू साहब बोले, “ज्योति एक दिन डिनर का प्रोग्राम बनाओ अपने घर में। मैं अपनी बीवी नैंसी को भी ले आऊंगा। अजित को भी बुला लेना और शीला को भी। दारू पी के सारे मस्ती करेंगे।” फिर संधू साहब मेरी तरफ देख कर बोले, मेरी बात समझ रही हो न ज्योति?”
“जीते समझ तो मैं गयी ही थी कि संधू साहब चुदाई की बात कर रहे थे। लेकिन ये समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी बीवी को भी इस सब में शामिल कर रहे थे?”
“मैंने भी पूछ लिया, “सर, मैडम भी?” संधू साहब बोले ‘अरे तो इसमें क्या है?” हम, मैं और नैंसी, ये कोई पहली बार थोड़े करेंगे। हमारा अपना एक छोटा सा सर्कल है जिसमें ऐसे चुदाई के प्रोग्राम बनते रहते हैं। शराब पी कर सब एक दूसरे की बीवियां चोदते हैं, एक दूसरे के सामने। चूत चुदाई, गांड चुदाई सब होती है। इस बार ऐसा ग्रुप चुदाई का प्रोग्राम तुम लोगों से साथ सही।”
ज्योति बोली, “इसके बाद तो संधू साहब पूरी तरह ही खुल गए। बोले, वो लड़का अजित नैंसी के साथ चुदाई करेगा, मैं तुम्हारी और शीला की चुदाई करूंगा। अजित चाहे तो तुम्हें या शीला को भी चोद ले।”
“मैंने जब कोई जवाब नहीं दिया तो संधू साहब बोले, कोइ जल्दी नहीं है ज्योति, बाद में बता देना। ना मन हो तो भी कोइ बात नहीं।”
ज्योति फिर बोली, ” जीते उस वक़्त तो मुझे कुछ समझ नहीं आया, पर बाद में मैंने सोचा हर्ज ही क्या है। संधू साहब का लंड भी लेके देख लेते हैं और तू भी एक और चूत (फुद्दी) के मजे ले लेगा।”
“फिर जब दुबारा संधू साहब ने मुझे बुलाया तो मैंने हां कर दी, और बस प्रोग्राम बन गया।”
मैं भी सोचने लगा, नैंसी, एक और चूत। कैसी होगी ये चूत, ये फुद्दी। मैंने ज्योति से पूछा, “भरजाई कितनी उम्र के हैं ये संधू साहब और उनकी बीवी नैंसी?”
ज्योति बोली, “जीते संधू साहब तो यही होंगे कोइ 42-44 के आस-पास। उनकी बीवी से तो मैं नहीं मिली पर अगर संधू साहब 42-43 के हैं तो उनकी बीवी 36-37 की होगी।”
मैंने भी कह दिया, “ठीक है भरजाई मजा रहेगा।”
मैंने अपनी जिंदगी मैं बड़ी चुदाईयां की थी, मगर इस तरह की घरेलू औरतों की चुदाई पहली बात हो रही थी, वो भी थोक में और एक से बढ़ कर एक खूबसूरत औरतें। अब देखना था नैंसी कैसी दिखती है, कैसे चुदाई करवाती है।
संधू साहब ने अगले दिन शाम को आना था। शीला आज ऊपर नहीं थी। रात भर मेरी और ज्योति की फिर से वैसी ही चुदाई चली।
इस बार तो कुछ भी पूछने कहने कि भी जरूरत नहीं पड़ी। आठ बजे रात को मैं पीछे की सीढ़ियों से ऊपर पहुंच गया। ऊपर का दरवाजा खुला था, मतलब ज्योति मेरा इंतजार कर ही रही थी।
ज्योति सोफे पर बैठी थी, वही पारदर्शी गाऊन डाल कर। जैसे ही मैं पहुंचा, ज्योति उठी, मेरे गले में बाहें डालीं और होंठ हल्के से खोल दिए। उसके बाद वही हुआ जो पिछली दिन और रातों को होता रहा था, मस्त चुदाई।
अगले दिन ज्योति तो ऑफिस चली गयी थी। मैं जब सुबह काम कि लिए निकलने लगा तो शीला मिल गयी। हाथ में एक थैला भी था। मैंने पूछा, “शीला आज सुबह सुबह कैसे?”
शीला बोली, “जीत भैया मैं तो आज दिन भर यहीं हूं, रात भी यहीं रुकूंगी।” फिर थैला दिखा कर बोली “ये रात के कपड़े हैं। दिन में भाभी ने कुछ तैयारी करने को बोला है। शाम को दो मेहमान आएंगे, ख़ास मेहमान।” फिर मुझसे बोली, “आप भी तो आओगे जीत भैया।”
मैंने पूछा, “शीला तुझे पता है कौन आने वाले हैं और क्या प्रोग्राम बना है?”
शीला ने जवाब देने कि बजाए उलटा सवाल कर दिया, “जीत भैया आपको पता है या नहीं?”
मैंने कहा, “पता है।” शीला बोली, “तो जीत भैया मुझे भी पता है।” और मेरे लंड की तरफ इशारा कर के बोली ,”आज पप्पू को एक नयी सहेली मिलने वाली है” और फिस्स फिस्स करती शीला हंस पड़ी और सीढ़ियां चढ़ गयी।
मैं शाम छः बजे आ गया। ज्योति पहले ही आ चुकी थी। मैं नहा धो कर चका-चक कुर्ता पायजामा पहन कर ड्राईंग रूम में बैठ गया।
शाम सात को होंडा सिटी कार में संधू साहब आ गए। कार की आवाज सुन कर ज्योति नीचे ही आ गयी, और मुझे भी बाहर बुला लिया।
संधू साहब कार से उतरे, सच में ही कमाल की पर्सनैलिटी थी। संधू साहब ने मुक्तसरी कुर्ता पायजामा पहना हुआ था।
मुक्तसरी कुर्ते पायजामे की खासियत ये होती है कि कुर्ता शरीर के साथ चिपका होता है और घुटनों से थोड़ा नीचे तक लम्बा होता है। बाजू आधी लम्बाई के होते हैं। कुर्ते पायजामें का रंग एक भी हो सकता है, या कुर्ता किसी और रंग का और पायजामा सफ़ेद रंग का।
संधू साहब का कुर्ता नीले रंग का था और पायजामा सफ़ेद रंग का। संधू साहब के ऊपर ये बहुत फब रहा था।
संधू लम्बे कद का हट्टा-कट्टा सरदार था मगर मेरी तरह क्लीन शेव I आधी बाजू के मुक्तसरी कुर्ते में से संधू के बाजुओं के घने बाल साफ़ दिखाई दे रहे थे। कुर्ते का ऊपर का बटन खुला था, और उसमें से भी घने बाल बाहर निकल रहे थे। रीछ की तरह के घने लम्बे बाल, मतलब बाकी जिस्म पर भी खूब बाल होंगे।
ऐसे घने बालों वाले लोग चुदाई के बड़े शौक़ीन होते हैं, और चुदाई भी ज़बरदस्त करते हैं I लड़कियां भी ऐसे मर्दों से चूत चुदाई करवाने के लिए बेताब रहती हैं। अब अगर ज्योति भी संधू से चुदाई करवाने को तैयार हो गयी थी, तो इसमें उसका क्या कसूर? और फिर जवान शीला तो वैसे ही चुदाई की शौक़ीन थी।
ज्योति ने संधू से मेरा परिचय करवाया। जीत, “ये हैं मेरे बॉस सरदार परमजीत सिंह संधू”, और फिर ज्योति ने संधू से कहा, ” सर ये है अजित सिंह गिल, जिसके बारे में मैंने आपको बताया ही था।” हम दोनो ने हाथ मिलाया। संधू से हाथ मिला कर मजा आ गया। क्या भारी हाथ था संधू का, मर्दों वाला हाथ।
संधू के साथ औरत थी नैंसी 36- 37 साल ज्योति के बराबर, वैसी ही सुंदर गोरी चिट्टी लम्बी ऊंची। संधू की बीवी नैंसी ने सलवार सूट पहना हुआ था। नैंसी मेरी उम्मीद से ज्यादा सुन्दर थी। बहुत ज्यादा गोरी। शरीर ज्योति जैसा। मम्में थोड़े ज्यादा भारी थे। मेरी आखों के सामने नैंसी की चूत और नंगे चूतड़ घूम गए। सोचने लगा क्या मस्त चूतड़ हैं नैंसी के।
मैं सोच रहा था क्या मजा आएगा इस नैंसी की चुदाई का, आज एक और नई चूत। ज्योति शीला और चम्पा को तो चोद ही चुका था।