मैंने सोचा दोनों के लिए थोड़ा सजना-सँवरना पड़ेगा। उन्होंने इच्छा ज़ाहिर की थी तो पूरा करना पड़ेगा। मैं नहाने चली गई। बाथरूम से निकल कर मैंने वो ब्लैक बिकिनी पहनी। ये भी काफी छोटी ही थी, पर गुलाबी बिकिनी से थोड़ी सी बड़ी थी।
मेरे पास काले रंग की लिपस्टिक थी नहीं, तो मैंने बिल्कुल खूनी लाल रंग की लिपस्टिक लगाई। मैंने अपने बालों को सुखा कर, बिल्कुल टाइट करके सर के ऊपर कस कर बाँध के एक चोटी सी बनायी। आज रेस्टोरेंट के स्विमिंग पूल में खेल रही एक लड़की के बालों को इस स्टाइल में बंधा देखा, तो मुझे बहुत पसंद आया।
पर आज बिकिनी के साथ मैंने अपनी एक काले रंग की हील-जूती भी पहन ली। थोड़ी सी परफ्यूम भी खुद पर छिड़क ली। फिर मैंने जब खुद को बड़े से शीशे में निहारा, मुझे खुद से ही प्यार हो गया। मेरे दोनों शेरों के लिए मैं पूरी बदल ही गयी थी। बिल्कुल कातिलाना लग रही थी मैं।
मुझे महसूस ही नहीं हो रहा था, कि मैं एक 40 साल की औरत हूँ । मुझे खुद को निहार कर ऐसा लग रहा था, कि मैं अभी भी स्विमिंग पूल वाली उन लड़कियों जैसी ही छरहरी सी कमसिन हूँ। खैर ये बात 100 प्रतिशत सच है कि अगर एक औरत की जमकर चुदाई होती रहे, तो वो अधेड़ उम्र में भी काफी जवान दिखती है।
मुझे बिल्कुल साधारण कपड़े पसंद थे, ये मेकअप और गाढ़े रंग की लिपस्टिक का कभी शौक नहीं था, ये चमक-धमक की आदत नहीं थी। पर कहते हैं अगर एक औरत किसी मर्द के प्यार में हो तो उसे खुश रखने के लिए खुद को हर रूप में बदलने और ढलने को तैय्यार हो जाती है। और मेरे पास तो खुद को बदलने के लिए अब दो-दो कारण थे।
मैं तैयार होकर अपना ओवरकोट पहन कर इंतज़ार करने लगी। इसी बीच मैं आपको ये बता दूँ कि सुबह जब दोनों भाई सैर के बहाने से गायब थे, उनमे क्या बातें हुयी। अभिषेक अखिल को सहज महसूस कराने के लिए उससे बात करने के लिए उसे विला से बाहर अकेले में ले गया ताकि दोनों खुल कर बात कर सकें।
फिर अभिषेक ने उसे शुरू से बताया कि कैसे उसने मुझे ऑफिस में कर्मचारी के साथ देखा, और फिर उसने मेरे दर्द को समझने की कोशिश की। अखिल ने भी बताया कि उसने कब कब हमें ऑफिस में चुदाई करते सुना था। फिर मेरे गर्भपात के विषय में उन्होंने बात की, मेरी नसबंदी के विषय में बातें हुयी।
अभिषेक ने अखिल को चेताया कि बंद कमरे में जो भी हो, वो माँ की उतनी ही इज़्ज़त करेंगे जितनी हमेशा से करते आये हैं। बंद कमरे में बने रिश्ते का प्रभाव बाहर की ज़िन्दगी में नहीं पड़ना चाहिए, क्यूंकि समाज, बिज़नेस के लोग और ख़ास कर आरती और अभिनव पे इन बातों का असर बिल्कुल नहीं पड़ना चाहिए।
इतने में अखिल ने हँसते हुए अभिषेक की टांग-खिंचाई करते हुए कहा,” कि भैया आप तो बड़े बेशरम हो, माँ को गन्दी गालियां देते हो।” तो अभिषेक ने हमारे इस अलग से रिश्ते की कहानी भी बतायी कि गालियों से भरी चुदाई की दास्तान कब और कैसे शुरू हुयी थी। अभिषेक ने अखिल को कहा,” कि अगर गालियां देते हुए माँ को चोदना है, तो उनसे पहले इजाज़त ले लेना, और उन ओछे शब्दों का बाहर गल्ती से भी इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।”
अभिषेक ने फिर मेरी तारीफ़ करते हुए कहा,” कि माँ बहुत अच्छी है, मेरे गुस्से को अपने शरीर में सह लेती है, ताकि मुझे शांति मिले और मैं बिज़नेस के लिए सही निर्णय ले सकूँ।” फिर दोनों ने थोड़ी बहुत बिज़नेस वगैरह की भी बात की। अभिषेक ने अखिल से उसकी गर्लफ्रेंड स्वाति के बारे में भी पूछा, तो अखिल ने बताया कि वो स्वाति से प्यार करता था। स्वाति उसके लंड की रोज़ चुसाई करती थी, और वो भी उसके दुदू और चूत को चांटता था।
पर अभी तक वो अपना लौड़ा उसकी चूत और गांड में नहीं डाल पाया था, क्यूंकि स्वाति पहले 18 की हो जाना चाहती है। फिर अखिल ने ही सुझाव दिया, कि आज दोनों भाई मिल कर माँ की रात को स्पेशल बनाते हैं, साथ में प्यार करते हैं। मेरे दोनों शैतानो के बीच हुयी इस वार्तालाप की जानकारी मुझे दिल्ली आने के बहुत दिनों बाद अभिषेक ने दी, वो भी मेरे कई बार पूछने पर। मेरे दोनों शेर खूब शैतान है। मेरे राजकुमार।
ठीक 12 बजे कमरे की घंटी बजी। मैं ख़ुशी से दौड़ कर गेट खोलने को भागी। गेट खोल कर जल्दी से उन्हें कमरे के अंदर कर लिया पहले, और गेट लॉक कर दिया। मैंने जब दोनों को देखा तो हैरान थी कि दोनों बिल्कुल नहा धो कर, तैयार होकर आये थे। काफी अच्छी खुशबू भी आ रही थी दोनों से।
उतने में मैंने देखा अखिल के हाथ में वाइन की एक बॉटल थी, और अभिषेक के हाथ में कागज़ का एक छोटा थैला, जो कि तौहफे जैसा लग रहा था।
“इस थैले में क्या है, बेटु? तौहफा है क्या मेरे लिए?”, मैंने बड़े उत्साहपूर्वक पूछा
“पहले ये बता माँ, आज हम तेरी सेवा कैसे करें? रोमांटिक अंदाज़ में”, अभिषेक ने थोड़ा सा झिझक कर पूछा, “या आपको कुतिया बना कर?”
मैं शर्म से लाल हो गयी। अचानक ऐसी बातों का इस्तेमाल अखिल के सामने सुन कर शर्माना लाज़मी था। अपने सर को झुका कर मैंने बड़े हलके से आवाज़ में शर्माते हुए कहा, “कुतिया बना कर!”
ये सुनते ही दोनों भाई मेरे करीब आयें और मेरे ओवरकोट को ढीला कर नीचे गिरा दिया। अब मैं इस खूबसूरत काली बिकिनी में अपने दोनों बेटो के सामने खड़ी थी। मेरा सर अभी भी शर्म के मारे नीचे ही झुका हुआ था। तो अभिषेक ने मेरे चेहरे को बड़ी ही नज़ाकत से ऊपर उठाते हुए नज़रें मिलाई और अचानक मेरे गाल पर ज़ोर से एक थप्पड़ जड़ दिया। मैं अवाक रह गयी।
“अपनी औकात में रह साली कुतिया। बैठ हमारे पैरों के नीचे साली।”, अभिषेक ने मेरे चेहरे को दबा कर मेरे ऊपर थूक दिया। और अखिल ने मुझे ज़रा सा धक्का देते हुए नीचे बैठा दिया। पास में रखे उस थैले से अभिषेक ने एक काले रंग का वेलवेट कपड़े का बना कुत्ते का पट्टा निकाला। और मेरे गले में पहना दिया, “तू हमारी पालतू कुतिया है, रंडी। गली की कुतिया है तू। शुक्र मना तेरी चुदाई बड़े घर के जवान कर रहे हैं, वरना तुझ कुतिया को गली के आवारा कुत्ते ही चोदते। भाई, थूक साली रांड पे। साली अपने कातिल बदन से हमे जलाती है बेवहन की लौड़ी।”
और फिर अखिल और अभिषेक दोनों मेरे ऊपर थूकने लगे। मुझे एहसास हो गया कि आज मेरा सच में गली की कुतिया जैसा ही हाल होने वाला था। मेरे दोनों राजकुमार आज मेरी चूत और गांड की फाड़ के रख देंगे। ऊपर से अखिल के काले नाग से तो मैं पहले ही घबराई हुयी थी।
मुझे ये सरप्राइज पसंद आने लगा। ये बिल्कुल एक नया अनुभव था। खैर ये रात कई नए अनुभव कराने वाली थी। और रात अभी पूरी बाकी थी। ये पट्टा कुत्ते के पट्टे जैसा ही था, पर ख़ास तौर पर सेक्स खेलों के लिए ही बनाया गया है।
काफी सुन्दर और महंगा पट्टा था। गोल्डन रंग की जंजीर लगी थी, जैसे कुत्तों की लगाम संभालने के लिए जंजीर होती है। आज भी हमारे कमरे में रखी हुयी है ये जंजीर। भूले भटके इस्तेमाल हो जाती है मेरे ऊपर कभी कभी।
इतने में दोनों नंगे हो गए। दोनों भाई भी पहली बार एक दूसरे को नंगा देख रहे थे। और जैसा मेरे साथ हुआ था, वैसा अभिषेक के साथ भी हुआ।
वो भी अपने छोटे भाई का लौड़ा देख के चौंक गया, “भाई, ये क्या है? ये तो कुछ ज़्यादा ही लम्बा और मोटा है? क्या खाके तूने इस इतने बड़ा किया मेरे भाई? इस कुतिया की तो चूत फट कर बहार ही आ जायेगी।”
अखिल ने हँसते हुए कहा, “हाँ भैया, कल रात ही माँ की हालत ज़रा खराब हो गयी थी मेरे लौड़े को लेकर।”
“माँ, कौन माँ? अभी ये हमारी कुतिया है। इस रंडी को कुतिया बोल, भाई।”, अभिषेक ने फिर मेरे मुंह पर थूकते हुए कहा।
बस वो बिल्कुल मेरे सामने आ गए, और अखिल ने हुकुम किया, “चूस साली कुतिया, अपने दोनों बेटों का लौड़ा लेकर चूस अपने मुंह से, साली बेशरम।”
बस फिर तीनों का एक सुनहरा सफर सरपट दौड़ पड़ा।
मैंने उन दोनों के लौड़े को एक साथ पकड़ा। पहले अभिषेक के टोपे पर हल्का किस किया, फिर अखिल के काले नाग के मुंह पे। उन दोनों का लौड़ा पूरा साफ़ सुथरा सूखा हुआ था।
मैंने दोनों के लौड़े पर बारी-बारी से थूका और गीला कर लिया। बस, फिर तो लंड चुसाई का खेल शुरू कर दिया। ज़ोर-ज़ोर से लौड़े की चुसाई शुरू कर दी। एक बार अखिल के लौड़े को चूसती और अभिषेक के लंड को हिलाती, तो दूसरे पल अभिषेक का लंड चूसती और अखिल का लौड़ा हिलाती।
एक बार रूकती और उन दोनों के आँखों में देखती, और उनकी वासना देख खुश होकर फिर से दोनों के लौड़े को चूसने लगती। बीच-बीच में लौड़े की दरार को अलग करके मूत के छेंद पर जीभ चलाती, तो दोनों मज़े से कराहने लगते।
“भैया, ये साली तो कमाल का लौड़ा चूसती है। आप तो हर रोज़ स्वर्ग में होते होंगे जब ये रंडी आपका लंड चूसती होगी।”, अखिल ने अपने भैया से सवाल किया।
तो अभिषेक ने जवाब देते हुए कहा, “हाँ भाई। साली गज़ब का चूसती है। मैंने किसी और से चुसवाया तो नहीं पर ये रंडी मुझे जन्नत दिखा देती है जब मेरे लंड की चुसाई करती है। ”
“हाँ भैया, स्वाति भी इतनी कामुकता से नहीं चूसती। ये बहन की लौड़ी तो मेरे लौड़े को चूस कर ही पानी निकाल देगी। ”
और इसी बीच वो “आह आह, और चूस साली रंडी। अहा मेरी कुतिया। पूरा मुंह में लेले कुतिया।” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे।
मैं उनकी बातों को अनसुना करते हुए पूरे मज़े में उनके लौड़े की सेवा कर रही थी। बीच-बीच में सांस लेने के लिए रूकती और फिर शुरू हो जाती। अब अभिषेक मेरे मुंह में धक्के मारने लगा। अभिषेक को देख अखिल भी अपना लौड़ा मेरे मुंह में घुसेड़ कर धक्के मारने लगा, पर अखिल का लौड़ा इतना बड़ा था, कि मेरा मुंह उतना चौड़ा खुल नहीं पा रहा था, और मुझे दर्द होने लगा।
मेरी आँखों से दर्द के आंसू निकल रहे थे, तो अभिषेक देख कर समझ गया, और अपने छोटे भाई को इशारा कर दिया कि ज़्यादा ज़ोर से ना घुसेड़े। आँखें कमाल का अंग होती हैं। बयाँ कर देती हैं कि आंसू ख़ुशी के हैं, दुःख के हैं, मज़े के हैं या दर्द के। बीच-बीच में आक्रोश में आकर अखिल और अभिषेक मेरा गाला घोंटते और लंड को अंदर दबा कर रुक जाते।
मेरा चेहरा जैसे ही लाल होने लगता, तब छोड़ते। उफ़, क्या अनुभव था।
मेरे मुंह को चोदते हुए मेरे मुंह से लार टपकने लगा। मेरी मुंह की चुदाई करते हुए दोनों भाई थक गए और बिस्तर पर आकर अपने पैर नीचे ही लटका कर बिस्तर पर लेट गए फिर मुझे मेरे ज़ंजीर से खींचते हुए अभिषेक ने कहा, “आजा कुतिया, हम थक गए हैं। यहाँ आकर हमरा लंड चूस।”
और मैं बिस्तर पर चढ़ने लगी तो अखिल ने थप्पड़ मारते हुए कहा, “क्यों रे कुतिया, औकात भूल गयी है अपनी जो मालिकों के साथ बिस्तर पर चढ़ रही है? साली नीचे ही रह और वहीँ बैठ कर हमारी सेवा कर।”
और मैं बिल्कुल एक वफादार पालतू कुतिया की तरह उनकी बात मान कर ज़मीन पर घुटनों तले बैठ कर उनका लौड़ा चूसने लगी। बीच-बीच में मेरा माथा पकड़ कर लौड़े पे दबाते, कभी कभार लौड़ा निकाल कर मेरे मुंह पे लौड़े से मारते। उन दोनों का लौड़ा चूसते-चूसते एक घंटा हो गया था, और दोनों भाई अब तक नहीं झड़े थे। मैं समझ गयी कि दोनों ने गोवा की स्पेशल दवाई खा ली थी, और ये पूरी रात मेरा कबाड़ा करेंगे।
फिर कुछ मिनट में दोनों कुछ अंतराल में झड़ गए। और दोनों ने अपना वीर्य मेरे चेहरे पे गिरा दिया। और उसके बाद दोनों ने मेरे मुंह पर थूक दिया।
अभिषेक ने हुकुम दिया, “दोनों भाइयों के वीर्य और थूक का जूस पी साली। तुझ कुतिया को यही खाना मिलेगा पूरी रात। इसी से तेरी चूत और पेट भरेंगे आज हम। ”
और मैं अपने दोनों मालिकों का हुकुम मानते हुए अपने चेहरे से पूरे रस को उठा-उठा कर चाटने लगी।
तभी कुछ बूँदें जाकर अखिल के पैर पे गिर गयी। तो अभिषेक ने एक ज़ोर का थप्पड़ मारते हुए कहा, “कुतिया, तेरी इतनी हिम्मत कैसे हो गयी, कि तू हमारा रस बर्बाद कर दे?” और उसने मेरे बालों को पकड़ कर मुझे अखिल के पैरों के पास ले गया और बोला, “चाँट यहाँ से भोंसड़ीवाली, तेरी यही औकात है, अपने बेटों के पैरों के तले ही तेरे असल जगह है।”
मेरे चांटने के बाद उसने फिर मुझे उठाया, और मुझे थप्पड़ मार कर मेरे चेहरे पे थूक दिया।
अब हम सब थक गए। और थोड़ी देर वैसे ही पड़े रहे। मेरा जबड़ा और चेहरा दर्द कर रहा था। लगातार एक घंटे की लंड चुसाई कर के मेरा मुंह थक गया था। चेहरा तो पूरा बिखर गया था। लिपस्टिक और मेकअप का तो कोई नाम-ओ-निशाँ नहीं बचा था। पर बदन पे बिकिनी अभी भी थी।
थोड़ी देर बाद मुझे ज़ोर की पेशाब लगी। तो मैंने बेटों से कहा तो अभिषेक बोल पड़ा, “चल भाई, इस कुतिया को मुतवा के लाते हैं।” और वो उठ कर आयें और मुझे मेरी ज़ंजीर से खींचने लगे। मैं जैसे ही उठ खड़ी होती अखिल ने ज़रा से धक्का देकर फिर से बैठा दिया और डांटने लगा, “क्या रे कुतिया? तू इंसान बनेगी? कुतिया चार पैरों पे चलती है। तू दो पैरों पे चलेगी, साली?” और फिर एक थप्पड़ मेरे गालों पर अखिल के हांथों पड़ा।
मैं सच में एक कुतिया जैसे चार पैरों पर आ गयी, और वो मेरी ज़ंजीर खींचते हुए बाथरूम ले गए। वहां जाकर अखिल ने मेरी बिकिनी की चड्डी को फाड़ दिया और वहीं फर्श पर मूतने को कहाँ । मेरी चूत से जैसे ही मूत निकलना शुरू हुआ, अखिल नीचे झुका, उसने अपनी कुछ उँगलियाँ मेरे चूत में घुसेड़ दी और काफी तेज़ी से हिलाने लगा। मेरा मूत बिल्कुल किसी फवारे जैसा निकला, और मैं तो कराह ही गयी। ये मेरे साथ कभी अभिषेक ने भी नहीं किया था।
कहानी अभी बाकी है दोस्तों।