अब तक आपने पढ़ा कि सुभद्रा चित्रा को डाक्टर प्रमिला के पास ले गयी, और प्रमिला ने उन्हें मनोचिकित्सक कृष्णा सोबती के पास भेज दिया। कृष्णा सोबती के यहां कानपुर कि मशहूर मनोचिकित्सक मालिनी अवस्थी भी आई हुई थी। मालिनी अवस्थी और चित्रा के सवाल जवाब शुरू हो चुके थे। अब आगे पढ़िए।
“चित्रा से सवाल जवाब डाक्टर मालिनी अवस्थी ही कर रही थी।”
चित्रा बता रही थी, “मालिनी जी से बात करते-करते बात लंड के साइज तक जा पहुंची, कि कैसे हम सहेलियां जब मिल कर बैठती थी, तो कहा करती थी “हाथी की सूंड जैसे लम्बे लंड वाला पति मिल जाए, तो भाग संवर जाएं, और चुदाई का मजा ही आ जाए।”
‘इस पर मालिनी जी ने मुझसे सवाल किया, “चित्रा, क्या तुम भी ऐसा कहा करती थी?”
मैं: जी हां मैं भी कहती थी। सभी कहती थीं।
मालिनी जी: तो तुम्हें मिला ऐसे हाथी की सूंड जैसे लम्बे लंड वाला पति? मतलब युग का लंड कितना बड़ा है?
मैं: जी नहीं मिला। युग का लंड तो उन पोर्न फिल्मों में काम करने वाले लड़कों के लंडों से आधा भी नहीं है।
मालिनी जी: फिर भी अगर समझाना हो कि युग का लंड कितना लम्बा है, तो कैसे बताओगी कितना लम्बा है?
‘डाक्टर मालिनी के ये पूछने पर मैंने कुछ देर सोचा। फिर हाथ की बीच की उंगली के सिरे से हथेली के बीच तक का इशारा किया और बोली, “तकरीबन इतना लम्बा होगा।”
मालिनी जी: ये तो पांच इंच के आस-पास लगता है।
‘मैं इस पर चुप रही। क्या बोलती? युग का लंड था ही इतना।’
मालिनी जी: तो फिर जब पहले पहल तुम्हें बात पता चली, मतलब शादी की पहली रात जब तुमने युग का लंड हाथ में लिया और तुम्हें मालूम हुआ कि ये तो जैसा तुम सोचा करती थी वैसा बड़ा नहीं है, तो क्या तुम्हें परेशानी नहीं हुई?
मैं: जी थोड़ी तो परेशानी हुई थी। लेकिन तब तक मैं इतना समझ चुकी थी, कि आम तौर पर लड़को के लंड इसी साइज़ के होते है। पोर्न फिल्मों की बात और होती है। देखने वालों को मजे देने के लिए चुदाई की ऐसी फिल्मों में ऐसे लड़के ही लिए चुने जाते है, जिनके लंड कुछ ज्यादा ही बड़े होते है।
‘मालिनी जी थोड़ी सी हंसी और बोली: बिल्कुल ठीक। अगर इस बात को सही से समझना हो तो ये कहा जा सकता है कि हर बड़े लंड वाला लड़का हो सकता है पोर्न फिल्मों का एक्टर ना बने, मगर पोर्न फिल्मों के हर एक्टर का लंड बड़ा ही होता है। वो ऐसे ही लड़के अपनी फिल्मों में लेते हैं जिनके लंड अच्छे खासे बड़े होते हैं। फिर डाक्टर कृष्णा की तरफ देख कर खुल कर हंसते हुए बोली, “हाथी की सूंड जैसे।”
‘मालिनी जी बोल रहीं थीं: पोर्न फिल्मों में ऐसे ही लड़कों के तो कई बार तो लंड पर बोटॉक्स के इंजेक्शन लगा कर भी लंड मोटे किये जाते हैं। बोटॉक्स एक ऐसा रसायन होता है जिसका इंजेक्शन लगाने से शरीर की चमड़ी फूल जाती है। अक्सर बुढ़ापे में लोग चेहरे, हाथों और गर्दन कि झुर्रियां छुपाने के लिए ये इंजेक्शन लगवाते हैं। अब तो हमारे यहां भी इसका चलन हो चला है।
‘फिर डाक्टर मालिनी हंसते हुए बोली, “लेकिन मैं और कृष्णा ये सब नहीं करती। क्यों कृष्णा?” डाक्टर कृष्णा ने जवाब कुछ नहीं दिया मगर वो भी हां में सर हिलाते हुए हंस दी।”
“अब तो मालिनी जी ही बोल रही थी, मैं तो बस चुप-चाप सुन रही थी।”
‘मालिनी जी ही बोली: असल में तो चित्रा औरत मर्द की कामयाब चुदाई के लिए साढ़े चार इंच का लंड भी काफी होता है। क्योंकि चूत का शुरू का तीन-चार इंच का हिस्सा ही संवेदनशील होता है, जहा लंड कि रगड़ाई से मजा मिलता है। बाकी का चूत के आगे के हिस्से में कुछ भी महसूस नहीं होता।
बड़े लंड से लड़की को ज्यादा मजा आता है ये केवल एक मिथक है, कोरा झूठ है। हाथी की सूंड जैसे मोटे लम्बे लंड नए-नए जवान हुए लड़के-लड़कियों के दिमागी फितूर होते है। चूत का काम साढ़े चार इंच का लंड भी चला सकता है, बशर्ते चुदाई पूरी होने तक लंड कि सख्ती कायम रहे।
“मैं डाक्टर मालिनी के ऐसे साफ-साफ चूत लंड की बातों से हैरान भी हो रही थी, और मुझे शर्म सी भी आ रही थी।”
‘सच पूछो तो राज, मेरी तो चूत लंड की ऐसी साफ़-साफ़ बातें सुन कर गीली होने लग गई थी। खुजली मच गयी थी मेरी चूत में। मगर मैं यही सोच रही थी, दो-दो मनोचिकित्स्क, विशेष कर मालिनी जी जिस तरह बात कर रही थी, मुझे लगने लगा था कि मेरी समस्या का हल भी मालिनी जी ही निकालेंगी।”
“जब मालिनी जी ने चुदाई के दौरान लंड में सख्ती बने रहने कि बात की, तो मैंने कहा, “जी हां मैं ये जानती हूं।”
मालिनी जी: अच्छा चित्रा एक बात और बताओ। क्या इस खेल-खेल में कभी तुम लड़कियों ने डिलडो मतलब नकली लंड, रबड़ का लंड अपनी चूत में लिया?
मैं: मुझे पता है आंटी डिलडो क्या होता है। डिलडो नरम प्लास्टिक का बना लंड जैसी शक्ल का बड़े से लंड जैसा ही होता है। मैंने अपनी चूत में लिया है एक बार। मैं अपनी सहेली के घर गयी थी। वहा तीन-चार लड़कियां और भी थी। उनमें एक लड़की ये डिलडो लेकर आयी थी। सब लड़कियों ने शौंक-शौंक में डिलडो अपनी चूत में डाला था, और चूत का पानी छुड़ाया था। मैंने भी छुड़ाया था।
मालिनी जी: कैसा लगा था तुम्हें ये डिलडो चूत में लेकर मजा लेना?
मैं: आंटी डिलडो चूत के अंदर लेने से चूत का पानी तो छूटा ही था, मजा भी आया था। आखिर को उंगली से भी तो लड़कियां चूत का पानी छुड़ाती ही हैं। लेकिन उस दिन के इसके बाद भी बाकी लड़कियां इसे अपनी चूत लेती थी। मगर उस दिन के बाद से मैंने ये डिलडो कभी चूत में नहीं लिया।
“क्या ये डिलडो-विलडो बिल्कुल मूली या खीरे जैसा एक-दम ठंडा। मुझे अच्छा नहीं लगा था, डिलडो चूत में लेना। मुझे तो उल्टा उंगली से मजा लेना ही ठीक लगता था।”
“जब मैंने कहा, “क्या ये डिडलो विडलो, बिल्कुल मूली या खीरे जैसा एक-दम ठंडा”, तो डाक्टर मालिनी और डाक्टर कृष्णा खुल कर हंसी थी।”
“डाक्टर मालिनी ने आराम से अपनी कुर्सी पर अपनी पीठ टिका दी। मुझे लगा कि मेरी और उनकी बात-चीत खत्म हो चुकी थी। और ऐसा ही था भी।”
“मालिनी जी बोली, ” देखो चित्रा, जैसा कि डाक्टर प्रमिला ने हमें बताया, और जैसा मुझे तुम्हारी बातें सुन कर समझ आया है, युग को कोइ बीमारी तो है नहीं। बस नहीं है तो ये कि समलिंगी होने के कारण उसको लड़कियों के साथ चुदाई में कोइ दिलचस्पी नहीं।”
“फिर कुछ रुक कर मालिनी जी बोली, “तुम उसके साथ चुदाई की कोशिश करती रहो जैसे तुमने की ही थी। जैसे लंड चूसना या इस तरह की और भी हरकतें जो काम वासना को जगाने लगे। तो भी युग को नार्मल चुदाई के लिए तैयार होने में वक़्त लग सकता है।
धीरे-धीरे जब युग के ये समलिंगी दोस्त भी छिटकते जायेंगे, और युग तुममें दिलचस्पी लेना शुरू कर देगा। मगर इसमें वक़्त लग सकता है, छह महीने, एक साल, या शायद कुछ और भी ज्यादा।”
“इसके बाद मालिनी जी ने अपनी कुर्सी मेरी नजदीक की, और मेरे हाथ पर अपना हाथ रख कर बोली, “चित्रा बेटा, युग के ठीक होने में तो टाइम लग सकता है, इस दौरान तुम क्या करोगी? तुम्हारी चूत तो लंड मांगेगी और ये स्वाभविक भी है। तब फिर तुम क्या करोगी? क्या तुम अपना मन मार लोगी?”
मैं: आंटी इस बात का जवाब देना तो मुश्किल है, कि मैं क्या करूंगी। ये तो हालात पर निर्भर करता है। इतना तो है, मैं मन तो नहीं मारूंगी। युग के साथ ही कुछ ना कुछ कोशिश जारी रखूंगी। अगर युग पूरी चुदाई ना भी कर पायेगा, फिर भी कुछ तो करेगा।
मालिनी जी: या फिर डिलडो, रबड़ के लंड। आज कल तो कई किस्म के रबड़ के लंड आ चुके हैं जो हद दर्जे का मजा देते हैं।
मैं: जी हां, मैंने भी देखे हैं कंप्यूटर पर। मगर ये तो बताते हैं, अभी यहां नहीं मिलते।
मालिनी जी: मिलते हैं। जान-पहचान वाले को मिलते हैं। कानपुर में मिलते हैं तो यहां लखनऊ में भी जरूर मिलते होंगे। आज कल इनका चलन खूब रहा है। खास कर कालेज के लड़कियों में और बड़ी उम्र की औरतों में।
मैं तुम्हे अपना फोन और ईमेल दे जाऊंगी। अगर कभी मन बने तो मुझे बताना। कानपुर से यहां कोइ ना कोइ आता जाता रहता है। मैं भिजवा दूंगी, नहीं तो कृष्ण जी से बात करना। हो सकता है ये ही तुम्हारी मदद कर दें। वैसे भी ये कोइ हमेशा वाली बात तो है नहीं। ये जुगाड़ तब तक के लिए हैं जब तक युग ठीक नहीं हो जाता।
मैं: नहीं आंटी, ये रबड़ के लंड वगैरह का मेरा कोइ इरादा नहीं। अगर कुछ और ना हुआ और युग ने भी कोइ दिलचस्पी ना दिखाई तो फिर देखूंगी क्या करना है।
मालिनी जी: कुछ ना हुआ से तुम्हारा मतलब किसी और के साथ चुदाई? युग के किसी दोस्त के साथ या दूर के किसी रिश्तेदार के साथ जो तुम्हारे घर आता जाता हो। या कोइ और लड़का?
मैं: युग के किसी ऐसे दोस्त को मैं नहीं जानती। और ऐसा कोइ रिश्तेदार भी नहीं जो हमारे घर बाराबंकी में आता जाता हो। घर में बस मैं हूं, युग है और युग के पापा हैं। और वैसे भी आंटी इस मामले में मैं ऐसा कोई जोखिम तो बिल्कुल भी नहीं उठाऊंगी जिससे परिवार पर कोइ बात आ जाए। ऐसी कोइ नौबत आने से तो फिर वो डिलडो, ठंडे रबड़ के लंड ही अच्छे।
मालिनी जी: तो फिर बचा कौन चित्रा? युग का दोस्त राज जो बचपन में तुम्हारे साथ शरारतें किया करता था, वो तो ऑस्ट्रेलिया में है।
“फिर मालिनी जी कुछ सोचने लगी और फिर बोली, “चित्रा युग के पापा के क्या उम्र होगी?”
मैं: अंकल सुभद्रा चाची से छोटे हैं। होंगे पचास या इक्यावन के।
मालिनी जी: पचास इक्यावन तो कोइ ज्यादा उम्र नहीं होती, मैं खुद इक्यावन की हूं। और सेहत कैसी है, देखने मैं कैसे हैं?
मैं: आप इक्यावन की? आप तो बिल्कुल भी नहीं लगती इक्यावन की। मैं तो अभी तक यही सोच रही थी कि पैंतीस चालीस के बीच में होंगी आप।
मालिनी जी: यही मैं कहना चाह रही थी। अगर आदमी का खान-पान ठीक हो। उसकी दिनचर्या ठीक हो, तो पचास बावन कि उम्र कोइ ज्यादा नहीं होती। मेरा तो ये है कि मैं अपने खान-पान का ध्यान रखती हूं और नियमित कसरत करती हूं। उधर युग के पापा का तो काम ही जिमींदारी वाला है। जिमींदारी के काम में तो कसरत अपने आप हो जाती है। अब बताओ कैसी सेहत वाले हैं युग के पापा, तुम्हारे अंकल।
मैं: उस हिसाब से तो उनकी सेहत बिल्कुल ठीक है, अंकल एक-दम तंदरुस्त हैं। हमारा, मतलब युग का परिवार त्रिपाठी ब्राह्मणों का परिवार है मगर घर में मांस मच्छी अंडा सब चलता है। अंकल तो रोज रात को खाने से पहले व्हिस्की पीने के भी शौक़ीन हैं।
मालिनी जी: चित्रा कभी सोचा है युग के पापा के साथ तुम्हारा जो रिश्ता बना है, वो कैसे बना है?
मैं: जी मैं समझी नहीं।
मालिनी जी: मेरा मतलब है, मान लो अगर युग के साथ तुम्हारी शादी ना हुई होती तो युग के पापा के साथ क्या रिश्ता होता?
“मैं कुछ सोचते हुए बोली, “आंटी अगर वैसे सोचा जाए तो कुछ भी नहीं रिश्ता नहीं। मेरा अंकल के साथ जो भी रिश्ता बना है, वो युग से शादी कि कारण ही बना है।
मालिनी जी: बिल्कुल ठीक। कुछ भी नहीं। युग के पापा के साथ तुम्हारा सीधा कुछ भी रिश्ता नहीं। इसका मतलब समझती हो?
“अब मुझे समझ आ गया था। मालिनी जी मुझे युग के पापा के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने, चुदाई का रिश्ता बनाने को कह रही थी। मुझे युग के पापा से चुदाई करवाने के लिए कह रही थी।”
“पहले तो मालिनी जी कि ये बात सुन कर मुझे कुछ अजीब सा लगा। मगर फिर दिमाग के एक कोने से आवाज आयी। यही एक रिश्ता है जिसमें चुदाई करवाने में कोइ जोखिम नहीं। अगर कुछ होगा तो सब कुछ घर की चार दीवारी के अंदर होगा। कम से कम तब तक तो ये रिश्ता बनाया और निभाया जा सकता है जब तक युग ठीक ना हो जाए।”
“मुझे चुप देख कर मालिनी के चेहरे पर संतुष्टी के भाव आ गए। मालिनी जी जान गयी कि मैं उनका इशारा समझ चुकी थी। मालिनी जी ने टेप रेकार्डर बंद कर दिया। मतलब हमारी बात खत्म हो गयी थी।
“मालिनी जी कृष्णा आंटी से बोली, “कृष्णा सुभद्रा जी को बुला लो।”
“कृष्णा आंटी चाची को बुला लाई। मालिनी जी ने चाची को बोला, “सुभद्रा जी, चित्रा बहुत ही सुलझी हुई लड़की है और जल्दी हिम्मत हारने वालों में से भी नहीं। मैं चाहती हूं आप मेरी और चित्रा में हुई बात पूरी सुने और खुद ही फैसला करें कि क्या करना चाहिए। मुझे उम्मीद है आप का फैसला बिलकुल ठीक होगा।”
‘फिर मालिनी जी ने मुझे कहा, ” चित्रा बेटा, मैं तुम्हारी और मेरे बीच हुई बात पूरी की पूरी सुभद्रा जी को सुनाऊंगी। तुम्हें अगर लगता है कि तुम्हारे सामने टेप सुनाने से तुम्हें जरा सी भी परेशानी हो सकती है, तो तुम पीछे कमरे में चली जाओ।”
‘मैंने कह दिया, “नहीं आंटी, मैं यहीं बैठूंगी। वैसे भी अब मुझे जो भी समस्या होगी मैं चाची के अलावा और किसको बताऊंगी। मैं यहीं बैठूंगी, आप चाची को हमारे बीच हुए बातों कि टेप सुनाईए।”
‘मालिनी जी कृष्णा से बोली, “कृष्णा चलो चाय के लिए बोलो। चाय पीते-पीते चित्रा की टेप सुनेंगे।”
कृष्णा आंटी ने वहीं से फोन किया और दस मिनट में एक नौकर ट्रे में चाय का सामान और साथ कुछ हल्का खाने का सामान ले आया। कृष्णा आंटी ने चाय कप में डाली और कप हमारे हाथों में दे दिए। नौकर जा चुका था। मालिनी जी ने टेप चालू कर दी।”
‘चालीस मिनट चली टेप जब खत्म हुई तो चाची गहरी सोच में डूबी हुई थी। मालिनी जी ने टेप रिकॉर्डर में से निकाल कर चाची के सामने रख दी और चाची से पूछा, “हां तो सुभद्रा जी अब?”
‘टेप चाची के सामने रखते ही चाची समझ गयी कि डाक्टर मालिनी अवस्थी कि तरफ से बात खत्म हो गयी है। अब जो भी फैसला करना है हमने करना है।
‘चाची सोचने लगी। इस दौरान सब चुप थे। लेकिन अब चाची के चेहरे पर बड़ी ही तसल्ली के से भाव थे। चाची एक-दम तनाव मुक्त लग रही थी। उन्हें इस तरह देख मालिनी जी ने भी अपनी कुर्सी पीछे सरका ली। उनके चेहरे पर भी संतुष्टी के भाव थे।”
‘पांच सात मिनट सोचने के बाद फिर चाची ने ही चुप्पी तोड़ी और चाची ने बस इतना ही कहा “धन्यवाद मालिनी जी “और टेप मालिनी जी के तरफ खिसका कर बोली, “इसे आप नष्ट कर दीजिये।” मतलब साफ था चाची कोइ फैसला ले चुकी थी।”
‘इसके बाद चाची ने अपना पर्स खोला और दो दो हजार के पांच नोट कृष्णा आंटी को देते हुए बोली, “आपकी फीस।”
‘डाक्टर कृष्णा सोबती हंसती हुई बोली, “सुभद्रा जी, मालिनी जी अब इस तरह के मशवरे कि कोइ फीस नहीं लेती। और जहां तक मेरा सवाल है मैं अपनी फीस प्रमिला से ले लूंगी। आप ये रूपए वापस पर्स में रखिये।”