पिछले भाग में आपने पढ़ा कैसे मनोचिकित्स्क डाक्टर मालिनी अवस्थी ने बातों-बातों में सुभद्रा और चित्रा को समझा दिया कि जब तक युग चित्रा की चुदाई करने लायक नहीं हो जाता, तब तक चित्रा के पास चुदाई का मजा लेने का एक ही आसान और ठीक रास्ता है, और वो है युग के पापा देस राज त्रिपाठी से चुदाई।
चित्रा बता रही थी, “मनोचिकित्स्क मालिनी अवस्थी के साथ बात खत्म हो चुकी थी, अब फैसला हम लोगों को करना था। सुभद्रा चाची ने कुछ देर सोचा और टेप डाक्टर मालिनी को नष्ट करने के लिए वापस दे दी। इसका मतलब था मतलब चाची कोइ फैसला ले चुकी थी।”
अब आगे की कहानी पढ़िए इस भाग में।
— सुभद्रा चाची का फैसला
“इसके बाद चाची उठ खड़ी हुई। चाची के साथ साथ ही मैं भी खड़ी हो गयी। चाची ने डाक्टर मालिनी अवस्थी और डाक्टर कृष्णा सोबती से विदा ली, और हम चलने के लिए तैयार हो गयी। मालिनी जी ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा, “चित्रा बेटा ऐसे ही समझदारी से काम लेना। सब ठीक हो जायेगा।”
मैने भी सर हिला कर हां कहा, और हम वहां से वापस चल पड़े। दोपहर के साढ़े बारह बज चुके थे। मतलब हम दो घंटे कृष्णा सोबती के क्लिनिक में रहे थे। गाड़ी मैं बैठते ही चाची ने ड्राइवर से कहा, “मनोहर घर चलो वहां से चित्रा का सामान उठा कर सीधे बाराबंकी चलना है।”
मैं कुछ बोलने ही वाली थी कि चाची ने मेरा हाथ दबा दिया और मैं बोलते-बोलते चुप हो गयी। घर पहुंच कर मैंने अपना बैग उठाया और डेढ़ बजे हम बाराबंकी के लिए रवाना हो गए। बाराबंकी पहुंच कर चाची ने फिर ड्राइवर को कहा, “मनोहर, पहले चित्रा को घर छोड़ दो। हमें जहांगीरपुर फार्म पर जाना है।”
मैं बड़ी हैरान हो रही थी कि आखिर को चाची कर क्या रही थी। ये तो मेरे दिमाग में भी नहीं आ रहा था कि चाची उसी दिन मेरी और अंकल की चुदाई करवाने की सोच रही थी। इस बात का पता तो मुझे तब चला जब उसी रात को अंकल के साथ मेरी चुदाई हो गयी और अंकल के हाथी की सूंड जैसे लंड ने मेरी चूत के परखच्चे उड़ा दिए।
बाराबंकी घर पहुंच कर चाची ने मुझे घर उतारा और बोली, “चित्रा तू थोड़ा आराम कर ले। सुबह से घूम रहे है, तू थक गयी होगी। मैं देस के पास हो कर आती हूं।”
थक तो मैं गयी ही थी, लेटते ही मुझे झपकी सी आ गयी। पांच बजे जब लक्ष्मी ने घंटी बजाई तो मेरी नींद खुली। आधे घंटे के बाद चाची भी आ गयी। लक्ष्मी को चाय के लिए बोल कर चाची ने मुझे कहा, “चित्रा तू फ्रेश हो जा, फिर चाय पीते है। तुझसे कुछ बात करनी है।”
मैं बाथरूम में गयी। मेरा नहाने का मन कर रहा था। गर्म पानी से नहा कर कपड़े बदल कर मैं ड्राईंग रूम में आ गयी। चाची भी हाथ मुंह धो कर वहीं बैठी थी। लक्ष्मी चाय रख कर रात का खाना बनाने चली गयी। चाची सोफे पर मेरे साथ ही आ कर बैठ गयी और बोली, “चित्रा आज मालिनी जी से मिल कर तुझे क्या लगा? सच-सच बताना।”
मैंने सोचते हुए कहा, “चाची मालिनी जी ने तो बातें तो बहुत सारी कीं, मगर उनके कहने का निचोड़ ये था कि जब तक युग पूरी ठीक हो कर मेरी चुदाई के लायक नहीं हो जाता मुझे चुदाई के मजे और अपनी चूत का पानी किसी और तरीके से छुड़ाने का सोचना चाहिए। जैसे रबड़ का लंड जिसको डिडलो बोलते है या फिर कुछ और।
चाची बोली, “चित्रा बिल्कुल मालिनी जी का यही मतलब था। मगर चित्रा तुमने खुद कहा था कि ये… क्या बोलते है? हां डिलडो। डिलडो चूत में लेने में तो तुम्हारी दिलचस्पी नहीं है। अब सवाल ये है कि अगर ये डिलडो नहीं तो फिर ये ‘कुछ और’ क्या हो सकता है? राज हो सकता था, मगर वो तो यहां है नहीं।”
चाची थोड़ा रुकी और फिर बोली, “चित्रा तू ही बता। राज तो यहां है नहीं, अब ये ‘कुछ और’ क्या और कौन हो सकता है?”
मैं चुपचाप चाची की बातें सुन रही थी। फिर चाची बोली, “चित्रा याद कर, मालिनी जी ने एक बात और भी बोली थी और बिल्कुल सही बोली थी।”
मैंने पूछा, “कौन से बात चाची।”
चाची बोली, “याद करो। मालिनी जी ने पूछा था चित्रा कभी सोचा है युग के पापा के साथ तुम्हारा जो रिश्ता बना है वो कैसे बना है? मान लो अगर युग के साथ तुम्हारी शादी ना हुई होती तो युग के पापा के साथ क्या रिश्ता होता? और तुमने जवाब दिया था कुछ भी नहीं?”
मैंने कहा, “हां चाची ‘कुछ भी नहीं’, कहा तो था मैंने। और यही सच भी है। मेरा अंकल के साथ जो भी रिश्ता बना है युग से शादी के कारण ही तो बना है, वरना उनके साथ मेरा क्या रिश्ता है? आपके कारण अगर कोइ रिश्ता बनता भी है तो वो बहुत दूर का बनता है।”
इस पर चाची बोली, “ठीक कह रही हो तुम चित्रा, ‘कुछ भी नहीं’। युग के पापा के साथ तुम्हारा सीधा कुछ भी रिश्ता नहीं बनता। इसका मतलब समझ रही हो?”
अब मुझे समझ आया चाची क्या सोच कर लखनऊ से आज ही मुझे यहां लाई थी। युग यहां था नहीं, कहीं गया हुआ था, और मेरा युग के पापा से कोइ सीधा बनता रिश्ता नहीं। मतलब शीशे की साफ़ था, मेरी और अंकल की चुदाई।
वैसे ये बात समझ तो मैं मालिनी जी के कहने से भी गयी थी। मुझे तो ये भी समझ आ गया था कि जिस तरह से चाची ने मेरी और डाक्टर मालिनी की बातों की टेप मालिनी जी को दी थी, चाची भी इस बात को समझ गयी थी। मगर चाची इतनी जल्दी-जल्दी ये सब कर ही देंगी ये नहीं सोचा था।
मेरे मन में कई सवाल उठ रहे थे। पहला तो यही था कि युग के पापा, अपने ससुर से चुदाई? दूसरी बात जो मुझे तंग कर रही थी वो थी एक इक्यावन साल के अधेड़ उम्र के आदमी से चुदाई? क्या इक्यावन की उम्र में भी अंकल का लंड वैसे ही खड़ा होता होगा जैसे जवानी में खड़ा होता था? क्या अभी भी चुदाई के दौरान लंड की सख्ती बरकरार रहती होगी? और सब से बड़ा सवाल थी कि अंकल का लंड भी अपने बेटे युग के लंड की तरह वही पांच इंच का हुआ तो?
ये सब सवाल बिजली की तरह मेरे दिमाग में घूम गए। चाची मेरी तरफ देख रही थी। शायद इस बात का इंतजार कर रही थी कि मैं क्या जवाब देती हूं। मैं बहुत ज्यादा उलझन में पड़ गयी। मुझे कुछ जवाब ही नहीं सूझ रहा था।
चाची ने फिर मुझे पूछा, “चित्रा तुमने कोइ जवाब नहीं दिया, कुछ तो बोलो?”
चाची के पूछने से मैं ख्यालों से बाहर निकली और सोचा अंकल का लंड भी युग के लंड की तरह छोटा ही हुआ और अंकल भी मेरी चुदाई अगर ढंग से ना कर पाए तो युग ही मेरी चुदाई मैं कौन सा तीर मार रहा है। अंकल की चुदाई युग की चुदाई से क्या खराब होगी? युग के साथ चुदाई तो क्या होनी थी, युग तो लंड ही चूत में नहीं डाल पाया था।
मैंने हां करने का फैसला कर लिया और सोचा, “देखते है, जो होगा देखा जाएगा। चूत लंड चुदाई की बातें करते सुनते वैसे भी मेरी में चूत में खुजली मची हुई थी। अब मेरी कुंवारी चूत को चुदाई चाहिए थी कैसी भी – पूरी चुदाई या फिर युग की चुदाई जैसी आधी-अधूरी चुदाई।
मैंने बस इतना ही कहा, “चाची ये क्या करने को कह रही हो?”
चाची ने शुक्र मनाया होगा कि मैंने कम से कम ‘ना’ तो नहीं की।
चाची बोली, “चित्रा मौजूदा हालात में इसके अलावा और कोइ चारा नहीं है। अगर है तो तू ही बता।”
चाची की ये बात भी ठीक थी। युग का लंड चुदाई कर नहीं पाता था। राज यहां था नहीं। किसी बाहरी मर्द से चुदाई करवाने के बाद अगर बात खुल जाये बहुत बड़ा बखेड़ा खड़ा हो सकता था।
और फिर चाची कुछ रुक कर बोली, “और फिर चित्रा ये कोइ हमेशा वाली बात तो है नहीं। जैसे ही युग चुदाई के लायक हो जाए, तुम देस से चुदाई बंद कर देना।”
मैं सोच रही थी चाची ठीक कह रही थी। कोइ और चारा भी तो नहीं था। अंकल से चुदाई का मतलब घर की बात घर में ही रहेगी। और जब युग चुदाई के लायक हो जाएगा, अंकल के पास चुदाई के लिए जाने की वैसे ही जरूरत ही नहीं रहेगी।
मैंने कुछ रुक कर कहा, “चाची, लेकिन क्या ये ठीक होगा?”
मेरा यह कहना एक तरह से मेरी हां ही थी। चाची ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, “देखो चित्रा एक उम्र होती है जब हर लड़के-लड़की को चुदाई चाहिए होती है। ये शादी बियाह के रीती रिवाज, ताम-झाम, ये सब लड़का-लड़की के बीच चुदाई शुरू करने के लिए ही बनाये गए है।
तुम जवान हो, तुम्हारी चूत को भी चुदाई चाहिए। मुश्किल ये है कि युग चुदाई कर ही नहीं पाता। जब तक युग तुम्हारे साथ ठीक से कुछ करने लायक नहीं हो जाता, चुदाई का यही एक रास्ता है जिसमें कोइ जोखिम नहीं है।”
फिर चाची ने मेरा हाथ दबाते हुए कहा, “जब युग यहां घर पर हो तो तुम युग के साथ कोशिश करती रहो। जब युग यहां ना हो तो….।” चाची ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
मुझे चुप देख कर फिर चाची ने मुझे से पूछा, “तो चित्रा बोलो, क्या कहती हो? मुझे तो इसके अलावा कोइ दूसरा रास्ता सूझ नहीं रहा। देस के पास जाने से कम से कम ये तो होगा, घर की बात घर में ही रहेगी।”
चाची की ये बात तो बिल्कुल ठीक थी। अंकल के साथ चुदाई में कम से कम कोइ जोखिम तो नहीं था, और घर की बात घर में ही रहती। मैं कुछ देर तो चुप रही फिर कह दिया, “चाची मैं क्या बोलूं जैसा आपको ठीक लगे।”
चाची ने मेरा माथा चूम लिया। एक तरह से तो घर की इज्जत बच गयी थी। बात भी ठीक थी। अगर चुदाई की प्यासी चूत का पानी छुड़वाने मैं इधर-उधर मुंह मारने लग जाती तो क्या होता।
मैं सोच रही थी चाची कि एक पहल ने सभी को किस धर्म संकट में डाल दिया था। चाची ने तो युग से मेरा रिश्ता ये सोच कर करवाया था कि, खाता-पीता खानदान है, जाना पहचाना घर है, चित्रा बचपन से सब को अच्छे से जानती है। युग में देखने में कोइ कमी नहीं। चाची को क्या पता था कि अंदर से युग क्या था? यहां तो युग की एक आदत ने सब कुछ पलट कर रख दिया, और अब नौबत यहां तक आ गयी थी कि चाची को मेरी चुदाई की चिंता लग गयी थी।
मैं तो ये यहां तक भी सोच रही थी, कि पता नहीं देसराज अंकल से भी चाची ने कैसे बात की होगी। भाई-बहन के रिश्ते में ऐसी चूत चुदाई की बातें? सच पूछो राज तो मुझे चाची पर भी तरस आने लगा था। बेचारी मेरी भलाई करते-करते बेकार में फंस गयी थी।
सात बजे अंकल आये और हमेशा की तरह सीधा अपने कमरे में चले गए। चाची को भी मालूम ही था अंकल रोज रात को शराब पीते है। जैसे ही अंकल आये, चाची ने मुझे कहा, “चित्रा तू भी आज जल्दी खाना खा ले ”।
मैंने कहा, “नहीं चाची मुझे भूख नहीं है मैं कुछ हल्का लेना चाहती हूं।”
असल में तो मैं जिंदगी की पहली चुदाई करवाने के लिए मरी जा रही थी। चुदाई का सोच-सोच कर मस्ती के मारे चूत मेरी पानी-पानी हुई जा रही थी। भूख तो मेरी सूख ही चुकी थी।
चाची बोली, “हल्का ही ठीक रहेगा। मैं सूप बनवाती हूं और लक्ष्मी को फारिग करती हूं।” फिर चाची रसोई में चली गयी। आधे घंटे में लक्ष्मी के साथ ही सूप के बाउल ले कर आ गयी, और साथ ही लक्ष्मी से बोली, “लक्ष्मी हम लोग तो खाना नहीं खाएंगी। देस को मैं खिला दूंगी। तू रसोई समेट के चली जा।”
लक्ष्मी बोली, “जी बीबी जी।”
हमने आराम-आराम से बीस मिनट में सूप खत्म किया। आठ बज चुके थे। तब तक लक्ष्मी भी रसोई से फारिग हो कर जा चुकी थी।
लक्ष्मी के जाने के बाद हम चुप-चाप बैठ गए। कमरे में कोइ आवाज नहीं थी।
कुछ देर के बाद अचानक चाची बोली, “चित्रा मैं देस को देख कर आती हूं।”
पंद्रह मिनट अंदर अंकल के पास हो कर चाची वापस आई और बोली, “चित्रा देस का आख़री पैग चल रहा है थोड़ी देर में अंदर चली जाना।”
ये कह कर चाची चुप-चाप मेरे सामने के सोफे पर बैठ गयी। हम दोनो ही चुप थी। मैं सोच रही थी, आखिर को आज मेरी पहली चुदाई होगी। चाची भी जरूर कुछ ऐसा ही सोच रही होगी, “शुक्र है भगवान का आज चित्रा की पहली चुदाई होगी।”
मेरे लिए वक़्त काटना मुश्किल हो रहा था। मैं तो बस पहली पहली चूत चुदाई का ही सोच रही थी। कैसा होगा अंकल का लंड, कैसे कैसे चोदेंगे अंकल मुझे। पहली होने वाली ढंग की चुदाई के ख्याल भर से ही चूत में फ़ुर्रर्र-फ़ुर्रर्र पानी निकल रहा था। असल में तो मेरी कुंवारी चूत की सील तोड़ चुदाई उस दिन ही होने वाली थी।
वो तो आजकल उंगली करते-करते और चूत में रबड़ के लंड लेते लेते तेईस चौबीस साल की लड़की की चूत की सील रहती ही नहीं। नहीं तो कायदे से तो सील ही फटनी थी उस रात।
वक़्त तो जैसे ठहर सा ही गया था। पंद्रह बीस मिनट बाद जब चाची ने कहा, “जा चित्रा, हो गया होगा देस का”, तो मैंने शुक्र मनाया।”
मैं बाथरूम गयी, पेशाब किया, चूत की धुलाई की, ब्रा और चड्डी उतार कर बाथरूम में ही उतर दी और वापस ड्राईंग रूम में आ कर चाची के पास खड़ी हो गयी। चाची को मेरे साथ नजरें मिलाना भारी हो रहा था। चाची ने मेरा हाथ पकड़ा और मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली, “जा बेटा। देस तेरा इंतजार कर रहा होगा।”
जाते-जाते मैंने दीवार पर लगी घड़ी पर नजर डाली। नौ बजे थे। अंकल कमरे में जाते वक़्त मैं सोच रही थी, क्या-क्या करेंगे अंकल मेरे साथ, क्या क्या कर सकते है अंकल मेरे साथ?”
मेरे मन में फिर से वही ख्याल आ रहे थे। क्या अंकल का लंड भी युग के लंड की तरह ही पांच इंच का होगा? क्या इस उम्र में अंकल का लंड वैसा ही खड़ा भी होता होगा? अगर खड़ा होता भी होगा तो क्या उसमें इक्यावन साल के अंकल का लंड में जवानी वाली सख्ती रहती भी होगी या नहीं? मेरी कुंवारी चूत में जा भी पायेगा या नहीं?
तब तक भी मुझे यही लग रहा था कि अंकल ने शायद युग की मेरी चुदाई ना कर पाने के कारण ही सुभद्रा चाची की बात मान ली और मेरी चुदाई के लिए राजी हो गए।
मुझे तो लग रहा था युग के गांडूपने के कारण अंकल अपनी जिम्मेदारी समझ कर अपना लंड खड़ा करके मेरी चूत में डालेंगे, चुदाई करेंगे और मेरा पानी छुड़ा कर मुझे चुदाई का मजा दे देंगे, और बस। ये हो जाएगी मेरी चुदाई और मैं दस पंद्रह मिनट या हद हुई तो आधे घंटे में अपने कमरे में वापस आ जाऊंगी।
इन्हीं ख्यालों में मैं अंकल के कमरे के अंदर पहुंच गयी।