ही फ्रेंड्स, मई हू 36 साल की गोरी-चित्ति लंबी और कमाल की साबिता. उपर वाले ने मुझे ग़ज़ब का रूप दिया है. मेरी मस्तानी छूट मे हर दिन बहार ही बहार रहती है. मेरे कहने का मतलब है, की लाल पानी मेरी छूट मे आता ही नही है. सो मई हर दिन छुड़वाने के लिए रेडी रहती हू.
आप लोग अचरज मे होंगे, की ऐसा क्यू है. तो मई आपको बता डू, की जब मई जवान हो गयी थी, तब मेरी चूचिया बड़ी-बड़ी हो गयी थी और गांद मेरी मटकने लगी थी. मई छुड़वाने के सपने देखने लगी, तो भी मेरे मैंस, यानी लाल पानी की धार मेरी छूट मे नही आई.
इस्पे मेरी मा चिंतित हो गयी और उन्होने मेरा मेडिकल चेक-उप कराया. छ्होटा सा ऑपरेशन हुआ, तो पता चला की मेरे अंदर यूटरस है ही नही. अब सब लोग, और साथ मे मई भी बहुत चिंतित हुई. लेकिन चिंता करने से क्या होना था.
तभी मैने शादी ना करने का फैंसला कर लिया था और यू ही खेलते-कूदते और चुड़वाते हुए जीवन बिताने की सोच ली. मैने अपनी पढ़ाई आचे से पूरी की और मुझे नौकरी भी मिल गयी. अब मई यू ही दोस्ती करके, कभी कॉल गर्ल की तरह और कभी प्ले बॉय से चुड़वाते हुए ज़िंदगी की गाड़ी चला रही हू.
मेरे पापा तो बहुत पहले ही गुज़र गये थे. अब मा भी नही रही थी. मई जहा काम करती हू, वाहा मेरे एक बॉस थे. उनका नाम था रितेश. रितेश की वाइफ कुछ दिन पहले गुज़र गयी थी और रितेश काई बार मुझे छोड़ चुका था.
चुदाई मे रितेश को तो बहुत मज़ा आता था, पर रितेश के साथ मुझे कोई ख़ास मज़ा नही आता था. रितेश बर मे लोड्ा डालता था और 8-10 धक्के मार कर फारिघ् हो जाता था. जब मई उसको टोकती थी, तो रितेश का जवाब होता था-
रितेश: मई बस इतना ही तुझे छोड़ पौँगा और बाकी तू जहा चाहे छुड़वा सकती है. मुझे इसमे कोई आपत्ति नही है.
और मई भी इधर-उधर चुड़वाती रहती थी और मेरा काम चल रहा था. फिर एक दिन रितेश ने मुझे शादी के लिए बोला. मई बिल्कुल मुकर गयी. रितेश बहुत गिड़गिडया और उसने मेरी काफ़ी मिन्नटे की. उसने बॉस होने के नाते मुझ पर दबाव भी डाला.
फिर मई इस शर्त पर राज़ी हुई, की मई अपनी संतुष्टि के लिए चाहे जहा चड़वौ, तुम्हे ऐतराज़ नही होना चाहिए . रितेश बोला-
रितेश: देखो यार, तुम्हे बच्चा नही होगा और मई भी बच्चा नही चाहता. बाकी रही संतुष्टि की बात, तो तुम्हे इसकी पूरी आज़ादी रहेगी.
मई मान गयी और मेरी नज़र रितेश की दौलत पर भी थी. उसको बस एक बेटा ही था, जो 1स्ट्रीट एअर मे पढ़ रहा था. फिर मई रितेश के घर आ गयी. फर्स्ट नाइट को रितेश ने मानफ़ोर्से टॅबलेट ली और मेरे पास आया. उसने मेरे होंठो को छाता और मेरी चूचियो को मसला, रगड़ा और सहलाया.
फिर वो नेरी छूट को अपनी जीभ से चाटने लगा. कभी-कभी वो जीभ को छूट के अंदर डाल कर ग-स्पॉट को टच करने काग़ा. इससे मई चहक उठी. मुझे लगा मानफ़ोर्से की ताक़त से आज रितेश मुझे छोड़ कर संतुष्ट कर देगा.
फिर रॉल्प्ले करते हुए रितेश ने मेरे सारे कपड़े उतारे और लंड को मेरी छूट पर रगड़ने लगा. रगड़ते-रगड़ते उसका लोड्ा मेरी बर की दरार पर अटका और रितेश ने झटके से लोड्ा मेरी बर मे उतार दिया. मई आज बेहद खुश थी रितेश की ताक़त देख कर.
लेकिन ये खुशी ज़्यादा देर की नही थी. छोड़ते हुए अभी 1 मिनिट भी नही हुआ था, की रितेश के लंड से सारा माल बाहर आ गया. और मई बस तड़पति रह गयी. मैने बर मे उंगली डाली, किचें से बैंगन लाके बैंगन छूट मे डाला, लेकिन वो सुख कहा मिलना था.
फिर मई मॅन मार कर रह गयी. रितेश बिना छोड़े रह भी नही सकता था, या यू काहु, की उसको बस अपने लंड को झाड़ लेना होता था. अब इसी तरह से दिन गुज़र रहे थे. फिर रितेश की बेहन के घर शादी थी. हम तीनो लोग, मई, रितेश और रितेश का बेटा रवि शादी मे गये.
वाहा रुकने के लिए हम लोगो को एक रूम दिया गया. अब हम लोग शादी मे थे. बारात के बाद रितेश मुझे रूम मे चलने को ज़ोर देने लगा और हम लोग अपने रूम मे आ गये. रवि पहले से ही रूम मे सोया हुआ था. हम रूम मे आके अभी बस लेते ही थे, की रितेश चुदाई के लिए पहल करने लगा.
मैने उसको बहुत माना किया, पर रितेश नही माना. रितेश ने मेरी सलवार और पनटी खोल दी और लंड को छूट मे डाल कर छोड़ने लगा. मई बार-बार रवि को देख रही थी, क्यूकी रवि भी अपने बाप की चुदाई देख रहा था.
मई तो शरम से गॅड गयी थी, पर चुप-छाप चुड्ती गयी. रितेश आधे मिनिट की चुदाई करके फारिघ् हो गया, और एक तरफ लूड़क गया. थोड़ी देर बाद रितेश फिरसे शादी मे चला गया. मुझे हल्की सी नींद आ गयी थी, तो मई सो गयी.
फिर रवि धीरे-धीरे मुझसे सतत गया. मई करवट लेके सोई थी और मेरी गांद रवि की तरफ थी. रवि के मेरे साथ सतत जाने से, मुझे सुखद एहसास हो रहा था. रवि को तो मई बच्चा ही समझ रही थी.
फिर धीरे-धीरे रवि ने मेरी गांद पर से गाउन को हटा दिया और अब मई पूरी तरह जागी हुई थी. मई उत्सुकता मे थी और देख रही थी, की ये छ्होकरा क्या-क्या करने वाला था. अब मई रवि के तनने लंड को भी अपनी गांद पर महसूस कर रही थी, लेकिन कुछ नही बोल रही थी.
मई नाटक कर रही थी, की मई सोई हुई थी. तभी रवि का लंड ठीक मेरी छूट के द्वार पर बैठ गया. रवि ने ज़रा भी देरी नही की और सटाक करके लोड को मेरी बर मे धकेल दिया. उसका पूरा का पूरा लोड्ा एक ही धक्के मे मेरी बर के अंदर समा गया. फिर मई झटके से उठ कर बैठ गयी और उसको झिड़क कर बोली-
मई: क्या कर रहा है !
रवि बेशरम की तरह बोला: पापा के अधूरे काम को पूरा कर रहा हू.
मई बोली: ऐसा मत कर बेटा, मई तेरी मा हू.
रवि ने कहा: तू मेरी मा नही, मा की सौतन है.
मई बोली: ऐसा है तो ले, छोड़ ले मुझे.
फिर रवि ने मुझे धक्का देके चिट लिटा दिया.
मैने अपने बूब्स उसके सामने कर दिए और उसको बोली-
मई: ले बेटा, छोड़ने के पहले दूध पी कर मज़बूत हो जेया. फिर मस्ती से मुझे छोड़ना. क्यूकी मेरी जवानी मस्ती का प्याला है. पीले-पीले मेरे लाल.
रवि मेरी चूचियो पर टूट पड़ा. वो मेरी एक चूची को अपने मूह से चूस रहा था और दूसरी को हाथ से सहला रहा था. फिर मई रवि के लंड को हाथ मे ले लिया और मेरे अचरज का ठिकाना नही रहा.
उस लड़के की ना तो अभी मूचे निकली थी , और लंड के आस-पास भी बाल नही उगे थे. फिर भी उसका लंड बिल्कुल जवान की तरह मस्त था. रवि का लंड करीबन 6 इंच लंबा और लगभग 2.5 इंच मोटा था. मेरी तो तबीयत खुश हो गयी, की ऐसे मस्त लंड से छुड़वाने को मिलेगा.
इधर मेरी छूट महारानी की भी खुशी के आँसू बहे जेया रहे थे. मैने रवि को चूचियो पर से हटाया और बर चाटने को बोला.
मई: बन जेया अपनी बाप की तरह बुरछट्टा और चाट ले छूट को और मस्त हो जेया मेरे लाल.
रवि मेरी छूट पर आ गया और चत्तर-चत्तर कर छूट चाटने लगा. मेरी चूचिया तंन चुकी थी और छूट की फांके भी आपस मे रग़ाद खाने लगी थी. मई लंड के लिए तड़प रही थी और फिर मई रवि को बोली-
मई: अर्रे मादरचोड़ बुरछट्टे, तुझे चूचियो से ढूढ़ पीला कर मज़बूत बनाया है और बर चटवा कर मस्ती दी है. अब तो बर को छोड़ दे.
रवि कदकते लंड को लेके मेरी दोनो टाँगो के बीच बैठ गया. फिर उसने लंड को छूट के मुहाने पर रखा और घपाक से लोड्ा बर मे थोक दिया. रोड समान लोड्ा सनसानता हुआ बर मे घुस गया. बर मे लोड के जाते ही, मई मस्ती से भर गयी और मेरी गांद अपने आप उछालने लगी.
रवि कहा देर करने वाला था और वो घपा-घाप मेरी छूट छोड़ने लगा. मस्त चुदाई से मई झूम उठी थी. रवि ढाका-धक फाका-फक कस्स-कस्स के मेरी बर को छोड़ रहा था और मई आ श आ कर रही थी. मई रवि को ताव दे रही थी-
मई: मेरे बेटे, छोड़ो कस्स के मुझे और मेरी सारी खुमारी तोड़ दो. कर ले तू जन्नत की सैर आ आ बहुत मज़ा आ रहा है. छोड़ता जेया बेटा, छोड़ ढाका-धक.
फिर आधे घंटे की चुदाई के बाद, रवि का लोड्ा फूल कर अब बहुत मोटा हो गया था और बर मे एक-दूं टाइट्ली धक्का दे रहा था. मेरी बर पानी-पानी हो गयी थी. चुदाई की रफ़्तार के साथ, फॅक फॅक की आवाज़ो से कमरा गूँज रहा था.
मेरा बदन अकड़ने लगे था और रवि का भी बदन अकड़ने लगा था. वो मुझे कस्स के दबोचे जेया रहा था. मेरी बर से मदन-रस्स की धार बह गयी और मेरी छूट ढीली पड़ने लगी. लेकिन रवि अब भी पुर जोश से दे दाना दान मुझे छोड़ रहा था.
फिर आ आ करता हुए रवि के लंड ने रस्स की फूचकारी बर मे छोढ़ दी. उसके बाद रवि निढाल हो कर एक तरफ लूड़क गया. मई भी मस्त से पस्त हो गयी थी. अब रवि मेरी चुदाई की हर इच्छा को पूरी करने लगा.
आज की कहानी मे बस इतना ही. दोस्तो अब मुझे इजाज़त दीजिए. थॅंक्स, मई हू आपकी चहेती: